Saturday, November 21, 2015

मुरली 22 नवंबर 2015

22-11-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:07-03-81 मधुबन

“शान्ति स्वरूप के चुम्बक बन चारों ओर शान्ति की किरणें फैलाओ”
आज होलीएस्ट बाप होली हंसों से मिलन मनाने आये हैं। यह न्यारा और प्यारा मेला सिर्फ तुम सर्वश्रेष्ठ आत्मायें अनुभव कर सकती हो और अभी ही अनुभव कर सकती हो। बच्चों के स्नेह का रेसपान्ड देने के लिए बाप आये हैं। बच्चों ने स्नेह का रेसपान्ड सेवा में संगठित रूप में सहयोग का दिखाया। बाप-दादा स्नेह रूपी संगठन को देख अति हर्षित हो रहे हैं। लगन से प्रकृति और कलियुगी आसुरी सम्प्रदाय के विघ्नों को पार कर निर्विघ्न कार्य समाप्त किया, इस सहयोग और लगन के रिटर्न में बाप-दादा बच्चों पर बधाई के पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं। बाप का कार्य सो मेरा कार्य, इसी लगन से सफलता की मुबारक हो। यह एक संगठन की शक्ति का पहला कार्य अभी आरम्भ किया है। अभी सैम्पुल के रूप में किया है। अभी तो आपकी रचना और वृद्धि को पाते हुए और विशाल कार्य के निमित्त बनायेगी। अनुभव किया कि संगठित शक्ति के आगे भिन्न-भिन्न प्रकार के विघ्न कैसे सहज समाप्त हो जाते हैं। सबका एक श्रेष्ठ संकल्प कि “सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है”, इस संकल्प ने कार्य को सफल बनाया। बच्चों के हिम्मत-उल्लास, मेहनत और मोहब्बत को देख बाप-दादा भी हर्षित हो रहे हैं।

इस संगठन ने विशेष क्या पाठ सिखाया? जानते हो? कोई भी कार्य होता है, वह आगे के लिए पाठ भी सिखाता है तो क्या पाठ पढ़ा? (सहन करने का) अभी तो यह पाठ और भी पढ़ना है। इस कार्य ने आगे के लिए प्रैक्टिकल पाठ पढ़ाया -

“सदा डबल लाइट बन एवररेडी कैसे रहो”। जो डबल लाइट होगा वह स्वयं को हर बात में सहज ही सफलता मूर्त बना सकेगा। जैसा समय जैसे सरकमस्टॉन्स वैसे अपने को सरल रीति से चला सकेगा। मन से सदा मग्न अवस्था में रह सकेगा।

आज तो सिर्फ बच्चों को मेहनत की मुबारक देने आये हैं। और भी आगे विशाल कार्य करते चलो, बढ़ते चलो। बाप-दादा ने आप लोगों से भी ज्यादा सर्व कार्य देखे। आप लोग तो स्थूल साधनों के कारण कभी पहुँच सकते, कभी नहीं पहुँच सकते। बाप-दादा को हर स्थान पर पहुँचने में कितना टाइम लगता है? जो आपने न देखा वह हमने देखा। बाप का स्नेह ही पाँव दबाता है। निमित्त दिल्ली वाले बने लेकिन सर्व ब्राहमण आत्माओं के सहयोग से जो भी बच्चे सेवा के मैदान पर आये, सेवा के पहाड़ को अंगुली दी उन सभी बच्चों को बाप-दादा स्नेह और सदा साथ की छत्रछाया के अन्दर याद प्यार से पाँव दबा रहे हैं। थक तो नहीं गये हो ना! निमित्त कहने में विदेशी आते हैं लेकिन हैं स्वदेशी। उन्होंने भी बहुत अच्छी लगन से अथक बन भारत के कुम्भकरणों को जगाने के लिए सफलता पूर्वक कार्य किया, इसलिए बाप-दादा सबको नम्बरवन का टाइटिल देते हैं। सुना विदेशियों ने? ऐसा भी दिन आयेगा जो विदेश में भी इतना बड़ा कार्य होगा। सब खुशी में नाच रहे हैं।

आज के इस मधुर मेले का विशेष यादगार बन रहा है। बाप-दादा को भी यह विशाल मेला अति प्रिय है। जो भी दूर-दूर से बच्चे मेहनत करके लगन से पहुँचे हैं, उन सबको बाप-दादा विशेष याद प्यार दे रहे हैं। स्नेह दूर को नजदीक लाता है। तो भारत के भी सबसे दूर रहने वाले स्नेह के बन्धन में सहयोग की लगन में नजदीक अनुभव कर रहे हैं इसलिए भारतवासी देश के हिसाब से दूर रहने वाले बच्चों को बाप-दादा विशेष स्नेह दे रहे हैं। बहुत भोले और बहुत प्यारे हैं इसलिए भोलानाथ बाप की विशेष स्नेह की दृष्टि ऐसे बच्चों पर है। सभी अपने को इतना ही श्रेष्ठ पदमापदम भाग्यशाली समझते हो ना? अच्छा-अब आगे वर्ष में क्या करना है? जो किया बहुत अच्छा किया, अब आगे क्या करना है? वर्तमान समय विश्व की मैजारिटी आत्माओं को सबसे ज्यादा आवश्यकता है - सच्ची शान्ति की। अशान्ति के अनेक कारण दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं और बढ़ते जायेंगे। अगर स्वयं अशान्त न भी होंगे तो औरों के अशान्ति का वायुमण्डल, अशान्ति के वायब्रेशन्स उन्हों को भी अपने तरफ खीचेंगे। चलने में, रहने में, खाने में, कार्य करने में, सबमें अशान्ति का वातावरण शान्त अवस्था में बैठने नहीं देगा अर्थात् औरों की अशान्ति का प्रभाव भी आत्मा पर पड़ेगा। अशान्ति के तनाव का अनुभव बढ़ेगा। ऐसे समय पर आप शान्ति के सागर के बच्चों की सेवा क्या है? जैसे कहाँ आग लगती है तो शीतल पानी से आग को बुझाकर गर्म वायुमण्डल को शीतल बना देते हैं। वैसे आप सबका आजकल विशेष स्वरूप ‘मास्टर शान्ति के सागर का’ इमर्ज होना चाहिए। मन्सा शान्ति की किरणों को फैलाओ। ऐसा पावरफुल स्वरूप बनाओ जो संकल्पों द्वारा शान्त स्वरूप की स्टेज द्वारा चारों ओर अशान्त आत्माएं अनुभव करें कि सारे विश्व के कोने में यही थोड़ी सी आत्मायें शान्ति का दान देने वाली मास्टर शान्ति के सागर हैं। जैसे चारों ओर अंधकार हो और एक कोने में रोशनी जग रही हो तो सबका अटेन्शन स्वत: ही रोशनी की ओर जाता है। ऐसे सबको आकर्षण हो कि चारों ओर की अशान्ति के बीच यहाँ से शान्ति प्राप्त हो सकती है। शान्ति स्वरूप के चुम्बक बनो, जो दूर से ही अशान्त आत्माओं को खींच सको। नयनों द्वारा शान्ति का वरदान दो। मुख द्वारा शान्ति स्वरूप की स्मृति दिलाओ। संकल्प द्वारा अशान्ति के संकल्पों को मर्ज कर शान्ति के वायब्रेशन को फैलाओ। इसी विशेष कार्य अर्थ याद की विशेष विधि द्वारा सिद्धि को प्राप्त करो।

इस वर्ष में विशेष जो भक्त आपकी महिमा करते हैं - शान्ति देवा, इसी स्वरूप को इमर्ज करो। अभ्यास करो, मुझ आत्मा के शान्त स्वरूप के वायब्रेशन कहाँ तक कार्य करते हैं। शान्ति के वायब्रेशन नजदीक की आत्माओं तक पहुँचते हैं वा दूर तक भी पहुँचते हैं। अशान्त आत्मा के ऊपर अपने शान्ति के वायब्रेशन्स का अनुभव करके देखो। समझा - क्या करना है? अच्छा - अब तो मिलते रहेंगे।

सभी सदा स्नेह में रहने वाले, हर कार्य में सदा सहयोगी, मुहब्बत से मेहनत को खत्म करने वाले, सदा अथक बाप-दादा की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले, सदा विघ्न-विनाशक ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

उड़ीसा तथा कर्नाटक ज़ोन के भाई बहनों से पर्सनल मुलाकात –

1) आप सबका कितना श्रेष्ठ भाग्य है जो बच्चों से मिलने बाप खुद आते हैं। इसी भाग्य का सिमरण कर सदा हर्षित रहो कि बाबा हमारे लिए आया है। भगवान को मैंने लाया। भगवान को अपने प्रेम के बंधन में बाँध लेना और क्या चाहिए। ऐसे नशे में रहो तो माया भाग जायेगी। माया को तो सबने तलाक दे दिया है ना! तलाक देना अर्थात् संकल्प में भी न आवे। मन्सा से भी खत्म करना - यह हुआ तलाक। तो तलाकनामा दे दिया ना। आप सब कितने लकीएस्ट हो, जो दूर-दूर से बाप ने अपने बच्चों को ढूंढ लिया इसलिए सदा अपने को सिकीलधे समझो।

2) फरिश्ते समान स्थिति बनाने के लिए - अपने को बाप की छत्रछाया के नीचे समझो अपने को सदा बाप के याद की छत्रछाया के अन्दर अनुभव करते हो? जितना-जितना याद में रहेंगे, उतना अनुभव करेंगे कि मैं अकेली नहीं लेकिन बाप-दादा सदा साथ हैं। कोई भी समस्या सामने आयेगी तो अपने को कम्बाइन्ड अनुभव करेंगे, इसलिए घबरायेंगे नहीं। कम्बाइन्ड रूप की स्मृति से कोई भी मुश्किल कार्य सहज हो जायेगा। कभी भी कोई ऐसी बात सामने आवे तो बाप-दादा की स्मृति रखते अपना बोझ बाप के ऊपर रख दो तो हल्के हो जायेंगे क्योंकि बाप बड़ा है और आप छोटे बच्चे हो। बड़ों पर ही बोझ रखते हैं। बोझ बाप पर रख दिया तो सदा अपने को खुश अनुभव करेंगे। फरिश्ते के समान नाचते रहेंगे। दिन रात 24 ही घंटे मन से डाँस करते रहेंगे। देह-अभिमान में आना अर्थात् मानव बनना। देही- अभिमानी बनना अर्थात फरिश्ता बनना। सदैव सवेरे उठते ही अपने फरिश्ते स्वरूप की स्मृति में रहो और खुशी में नाचते रहो तो कोई भी बात सामने आयेगी उसे खुशी-खुशी से क्रास कर लेंगे। जैसे दिखाते हैं देवियों ने असुरों पर डाँस किया। तो फरिश्ते स्वरूप की स्थिति में रहने से आसुरी बातों पर खुशी की डाँस करते रहेंगे। फरिश्ते बन फरिश्तों की दुनिया में चले जायेंगे। फरिश्तों की दुनिया सदा स्मृति में रहेगी।

3) पाप कर्मों से छुटकारा पाने का साधन है - लाइट हाउस की स्थिति

सभी अपने को लाइट हाउस और माइट हाउस समझते हो? जहाँ लाइट होती है वहाँ कोई भी पाप का कर्म नहीं होता है। तो सदा लाइट हाउस रहने से माया कोई पाप कर्म नहीं करा सकती। सदा पुण्य आत्मा बन जायेंगे। ऐसे अपने को पुण्य आत्मा समझते हो? पुण्य आत्मा संकल्प में भी कोई पाप कर्म नहीं कर सकती। और पाप वहाँ होता है जहाँ बाप की याद नहीं होती। बाप है तो पाप नहीं, पाप है तो बाप नहीं। तो सदा कौन रहता है? पाप खत्म हो गया ना? जब पुण्य आत्मा के बच्चे हो तो पाप खत्म। तो आज से मैं पुण्य आत्मा हूँ, पाप मेरे सामने आ नहीं सकता - यह दृढ़ संकल्प करो। जो समझते हैं आज से पाप को स्वप्न वा संकल्प में भी नहीं आने देंगे - वह हाथ उठाओ। दृढ़ संकल्प की तीली से 21 जन्मों के लिए पाप कर्म खत्म। बाप-दादा भी ऐसे हिम्मत रखने वाले बच्चों को मुबारक देते हैं। यह भी कितना भाग्य है जो स्वयं बाप बच्चों को मुबारक देते हैं। इसी स्मृति में सदा खुश रहो और सबको खुश बनाओ।

4) स्वदर्शन चक्रधारी बन स्वराज्य और विश्व राज्य के अधिकारी बनो

संगमयुग में बाप द्वारा मिले हुए सर्व टाइटिल स्मृति में रहते हैं? बाप-दादा बच्चों को पहला-पहला टाइटिल देते हैं स्वदर्शन चक्रधारी। बाप-दादा द्वारा मिला हुआ टाइटिल स्मृति में रहता है? जितना-जितना स्वदर्शन चक्रधारी बनेंगे उतना मायाजीत बनेंगे। तो स्वदर्शन चक्र चलाते रहते हो? स्वदर्शन चक्र चलाते-चलाते कब स्व के बजाय पर-दर्शन चक्र तो नहीं चल जाता। स्वदर्शन चक्रधारी बनने वाले स्व राज्य और विश्व राज्य के अधिकारी बन जाते हैं। स्वराज्य अधिकारी अभी बने हो? जो अभी स्वराज्य अधिकारी बनते वही भविष्य राज्य अधिकारी बन सकते हैं। राज्य अधिकारी बनने के लिए कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए। जब जिस कर्मेन्द्रिय द्वारा जो कर्म कराने चाहें वह करा सकें, इसको कहा जाता है अधिकारी। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर है? कभी ऑखें वा मुख धोखा तो नहीं देते! जब कन्ट्रोलिंग पावर होती है तो कोई भी कर्मेन्द्रिय कभी संकल्प रूप में भी धोखा नहीं दे सकती।

5) साक्षीपन की सीट शान की सीट है, इस सीट पर बैठने वाले परेशानी से छूट जाते हैं-

जो कुछ भी ड्रामा में होता है उसमें कल्याण ही भरा हुआ है, अगर यह स्मृति में सदा रहे तो कमाई जमा होती रहेगी। समझदार बच्चे यही सोचेंगे कि जो कुछ होता है वह कल्याणकारी है। क्यों क्या का क्वेश्चन समझदार के अन्दर उठ नहीं सकता। अगर स्मृति रहे कि यह संगमयुग कल्याणकारी युग है, बाप भी कल्याणकारी है तो श्रेष्ठ स्टेज बनती जायेगी।

चाहे बाहर की रीति से नुकसान भी दिखाई दे लेकिन उस नुकसान में भी कल्याण समाया हुआ है, ऐसा निश्चय हो। जब बाप का साथ और हाथ है तो अकल्याण हो नहीं सकता। अभी पेपर बहुत आयेंगे, उसमें क्या क्यों का क्वेश्चन न उठे। कुछ भी होता है होने दो।। बाप हमारा हम बाप के तो कोई कुछ कर नहीं सकता, इसको कहा जाता है निश्चय बुद्धि। बात बदल जाए लेकिन आप न बदलो - यह है निश्चय। कभी भी माया से परेशान तो नहीं होते हो? कभी वातावरण से कभी घर वालों से, कभी ब्राह्मणों से परेशान होते हो? शान की सीट पर रहो। साक्षीपन की सीट शान की सीट है इससे परे न हो तो परेशानी खत्म हो जायेगी। प्रतिज्ञा करो कि कभी भी कोई बात में न परेशान होंगे न करेंगे। जब नॉलेजफुल बाप के बच्चे बन गये, त्रिकालदर्शी बन गये तो परेशान कैसे हो सकते! संकल्प में भी परेशानी न हो। क्यों शब्द को समाप्त करो। क्यों शब्द के पीछे बड़ी क्यु है।

विदाई के समय

मेला देखकर खुशी हो रही है ना? यह भी ड्रामा में जो कुछ होता है वह अच्छे ते अच्छा होता है। अभी तो बहुत आयेंगे, यह तो कुछ भी नहीं है। प्रबन्ध बढ़ाते जायेंगे, बढ़ने वाले बढ़ते जायेंगे। जब मधुबन में भीड़ लगे तब भक्ति में यादगार बनें। जितना बनाते जायेंगे उतना बढ़ते ही जायेंगे, यह भी वरदान मिला हुआ है। यही यादगार में कहानियाँ बनाकर दिखाते हैं कि सागर तक भी पहुँच गये। फिर भी छोटा हो गया। अभी आबूरोड तक तो पहुँचो तब गायन हो। आबू रोड से माउण्ट तक बैठें तब प्रत्यक्षता होगी। सोचेंगे यह क्या हो रहा है। अटेन्शन तो जाता है ना। ब्रह्माकुमारियाँ कहाँ तक पहुँच गई हैं। अभी यह तो बच्चों का मेला है लेकिन बच्चे और भक्त जब मिक्स हो जायेंगे तब क्या हो जायेगा। अभी तो बहुत तैयारी करनी है। जब बाप का आना है तो बच्चों का भी बढ़ना है। वृद्धि न हो तो सेवा काहे की। सेवा का अर्थ ही है वृद्धि। अच्छा।
वरदान:
सहनशक्ति द्वारा अविनाशी और मधुर फल प्राप्त करने वाले सर्व के स्नेही भव!  
सहन करना मरना नहीं है लेकिन सबके दिलों में स्नेह से जीना है। कैसा भी विरोधी हो, रावण से भी तेज हो, एक बार नहीं 10 बार सहन करना पड़े फिर भी सहनशक्ति का फल अविनाशी और मधुर है। सिर्फ यह भावना नहीं रखो कि मैंने इतना सहन किया तो यह भी कुछ करे। अल्पकाल के फल की भावना नहीं रखो। रहम भाव रखो-यही है सेवा भाव। सेवा भाव वाले सर्व की कमजोरियों को समा लेते हैं। उनका सामना नहीं करते।
स्लोगन:
जो बीत चुका उसको भूल जाओ, बीती बातों से शिक्षा लेकर आगे के लिए सदा सावधान रहो।