Tuesday, November 24, 2015

मुरली 25 नवंबर 2015

25-11-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - सबको यह खुशखबरी सुनाओ कि अब डीटी डिनायस्टी स्थापन हो रही है, जब वाइसलेस वर्ल्ड होगी तब बाकी सब विनाश हो जायेंगे”

प्रश्न:-

रावण का श्राप कब मिलता है, श्रापित होने की निशानी क्या है?

उत्तर:-

जब तुम देह-अभिमानी बनते हो तब रावण का श्राप मिल जाता है। श्रापित आत्मायें कंगाल विकारी बनती जाती हैं, नीचे उतरती जाती हैं। अब बाप से वर्सा लेने के लिए देही-अभिमानी बनना है। अपनी दृष्टि- वृत्ति को पावन बनाना है।

ओम् शान्ति।

रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को 84 जन्मों की कहानी सुनाते हैं। यह तो समझते हो सभी तो 84 जन्म नहीं लेते होंगे। तुम ही पहले-पहले सतयुग आदि में पूज्य देवी-देवता थे। भारत में पहले पूज्य देवी-देवता धर्म का ही राज्य था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो जरूर डिनायस्टी होगी। राजाई घराने के मित्र-सम्बन्धी भी होंगे। प्रजा भी होगी। यह जैसे एक कहानी है। 5 हज़ार वर्ष पहले भी इनका राज्य था - यह स्मृति में लाते हैं। भारत में आदि सनातन देवी-देवता धर्म का राज्य था। यह बेहद का बाप बैठ समझाते हैं, जिसको ही नॉलेजफुल कहा जाता है। नॉलेज किस चीज़ की? मनुष्य समझते हैं वह सबके अन्दर को, कर्म विकर्म को जानने वाला है। परन्तु अभी बाप समझाते हैं - हर एक आत्मा को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। सभी आत्मायें अपने परमधाम में रहती हैं। उनमें सारा पार्ट भरा हुआ है। रेडी बैठे हैं कि जाकर कर्मक्षेत्र पर अपना पार्ट बजायें। यह भी तुम समझते हो हम आत्मायें सब कुछ करती हैं। आत्मा ही कहती है यह खट्टा है, यह नमकीन है। आत्मा ही समझती है - हम अभी विकारी पाप आत्मायें हैं। आसुरी स्वभाव है। आत्मा ही यहाँ कर्मक्षेत्र पर शरीर लेकर सारा पार्ट बजाती है। तो यह निश्चय करना चाहिए ना! हम आत्मा ही सब कुछ करती हूँ। अभी बाप से मिले हैं फिर 5 हज़ार वर्ष बाद मिलेंगे। यह भी समझते हो पूज्य और पुजारी, पावन और पतित बनते आये हैं। जब पूज्य हैं तो पतित कोई हो न सके। जब पुजारी हैं तो पावन कोई हो न सके। सतयुग में है ही पावन पूज्य। जब द्वापर से रावण राज्य शुरू होता है तब सभी पतित पुजारी बनते हैं। शिवबाबा कहते हैं देखो शंकराचार्य भी मेरा पुजारी है। मेरे को पूजते हैं ना। शिव का चित्र कोई के पास हीरे का, कोई के पास सोने का, कोई के पास चांदी का होता है। अब जो पूजा करते हैं, उस पुजारी को पूज्य तो कह नहीं सकते। सारी दुनिया में इस समय पूज्य एक भी हो नहीं सकता। पूज्य पवित्र होते हैं फिर अपवित्र बनते हैं। पवित्र होते हैं नई दुनिया में। पवित्र ही पूजे जाते हैं। जैसे कुमारी जब पवित्र है तो पूजने लायक है, अपवित्र बनती है तो फिर सबके आगे सिर झुकाना पड़ता है। पूजा की कितनी सामग्री है। कहाँ भी प्रदर्शनी, म्युजियम आदि खोलते हो तो ऊपर में त्रिमूर्ति शिव जरूर चाहिए। नीचे में यह लक्ष्मी-नारायण एम ऑब्जेक्ट। हम यह पूज्य देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं। वहाँ फिर कोई और धर्म नहीं रहता। तुम समझा सकते हो, प्रदर्शनी में तो भाषण आदि कर नहीं सकेंगे। समझाने के लिए फिर अलग प्रबन्ध होना चाहिए। मुख्य बात ही यह है - हम भारतवासियों को खुशखबरी सुनाते हैं। हम यह राज्य स्थापन कर रहे हैं। यह डीटी डिनायस्टी थी, अब नहीं है फिर से इनकी स्थापना होती है और सब विनाश हो जायेंगे। सतयुग में जब यह एक धर्म था तो अनेक धर्म थे नहीं। अब यह अनेक धर्म मिलकर एक हो जाएं, वह तो हो न सके। वह आते ही एक-दो के पिछाड़ी हैं और वृद्धि को पाते रहते हैं। पहला आदि सनातन देवी-देवता धर्म प्राय:लोप है। कोई भी नहीं जो अपने को देवी-देवता धर्म का कहला सके। इनको कहा ही जाता है विशश वर्ल्ड। तुम कह सकते हो हम आपको खुशखबरी सुनाते हैं - शिवबाबा वाइसलेस वर्ल्ड स्थापन कर रहे हैं। हम प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं ना। पहले-पहले तो हम भाई-भाई हैं फिर रचना होती है तो जरूर भाई-बहिन होंगे। सब कहते हैं बाबा हम आपके बच्चे हैं तो भाई-बहिन की क्रिमिनल आई जा न सके। यह अन्तिम जन्म पवित्र बनना है, तब ही पवित्र विश्व के मालिक बन सकेंगे। तुम जानते हो गति-सद्गति दाता है ही एक बाप। पुरानी दुनिया बदलकर जरूर नई दुनिया स्थापन होनी है। वो तो भगवान ही करेंगे। अब वह नई दुनिया कैसे क्रियेट करते हैं, यह तुम बच्चे ही जानते हो। अभी पुरानी दुनिया भी है, यह कोई खलास नहीं हुई है। चित्रों में भी है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। इनका यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। ब्रह्मा की जोड़ी नहीं, ब्रह्मा की तो एडाप्शन है। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। शिवबाबा ब्रह्मा में प्रवेश कर हमको अपना बनाते हैं। शरीर में प्रवेश करे तब तो कहे-हे आत्मा, तुम हमारे बच्चे हो। आत्मायें तो हैं ही फिर ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रची जायेगी तो जरूर ब्रह्माकुमार-कुमारियां होंगे ना, तो बहन-भाई हो गये। दूसरी दृष्टि निकल जाती है। हम शिवबाबा से पावन बनने का वर्सा लेते हैं। रावण से हमको श्राप मिलता है। अभी हम देही-अभिमानी बनते हैं तो बाप से वर्सा मिलता है। देह-अभिमानी बनने से रावण का श्राप मिलता है। श्राप मिलने से नीचे उतरते जाते हैं। अभी भारत श्रापित है ना। भारत को इतना कंगाल विकारी किसने बनाया? कोई का तो श्राप है ना। यह है रावण रूपी माया का श्राप। हर वर्ष रावण को जलाते हैं तो जरूर दुश्मन है ना। धर्म में ही ताकत होती है। अभी हम देवता धर्म के बनते हैं। बाबा नये धर्म की स्थापना करने निमित्त है। कितनी ताकत वाला धर्म स्थापन करते हैं। हम बाबा से ताकत लेते हैं, सारे विश्व पर विजय पाते हैं। याद की यात्रा से ही ताकत मिलती है और विकर्म विनाश होते हैं। तो यह भी एक भीती लिख देनी चाहिए। हम खुशखबरी सुनाते हैं। अब इस धर्म की स्थापना हो रही है जिसको ही हेविन, स्वर्ग कहते हैं। ऐसे बड़े-बड़े अक्षरों में लिख दो। बाबा राय देते हैं - सबसे मुख्य है यह। अब आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। प्रजापिता ब्रह्मा भी बैठा है। हम प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियां श्रीमत पर यह कार्य कर रहे हैं। ब्रह्मा की मत नहीं, श्रीमत है ही परमपिता परमात्मा शिव की, जो सबका बाप है। बाप ही एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश करते हैं। राजयोग सीख यह बनते हैं। हम भी यह बन रहे हैं। हमने बेहद का सन्यास किया है क्योंकि जानते हैं - ये पुरानी दुनिया भस्म हो जानी है। जैसे हद का बाप नया घर बनाते हैं फिर पुराने से ममत्व मिट जाता है। बाप कहते हैं यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है। अब तुम्हारे लिए नई दुनिया स्थापन कर रहे हैं। तुम पढ़ते ही हो - नई दुनिया के लिए। अनेक धर्मों का विनाश, एक धर्म की स्थापना संगम पर ही होती है। लड़ाई लगेगी, नेचुरल कैलेमिटीज भी आयेंगी। सतयुग में जब इनका राज्य था तो और कोई धर्म थे नहीं। बाकी सब कहाँ थे? यह नॉलेज बुद्धि में रखनी है। ऐसे नहीं यह नॉलेज बुद्धि में रखते दूसरा काम नहीं करते हैं, कितने ख्यालात रखते हैं। चिट्ठियां लिखना, पढ़ना, मकान का ख्याल करना, तो भी बाप को याद करता रहता हूँ। बाबा को याद न करें तो विकर्म कैसे विनाश होंगे।

अभी तुम बच्चों को ज्ञान मिला है, तुम आधाकल्प के लिए पूज्य बन रहे हो। आधाकल्प हैं पुजारी तमोप्रधान फिर आधाकल्प पूज्य सतोप्रधान होते हैं। आत्मा परमपिता परमात्मा से योग लगाने से ही पारस बनती है। याद करते-करते आइरन एज से गोल्डन एज में चली जायेगी। पतित-पावन एक को ही कहा जाता है। आगे चल तुम्हारा आवाज़ निकलेगा। यह तो सब धर्मों के लिए है। तुम कहते भी हो बाप कहते हैं कि पतित-पावन मैं ही हूँ। मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। बाकी सब हिसाब-किताब चुक्तू कर जायेंगे। कहाँ भी मूँझते हो तो पूछ सकते हो। सतयुग में होते ही थोड़े हैं। अभी तो अनेक धर्म हैं। जरूर हिसाब किताब चुक्तू कर फिर ऐसे बनेंगे, जैसे थे। डीटेल में क्यों जायें। जानते हैं हर एक अपना-अपना पार्ट आकर बजायेंगे। अभी सबको वापिस जाना है क्योंकि यह सब सतयुग में थे ही नहीं। बाप आते ही हैं एक धर्म की स्थापना अनेक धर्मों का विनाश करने। अब नई दुनिया की स्थापना हो रही है। फिर सतयुग जरूर आयेगा,चक्र जरूर फिरेगा। टू मच ख्यालात में न जाए, मूल बात हम सतोप्रधान बनेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। कुमारियों को तो इसमें लग जाना है, कुमारी की कमाई माँ-बाप नहीं खाते हैं। परन्तु आजकल भूखे हो गये हैं तो कुमारियों को भी कमाना पड़ता है। तुम समझते हो अब पवित्र बन पवित्र दुनिया का मालिक बनना है। हम राजयोगी हैं, बाप से वर्सा जरूर लेना है।
अभी तुम पाण्डव सेना के बने हो। अपनी सर्विस करते हुए भी यह ख्याल रखना है, हम जाकर सबको रास्ता बतायें। जितना करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे। बाबा से पूछ सकते हैं -
इस हालत में मर जायें तो हमको क्या पद मिलेगा? बाबा झट बता देंगे। सर्विस नहीं करते हो इसलिए साधारण घर में जाकर जन्म लेंगे फिर आकर ज्ञान लेवें सो तो मुश्किल है क्योंकि छोटा बच्चा इतना ज्ञान तो उठा नहीं सकता। समझो बाकी 2-3 वर्ष रहते हैं तो क्या पढ़ सकेंगे? बाबा बता देंगे तुम कोई क्षत्रिय कुल में जाकर जन्म लेंगे। पिछाड़ी में करके डबल ताज मिलेगा। स्वर्ग का फुल सुख पा नहीं सकेंगे। जो फुल सर्विस करेंगे, पढ़ेंगे वही फुल सुख पायेंगे। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। यही फुरना रखना है - अभी नहीं बनेंगे तो कल्प-कल्प नहीं बनेंगे। हर एक अपने को जान सकते हैं, हम कितने मार्क्स से पास होंगे। सब जान जाते हैं फिर कहा जाता है भावी। अन्दर में दु:ख होगा ना। बैठे-बैठे हमको क्या हो गया! बैठे-बैठे मनुष्य मर भी जाते हैं इसलिए बाप कहते हैं सुस्ती मत करो। पुरूषार्थ कर पतित से पावन बनते रहो, रास्ता बताते रहो। कोई भी मित्र-सम्बन्धी आदि हैं, उन पर तरस पड़ना चाहिए। देखते हैं यह विकार बिगर, गंद खाने बिगर रह नहीं सकते हैं, फिर भी समझाते रहना चाहिए। नहीं मानते तो समझो हमारे कुल का नहीं है। कोशिश कर पियरघर, ससुरघर का कल्याण करना है। ऐसी भी चलन न हो जो कहें यह तो हमसे बात भी नहीं करते, मुख मोड़ दिया है। नहीं, सबसे जोड़ना है। हम उनका भी कल्याण करें। बहुत रहमदिल बनना है। हम सुख तरफ जाते हैं तो औरों को भी रास्ता बतायें। अन्धों की लाठी तुम हो ना। गाते हैं अन्धों की लाठी तू। आंखे तो सबको हैं फिर भी बुलाते हैं क्योंकि ज्ञान का तीसरा नेत्र नहीं है। शान्ति-सुख का रास्ता बताने वाला एक ही बाप है। यह तुम बच्चों की बुद्धि में अभी है। आगे थोड़ेही समझते थे। भक्ति मार्ग में कितने मन्त्र जपते हैं। राम-राम कह मछली को खिलाते, चीटियों को खिलाते। अब ज्ञान मार्ग में तो कुछ भी करने की दरकार नहीं है। पक्षी तो ढेर के ढेर मर जाते हैं। एक ही तूफान लगता है, कितने मर जाते हैं। नेचुरल कैलेमिटीज तो अब बहुत जोर से आयेगी। यह रिहर्सल होती रहेगी। यह सब विनाश तो होना ही है। अन्दर में आता है अब हम स्वर्ग में जायेंगे। वहाँ अपने फर्स्टक्लास महल बनायेंगे। जैसे कल्प पहले बनाये हैं। बनायेंगे फिर भी वही जो कल्प पहले बनाया होगा। उस समय वह बुद्धि आ जायेगी। उसका ख्याल अब क्यों करें, इससे तो बाप की याद में रहें। याद की यात्रा को नहीं भूलो। महल तो बनेंगे ही कल्प पहले मिसल। परन्तु अभी याद की यात्रा में तोड़ निभाना है और बहुत खुशी में रहना है कि हमको बाप, टीचर, सतगुरू मिला है। इस खुशी में तो रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। तुम जानते हो हम आये ही हैं अमरपुरी का मालिक बनने। यह खुशी स्थाई रहनी चाहिए। यहाँ रहेगी तब फिर 21 जन्म वह स्थाई हो जायेगी। बहुतों को याद कराते रहेंगे तो अपनी भी याद बढ़ेगी। फिर आदत पड़ जायेगी। जानते हैं इस अपवित्र दुनिया को आग लगनी है। तुम ब्राह्मण ही हो जिनको यह ख्याल है - इतनी सारी दुनिया खत्म हो जायेगी। सतयुग में यह कुछ भी मालूम नहीं पड़ेगा। अभी अन्त है, तुम याद के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो।
अच्छा !

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) पतित से पावन बनने के पुरूषार्थ में सुस्ती नहीं करनी है। कोई भी मित्र सम्बन्धी आदि हैं उन पर तरस रख समझाना है, छोड़ नहीं देना है।

2) ऐसी चलन नहीं रखनी है जो कोई कहे कि इन्होंने तो मुँह मोड़ लिया है। रहमदिल बन सबका कल्याण करना है और सब ख्यालात छोड़ एक बाप की याद में रहना है।

वरदान:-

प्रैक्टिकल जीवन द्वारा परमात्म ज्ञान का प्रूफ देने वाले धर्मयुद्ध में विजयी भव !

अभी धर्म युद्ध की स्टेज पर आना है। उस धर्म युद्ध में विजयी बनने का साधन है आपकी प्रैक्टिकल जीवन क्योंकि परमात्म ज्ञान का प्रूफ ही प्रैक्टिकल जीवन है। आपकी मूर्त से ज्ञान और गुण प्रैक्टिकल में दिखाई दें क्योंकि आजकल डिसकस करने से अपनी मूर्त को सिद्ध नहीं कर सकते लेकिन अपनी प्रैक्टिकल धारणा मूर्त से एक सेकण्ड में किसी को भी शान्त करा सकते हो।

स्लोगन:-

आत्मा को उज्जवल बनाने के लिए परमात्म स्मृति से मन की उलझनों को समाप्त करो।