Monday, November 16, 2015

मुरली 17 नवंबर 2015

17-11-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुमने दु:ख सहन करने में बहुत टाइम वेस्ट किया है, अब दुनिया बदल रही है, तुम बाप को याद करो, सतोप्रधान बनो तो टाइम सफल हो जायेगा”   
प्रश्न:
21 जन्मों के लिए लॉटरी प्राप्त करने का पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर:
21 जन्मों की लॉटरी लेनी है तो मोहजीत बनो। एक बाप पर पूरा-पूरा कुर्बान जाओ। सदा यह स्मृति में रहे कि अब यह पुरानी दुनिया बदल रही है, हम नई दुनिया में जा रहे हैं। इस पुरानी दुनिया को देखते भी नहीं देखना है। सुदामा मिसल चावल मुट्ठी सफल कर सतयुगी बादशाही लेनी है।
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप बैठ समझाते हैं, यह तो बच्चे समझते हैं। रूहानी बच्चे माना आत्मायें। रूहानी बाप माना आत्माओं का बाप। इसको कहा जाता है आत्माओं और परमात्मा का मिलन। यह मिलन होता ही है एक बार। यह सब बातें तुम बच्चे जानते हो। यह है विचित्र बात। विचित्र बाप विचित्र आत्माओं को समझाते हैं। वास्तव में आत्मा विचित्र है, यहाँ आकर चित्रधारी बनती है। चित्र से पार्ट बजाती है। आत्मा तो सबमें है ना। जानवर में भी आत्मा है। 84 लाख कहते हैं, उसमें तो सब जानवर आ जाते हैं ना। ढेर जानवर आदि हैं ना। बाप समझाते हैं इन बातों में टाइम वेस्ट नहीं करना है। सिवाए इस ज्ञान के मनुष्यों का टाइम वेस्ट होता रहता है। इस समय बाप तुम बच्चों को बैठ पढ़ाते हैं फिर आधाकल्प तुम प्रालब्ध भोगते हो। वहाँ तुमको कोई तकलीफ नहीं होती है। तुम्हारा टाइम वेस्ट होता ही है दु:ख सहन करने में। यहाँ तो दु:ख ही दु:ख है इसलिए सब बाप को याद करते हैं कि हमारा दु:ख में टाइम वेस्ट होता है, इससे निकालो। सुख में कभी टाइम वेस्ट नहीं कहेंगे। यह भी तुम समझते हो-इस समय मनुष्य की कोई वैल्यु नहीं है। मनुष्य देखो अचानक ही मर पड़ते हैं। एक ही तूफान में कितने मर जाते हैं। रावण राज्य में मनुष्य की कोई वैल्यु नहीं है। अभी बाप तुम्हारी कितनी वैल्यु बनाते हैं। वर्थ नाट ए पेनी से वर्थ पाउण्ड बनाते हैं। गाया भी जाता है हीरे जैसा जन्म अमोलक। इस समय मनुष्य कौड़ी पिछाड़ी लगे हुए हैं। करके लखपति, करोड़पति, पदमपति बनते हैं, उन्हों की सारी बुद्धि उसमें ही रहती है। उनको कहते हैं-यह सब भूल एक बाप को याद करो परन्तु मानेंगे ही नहीं। उनकी बुद्धि में बैठेगा, जिनकी बुद्धि में कल्प पहले भी बैठा होगा। नहीं तो कितना भी समझाओ, कभी बुद्धि में बैठेगा नहीं। तुम भी नम्बरवार जानते हो कि यह दुनिया बदल रही है। बाहर में भल तुम लिख दो कि दुनिया बदल रही है फिर भी समझेंगे नहीं। जब तक तुम किसको समझाओ। अच्छा, कोई समझ जाए फिर उनको समझाना पड़े-बाप को याद करो, सतोप्रधान बनो। नॉलेज तो बहुत सहज है। यह सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी......। अभी यह दुनिया बदल रही है, बदलाने वाला एक ही बाप है। यह भी तुम यथार्थ रीति जानते हो सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। माया पुरूषार्थ करने नहीं देती फिर समझते हैं यह भी ड्रामा अनुसार इतना पुरूषार्थ नहीं चलता है। अभी तुम बच्चे जानते हो कि श्रीमत से हम अपने लिए इस दुनिया को बदला रहे हैं। श्रीमत है ही एक शिवबाबा की। शिवबाबा, शिवबाबा कहना तो बहुत सहज है और कोई न शिवबाबा को, न वर्से को जानते हैं। बाबा माना ही वर्सा। शिवबाबा भी सच्चा चाहिए ना। आजकल तो मेयर को भी फादर कह देते हैं। गांधी को भी फादर कहते हैं, कोई को फिर जगद्गुरु कह देते हैं। अब जगत माना सारी सृष्टि का गुरू। वह कोई मनुष्य हो कैसे सकता! जबकि पतित- पावन सर्व का सद्गति दाता एक ही बाप है। बाप तो है निराकार फिर कैसे लिबरेट करते हैं? दुनिया बदलती है तो जरूर एक्ट में आयेंगे तब तो पता पड़ेगा। ऐसे नहीं कि प्रलय हो जाती है, फिर बाप नई सृष्टि रचते हैं। शास्त्रों में दिखाया है बहुत बड़ी प्रलय होती है, फिर पीपल के पत्ते पर कृष्ण आता है। परन्तु बाप समझाते हैं ऐसे तो है नहीं। गाया जाता है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट तो प्रलय हो न सके। तुम्हारे दिल में है कि अभी यह पुरानी दुनिया बदल रही है। यह सब बातें बाप ही आकर समझाते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण हैं नई दुनिया के मालिक। तुम चित्रों में भी दिखलाते हो कि पुरानी दुनिया का मालिक है रावण। राम राज्य और रावण राज्य गाया जाता है ना। यह बातें तुम्हारी बुद्धि में हैं कि बाबा पुरानी आसुरी दुनिया को खत्म कर नई दैवी दुनिया स्थापन करा रहे हैं। बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, कोई विरला ही समझते हैं। वह भी तुम नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हो जो अच्छे पुरुषार्थी हैं उनको बड़ा अच्छा नशा रहता है। याद के पुरुषार्थी को रीयल नशा चढ़ेगा। 84 के चक्र की नॉलेज समझाने में इतना नशा नहीं चढ़ता जितना याद की यात्रा में चढ़ता है। मूल बात है ही पावन बनने की। पुकारते भी हैं-आकर पावन बनाओ। ऐसा नहीं पुकारते कि आकर विश्व की बादशाही दो। भक्ति मार्ग में कथायें भी कितनी सुनते हैं। सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा तो यह है। वह कथायें तो जन्म-जन्मातर सुनते-सुनते नीचे ही उतरते आये हो। भारत में ही यह कथायें सुनने का रिवाज है, और कोई खण्ड में कथायें आदि नहीं होती। भारत को ही रिलीजस मानते हैं। ढेर के ढेर मन्दिर भारत में हैं। क्रिश्चियन की तो एक ही चर्च होती है। यहाँ तो किस्म-किस्म के ढेर मन्दिर हैं। वास्तव में एक ही शिवबाबा का मन्दिर होना चाहिए। नाम भी एक का होना चाहिए। यहाँ तो ढेर नाम हैं। विलायत वाले भी यहाँ मन्दिर देखने आते हैं। बिचारों को यह पता नहीं कि प्राचीन भारत कैसा था? 5 हज़ार वर्ष से तो पुरानी कोई चीज़ होती नहीं। वह तो समझते हैं कि लाखों वर्ष की पुरानी चीज़ मिली। बाप समझाते हैं यह मन्दिर में चित्र आदि जो बने हैं उनको 2500 वर्ष ही हुए हैं, पहले-पहले शिव की ही पूजा होती है। वह है अव्यभिचारी पूजा। वैसे ही अव्यभिचारी ज्ञान भी कहा जाता है। पहले अव्यभिचारी पूजा, फिर है व्यभिचारी पूजा। अब तो देखो पानी, मिट्टी की पूजा करते रहते हैं।

अभी बेहद का बाप कहते हैं तुमने कितना धन भक्ति मार्ग में गँवाया है। कितने अथाह शास्त्र, अथाह चित्र हैं। गीतायें कितनी ढेर की ढेर होंगी। इन सब पर खर्चा करते-करते देखो तुम क्या हो गये हो। कल तुमको डबल सिरताज बनाया था फिर तुम कितने कंगाल हो गये हो। कल की ही तो बात है ना। तुम भी समझते हो बरोबर हमने 84 का चक्र लगाया है। अभी हम फिर से यह बन रहे हैं। बाबा से वर्सा ले रहे हैं। बाबा घड़ी-घड़ी ताकीद करते (पुरूषार्थ कराते) हैं, गीता में भी अक्षर है मनमनाभव। कोई-कोई अक्षर ठीक हैं। ‘प्राय:’ कहा जाता है ना, यानि देवी-देवता धर्म है नहीं, बाकी चित्र हैं। तुम्हारा यादगार देखो कैसे अच्छा बनाया हुआ है। तुम समझते हो अभी हम फिर से स्थापना कर रहे हैं। फिर भक्ति मार्ग में हमारे ही एक्यूरेट यादगार बनेंगे। अर्थक्वेक आदि होती है, उसमें सब खत्म हो जाता है। फिर वहाँ सब तुम नया बनायेंगे। हुनर तो वहाँ रहता है ना। हीरे काटने का भी हुनर (कला) है। यहाँ भी हीरों को काटते हैं फिर बनाते हैं। हीरे काटने वाले भी बड़े एक्सपर्ट होते हैं। वह फिर वहाँ जायेंगे। वहाँ यह सब हुनर जायेगा। तुम जानते हो वहाँ कितना सुख होगा। इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था ना। नाम ही है स्वर्ग। 100 परसेन्ट सालवेन्ट। अभी तो है इनसालवेन्ट। भारत में जवाहरात का बहुत फैशन है, जो परम्परा चला आता है। तो तुम बच्चों को कितनी खुशी रहनी चाहिए। तुम जानते हो यह दुनिया बदल रही है। अब स्वर्ग बन रहा है, उसके लिए हमको पवित्र जरूर बनना है। दैवी गुण भी धारण करने हैं इसलिए बाबा कहते हैं चार्ट जरूर लिखो। हम आत्मा ने कोई आसुरी एक्ट तो नहीं किया? अपने को आत्मा पक्का समझो। इस शरीर से कोई विकर्म तो नहीं किया? अगर किया तो रजिस्टर खराब हो जायेगा। यह है 21 जन्मों की लॉटरी। यह भी रेस है। घोड़े की दौड़ होती है ना। इसको कहते हैं राजस्व अश्वमेध........ स्वराज्य के लिए अश्व यानी तुम आत्माओं को दौड़ी लगानी है। अब वापिस घर जाना है। उसको स्वीट साइलेन्स होम कहा जाता है। यह अक्षर तुम अभी सुनते हो। अब बाप कहते हैं बच्चे खूब मेहनत करो। राजाई मिलती है, कम बात थोड़ेही है। मैं आत्मा हूँ, हमने इतने जन्म लिए हैं। अब बाप कहते हैं तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए। अब फिर पहले नम्बर से शुरू करना है। नये महलों में जरूर बच्चे ही बैठेंगे। पुराने में तो नहीं बैठेंगे। ऐसे तो नहीं, खुद पुराने में बैठे और नये में किराये वालों को बिठायेंगे। तुम जितनी मेहनत करेंगे, नई दुनिया के मालिक बनेंगे। नया मकान बनता है तो दिल होती है पुराने को छोड़ नये में बैठें। बाप बच्चों के लिए नया मकान बनाते ही तब हैं जब पहला मकान पुराना होता है। वहाँ किराये पर देने की तो बात ही नहीं। जैसे वो लोग मून पर प्लाट लेने की कोशिश करते हैं, तुम फिर स्वर्ग में प्लाट ले रहे हो। जितना-जितना ज्ञान और योग में रहेंगे उतना पवित्र बनेंगे। यह है राजयोग, कितनी बड़ी राजाई मिलेगी। बाकी यह जो मून आदि पर प्लाट ढूँढते रहते हैं वह सब व्यर्थ है। यही चीजें जो सुख देने वाली हैं वही फिर विनाश करने, दु:ख देने वाली बन जायेंगी। आगे चलकर लश्कर आदि सब कम हो जायेगा। बॉम्ब्स से ही फटाफट काम होता जायेगा। यह ड्रामा बना हुआ है, समय पर अचानक विनाश होता है। फिर सिपाही आदि भी मर जाते हैं। तुम अब फरिश्ते बन रहे हो। तुम जानते हो हमारे खातिर विनाश होता है। ड्रामा में पार्ट है, पुरानी दुनिया खलास हो जाती है। जो जैसा कर्म करते हैं ऐसा तो भोगना है ना। अब समझो सन्यासी अच्छे हैं, जन्म तो फिर भी गृहस्थियों पास लेंगे ना। श्रेष्ठ जन्म तो तुमको नई दुनिया में मिलना है, फिर भी संस्कार अनुसार जाकर वह बनेंगे। तुम अभी संस्कार ले जाते हो नई दुनिया के लिए। जन्म भी जरूर भारत में लेंगे। जो बहुत अच्छे रिलीजस माइन्डेड होंगे उनके पास जन्म लेंगे क्योंकि तुम कर्म ही ऐसे करते हो। जैसे-जैसे संस्कार, उस अनुसार जन्म होता है। तुम बहुत ऊंच कुल में जाकर जन्म लेंगे। तुम्हारे जैसा कर्म करने वाला तो कोई होगा नहीं। जैसी पढ़ाई, जैसी सर्विस, वैसा जन्म। मरना तो बहुतों को है। पहले रिसीव करने वाले भी जाने हैं। बाप समझाते हैं अब यह दुनिया बदल रही है। बाप ने तो साक्षात्कार कराया है। बाबा अपना भी मिसाल बताते हैं। देखा 21 जन्मों के लिए राजाई मिलती है, उसके आगे यह 10-20 लाख क्या हैं। अल्फ को मिली बादशाही, बे को मिली गदाई। भागीदार को कह दिया जो चाहिए सो लो। कोई भी तकलीफ नहीं हुई। बच्चों को भी समझाया जाता है-बाबा से तुम क्या लेते हो? स्वर्ग की बादशाही। जितना हो सके सेन्टर्स खोलते जाओ। बहुतों का कल्याण करो। तुम्हारी 21 जन्मों की कमाई हो रही है। यहाँ तो लखपति, करोड़पति बहुत हैं। वह सब हैं बेगर्स। तुम्हारे पास आयेंगे भी बहुत। प्रदर्शनी में कितने आते हैं, ऐसा मत समझो प्रजा नहीं बनती है। प्रजा बहुत बनती है। अच्छा-अच्छा तो बहुत कहते हैं परन्तु कहते हमको फुर्सत नहीं। थोड़ा भी सुना तो प्रजा में आ जायेंगे। अविनाशी ज्ञान का विनाश नहीं होता है। बाबा का परिचय देना कोई कम बात थोड़ेही है। कोई-कोई के रोमांच खड़े हो जायेंगे। अगर ऊंच पद पाना होगा तो पुरूषार्थ करने लग पड़ेंगे। बाबा कोई से धन आदि तो लेंगे नहीं। बच्चों की बूंद-बूंद से तलाब होता है। कोई-कोई एक रूपया भी भेज देते हैं। बाबा एक ईट लगा दो। सुदामा की मुट्ठी चावल का गायन है ना। बाबा कहते हैं तुम्हारे तो यह हीरे- जवाहर हैं। हीरे जैसा जन्म सबका बनता है। तुम भविष्य के लिए बना रहे हो। तुम जानते हो यहाँ इन ऑखों से जो कुछ देखते हैं, यह पुरानी दुनिया है। यह दुनिया बदल रही है। अभी तुम अमरपुरी के मालिक बन रहे हो। मोहजीत जरूर बनना पड़े। तुम कहते आये हो कि बाबा आप आयेंगे तो हम कुर्बान जायेंगे, सौदा तो अच्छा है ना। मनुष्य थोड़ेही जानते हैं, सौदागर, रत्नागर, जादूगर नाम क्यों पड़ा है। रत्नागर है ना, अविनाशी ज्ञान रत्न एक-एक अमूल्य वर्शन्स हैं। इस पर रूप-बसन्त की कथा है ना। तुम रूप भी हो, बसन्त भी हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अब इस शरीर से कोई भी विकर्म नहीं करना है। ऐसी कोई आसुरी एक्ट न हो जिससे रजिस्टर खराब हो जाए।
2) एक बाप की याद के नशे में रहना है। पावन बनने का मूल पुरूषार्थ जरूर करना है। कौड़ियों पिछाड़ी अपना अमूल्य समय बरबाद न कर श्रीमत से जीवन श्रेष्ठ बनानी है।
वरदान:
अपने तपस्वी स्वरूप द्वारा सर्व को प्राप्तियों की अनुभूति कराने वाले मास्टर विधाता भव!   
जैसे सूर्य विश्व को रोशनी की और अनेक विनाशी प्राप्तियों की अनुभूति कराता है ऐसे आप तपस्वी आत्मायें अपने तपस्वी स्वरूप द्वारा सर्व को प्राप्ति के किरणों की अनुभूति कराओ। इसके लिए पहले जमा का खाता बढ़ाओ। फिर जमा किये हुए खजाने मास्टर विधाता बन देते जाओ। तपस्वीमूर्त का अर्थ है-तपस्या द्वारा शान्ति के शक्ति की किरणें चारों ओर फैलती हुई अनुभव में आयें।
स्लोगन:
स्वयं निर्माण बनकर सर्व को मान देते चलो-यही सच्चा परोपकार है।