Tuesday, November 10, 2015

मुरली 11 नवंबर 2015

11-11-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम सच्चे-सच्चे राजऋषि हो, तुम्हारा कर्तव्य है तपस्या करना, तपस्या से ही पूजन लायक बनेंगे”   
प्रश्न:
कौन-सा पुरूषार्थ सदाकाल के लिए पूजने लायक बना देता है?
उत्तर:
आत्मा की ज्योति जगाने वा तमोप्रधान आत्मा को सतोप्रधान बनाने का पुरूषार्थ करो तो सदाकाल के लिए पूजन लायक बन जायेंगे। जो अभी गफ़लत करते हैं वह बहुत रोते हैं। अगर पुरूषार्थ करके पास नहीं हुए, धर्मराज की सज़ायें खाई तो सज़ा खाने वाले पूजे नहीं जायेंगे। सज़ा खाने वाले का मुँह ऊंचा नहीं हो सकता।
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं। पहले-पहले तो बच्चों को समझाते हैं कि अपने को आत्मा निश्चय करो। पहले आत्मा है, पीछे शरीर है। जहाँ-तहाँ प्रदर्शनी अथवा म्यूजियम में, क्लास में पहले-पहले यह सावधानी देनी है कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। बच्चे जब बैठते हैं, सब देही-अभिमानी होकर नहीं बैठते हैं। यहाँ बैठते भी कहाँ-कहाँ ख्यालात जाते हैं। सतसंग में जब तक कोई साधू आदि आये तब तक क्या बैठ करते हैं। कोई न कोई ख्यालात में बैठे रहते हैं। फिर साधू आया तो कथा आदि सुनने लगते हैं। बाप ने समझाया है - यह सब भक्ति मार्ग में सुनना-सुनाना है। बाप समझाते हैं यह सब है - आर्टिफिशयल। इनमें है कुछ भी नहीं। दीपमाला भी आर्टिफिशयल मनाते हैं। बाप ने समझाया है - ज्ञान का तीसरा नेत्र खुलना चाहिए तो घर-घर में सोझरा हो। अभी तो घर-घर में अन्धियारा ही है। यह सब बाहर का प्रकाश है। तुम अपनी ज्योति जगाने बिल्कुल शान्त में बैठते हो। बच्चे जानते हैं स्वधर्म में रहने से पाप कट जाते हैं। जन्म-जन्मान्तर के पाप इस याद की यात्रा से ही कटते हैं। आत्मा की ज्योत बुझ गई है ना। शक्ति का पेट्रोल सारा खत्म हो गया है। वह फिर भर जायेगा क्योंकि आत्मा पवित्र बन जाती है। कितना रात-दिन का फ़र्क है। अब लक्ष्मी की कितनी पूजा होती है। कई बच्चे लिखते हैं लक्ष्मी बड़ी या सरस्वती माँ बड़ी। लक्ष्मी तो एक होती है - श्री नारायण की। अगर महालक्ष्मी को पूजते हैं तो उनको 4 भुजा दिखाते हैं। उसमें दोनों आ जाते हैं। वास्तव में उसको लक्ष्मी-नारायण की पूजा कहा जाए। चतुर्भुज है ना - दोनों इकट्ठे। परन्तु मनुष्यों को कुछ भी समझ नहीं है। बेहद का बाप कहते हैं कि सभी बेसमझ बन पड़े हैं। लौकिक बाप कभी सारी दुनिया के बच्चों को कहेंगे क्या कि बेसमझ हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो - विश्व का बाप कौन है? खुद कहते हैं मैं सभी आत्माओं का बाप हूँ। तुम सब मेरे बच्चे हो। वो साधू लोग तो कह देंगे सब भगवान ही भगवान हैं। तुम जानते हो बेहद का बाप बेहद का ज्ञान समझा रहे हैं हम आत्माओं को। मनुष्यों को तो देह- अभिमान रहता है - मैं फलाना हूँ......। शरीर पर जो नाम पड़ा है, उस पर चलते आये हैं। अब शिवबाबा तो है निराकार, सुप्रीम सोल। उस आत्मा पर नाम है शिव। आत्मा पर नाम एक ही शिवबाबा का है। बस वह है परम आत्मा, परमात्मा, उनका नाम है शिव। बाकी जो भी आत्मायें ढेर की ढेर हैं उन सबके शरीरों के नाम पड़े हुए हैं। शिवबाबा यहाँ रहता नहीं है, वह तो परमधाम से आते हैं। शिव अवतरण भी है। अभी बाप ने तुमको समझाया है - सभी आत्मायें यहाँ आती हैं पार्ट बजाने। बाप का भी पार्ट है। बाप तो बहुत बड़ा काम यहाँ करते हैं। अवतार मानते हैं तो उनकी तो हॉलीडे और स्टैम्प आदि होनी चाहिए। सब देशों में हॉली डे होनी चाहिए क्योंकि बाप तो सबका सद्गति दाता है ना। उनका जन्म दिन और चले जाने का दिन, डेट आदि का भी पता नहीं पड़ सकता क्योंकि यह तो न्यारा है ना इसलिए सिर्फ शिवरात्रि कह देते हैं। यह भी तुम बच्चे जानते हो - आधाकल्प है बेहद का दिन, आधाकल्प है बेहद की रात। रात पूरी होकर फिर दिन होता है। उसके बीच में बाप आते हैं। यह तो एक्यूरेट टाइम है। मनुष्य जन्मते हैं तो म्युनिस्पाल्टी में नोट करते हैं ना, फिर 6 दिन के बाद उसका नाम रखते हैं, उसको कहते हैं - नामकरण। कोई छठी कहते। भाषायें तो बहुत हैं ना। लक्ष्मी की पूजा करते हैं - आतिशबाजी जलाते हैं। तुम पूछ सकते हो जो लक्ष्मी का त्योहार आप मनाते हो, यह कब तख्त पर बैठी? तख्त पर बैठने का ही कारोनेशन मनाते हैं, उनका जन्म नहीं मनाते। लक्ष्मी का चित्र थाली में रख उनसे धन मांगते हैं। बस और कुछ नहीं। मन्दिर में जाकर भल कुछ मांगेंगे, परन्तु दीपमाला के दिन तो उनसे सिर्फ पैसा मांगेंगे। पैसा देती थोड़ेही है। यह जैसी-जैसी भावना है.. अगर कोई सच्ची भावना से पूजा करते तो अल्पकाल के लिए धन मिल सकता है। यह है ही अल्पकाल का सुख। कहाँ तो स्थाई सुख भी होगा ना। स्वर्ग का तो उन्हों को पता ही नहीं है। यहाँ स्वर्ग की भेंट में कोई खड़ा हो नहीं सकता।

तुम जानते हो आधाकल्प है ज्ञान, आधाकल्प है भक्ति। फिर होता है वैराग्य। समझाया जाता है - यह पुरानी छी-छी दुनिया है इसलिए फिर नई दुनिया जरूर चाहिए। नई दुनिया बैकुण्ठ को कहते हैं, उसको हेविन, पैराडाइज कहा जाता है। इस ड्रामा में पार्टधारी भी अविनाशी हैं। तुम बच्चों को मालूम पड़ा है कि हम आत्मा पार्ट कैसे बजाती हैं। बाबा ने समझाया है - किसको भी प्रदर्शनी आदि दिखाना है तो पहले-पहले यह एम ऑब्जेक्ट समझानी है। सेकण्ड में जीवनमुक्ति कैसे मिलती है-जन्म-मरण में तो जरूर आना ही है। तुम सीढ़ी पर बहुत अच्छी रीति समझा सकते हो। रावणराज्य में ही भक्ति शुरू होती है। सतयुग में भक्ति का नाम-निशान नहीं होता। ज्ञान और भक्ति दोनों अलग-अलग हैं ना। अभी तुमको इस पुरानी दुनिया से वैराग्य है। तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया अब खत्म होनी है। बाप सदैव बच्चों के सुखदाई ही होते हैं। बच्चों के लिए ही बाप कितना माथा मारते हैं। बच्चे के लिए ही गुरूओं के पास जाते हैं, साधुओं के पास जाते हैं - कैसे भी करके बच्चा हो क्योंकि समझते हैं बच्चा होगा तो उनको मिलकियत देकर जायेंगे। बच्चा हो तो उनको हम वारिस बनायें। तो बाप कभी बच्चों को दु:ख थोड़ेही देंगे। इम्पॉसिबुल है। तुम मात-पिता कहकर कितनी रड़ियाँ मारते रहते हैं। तो बच्चों का रूहानी बाप सबको सुख का ही रास्ता बताते हैं। सुख देने वाला एक ही बाप है। दु:ख हर्ता सुख कर्ता एक रूहानी बाप है। यह विनाश भी सुख के लिए ही है। नहीं तो मुक्ति-जीवनमुक्ति कैसे पायेंगे? परन्तु यह भी कोई समझेंगे थोड़ेही। यहाँ तो यह हैं गरीब, अबलायें, जो अपने को आत्मा निश्चय कर सकती। बाकी बड़े लोगों को देह का अभिमान इतना कड़ा पक्का हो गया है जो बात मत पूछो। बाबा बार-बार समझाते हैं - तुम राजऋषि हो। ऋषि हमेशा तपस्या करते हैं। वह तो ब्रह्म को, तत्व को याद करते हैं या कोई काली आदि को भी याद करते होंगे। बहुत सन्यासी भी हैं जो काली की पूजा करते हैं। माँ काली कह पुकारते हैं। बाप कहते हैं - इस समय सब विकारी हैं। काम चिता पर बैठ सब काले हुए हैं। माँ, बाप, बच्चे सब काले हैं। यह बेहद की बात है। सतयुग में काले होते नहीं, सब हैं गोरे। फिर कभी सांवरे बनते हैं। यह तुम बच्चों को बाप ने समझाया है। थोड़ा-थोड़ा पतित होते-होते अन्त में बिल्कुल ही काले हो जाते हैं। बाप कहते हैं रावण ने काम चिता पर चढ़ाए बिल्कुल काला बना दिया है। अब फिर तुमको ज्ञान चिता पर चढ़ाता हूँ। आत्मा को ही पवित्र बनाना होता है। अब पतित-पावन बाप आकर पावन बनने की युक्ति बताते हैं। पानी क्या युक्ति बतायेंगे। परन्तु तुम किसको समझाओ तो कोटो में कोई ही समझकर ऊंच पद पाते हैं। अभी तुम बाप से अपना वर्सा लेने आये हो - 21 जन्मों के लिए। तुम आगे चलकर बहुत साक्षात्कार करेंगे। तुमको अपनी पढ़ाई का सब पता पड़ेगा। जो अभी गफ़लत करते हैं फिर बहुत रोयेंगे। सज़ायें भी तो बहुत होती हैं ना। फिर पद भी भ्रष्ट हो जाता है। मुंह ऊंचा कर नहीं सकेंगे इसलिए बाप कहते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, पुरूषार्थ कर पास हो जाओ, जो कुछ भी सज़ा नहीं खानी पड़े तब पूजन लायक भी बनेंगे। सज़ा खाई तो फिर थोड़ेही पूजे जायेंगे। तुम बच्चों को पुरूषार्थ बहुत करना चाहिए। अपनी आत्मा की ज्योति जगानी है। अभी आत्मा तमोप्रधान बनी है, उनको ही सतोप्रधान बनाना है। आत्मा है ही बिन्दी। एक सितारा है। उनका और कोई नाम रख नहीं सकते। बच्चों को समझाया है उनका साक्षात्कार हुआ है। स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस का बतलाते हैं। उसने देखा उनसे कुछ लाइट निकली सो तो आत्मा ही निकलती है। उसने समझा वह मेरे में समा गई। अब आत्मा कोई आकर समा थोड़ेही सकती है। वह तो जाकर दूसरा शरीर लेती है। पिछाड़ी में तुम बहुत देखेंगे। नाम और रूप से न्यारी कोई चीज़ होती नहीं। आकाश पोलार है, उनका भी नाम है। अब यह तो बच्चे समझते हैं, कल्प-कल्प स्थापना जो होती आई है वह होनी ही है। हम ब्राह्मण नम्बरवार पुरूषार्थ करते रहते हैं। जो-जो सेकेण्ड गुजरता है उसको ड्रामा ही कहा जाता है। सारी दुनिया का चक्र फिरता रहता है। यह 5 हजार वर्ष का चक्र, जूँ मिसल फिरता रहता है। टिक-टिक होती रहती है, अभी तुम मीठे-मीठे बच्चों को सिर्फ बाप को ही याद करना है। चलते-फिरते काम करते बाप को याद करने में ही कल्याण है। फिर माया चमाट लगा देगी। तुम हो ब्राह्मण, भ्रमरी मिसल कीड़े को आपसमान ब्राह्मण बनाना है। वह भ्रमरी का तो एक दृष्टान्त है। तुम हो सच्चे-सच्चे ब्राह्मण। ब्राह्मणों को ही फिर देवता बनना है इसलिए तुम्हारा यह है पुरूषोत्तम बनने के लिए संगमयुग। यहाँ तुम आते ही हो पुरूषोत्तम बनने के लिए। पहले ब्राह्मण जरूर बनना पड़े। ब्राह्मणों की चोटी है ना। तुम ब्राह्मणों को समझा सकते हो। बोलो, तुम ब्राह्मणों का तो कुल है, ब्राह्मणों की राजधानी नहीं है। तुम्हारा यह कुल किसने स्थापन किया? तुम्हारा बड़ा कौन है? फिर तुम जब समझायेंगे तो बहुत खुश होंगे। ब्राह्मणों को मान देते हैं क्योंकि वह शास्त्र आदि सुनाते हैं। पहले राखी बांधने के लिए भी ब्राह्मण जाते थे। आजकल तो बच्चियां जाती हैं। तुमको तो राखी उनको बांधनी है जो पवित्रता की प्रतिज्ञा करें। प्रतिज्ञा जरूर करनी पड़े। भारत को फिर से पावन बनाने लिए हम यह प्रतिज्ञा करते हैं। तुम भी पावन बनो, औरों को भी पावन बनाओ। और किसकी ताकत नहीं जो ऐसे कह सके। तुम जानते हो यह अन्तिम जन्म पावन बनने से हम पावन दुनिया के मालिक बनते हैं। तुम्हारा धंधा ही यह है। ऐसे मनुष्य कोई होते ही नहीं। तुमको जाकर यह कसम उठवाना है। बाप कहते हैं काम महाशत्रु है, इस पर विजय पानी है। इस पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत बनेंगे। इन लक्ष्मी-नारायण ने जरूर आगे जन्म में पुरूषार्थ किया है तब तो ऐसा बने हैं ना। अभी तुम बता सकते हो - किस कर्म से इनको यह पद मिला, इसमें मूंझने की तो कोई बात ही नहीं। तुमको कोई इस दीपमाला आदि की खुशी नहीं है। तुमको तो खुशी है - हम बाप के बने हैं, उनसे वर्सा पाते हैं। भक्ति मार्ग में मनुष्य कितना खर्चा करते हैं। कितने नुकसान भी हो जाते हैं। आग लग जाती है। परन्तु समझते नहीं।

तुम जानते हो अभी हम फिर से अपने नये घर जाने वाले हैं। चक्र फिर हूबहू रिपीट होगा ना। यह बेहद की फिल्म है। बेहद का स्लाइड है। बेहद बाप के बने हैं तो कापारी खुशी होनी चाहिए। हम बाप से स्वर्ग का वर्सा जरूर लेंगे। बाप कहते हैं पुरूषार्थ से जो चाहिए सो लो। पुरूषार्थ तुमको जरूर करना है। पुरूषार्थ से ही तुम ऊंच बन सकते हो। यह बाबा (बूढ़ा) इतना ऊंच बन सकते हैं तो तुम क्यों नहीं बन सकते हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जैसे बाप सदा बच्चों के प्रति सुखदाई है, ऐसे सुखदाई बनना है। सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है।
2) देही-अभिमानी बनने की तपस्या करनी है। इस पुरानी छी-छी दुनिया से बेहद का वैरागी बनना है।
वरदान:
बालक और मालिकपन की समानता द्वारा सर्व खजानों में सम्पन्न भव!   
जैसे बालकपन का नशा सभी में है ऐसे बालक सो मालिक अर्थात् बाप समान सम्पन्न स्थिति का अनुभव करो। मालिकपन की विशेषता है-जितना ही मालिक उतना ही विश्व सेवाधारी के संस्कार सदा इमर्ज रूप में रहें। मालिकपन का नशा और विश्व सेवाधारी का नशा समान रूप में हो तब कहेंगे बाप समान। बालक और मालिक दोनों स्वरूप सदा ही प्रत्यक्ष कर्म में आ जाएं तब बाप समान सर्व खजानों से सम्पन्न स्थिति का अनुभव कर सकेंगे।
स्लोगन:
ज्ञान के अखुट खजानों के अधिकारी बनो तो अधीनता खत्म हो जायेगी।