Saturday, November 7, 2015

मुरली 08 नवंबर 2015

08-11-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:07-02-80 मधुबन

“विचित्र राज्य दरबार”
बापदादा सभी बच्चों के रूप-बसन्त, दोनों के बैलेन्स देख रहे हैं। बसन्त बनना और रूप में स्थित होना। दोनों में समानता है? जैसे बसन्त अर्थात् वाणी में आने की बहुत प्रैक्टिस है, ऐसे वाणी से परे जाने का अभ्यास है? सर्व कर्मेन्द्रियों के कर्म की स्मृति से परे एक ही आत्मिक स्वरूप में स्थित हो सकते हो? कर्म खींचता है या कर्मातीत अवस्था खींचती है! देखना, सुनना, सुनाना - ये विशेष कर्म जैसे सहज अभ्यास में आ गये हैं, ऐसे ही कर्मातीत बनने की स्टेज अर्थात् कर्म को समेटने की शक्ति से अकर्मी अर्थात् कर्मातीत बन सकते हो? एक है कर्म-अधीन स्टेज, दूसरी है कर्मातीत अर्थात् संगमयुगी कमेन्द्रियों-जीत स्वराज्यधारी। राज्य अधिकारी राजाओं से पूछते हैं कि हरेक की राज्य कारोबार ठीक चल रही है? हरेक राज्य अधिकारी रोज़ अपनी राज दरबार लगाते हैं? राज्य दरबार में राज्य कारोबारी अपने कार्य की रिजल्ट देते हैं। हरेक करोबारी आप राज्य अधिकारी के ऑर्डर में है? कोई भी कारोबारी ख्यानत व मिलावट (अमानत में ख्यानत) व किसी भी प्रकार की खिटखिट तो नहीं करते हैं? कभी आप राज्य अधिकारी को धोखा तो नहीं देते हैं? चलने के बजाए चलाने तो नहीं लग जाते हैं? आप राज्य अधिकारियों का राज्य है या प्रजा का राज्य है? ऐसी चेकिंग करते हो या जब दुश्मन आता है तब होश आता है? रोज़ अपनी दरबार लगाते हो या कभी-कभी दरबार लगाते हो? क्या हाल है आपके राज्य दरबारियों का? राज्य कारोबार ठीक है? इतना अटेन्शन देते हो? अभी के राजा ही जन्म-जन्मान्तर के राजा बनेंगे। आपकी दासी ठीक कार्य कर रही है? सबसे बड़े-से-बड़ी दासी है - प्रकृति। प्रकृति रूपी दासी ठीक कार्य कर रही है? प्रकृतिजीत के ऑर्डर प्रमाण अपना कार्य कर रही है? प्रकृतिजीत - प्रकृति के ऑर्डर में तो नहीं आते? आपके राज्य- दरबार की मुख्य 8 सहयोगी शक्तियाँ आपके कार्य में सहयोग दे रही हैं? राज्य कारोबार की शोभा हैं - ये अष्ट शक्तियाँ अर्थात् अष्ट रत्न, अष्ट सहयोगी। तो आठों ही ठीक हैं? अपनी रिजल्ट चेक करो। राज्य कारोबार चलाना आता है? अगर राज्य अधिकारी अलबेलेपन की नींद में व अल्पकाल की प्राप्ति के नशे में व व्यर्थ संकल्पों के नाच में मस्त होंगे तो सहयोगी शक्तियाँ भी समय पर सहयोग नहीं देंगी। तो रिजल्ट क्या समझें? आजकल बापदादा हरेक बच्चे की भिन्न-भिन्न रूप से रिजल्ट चेक कर रहे हैं। आप अपनी रिजल्ट भी चेक करते हों? पहले तो संकल्प शक्ति, निर्णय शक्ति और संस्कार शक्ति - तीनों ही शक्तियाँ ऑर्डर में हैं? फिर 8 शक्तियाँ ऑर्डर में है? यह तीन शक्तियाँ है महामन्त्री। तो मन्त्री- मण्डल ठीक है या हिलाता है? आपके मन्त्री भी दलबदलू तो नहीं है? कभी माया के मुरीद तो नहीं बन जाते हैं?

अगर अभी तक भी कन्ट्रोलिंग पावर नहीं होगी तो फाइनल रिजल्ट में क्या होगा? फाइन भरने के लिए धर्मराजपुरी में जाना पड़ेगा। यह सजायें फाइन हैं। रिफाइन बन जाओ तो फाइन नहीं भरना पड़ेगा। जिसकी अभी से राज्य दरबार ठीक है वह धर्मराज की दरबार में नहीं जायेंगे। धर्मराज भी उनका स्वागत करेगा। स्वागत करानी है या बार-बार सौगन्ध खानी है। अभी नहीं करेंगे, अभी नहीं करेंगे - यह बार-बार कहना पड़ेगा। अपना फाइनल फैंसला कर लिया है कि अभी फाइलों के भण्डार भरे हुए हैं? खाता क्लियर हो गया है या मस्तक के टेबल पर यह नहीं किया है, यह नहीं किया है - यह फाइलें रही हुई हैं? अगर अब तक भी पुराने खाते का हिसाब-किताब चुक्ता न कर बढ़ाते चलेंगे तो रिजल्ट क्या होगी! जितना पुराना खाता चलाते रहेंगे उतना ही चिल्लाना पड़ेगा। यह चिल्लाना बड़ा दर्दनाक है। एक-एक सेकण्ड एक वर्ष के समान अनुभव होगा इसलिए अभी भी “शिव-मन्त्र” द्वारा समर्पित कर दो। अभी कईयों के खाते भस्म नहीं हुए हैं। अभी पुराने खाते ही चला रहे हैं। सुनाया ना - कईयों की तीन शक्तियाँ अभी भी बाप के सर्व खजाने में ख्यानत कर रही हैं। बाप ने खजाने दिये हैं, स्व-कल्याण और विश्व-कल्याण के प्रति। लेकिन व्यर्थ तरफ लगाना, अकल्याण के कार्य में लगाना - यह अमानत में ख्यानत हो रही है। श्रीमत के साथ परमत और जनमत की मिलावट हो रही है। मिलावट करने में होशियार भी बहुत हैं। रूप ऐसा ही रखते हैं जैसे कि श्रीमत है। शब्द मुरली के ही लेंगे लेकिन अन्तर इतना होगा जैसे शिव और शव। शिवबाबा के बजाए शव में अटकेंगे। उनकी भाषा बड़ी रॉयल रूप की होती हैं। सदैव अपने को बचाने के लिए, किसने किया है, कौन देखता है...., ऐसे दिलासे से स्वयं को चलाते रहते हैं। समझते हैं दूसरों को धोखा देते हैं लेकिन स्वयं का दु:ख जमा कर रहे हैं। एक का सौगुणा होकर जमा होता रहता है इसलिए ख्यानत और मिलावट को समाप्त करो। रूहानियत और रहम को धारण करो। अपने ऊपर और सर्व के ऊपर रहमदिल बनो। स्व को देखो, बाप को देखो औरों को नहीं देखो। ‘हे अर्जुन’ बनो। जो ओटे सो अर्जुन। सदा यह स्लोगन याद रखो – “कहकर नहीं सिखाना है, करके सिखाना है। श्रेष्ठ कर्म करके सिखाना है”। उल्टा नहीं सिखाना है। मैं बदल करके सबको बदल के दिखाऊंगा। व्यर्थ बातें सुनते हुए, देखते हुए होली हंस बन, व्यर्थ छोड़ समर्थ धारण करो। सदा चमकीली ड्रेस में सजे- सजाये सदा सुहागिन। बाप और मैं, तीसरा न कोई। सदा झूले में झूलो। बाप की गोदी के झूलों या सर्व प्राप्तियों के झूले में झूलो। संकल्प रूपी नाखून भी मिट्टी में न जाए। समझा, इस वर्ष क्या करना है? नहीं तो मिट्टी पोंछते रहेंगे, साजन पहुंच जायेगा। वह मंजिल पर पहुंच जायेगा और आप पोंछते हुए रह जायेंगे। बरातियों की लिस्ट में आ जायेंगे। समय का इन्तजार नहीं करना। सदा स्वयं को ऑफर करो कि मैं एवररेडी हूँ। समझा, अब क्या करना है!

बीते हुए वर्ष की रिजल्ट में अभी कईयों के खाते क्लियर नहीं हैं। अब तक पुराने-पुराने दाग भी कईयों के रहे हुए हैं। रबड़ भी लगाते हैं, फिर दाग लगा देते हैं। कईयों का तो पहले छोटा दाग है लेकिन छिपाते-छिपाते बड़ा कर दिया है। कई छिपाते हैं और कई चालाकी से अपने को चलाते हैं इसलिए गहरा दाग होता जाता है। जैसे बहुत गहरा दाग होता है तो जिस चीज़ पर दाग होता है वही फट जाती है, चाहे कागज़ पर हो, चाहे कपड़े पर हो। वैसे यहाँ भी गहरे दाग वाले को दिल फाड़ कर रोना पड़ेगा। यह मैंने किया - यह मैंने किया। ऐसे दिल फाड़ करके रोना पड़ेगा। अगर एक सेकण्ड भी वह दृश्य देखो तो विनाशकाल से भी दर्दनाक है इसलिए सच्चे बनो। बापदादा को अभी भी रहम आता है इसलिए रोज़ अपनी राज-दरबार लगाओ, कचहरी करो। चेक करने से चेन्ज हो जायेंगे। अच्छा।

ऐसे स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन करने वाले सदा राज्य अधिकारी, सदा रूहानियत और रहम की वृत्ति वाले, विश्व में सदा सुखी, शान्त वायुमण्डल बनाने वाले, भटकती हुई आत्माओं के लिए लाइट हाउस और माइट हाउस - ऐसे दृढ़ संकल्प करने वाले, पुरानी दुनिया की आकर्षण से दूर रहने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

सेवाधारी भाई-बहनों से:- सेवाधारी अर्थात् बाप समान। बाप भी सेवाधारी बन करके आते हैं। सेवाधारी बनना अर्थात् बाप समान बनना। तो ये भी समझो ड्रामा में लॉटरी में नाम निकलता है। सेवा का चान्स मिलना अर्थात् लॉटरी का नाम निकलना। सदा सेवा का चान्स लेते रहना। सभी की रिजल्ट बहुत अच्छी है - मुबारक हो। अच्छा।

पर्सनल मुलाकात पार्टियों से:-

बाप-दादा हर बच्चे को सदैव किस नज़र से देखते हैं? बाप-दादा की नज़र हरेक बच्चे की विशेषता पर जाती है। और ऐसा कोई भी नहीं हो सकता जिसमें कोई विशेषता न हो। विशेषता है तब विशेष आत्मा बनकर ब्राह्मण परिवार में आये हैं। आप भी जब किसी के सम्पर्क में आते हो तो विशेषता पर नज़र जानी चाहिए। विशेषता द्वारा उनसे वह कार्य करा सकते हो और लाभ ले सकते हो। जैसे बाप होपलेस को होप वाला बना देते। ऐसे कोई भी हो, कैसा भी हो उनसे कार्य निकालना है, यह है संगमयुगी ब्राह्मणों की विशेषता। जैसे जवाहरी की नज़र सदा हीरे पर रहती, आप भी ज्वैलर्स हो, अपनी नज़र पत्थर की तरफ न जाए, हीरे को देखो। संगमयुग है भी हीरे तुल्य युग। पार्ट भी हीरो, युग भी हीरे तुल्य, तो हीरा ही देखो। फिर स्टेज कौन-सी होगी? अपनी शुभ भावना की किरणें सब तरफ फैलाते रहेंगे। वर्तमान समय इसी बात का विशेष अटेन्शन चाहिए। ऐसे पुरुषार्थी को ही तीव्र पुरुषार्थी कहा जाता है। ऐसे पुरुषार्थी को मेहनत नहीं करनी पड़ती, सब कुछ सहज हो जाता है। सहजयोगी के आगे कितनी भी बड़ी बात ऐसे सहज हो जाती है जैसे कुछ हुआ ही नहीं, सूली से काँटा। तो ऐसे सहजयोगी हो ना? बचपन में जब चलना सीखते हैं तब मेहनत लगती, तो मेहनत का काम भी बचपन की बातें हैं, अब मेहनत समाप्त सब में सहज। जहाँ कोई भी मुश्किल अनुभव होता है वहाँ उसी स्थान पर बाबा को रख दो। बोझ अपने ऊपर रखते हो तो मेहनत लगती। बाप पर रख दो तो बाप बोझ को खत्म कर देंगे। जैसे सागर में किचड़ा डालते हैं तो वह अपने में नहीं रखता, किनारे कर देता, ऐसे बाप भी बोझ को खत्म कर देते। जब पण्डे को भूल जाते हो तब मेहनत का रास्ता अनुभव होता। मेहनत में टाइम वेस्ट होता। अब मन्सा सेवा करो, शुभाचिंतन करो, मनन शक्ति को बढ़ाओ। मेहनत मजदूर करते आप तो अधिकारी हैं।

2) ब्राहमण जीवन की विशेषता है अनुभव। नॉलेज के साथ-साथ हर गुण की अनुभूति होनी चाहिए। अगर एक भी गुण वा शक्ति की अनुभूति नहीं तो कभी-न-कभी विघ्न के वश हो जायेंगे। अभी अनुभूति का कोर्स शुरू करो। हर गुण वा शक्ति रूपी खजाने को यूज़ करो। जिस समय जिस गुण की आवश्यकता है उस समय उसका स्वरूप बन जाओ। जैसे आत्मा का गुण है प्रेम स्वरूप, सिर्फ प्रेम नहीं लेकिन प्रेम स्वरूप में आना चाहिए। जिस आत्मा को देखो उसे रूहानी प्रेम की अनुभूति होनी चाहिए। अगर स्वयं को वा दूसरों को अनुभव नहीं होता तो जो मिला है उसे यूज़ नहीं किया है। जैसे आजकल भी खजाना लाकर्स में पड़ा हो तो खुशी नहीं होती। वैसे नॉलेज की रीति से बुद्धि के लाकर में खजाने को रख न दो, यूज़ करो। फिर देखो यह ब्राहमण जीवन कितना श्रेष्ठ लगता है। फिर वाह रे मैं का गीत गाते रहेंगे। अनुभवी के बोल और नॉलेज वाले के बोल में अन्तर होता है। सिर्फ नॉलेज वाला अनुभव नहीं करा सकता। तो चेक करो कि कहाँ तक मैं अनुभवी मूर्त बना हूँ? कौन-सी शक्ति किस परसेन्टेज में प्राप्त की है? और समय पर कार्य में ला सकते हैं या नहीं? ऐसा न हो दुश्मन आवे और तलवार चले नहीं अथवा ढाल के समय तलवार और तलवार के समय ढाल याद आ जाए। जिस समय जिस चीज़ की आवश्यकता है वही यूज़ करो तब विजयी हो सकेंगे। अच्छा।
वरदान:
लव और लवलीन स्थिति के अनुभव द्वारा सब कुछ भूलने वाले सदा देही अभिमानी भव!   
कर्म में, वाणी में, सम्पर्क में व सम्बन्ध में लव और स्मृति व स्थिति में लवलीन रहो तो सब कुछ भूलकर देही-अभिमानी बन जायेंगे। लव ही बाप के समीप सम्बन्ध में लाता है, सर्वस्व त्यागी बनाता है। इस लव की विशेषता से वा लवलीन स्थिति में रहने से ही सर्व आत्माओं के भाग्य व लक्क को जगा सकते हो। यह लव ही लक्क के लॉक की चाबी है। यह मास्टर-की है। इससे कैसी भी दुर्भाग्यशाली आत्मा को भाग्यशाली बना सकते हो।
स्लोगन:
स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करो तो विश्व परिवर्तन स्वत:हो जायेगा।