Thursday, October 8, 2015

मुरली 09 अक्टूबर 2015

“मीठे बच्चे - तुम हो स्प्रीचुअल, रूहानी इनकागनीटो सैलवेशन आर्मी, तुम्हें सारी दुनिया को सैलवेज करना है, डूबे हुए बेडे को पार लगाना है”  

प्रश्न:

संगम पर बाप कौन-सी युनिवर्सिटी खोलते हैं जो सारे कल्प में नहीं होती?

उत्तर:

राजाई प्राप्त करने के लिए पढ़ने की गॉड फादरली युनिवर्सिटी वा कॉलेज संगम पर बाप ही खोलते हैं। ऐसी युनिवर्सिटी सारे कल्प में नहीं होती। इस युनिवर्सिटी में पढ़ाई पढ़कर तुम डबल सिरताज राजाओं का राजा बनते हो।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) रूहानी सैलवेशन आर्मी बन स्वयं को और सर्व को सही रास्ता बताना है। सारी दुनिया को विषय सागर से सैलवेज करने के लिए बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है।

2) ज्ञान-योग से पवित्र बन आत्मा का श्रृंगार करना है, शरीरों का नहीं। आत्मा के पवित्र बनने से शरीर का श्रृंगार स्वत: हो जायेगा।

वरदान:

बाप की हर श्रीमत का पालन करने वाले सच्चे स्नेही आशिक भव!

जो बच्चे सदा एक बाप के स्नेह में लवलीन रहते हैं, उन्हें बाप का हर बोल प्यारा लगता है, क्वेश्चन समाप्त हो जाते हैं। ब्राह्मण जन्म का फाउन्डेशन स्नेह है। जो स्नेही आशिक आत्मायें हैं उन्हें बाप की श्रीमत पालन करने में मुश्किल का अनुभव नहीं होता है। स्नेह के कारण सदा यही उमंग रहता कि बाबा ने जो कहा है वह मेरे प्रति कहा है-मुझे करना है। स्नेही आत्मायें बड़ी दिल वाली होती हैं, इसलिए उनके लिए हर बड़ी बात भी छोटी हो जाती है।

स्लोगन:

कोई भी बात को फील करना-यह भी फेल की निशानी है।


ओम् शांति ।

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09-10-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम हो स्प्रीचुअल, रूहानी इनकागनीटो सैलवेशन आर्मी, तुम्हें सारी दुनिया को सैलवेज करना है, डूबे हुए बेडे को पार लगाना है”   
प्रश्न:
संगम पर बाप कौन-सी युनिवर्सिटी खोलते हैं जो सारे कल्प में नहीं होती?
उत्तर:
राजाई प्राप्त करने के लिए पढ़ने की गॉड फादरली युनिवर्सिटी वा कॉलेज संगम पर बाप ही खोलते हैं। ऐसी युनिवर्सिटी सारे कल्प में नहीं होती। इस युनिवर्सिटी में पढ़ाई पढ़कर तुम डबल सिरताज राजाओं का राजा बनते हो।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों से पहले-पहले बाबा पूछते हैं यहाँ आकर जब बैठते हो तो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हो? क्योंकि यहाँ तुमको कोई धंधाधोरी, मित्र-सम्बन्धी आदि भी नहीं हैं। तुम यह विचार करके आते हो कि हम बेहद के बाप से मिलने जाते हैं। कौन कहते हैं? आत्मा शरीर द्वारा बोलती है। पारलौकिक बाप ने यह शरीर उधार पर लिया है, इनसे समझाते हैं। यह एक ही बार होता है जो बेहद का बाप आकर सिखलाते हैं। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने से तुम्हारा बेडा पार होगा। हर एक का बेडा डूबा हुआ है, जो जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना बेडा पार होगा। गाते हैं ना-हे मांझी बेड़ी (नैया) मेरी पार लगाओ। वास्तव में हर एक को अपने पुरूषार्थ से पार जाना है। जैसे तैरना सिखलाते हैं फिर सीख जाते हैं तो आपेही तैरते हैं। वह सब हैं जिस्मानी बातें। यह हैं रूहानी बातें। तुम जानते हो आत्मा अभी कीचड़ के दुबन में फँस गई है। इस पर हिरण का भी मिसाल देते हैं। पानी समझ जाते हैं, परन्तु वह होती है कीचड़, तो उसमें फँस पड़ते हैं। कभी-कभी स्टीमर्स, मोटरें आदि भी कीचड़ में फँस पड़ती हैं। फिर उनको सैलवेज करते हैं। वह सब हैं सैलवेशन आर्मी। तुम हो रूहानी। तुम जानते हो सब माया के दुबन में बहुत फँसे हुए हैं, इनको माया का दुबन कहा जाता है। बाप आकर समझाते हैं - इनसे तुम कैसे निकल सकते हो। वह सैलवेज करते हैं, उसमें मदद चाहिए आदमी को आदमी की। यहाँ तो फिर आत्मा जाकर दुबन में फँसी है। बाप रास्ता बताते हैं इनसे तुम कैसे निकल सकते हो। फिर दूसरों को भी रास्ता बता सकते हो। अपने को और दूसरों को रास्ता बताना है कि तुम्हारी नईया इस विषय सागर से क्षीरसागर में कैसे जाये। सतयुग को कहते हैं क्षीरसागर अर्थात् सुख का सागर। यह है दु:ख का सागर। रावण दु:ख के सागर में डुबोते हैं। बाप आकर सुख के सागर में ले जाते हैं। तुमको रूहानी सैलवेशन आर्मी कहा जाता है। तुम श्रीमत पर सबको रास्ता बताते हो। हर एक को समझाते हो-दो बाप हैं, एक हद का, दूसरा बेहद का। लौकिक बाप होते हुए भी सब पारलौकिक बाप को याद करते हैं परन्तु उनको जानते बिल्कुल नहीं हैं। बाबा कोई ग्लानि नहीं करते हैं परन्तु ड्रामा का राज़ समझाते हैं। यह भी समझाने के लिए ही कहते हैं कि इस समय सभी मनुष्य मात्र 5 विकारों रूपी दलदल में फँसे हुए आसुरी सम्प्रदाय हैं। दैवी सम्प्रदाय को आसुरी सम्प्रदाय जाकर नमन करते हैं क्योंकि वह सम्पूर्ण निर्विकारी हैं। सन्यासियों को नमन करते हैं वह भी घरबार छोड़कर जाते हैं। पवित्र रहते हैं। इन सन्यासियों और देवताओं में रात-दिन का फ़र्क है। देवताओं का तो जन्म भी योगबल से होता है। इन बातों को कोई जानते नहीं। सब कहते हैं ईश्वर की गति मत न्यारी, ईश्वर का अन्त नहीं पा सकते। सिर्फ ईश्वर वा भगवान कहने से इतना लव नहीं आता है। सबसे अच्छा अक्षर है बाप। मनुष्य बेहद के बाप को नहीं जानते तो जैसे आरफन हैं।

मैगजीन में भी निकाला है, मनुष्य क्या कहते और भगवान क्या कहते हैं। बाप कोई गाली नहीं देते हैं, बच्चों को समझाते हैं क्योंकि बाप तो सबको जानते हैं ना। समझाने लिए कहते हैं - इनमें आसुरी गुण हैं, आपस में लड़ते रहते हैं। यहाँ तो लड़ने की दरकार नहीं है। वह हैं कौरव अर्थात् आसुरी सम्प्रदाय। यह हैं दैवी सम्प्रदाय। बाप समझाते हैं - मनुष्य, मनुष्य को मुक्ति वा जीवनमुक्ति के लिए राजयोग सिखलायें यह हो नहीं सकता। इस समय बाप ही तुम आत्माओं को सिखला रहे हैं। देह-अभिमान, देही-अभिमानी में फर्क देखो कितना है। देह-अभिमान से तुम गिरते आये हो। बाप एक ही बार आकर तुमको देही-अभिमानी बनाते हैं। ऐसे नहीं कि तुम सतयुग में देह से सम्बन्ध नहीं रखेंगे। वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता कि मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान हूँ। यह ज्ञान अभी ही तुमको मिलता है जो प्राय: लोप हो जाता है। तुम ही श्रीमत पर चल प्रालब्ध पाते हो। बाप आते ही हैं राजयोग सिखलाने। ऐसी पढ़ाई और कोई होती नहीं। डबल सिरताज राजायें सतयुग में होते हैं। फिर सिंगल ताज वालों की राजाई भी है, अभी वह राजाई नहीं रही है, प्रजा का प्रजा पर राज्य है। तुम बच्चे अभी राजाई के लिए पढ़ते हो, इसको गॉड फादरली युनिवर्सिटी कहा जाता है। तुम्हारा नाम भी लिखा हुआ है। वो लोग भल नाम रखते हैं गीता पाठशाला। पढ़ाते कौन हैं? श्रीकृष्ण भगवानुवाच कह देंगे। अब कृष्ण तो पढ़ा न सकें। कृष्ण तो खुद पाठशाला में पढ़ने जाते हैं। प्रिन्स-प्रिन्सेज कैसे स्कूल में जाते हैं, वहाँ की भाषा ही दूसरी है। ऐसे भी नहीं कि संस्कृत में गीता गाई है। यहाँ तो अनेक भाषायें हैं। जो जैसा राजा होता है वह अपनी भाषा चलाते हैं। संस्कृत भाषा कोई राजाओं की नहीं है। बाबा कोई संस्कृत नहीं सिखलाते हैं। बाप तो राजयोग सिखलाते हैं, सतयुग के लिए।

बाप कहते हैं काम महाशत्रु है, इन पर जीत पहनो। प्रतिज्ञा कराते हैं, यहाँ जो भी आते हैं उनसे प्रतिज्ञा कराई जाती है। काम पर जीत पाने से तुम जगतजीत बनेंगे। यह है मुख्य विकार। यह हिंसा द्वापर से चली आती है, जिससे वाम मार्ग शुरू हुआ। देवतायें कैसे वाम मार्ग में जाते हैं, उनका भी मन्दिर है। वहाँ बहुत छी-छी चित्र बनाये हैं। बाकी वाम मार्ग में कब गये, उसकी तिथि-तारीख तो है नहीं। सिद्ध होता है काम चिता पर बैठने से काले बनते हैं परन्तु नाम-रूप तो बदल जाता है ना। काम चिता पर चढ़ने से आइरन एजड बन पड़ते हैं। अभी तो 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं ना, इसलिए शरीर भी ऐसे तमोप्रधान बनते हैं। जन्म से ही कोई कैसे, कोई कैसे हो पड़ते हैं। वहाँ तो एकदम सुन्दर शरीर होते हैं। अभी तमोप्रधान होने के कारण शरीर भी ऐसे हैं। मनुष्य ईश्वर प्रभू आदि भिन्न-भिन्न नामों से याद करते हैं परन्तु उन बिचारों को पता ही नहीं है। आत्मा अपने बाप को याद करती है-हे बाबा, आकर शान्ति दो। यहाँ तो कर्मेन्द्रियों से पार्ट बजा रहे हैं तो शान्ति कैसे मिलेगी। विश्व में शान्ति थी जबकि इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। परन्तु लाखों वर्ष कल्प की आयु कह दी है तो मनुष्य बिचारे कैसे समझेंगे। जब इनका (देवताओं का) राज्य था तो एक राज्य एक धर्म था और कोई खण्ड में ऐसे नहीं कहते कि एक धर्म एक राज्य हो। यहाँ आत्मा मांगती है एक राज्य हो। तुम्हारी आत्मा जानती है अब हम एक राज्य स्थापन कर रहे हैं। वहाँ सारे विश्व के मालिक हम रहेंगे। बाप हमको सब कुछ दे देते हैं। कोई भी हमसे राजाई छीन नहीं सकते। हम सारे विश्व के मालिक बन जाते हैं। विश्व में कोई सूक्ष्मवतन, मूलवतन नहीं आता है। यह सृष्टि का चक्र यहाँ ही फिरता रहता है। इसको बाप, जो रचयिता है वही जानते हैं। ऐसे नहीं कि रचना रचते हैं। बाप आते ही हैं संगम पर, पुरानी दुनिया से नई दुनिया बनाने। दूरदेश से बाबा आया हुआ है, तुम जानते हो नई दुनिया भी तुम्हारे लिए बनती है। बाबा हमारी आत्माओं का श्रृंगार कर रहे हैं। उनके साथ फिर तुम्हारे शरीरों का भी श्रृंगार हो जायेगा। आत्मा पवित्र होने से फिर शरीर भी सतोप्रधान मिलेंगे। सतोप्रधान तत्वों से शरीर बनेंगे। इन्हों का सतोप्रधान शरीर है ना इसलिए नेचरल ब्युटी रहती है। गाया भी जाता है रिलीजन इज माइट। अब माइट मिली कहाँ से? एक ही देवी-देवताओं का रिलीजन है जिससे माइट मिलती है। यह देवतायें ही सारे विश्व के मालिक बनते हैं और कोई विश्व के मालिक नहीं बनते हैं। तुमको कितनी माइट मिलती है। लिखा हुआ भी है आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा करते हैं। यह बातें दुनिया में कोई जानते थोड़ेही हैं। बाप कहते हैं मैं ब्राह्मण कुल स्थापन करता हूँ फिर उन्हों को सूर्यवंशी डिनायस्टी में ले आता हूँ। जो अच्छी रीति पढ़ते है वह पास हो सूर्यवंशी में आते हैं। है सारी ज्ञान की बात। उन्होंने फिर स्थूल बाण हथियार आदि दिखाये हैं। बाण चलाना भी सीखते हैं। छोटे बच्चों को भी बन्दूक चलाना सिखाते हैं। तुम्हारा फिर है योग बाण। बाप कहते हैं मामेकम् याद करोगे तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। हिंसा की कोई बात नहीं है। तुम्हारी पढ़ाई भी है गुप्त। तुम हो स्प्रीचुअल, रूहानी सैलवेशन आर्मी। यह कोई को मालूम नहीं है कि रूहानी आर्मी कैसे होती है। तुम हो इनकागनीटो, स्प्रीचुअल रूहानी सैलवेशन आर्मी। सारी दुनिया को तुम सैलवेज करते हो। सबका बेडा डूबा हुआ है। बाकी सोने की लंका कोई है नहीं। ऐसे नहीं कि सोनी द्वारिका नीचे चली गई है, वह निकल आयेगी। नहीं, द्वारिका में भी इनका राज्य था परन्तु सतयुग में था। सतयुगी राजाओं की ड्रेस ही अलग होती है, त्रेता की अलग। भिन्न-भिन्न ड्रेस, भिन्न-भिन्न रसम रिवाज होती है। हर एक राजा की रसम-रिवाज अपनी-अपनी, सतयुग का तो नाम लेते ही दिल खुश हो जाती है। कहते ही हैं स्वर्ग, पैराडाइज परन्तु मनुष्य कुछ भी जानते नहीं। मुख्य तो है यह देलवाड़ा मन्दिर। हूबहू तुम्हारा यादगार है। मॉडल्स तो हमेशा छोटा बनाते हैं ना। यह बिल्कुल एक्यूरेट मॉडल्स हैं। शिवबाबा भी है, आदि देव भी है, ऊपर में बैकुण्ठ दिखाया है। शिवबाबा होगा तो जरूर रथ भी होगा। आदि देव बैठा है, यह भी किसको पता नहीं है। यह शिवबाबा का रथ है। महावीर ही राजाई प्राप्त करते हैं। आत्मा में ताकत कैसे आती है, यह भी तुम अभी समझते हो। घड़ी-घड़ी अपने को आत्मा समझो। हम आत्मा सतोप्रधान थी तो पवित्र थी। शान्तिधाम, सुखधाम में जरूर पवित्र ही रहेंगे। अब बुद्धि में आता है, कितनी सहज बात है। भारत सतयुग में पवित्र था। वहाँ अपवित्र आत्मा रह न सके। इतनी सब पतित आत्मायें ऊपर कैसे जायेंगी। जरूर पवित्र बनकर ही जायेंगी। आग लगती है फिर सभी आत्मायें चली जायेंगी। बाकी शरीर रह जाते हैं। यह सब निशानियाँ भी हैं। होलिका का अर्थ कोई समझते थोड़ेही हैं। सारी दुनिया इसमें स्वाहा होनी है। यह ज्ञान यज्ञ है। ज्ञान अक्षर निकाल बाकी रूद्र यज्ञ कह देते हैं। वास्तव में यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। यह ब्राह्मणों द्वारा ही रचा जाता है। सच्चे-सच्चे ब्राह्मण तुम हो। प्रजापिता ब्रह्मा की तो सब औलाद हैं ना। ब्रह्मा द्वारा ही मनुष्य सृष्टि रची जाती है। ब्रह्मा को ही ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है, इनका सिजरा होता है ना। जैसे अलग-अलग बिरादरी का सिजरा रखते हैं। तुम्हारी बुद्धि में है कि मूलवतन में है आत्माओं का सिजरा, कायदेमुजीब। शिवबाबा फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, फिर लक्ष्मी-नारायण आदि ये सब हैं मनुष्यों के सिजरे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) रूहानी सैलवेशन आर्मी बन स्वयं को और सर्व को सही रास्ता बताना है। सारी दुनिया को विषय सागर से सैलवेज करने के लिए बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है।
2) ज्ञान-योग से पवित्र बन आत्मा का श्रृंगार करना है, शरीरों का नहीं। आत्मा के पवित्र बनने से शरीर का श्रृंगार स्वत: हो जायेगा।
वरदान:
बाप की हर श्रीमत का पालन करने वाले सच्चे स्नेही आशिक भव!  
जो बच्चे सदा एक बाप के स्नेह में लवलीन रहते हैं, उन्हें बाप का हर बोल प्यारा लगता है, क्वेश्चन समाप्त हो जाते हैं। ब्राह्मण जन्म का फाउन्डेशन स्नेह है। जो स्नेही आशिक आत्मायें हैं उन्हें बाप की श्रीमत पालन करने में मुश्किल का अनुभव नहीं होता है। स्नेह के कारण सदा यही उमंग रहता कि बाबा ने जो कहा है वह मेरे प्रति कहा है-मुझे करना है। स्नेही आत्मायें बड़ी दिल वाली होती हैं, इसलिए उनके लिए हर बड़ी बात भी छोटी हो जाती है।
स्लोगन:
कोई भी बात को फील करना-यह भी फेल की निशानी है।