Thursday, September 24, 2015

मुरली 24 सितम्बर 2015

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम पुराने भक्तों को भक्ति का फल देने। भक्ति का फल है ज्ञान, जिससे ही तुम्हारी सद्गति होती है”  

प्रश्न:

कई बच्चे चलते-चलते तकदीर को आपेही शूट करते हैं कैसे?

उत्तर:

अगर बाप का बनकर सर्विस नहीं करते, अपने पर और दूसरों पर रहम नहीं करते तो वह अपनी तकदीर को शूट करते हैं अर्थात् पद भ्रष्ट हो जाते हैं। अच्छी रीति पढ़ें, योग में रहें तो पद भी अच्छा मिले। सर्विसएबुल बच्चों को तो सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए।

गीतः

कौन आया सवेरे-सवेरे........

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) इस अमूल्य जीवन में पढ़ाने वाले टीचर का बहुत बहुत रिगॉर्ड रखना है पढ़ाई में अच्छा होशियार बन सर्विस में लगना है। अपने ऊपर आपेही रहम करना है।

2) अपने आपको सुधारने के लिए सिविलाइज्ड बनना है। अपने कैरेक्टर सुधारने हैं। मनुष्यों को देवता बनाने की सेवा करनी है।

वरदान:

समय और संकल्पों को सेवा में अर्पण करने वाले विधाता, वरदाता भव!  

अभी स्व की छोटी-छोटी बातों के पीछे, तन के पीछे, मन के पीछे, साधनों के पीछे, सम्बन्ध निभाने के पीछे समय और संकल्प लगाने के बजाए इसे सेवा में अर्पण करो, यह समर्पण समरोह मनाओ। श्वांसों श्वांस सेवा की लगन हो, सेवा में मगन रहो। तो सेवा में लगने से स्वउन्नति की गिफ्ट स्वत:प्राप्त हो जायेगी। विश्व कल्याण में स्व कल्याण समाया हुआ है इसलिए निरन्तर महादानी, विधाता और वरदाता बनो।

स्लोगन:

अपनी इच्छाओं को कम कर दो तो समस्यायें कम हो जायेंगी।  


ओम् शांति ।

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24-09-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम पुराने भक्तों को भक्ति का फल देने। भक्ति का फल है ज्ञान, जिससे ही तुम्हारी सद्गति होती है”   
प्रश्न:
कई बच्चे चलते-चलते तकदीर को आपेही शूट करते हैं कैसे?
उत्तर:
अगर बाप का बनकर सर्विस नहीं करते, अपने पर और दूसरों पर रहम नहीं करते तो वह अपनी तकदीर को शूट करते हैं अर्थात् पद भ्रष्ट हो जाते हैं। अच्छी रीति पढ़ें, योग में रहें तो पद भी अच्छा मिले। सर्विसएबुल बच्चों को तो सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए।
गीतः
कौन आया सवेरे-सवेरे........
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चे समझते हैं हम आत्मा हैं, न कि शरीर। और यह ज्ञान अभी ही मिलता है-परमपिता परमात्मा से। बाप कहते हैं जबकि मैं आया हूँ तो तुम अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्मा ही शरीर में प्रवेश करती है। एक शरीर छोड़ दूसरा लेती रहती है। आत्मा नहीं बदलती, शरीर बदलता है। आत्मा तो अविनाशी है, तो अपने को आत्मा समझना है। यह ज्ञान कभी कोई दे न सके। बाप आये हैं बच्चों की पुकार पर। यह भी किसको पता नहीं है कि यह पुरूषोत्तम संगमयुग है। बाप आकर समझाते हैं मेरा आना होता है कल्प के पुरूषोत्तम संगमयुग पर जबकि सारा विश्व पुरूषोत्तम बनता है। इस समय तो सारा विश्व कनिष्ट पतित है। उसको कहा जाता है अमरपुरी, यह है मृत्युलोक। मृत्युलोक में आसुरी गुण वाले मनुष्य होते हैं, अमरलोक में दैवीगुण वाले मनुष्य हैं इसलिए उनको देवता कहा जाता है। यहाँ भी अच्छे स्वभाव वाले को कहा जाता है - यह तो जैसे देवता है। कोई दैवीगुण वाले होते हैं, इस समय सब हैं आसुरी गुण वाले मनुष्य। 5 विकारों में फंसे हुए हैं तब गाते हैं इस दु:ख से आकर लिबरेट करो। कोई एक सीता को नहीं छुड़ाया। बाबा ने समझाया है भक्ति को सीता कहा जाता, भगवान को राम कहा जाता। जो भक्तों को फल देने आता है। इस बेहद के रावण राज्य में सारी दुनिया फंसी हुई है। उन्हों को लिबरेट कर राम राज्य में ले जाते हैं। रघुपति राघव राजा राम की बात नहीं। वह तो त्रेता के राजा थे। वह भी अब तमोप्रधान जड़जड़ीभूत अवस्था में हैं। सीढ़ी उतरते-उतरते नीचे आ गये हैं। पूज्य से पुजारी बन गये हैं। देवतायें किसकी पूजा नहीं करते। वह तो हैं पूज्य। फिर वह जब वैश्य, शूद्र बनते हैं तो पूजा शुरू होती है, वाम मार्ग में आने से पुजारी बनते हैं, पुजारी देवताओं के चित्रों के आगे नमन करते हैं, इस समय कोई एक भी पूज्य हो नहीं सकता। ऊंच ते ऊंच भगवान पूज्य फिर है सतयुगी देवतायें पूज्य। इस समय तो सब पुजारी हैं, पहले-पहले शिव की पूजा होती है, वह है अव्यभिचारी पूजा। वह सतोप्रधान फिर सतो फिर देवताओं से भी उतर कर जल की, मनुष्यों की, पक्षियों आदि की पूजा करने लग पड़ते। दिन-प्रतिदिन अनेकों की पूजा होने लगती है। आजकल रिलीजस कान्फ्रेन्स भी बहुत होती रहती हैं। कभी आदि सनातन धर्म वालों की, कभी जैनियों की, कभी आर्य समाजियों की। बहुतों को बुलाते हैं क्योंकि हर एक अपने धर्म को तो ऊंचा समझते हैं ना। हर एक धर्म में कोई न कोई विशेष गुण होने कारण वह अपने को बड़ा समझते हैं। जैनियों में भी किस्म-किस्म के होते हैं। 5-7 वैराइटी होंगी। उनमें फिर कोई नंगे भी रहते हैं, नंगे बनने का अर्थ नहीं समझते हैं। भगवानुवाच हैं नंगे अर्थात् अशरीरी आये थे, फिर अशरीरी बनकर जाना है। वह फिर कपड़े उतार कर नंगे बन जाते हैं। भगवानुवाच के अर्थ को नहीं समझते हैं। बाप कहते हैं तुम आत्मायें यहाँ यह शरीर धारण कर पार्ट बजाने आई हो, फिर वापिस जाना है, इन बातों को तुम बच्चे समझते हो। आत्मा ही पार्ट बजाने आती है, झाड़ वृद्धि को पाता रहता है। नये-नये किस्म के धर्म इमर्ज होते रहते हैं, इसलिए इनको वैराइटी नाटक कहा जाता है। वैराइटी धर्मों का झाड़ है। बहुत ब्रान्चेज निकलती हैं। मुहम्मद तो बाद में आये हैं। पहले हैं इस्लामी। मुसलमानों की संख्या बहुत है, अफ्रीका में कितने साहूकार हैं सोने-हीरों की खानियाँ हैं। जहाँ बहुत धन देखते हैं तो उस पर चढ़ाई कर धनवान बनते हैं। क्रिश्चियन लोग भी कितने धनवान बने हैं। भारत में भी धन है, परन्तु गुप्त। सोना आदि कितना पकड़ते रहते हैं। अब दिगम्बर जैन सभा वाले कान्फ्रेन्स आदि करते रहते हैं, क्योंकि हर एक अपने को बड़ा समझते हैं ना। यह इतने धर्म सब बढ़ते रहते हैं, कभी विनाश भी होना है, कुछ भी समझते नहीं। सब धर्मों में ऊंच तो तुम्हारा ब्राह्मण धर्म ही है, जिसका किसको पता नहीं है। कलियुगी ब्राह्मण भी बहुत हैं, परन्तु वह हैं कुख वंशावली ब्राह्मण। प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण, वह तो सब भाई-बहन होने चाहिए। अगर वह अपने को ब्रह्मा की औलाद कहलाते हैं, तो भाई-बहन ही ठहरे फिर शादी भी कर न सकें। सिद्ध होता है वह ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख वंशावली नहीं हैं, सिर्फ नाम रख देते हैं। वास्तव में देवताओं से भी ऊंच ब्राह्मणों को कहेंगे, चोटी हैं ना। यह ब्राह्मण ही मनुष्यों को देवता बनाते हैं। पढ़ाने वाला है परमपिता परमात्मा, स्वयं ज्ञान का सागर। यह किसको भी पता नहीं है। बाप के पास आकर ब्राह्मण बनकर फिर भी कल शूद्र बन पड़ते हैं। पुराने संस्कार पलटने में बड़ी मेहनत लगती है। अपने को आत्मा निश्चय कर बाप से वर्सा लेना है, रूहानी बाप से रूहानी बच्चे ही वर्सा लेंगे। बाप को याद करने में ही माया विघ्न डालती है। बाप कहते हथ कार डे दिल यार डे। यह है बहुत सहज। जैसे आशिक-माशूक होते हैं जो एक-दो को देखने बिगर रह न सकें। बाबा तो माशूक ही है। आशिक सब बच्चे हैं जो बाप को याद करते रहते हैं। एक बाप ही है जो कभी किसी पर आशिक नहीं होता है क्योंकि उनसे ऊंच तो कोई है नहीं। बाकी हाँ बच्चों की महिमा करते हैं, तुम भक्ति मार्ग से लेकर मुझ माशूक के सब आशिक हो। बुलाते भी हो कि आकर दु:ख से लिबरेट कर पावन बनाओ। तुम सब हो ब्राइड्स, मैं हूँ ब्राइडग्रूम। तुम सब आसुरी जेल में फंसे हुए हो, मैं आकर छुड़ाता हूँ। यहाँ मेहनत बहुत है क्रिमिनल आई धोखा देती है, सिविल आई बनने में मेहनत लगती है। देवताओं के कितने अच्छे कैरेक्टर्स हैं, अब ऐसा देवता बनाने वाला जरूर चाहिए ना।

कान्फ्रेन्स में टॉपिक रखी है “मानव जीवन में धर्म की आवश्यकता”। ड्रामा को न जानने कारण मूंझे हुए हैं। तुम्हारे सिवाए कोई समझा न सके। क्रिश्चियन अथवा बौद्धी आदि को यह थोड़ेही मालूम है कि क्राइस्ट, बुद्ध आदि फिर कब आयेंगे! तुम झट हिसाब-किताब बता सकते हो। तो समझाना चाहिए धर्म की तो आवश्यकता है ना। पहले-पहले कौन-सा धर्म था, फिर कौन-से धर्म आये हैं! अपने धर्म वाले भी पूरा समझते नहीं हैं। योग नहीं लगाते। योग बिगर ताकत नहीं आती, जौहर नहीं भरता। बाप को ही ऑलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता है। तुम कितना ऑलमाइटी बनते हो, विश्व के मालिक बन जाते हो। तुम्हारे राज्य को कोई छीन न सके। उस समय और कोई खण्ड होते नहीं। अभी तो कितने खण्ड हैं। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। 5 हज़ार वर्ष का यह चक्र है, बाकी सृष्टि लम्बी कितनी है। वह थोड़ेही माप कर सकते। धरती का करके माप कर सकते हैं। सागर का तो कर न सकें। आकाश और सागर का अन्त कोई पा न सके। तो समझाना है - धर्म की आवश्यकता क्यों है! सारा चक्र बना ही है धर्मों पर। यह है ही वैराइटी धर्मों का झाड़, यह झाड़ है अन्धों के आगे आइना।

तुम अभी बाहर सर्विस पर निकले हो, आहिस्ते-आहिस्ते तुम्हारी वृद्धि होती जाती है। तूफान लगने से बहुत पत्ते गिरते भी हैं ना। और धर्मों में तूफान लगने की बात नहीं रहती। उनको तो ऊपर से आना ही है, यहाँ तुम्हारी स्थापना बड़ी वन्डरफुल है। पहले-पहले वाले भगत जो हैं उनको ही आकर भगवान को फल देना है, अपने घर ले जाने का। बुलाते भी हैं हम आत्माओं को अपने घर ले जाओ। यह किसको पता नहीं है कि बाप स्वर्ग का भी राज्य-भाग्य देते हैं। सन्यासी लोग तो सुख को मानते ही नहीं। वो चाहते हैं मोक्ष हो। मोक्ष को वर्सा नहीं कहा जाता। खुद शिवबाबा को भी पार्ट बजाना पड़ता है तो फिर किसको मोक्ष में कैसे रख सकते। तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ अपने धर्म को और सबके धर्म को जानते हो। तुमको तरस पड़ना चाहिए। चक्र का राज़ समझाना चाहिए। बोलो, तुम्हारे धर्म स्थापक फिर अपने समय पर आयेंगे। समझाने वाला भी होशियार चाहिए। तुम समझा सकते हो कि हर एक को सतोप्रधान से सतो-रजो-तमो में आना ही है। अभी है रावण राज्य। तुम्हारी है सच्ची गीता, जो बाप सुनाते हैं। भगवान निराकार को ही कहा जाता है। आत्मा निराकार गॉड फादर को बुलाती है। वहाँ तुम आत्मायें रहती हो। तुमको परमात्मा थोड़ेही कहेंगे। परमात्मा तो एक ही है ऊंच ते ऊंच भगवान, फिर सब हैं आत्मायें बच्चे। सर्व का सद्गति दाता एक है फिर हैं देवतायें। उनमें भी नम्बरवन है कृष्ण क्योंकि आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं। तुम हो संगमयुगी। तुम्हारा जीवन अमूल्य है। देवताओं का नहीं, ब्राह्मणों का अमूल्य जीवन है। बाप तुमको बच्चा बनाए फिर तुम्हारे पर कितनी मेहनत करते हैं, देवतायें थोड़ेही इतनी मेहनत करेंगे। वह पढ़ाने लिए बच्चों को स्कूल भेज देंगे। यहाँ बाप बैठ तुमको पढ़ाते हैं। वह बाप टीचर गुरू तीनों हैं। तो कितना रिगॉर्ड होना चाहिए। सर्विसएबुल बच्चों को सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए। बहुत थोड़े हैं जो अच्छे होशियार हैं तो सर्विस में लगे हुए हैं। हैण्ड्स तो चाहिए ना। लड़ाई के मैदान में जाने के लिए जिनको सिखलाते हैं उनको नौकरी आदि सब छुड़ा देते हैं। उन्हों के पास लिस्ट रहती है। फिर मिलेट्री को कोई रिफ्यूज कर न सकें कि हम मैदान पर नहीं जायेंगे। ड्रिल सिखलाते हैं कि जरूरत पर बुला लेंगे। रिफ्यूज करने वाले पर केस चलाते हैं। यहाँ तो वह बात नहीं है। यहाँ फिर जो अच्छी रीति सर्विस नहीं करते हैं तो पद भ्रष्ट हो जाता है। सर्विस नहीं करते गोया आपेही अपने को शूट करते हैं। पद भ्रष्ट हो जाता है। अपनी तकदीर को शूट कर देते हैं। अच्छी रीति पढ़ें, योग में रहें तो अच्छा पद मिले। अपने पर रहम करना होता है। अपने पर करें तो दूसरे पर भी करें। बाप हर प्रकार की समझानी देते रहते हैं। यह दुनिया का नाटक कैसे चलता है, तो राजधानी भी स्थापन होती है। इन बातों को दुनिया नहीं जानती। अब निमन्त्रण तो मिलते हैं। 5-10 मिनट में क्या समझा सकेंगे। एक-दो घण्टा दें तो समझा भी सकेंगे। ड्रामा को तो बिल्कुल जानते नहीं। प्वाइंट्स अच्छी-अच्छी जहाँ- तहाँ लिख देनी चाहिए। परन्तु बच्चे भूल जाते हैं। बाप क्रियेटर भी है, तुम बच्चों को क्रियेट करते हैं। अपना बनाया है, डायरेक्टर बन डायरेक्शन भी देते हैं। श्रीमत देते और फिर एक्ट भी करते हैं। ज्ञान सुनाते हैं। यह भी उनकी ऊंच ते ऊंच एक्ट है ना। ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर और मुख्य एक्टर को न जाना तो क्या ठहरा? अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस अमूल्य जीवन में पढ़ाने वाले टीचर का बहुत बहुत रिगॉर्ड रखना है पढ़ाई में अच्छा होशियार बन सर्विस में लगना है। अपने ऊपर आपेही रहम करना है।
2) अपने आपको सुधारने के लिए सिविलाइज्ड बनना है। अपने कैरेक्टर सुधारने हैं। मनुष्यों को देवता बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:
समय और संकल्पों को सेवा में अर्पण करने वाले विधाता, वरदाता भव!   
अभी स्व की छोटी-छोटी बातों के पीछे, तन के पीछे, मन के पीछे, साधनों के पीछे, सम्बन्ध निभाने के पीछे समय और संकल्प लगाने के बजाए इसे सेवा में अर्पण करो, यह समर्पण समरोह मनाओ। श्वांसों श्वांस सेवा की लगन हो, सेवा में मगन रहो। तो सेवा में लगने से स्वउन्नति की गिफ्ट स्वत:प्राप्त हो जायेगी। विश्व कल्याण में स्व कल्याण समाया हुआ है इसलिए निरन्तर महादानी, विधाता और वरदाता बनो।
स्लोगन:
अपनी इच्छाओं को कम कर दो तो समस्यायें कम हो जायेंगी।