Saturday, August 1, 2015

मुरली 01अगस्त 2015

“मीठे बच्चे - अपने स्वधर्म को भूलना ही सबसे बड़ी भूल है, अभी तुम्हें अभुल बनना है, अपने घर और राज्य को याद करना है”

प्रश्न:

आप बच्चों की कौन-सी अवस्था ही समय के समीपता की निशानी है?

उत्तर:

आप बच्चे जब याद की यात्रा में सदा मस्त रहेंगे, बुद्धि का भटकना बन्द हो जायेगा, वाणी में याद का जौहर आ जायेगा, अपार खुशी में रहेंगे, घड़ी-घड़ी अपनी सतयुगी दुनिया के नज़ारे सामने आते रहेंगे तब समझो समय समीप है। विनाश में टाइम नहीं लगता, इसके लिए याद का चार्ट बढ़ाना है।

गीतः

तुम्हें पाके हमने जहान पा लिया है........

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) सदा इसी नशे में रहना है कि हम अभी यह पढ़ाई पूरी कर मनुष्य से देवता सो विश्व के मालिक बनेंगे। हमारे राज्य में पवित्रता-सुख-शान्ति सब कुछ होगा। उसे कोई छीन नहीं सकता।

2) इस पार से उस पार जाने के लिए याद की यात्रा में अच्छा तैराक बनना है। माया के घुटके नहीं खाने हैं। अपनी जांच करनी है, याद के चार्ट को यथार्थ समझकर लिखना है।

वरदान:

मन्सा बन्धनों से मुक्त, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले मुक्ति दाता भव!

अतीन्द्रिय सुख में झूलना-यह संगमयुगी ब्राह्मणों की विशेषता है। लेकिन मन्सा संकल्पों के बंधन आन्तरिक खुशी वा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने नहीं देते। व्यर्थ संकल्पों, ईर्ष्या, अलबेलेपन वा आलस्य के संकल्पों के बंधन में बंधना ही मन्सा बंधन है, ऐसी आत्मा अभिमान के वश दूसरों का ही दोष सोचती रहती है, उनकी महसूसता शक्ति समाप्त हो जाती है इसलिए इस सूक्ष्म बंधन से मुक्त बनो तब मुक्ति दाता बन सकेंगे।

स्लोगन:

ऐसा खुशियों की खान से सम्पन्न रहो जो आपके पास दु:ख की लहर भी न आये।

ओम् शांति ।

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01-08-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - अपने स्वधर्म को भूलना ही सबसे बड़ी भूल है, अभी तुम्हें अभुल बनना है, अपने घर और राज्य को याद करना है”   
प्रश्न:
आप बच्चों की कौन-सी अवस्था ही समय के समीपता की निशानी है?
उत्तर:
आप बच्चे जब याद की यात्रा में सदा मस्त रहेंगे, बुद्धि का भटकना बन्द हो जायेगा, वाणी में याद का जौहर आ जायेगा, अपार खुशी में रहेंगे, घड़ी-घड़ी अपनी सतयुगी दुनिया के नज़ारे सामने आते रहेंगे तब समझो समय समीप है। विनाश में टाइम नहीं लगता, इसके लिए याद का चार्ट बढ़ाना है।
गीतः
तुम्हें पाके हमने जहान पा लिया है........  
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चे इस गीत का अर्थ तो समझते होंगे। अब बेहद के बाप को तो पा लिया है। बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलता है, जिस वर्से को कोई भी छीन नहीं सकता। वर्से का नशा तब चला जाता है, जब रावण राज्य शुरू होता है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। बच्चों को सृष्टि ड्रामा का भी ज्ञान है। यह चक्र कैसे फिरता है। इनको नाटक भी कहें, ड्रामा भी कहें। बच्चे समझते हैं बरोबर बाप आकर सृष्टि का चक्र भी समझाते हैं। जो ब्राह्मण कुल के हैं, उन्हों को ही समझाते हैं। बच्चे तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं तुमको समझाता हूँ। पहले तुम सुनते थे 84 लाख जन्म लेने बाद फिर एक जन्म मनुष्य का मिलता है। ऐसे नहीं है। अभी तुम सब आत्मायें नम्बरवार आती जाती हो। बुद्धि में आया है-पहले-पहले हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के पूज्य थे, फिर हम ही पुजारी बने हैं। आपेही पूज्य आपेही पुजारी - यह भी गायन है। मनुष्य फिर भगवान के लिए समझते हैं कि आपेही पूज्य आपेही पुजारी बनते हैं। आपके ही यह सब रूप हैं। अनेक मत-मतान्तर हैं ना। तुम अभी श्रीमत पर चलते हो। तुम समझते हो हम स्टूडेण्ट पहले तो कुछ नहीं जानते थे फिर पढ़कर ऊंच इम्तहान पास करते जाते हैं। वह स्टूडेण्ट भी शुरू में तो कुछ भी नहीं जानते हैं, फिर इम्तहान पास करते-करते समझते हैं कि अभी हमने बैरिस्टरी पास कर ली है। तुम भी अब जानते हो-हम पढ़कर मनुष्य से देवता बन रहे हैं सो भी विश्व के मालिक। वहाँ तो है ही एक धर्म, एक राज्य। तुम्हारा राज्य कोई छीन न सके। वहाँ तुमको पवित्रता- शान्ति-सुख-सम्पत्ति सब कुछ है। गीत में भी सुना ना। अब यह गीत तुमने तो नहीं बनाये हैं। अनायास ही ड्रामा अनुसार इस समय के लिए यह बने हुए हैं। मनुष्यों के बनाये हुए गीतों का अर्थ बाप बैठ समझाते हैं। अभी तुम यहाँ शान्ति में बैठ बाप से वर्सा ले रहे हो, जो कोई छीन न सके। आधाकल्प सुख का वर्सा रहता है। बाप समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चों आधाकल्प से भी जास्ती तुम सुख भोगते हो। फिर रावण राज्य शुरू होता है। मन्दिर भी ऐसे हैं जहाँ चित्र दिखाते हैं-देवतायें वाम मार्ग में कैसे जाते हैं। ड्रेस तो वही है। ड्रेस बाद में बदलती है। हर एक राजा की अपनी-अपनी ड्रेस, ताज आदि सब अलग- अलग होते हैं।

अब बच्चे जानते हैं हम शिवबाबा से ब्रह्मा द्वारा वर्सा ले रहे हैं। बाप तो बच्चे-बच्चे ही कहते हैं। बच्चों तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। सुनती तो आत्मा है ना। हम आत्मा हैं, न कि शरीर। और जो भी मनुष्य मात्र हैं उन्हों को अपने शरीर के नाम का नशा है क्योंकि देह-अभिमानी हैं। हम आत्मा हैं यह जानते ही नहीं। वह तो आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा कह देते हैं। अभी तुमको बाप ने समझाया है तुम आत्मा सो विश्व के मालिक देवी-देवता बन रहे हो। यह ज्ञान अभी है, हम सो देवता फिर क्षत्रिय घराने में आयेंगे। 84 जन्मों का हिसाब भी चाहिए ना। सब तो 84 जन्म नहीं लेंगे। सब इकट्ठे थोड़ेही आ जाते हैं। तुम जानते हो कौन से धर्म कैसे आते रहते हैं। हिस्ट्री पुरानी फिर नई होती है। अभी यह है ही पतित दुनिया। वह है पावन दुनिया। फिर दूसरे-दूसरे धर्म आते हैं, यहाँ कर्मक्षेत्र पर यह एक ही नाटक चलता है। मुख्य हैं 4 धर्म। इस संगम पर बाप आकर ब्राह्मण सम्प्रदाय स्थापन करते हैं। विराट रूप का चित्र बनाते हैं, परन्तु उसमें यह भूल है। बाप आकर सब बातें समझाए अभुल बनाते हैं। बाप तो न कभी शरीर में आते हैं, न भूल करते हैं। वह तो थोड़े समय के लिए तुम बच्चों को सुखधाम का और अपने घर का रास्ता बताने के लिए इनके रथ में आते हैं। न सिर्फ रास्ता बताते हैं परन्तु लाइफ भी बनाते हैं। कल्प-कल्प तुम घर जाते हो फिर सुख का पार्ट भी बजाते हो। बच्चों को भूल गया है-हम आत्माओं का स्वधर्म है ही शान्त। इस दु:ख की दुनिया में शान्ति कैसे होगी-इन सब बातों को तुम समझ गये हो। तुम सबको समझाते भी हो। आहिस्ते-आहिस्ते सब आते जायेंगे, विलायत वालों को भी मालूम पड़ेगा-यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, इनकी आयु कितनी है। फारेनर्स भी तुम्हारे पास आयेंगे वा बच्चे वहाँ जाकर सृष्टि चक्र का राज़ समझायेंगे। वह समझते हैं कि क्राइस्ट गॉड के पास जाए पहुँचा। क्राइस्ट को गॉड का बच्चा समझते हैं। कई फिर यह समझते हैं कि क्राइस्ट भी पुनर्जन्म लेते-लेते अभी बेगर है। जैसे तुम भी बेगर हो ना। बेगर अर्थात् तमोप्रधान। समझते हैं क्राइस्ट भी यहाँ है, फिर कब आयेंगे, यह नहीं जानते। तुम समझा सकते हो-तुम्हारा धर्म स्थापक फिर अपने समय पर धर्म स्थापन करने आयेगा। उनको गुरू नहीं कह सकते। वह धर्म स्थापन करने आते हैं। सद्गति दाता सिर्फ एक है, वह जो भी धर्म स्थापन करने आते हैं वह सब पुनर्जन्म लेते-लेते अभी आकर तमोप्रधान बने हैं। अन्त में सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पा लिया है। अभी तुम जानते हो-सारा झाड़ खड़ा है, बाकी देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन है नहीं। (बड़ का मिसाल) यह बातें बाप ही बच्चों को बैठ समझाते हैं। तुम बच्चों को तो बहुत खुशी होनी चाहिए। तुमको मालमू पड़ा है हम सो देवी-देवता थे फिर अब बनते हैं। यहाँ तुम आते ही हो सत्य नारायण की कथा सुनने, जिससे नर से नारायण बनेंगे। नारायण बनेंगे तो जरूर लक्ष्मी भी होगी। लक्ष्मी-नारायण होंगे तो जरूर उन्हों की राजधानी भी होगी ना। अकेले लक्ष्मी-नारायण तो नहीं बनेंगे। लक्ष्मी बनने की अलग कथा थोड़ेही है। नारायण के साथ लक्ष्मी भी बनती है। लक्ष्मी भी कभी नारायण बनती है। नारायण फिर कभी लक्ष्मी बनते हैं। कोई-कोई गीत बहुत अच्छे हैं। माया के घुटके आने पर गीत सुनने से हर्षितपना आ जायेगा। जैसे तैरना सीखना होता है तो पहले घुटके आते हैं फिर उनको पकड़ लेते हैं। यहाँ भी माया के घुटके बहुत खाते हैं। तैरने वाले तो बहुत होते हैं। उन्हों की भी रेस होती है तो तुम्हारी भी रेस होती है-उस पार जाने की। मामेकम् याद करना है। याद नहीं करते तो घुटका खाते हैं। बाप कहते हैं-याद की यात्रा से ही बेड़ा पार होगा। तुम उस पार चले जायेंगे। तारू (तैराक) कोई बहुत तीखे होते हैं, कोई कम। यहाँ भी ऐसे हैं। बाबा के पास चार्ट भेज देते हैं। बाबा जांच करते हैं। याद के चार्ट को यह राइट रीति समझते हैं या रांग समझते हैं। कोई-कोई दिखाते हैं-हम सारे दिन में 5 घण्टा याद में रहा। हम विश्वास नहीं करते, जरूर भूल हुई है। कोई समझते हैं हम जितना समय यहाँ पढ़ते हैं उतना समय तो चार्ट ठीक रहता है। परन्तु नहीं। बहुत हैं यहाँ बैठे हुए भी, सुनते हुए भी बुद्धि बाहर में कहाँ-कहाँ चली जाती है। पूरा सुनते भी नहीं हैं। भक्ति मार्ग में ऐसे-ऐसे होता है। सन्यासी लोग कथा सुनाते हैं फिर बीच-बीच में पूछते हैं, हमने क्या सुनाया? देखते हैं यह तवाई हो बैठा है तो पूछते हैं फिर बता नहीं सकते। बुद्धि कहाँ न कहाँ चली जाती है। एक अक्षर भी नहीं सुनते। यहाँ भी ऐसे हैं। बाबा देखते रहते हैं-समझा जाता है इनकी बुद्धि कहाँ बाहर भटकती रहती है। इधर-उधर देखते रहते हैं। ऐसे-ऐसे भी कोई-कोई नये आते हैं। बाबा समझ जाते हैं पूरा समझा नहीं है इसलिए बाबा कहते हैं नये-नये को जल्दी यहाँ क्लास में आने की छुट्टी न दो। नहीं तो वायुमण्डल को बिगाड़ते हैं। आगे चल तुम देखेंगे जो अच्छे-अच्छे बच्चे होंगे यहाँ बैठे-बैठे वैकुण्ठ में चले जायेंगे। बहुत खुशी होती रहेगी। घड़ी-घड़ी चले जायेंगे-अभी टाइम नजदीक है। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार तुम्हारी अवस्था ऐसी हो जायेगी। घड़ी-घड़ी स्वर्ग में अपने महल देखते रहेंगे। जो कुछ बताना करना होगा उनका साक्षात्कार होता रहेगा। समय तो देख रहे हो। कैसे-कैसे तैयारियां हो रही हैं। बाप कहते हैं-देखना कैसे एक सेकण्ड में सारी दुनिया के मनुष्य खाक में मिल जायेंगे। बाम लगाया और यह खलास हुए।

तुम बच्चे जानते हो अभी अपनी राजाई स्थापन हो रही है। अभी तो याद की यात्रा में मस्त रहना है। वह जौहर भरना है जो कोई को भी दृष्टि से तीर लग जाए। पिछाड़ी में भीष्म पितामह आदि जैसे को तुमने ही ज्ञान के बाण मारे हैं। झट समझ जायेंगे, यह तो सत्य कहते हैं। ज्ञान का सागर पतित-पावन तो निराकार भगवान है। कृष्ण हो न सके। उनका तो जन्म दिखाते हैं। कृष्ण के वही फीचर्स फिर कभी मिल न सकें। फिर सतयुग में वही फीचर्स मिलेंगे। हर एक जन्म में, हर एक के फीचर्स अलग-अलग होते हैं। यह ड्रामा का पार्ट ऐसा बना हुआ है। वहाँ तो नैचुरल ब्युटीफुल फीचर्स होते हैं। अब तो दिन-प्रतिदिन तन भी तमोप्रधान होते जाते हैं। पहले-पहले सतोप्रधान फिर सतो-रजो-तमो हो जाते हैं। यहाँ तो देखो कैसे- कैसे बच्चे जन्म लेते हैं। कोई की टांग नहीं चलती, कोई जामड़े होते हैं। क्या-क्या हो जाता है। सतयुग में ऐसे थोड़ेही होता है। वहाँ देवताओं को दाढ़ी आदि भी नहीं होती। क्लीनशेव होती है। नैन-चैन से मालूम पड़ता है यह मेल है, यह फीमेल है। आगे चल तुमको बहुत साक्षात्कार होते रहेंगे। तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए। बाबा कल्प-कल्प आकर हमको राजयोग सिखलाए मनुष्य से देवता बनाते हैं। यह भी तुम बच्चे जानते हो कि और जो भी धर्म वाले हैं सब अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे। आत्माओं का झाड़ भी दिखाते हैं ना। चित्रों में बहुत करेक्शन करते, बदलते जायेंगे। जैसे बाबा सूक्ष्मवतन के लिए समझाते हैं, संशय बुद्धि तो कहेंगे यह क्या! आगे यह कहते थे, अभी यह कहते हैं! लक्ष्मी- नारायण के दो रूप को मिलाकर विष्णु कहते हैं। बाकी 4 भुजा वाला मनुष्य थोड़ेही होता है। रावण के 10 शीश दिखाते हैं। ऐसे कोई मनुष्य होते नहीं। हर वर्ष बैठ जलाते हैं। जैसे गुड़ियों का खेल।

मनुष्य कहते हैं - शास्त्रों बिगर हम जी नहीं सकते। शास्त्र तो हमारे प्राण हैं। गीता का देखो मान कितना है। यहाँ तो तुम्हारे पास मुरलियों का ढेर इकट्ठा हो जाता है। तुम रखकर क्या करेंगे! दिन-प्रतिदिन तुम नई-नई प्वाइंट्स सुनते रहते हो। हाँ प्वाइंट्स नोट करना अच्छा है। भाषण करते समय रिहर्सल करेंगे। यह-यह प्वाइंट्स समझायेंगे। टॉपिक की लिस्ट होनी चाहिए। आज इस टॉपिक पर समझायेंगे। रावण कौन है, राम कौन है? सच क्या है, वह हम आपको बताते हैं। इस समय रावण राज्य सारी दुनिया में है। 5 विकार तो सबमें हैं। बाप आकर फिर रामराज्य की स्थापना करते हैं। यह हार और जीत का खेल है। हार कैसे होती है! 5 विकारों रूपी रावण से। आगे पवित्र गृहस्थ आश्रम था सो अब पतित बन गये हैं। लक्ष्मी-नारायण सो फिर ब्रह्मा-सरस्वती। बाप भी कहते हैं मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश करता हूँ। तुम कहेंगे हम भी बहुत जन्मों के अन्त में बाप से ज्ञान ले रहे हैं। यह सब समझने की बातें हैं। कोई की डलहेड बुद्धि है तो समझते नहीं हैं। यह तो राजधानी स्थापन हो रही है। बहुत आये फिर चले गये, वह फिर आ जायेंगे। प्रजा में पाई पैसे का पद पा लेंगे। वह भी तो चाहिए ना। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉा\नग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा इसी नशे में रहना है कि हम अभी यह पढ़ाई पूरी कर मनुष्य से देवता सो विश्व के मालिक बनेंगे। हमारे राज्य में पवित्रता-सुख-शान्ति सब कुछ होगा। उसे कोई छीन नहीं सकता।
2) इस पार से उस पार जाने के लिए याद की यात्रा में अच्छा तैराक बनना है। माया के घुटके नहीं खाने हैं। अपनी जांच करनी है, याद के चार्ट को यथार्थ समझकर लिखना है।
वरदान:
मन्सा बन्धनों से मुक्त, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले मुक्ति दाता भव!   
अतीन्द्रिय सुख में झूलना-यह संगमयुगी ब्राह्मणों की विशेषता है। लेकिन मन्सा संकल्पों के बंधन आन्तरिक खुशी वा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने नहीं देते। व्यर्थ संकल्पों, ईर्ष्या, अलबेलेपन वा आलस्य के संकल्पों के बंधन में बंधना ही मन्सा बंधन है, ऐसी आत्मा अभिमान के वश दूसरों का ही दोष सोचती रहती है, उनकी महसूसता शक्ति समाप्त हो जाती है इसलिए इस सूक्ष्म बंधन से मुक्त बनो तब मुक्ति दाता बन सकेंगे।
स्लोगन:
ऐसा खुशियों की खान से सम्पन्न रहो जो आपके पास दु:ख की लहर भी न आये।