Friday, August 21, 2015

मुरली 21 अगस्त 2015

“मीठे बच्चे - बाबा आये हैं तुम्हें किंग ऑफ फ्लावर बनाने, इसलिए विकारों की कोई भी बदबू नहीं होनी चाहिए”  

प्रश्न:

विकारों का अंश समाप्त करने के लिए कौन-सा पुरूषार्थ करना है?

उत्तर:

निरन्तर अन्तर्मुखी रहने का पुरूषार्थ करो। अन्तर्मुख अर्थात् सेकण्ड में शरीर से डिटैच। इस दुनिया की सुध-बुध बिल्कुल भूल जाए। एक सेकण्ड में ऊपर जाना और आना। इस अभ्यास से विकारों का अंश समाप्त हो जायेगा। कर्म करते-करते बीच-बीच में अन्तर्मुखी हो जाओ, ऐसा लगे जैसे बिल्कुल सन्नाटा है। कोई भी चुरपुर नहीं। यह सृष्टि तो जैसे है ही नहीं।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) अविनाशी ज्ञान धन स्वयं में धारण कर फिर दान करना है। पढ़ाई से अपने आपको स्वयं ही राज तिलक देना है। जैसे बाप कल्याणकारी है वैसे कल्याणकारी बनना है।

2) खाने-पीने की पूरी-पूरी परहेज रखनी है। कभी भी आंखें धोखा न दें-यह सम्भाल करनी है। अपने को सुधारना है। कर्मेन्द्रियों से कोई भी विकर्म नहीं करना है।

वरदान:

अपने सर्व खजानों को अन्य आत्माओं की सेवा में लगाकर सहयोगी बनने वाले सहजयोगी भव!  

सहजयोगी बनने का साधन है-सदा अपने को संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा और हर कार्य द्वारा विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति सेवाधारी समझ सेवा में ही सब कुछ लगाना। जो भी ब्राह्मण जीवन में शक्तियों का, गुणों का, ज्ञान का वा श्रेष्ठ कमाई के समय का खजाना बाप द्वारा प्राप्त हुआ है वह सेवा में लगाओ अर्थात् सहयोगी बनो तो सहजयोगी बन ही जायेंगे। लेकिन सहयोगी वही बन सकते हैं जो सम्पन्न है। सहयोगी बनना अर्थात् महादानी बनना।

स्लोगन:

बेहद के वैरागी बनो तो आकर्षण के सब संस्कार सहज ही खत्म हो जायेंगे।  

ओम् शांति ।

_____________________________
21-08-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाबा आये हैं तुम्हें किंग ऑफ फ्लावर बनाने, इसलिए विकारों की कोई भी बदबू नहीं होनी चाहिए”   
प्रश्न:
विकारों का अंश समाप्त करने के लिए कौन-सा पुरूषार्थ करना है?
उत्तर:
निरन्तर अन्तर्मुखी रहने का पुरूषार्थ करो। अन्तर्मुख अर्थात् सेकण्ड में शरीर से डिटैच। इस दुनिया की सुध-बुध बिल्कुल भूल जाए। एक सेकण्ड में ऊपर जाना और आना। इस अभ्यास से विकारों का अंश समाप्त हो जायेगा। कर्म करते-करते बीच-बीच में अन्तर्मुखी हो जाओ, ऐसा लगे जैसे बिल्कुल सन्नाटा है। कोई भी चुरपुर नहीं। यह सृष्टि तो जैसे है ही नहीं।
ओम् शान्ति।
यहाँ हर एक को बिठाया जाता है कि अशरीरी हो बाप की याद में बैठो और साथ-साथ यह जो सृष्टि चक्र है उनको भी याद करो। मनुष्य 84 के चक्र को समझते नहीं हैं। समझेंगे ही नहीं। जो 84 का चक्र लगाते हैं वही समझने आयेंगे। तुमको यही याद करना चाहिए, इनको स्वदर्शन चक्र कहा जाता है, जिससे आसुरी ख्यालात खत्म हो जायेंगे। ऐसे नहीं कि कोई असुर बैठे हैं जिनका गला कट जायेगा। मनुष्य स्वदर्शन चक्र का भी अर्थ नहीं समझते हैं। यह ज्ञान तुम बच्चों को यहाँ मिलता है। कमल फूल समान गृहस्थ व्यवहार में रह पवित्र बनो। भगवानुवाच है ना। यह एक जन्म पवित्र बनने से भविष्य 21 जन्म तुम पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे। सतयुग को कहा जाता है शिवालय। कलियुग है वेश्यालय। यह दुनिया बदलती है। भारत की ही बात है। औरों की बात में जाना ही नहीं चाहिए। बोले जानवरों का क्या होगा? और धर्मों का क्या होगा? बोलो, पहले अपना तो समझो, पीछे औरों की बात। भारतवासी ही अपने धर्म को भूल दु:खी हुए हैं। भारत में ही पुकारते हैं तुम मात-पिता....... विलायत में मात-पिता अक्षर नहीं कहते। वह सिर्फ गॉड फादर कहते हैं। बरोबर भारत में ही सुख घनेरे थे, भारत स्वर्ग था-यह भी तुम जानते हो। बाप आकर कांटों को फूल बनाते हैं। बाप को बागवान कहते हैं। बुलाते हैं-आकर कांटों को फूल बनाओ। बाप फूलों का बगीचा बनाते हैं। माया फिर कांटों का जंगल बनाती है। मनुष्य तो कह देते हैं-ईश्वर तेरी माया बड़ी प्रबल है। न ईश्वर को, न माया को समझते हैं। कोई ने अक्षर कहा बस रिपीट करते रहते हैं। अर्थ कुछ नहीं। तुम बच्चे समझते हो यह ड्रामा का खेल है - रामराज्य का और रावण राज्य का। राम राज्य में सुख, रावण राज्य में दु:ख है। यहाँ की ही बात है। यह कोई प्रभू की माया नहीं है। माया कहा जाता है 5 विकारों को, जिसको रावण कहते हैं। बाकी मनुष्य तो पुनर्जन्म ले 84 के चक्र में आते हैं। सतोगुणी से तमोप्रधान बनना है। इस समय सब विकार से पैदा होते हैं-इसलिए विकारी कहा जाता है। नाम भी है विशश दुनिया फिर वाइसलेस दुनिया अर्थात् पुरानी दुनिया से नई कैसे बनती है, यह तो समझने की कॉमन बात है। न्यु वर्ल्ड में पहले हेविन था। बच्चे जानते हैं स्वर्ग की स्थापना करने वाला परमपिता परमात्मा है, उसमें सुख घनेरे हुए हैं। ज्ञान से दिन, भक्ति से रात कैसे होती है-यह भी कोई समझते नहीं हैं। कहेंगे ब्रह्मा तथा ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों का दिन फिर उन्हीं ब्राह्मणों की रात। दिन और रात यहाँ होता है, यह कोई नहीं समझते। प्रजापिता ब्रह्मा की रात, तो जरूर उनके ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों की भी रात होगी। आधाकल्प दिन, आधाकल्प रात।

अब बाप आये हैं निर्विकारी दुनिया बनाने। बाप कहते हैं-बच्चे, काम महाशत्रु है, उन पर जीत पानी है। सम्पूर्ण निर्विकारी पवित्र बनना है। अपवित्र होने से तुमने पाप बहुत किये हैं। यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया। पाप जरूर शरीर के साथ करेंगे, तब पाप आत्मा बनेंगे। देवताओं की पवित्र दुनिया में पाप होता नहीं। यहाँ तुम श्रीमत से श्रेष्ठ पुण्य आत्मा बन रहे हो। श्री श्री 108 की माला है। ऊपर में है फूल, उनको कहेंगे शिव। वह है निराकारी फूल। फिर साकार में मेल-फीमेल हैं, उनकी माला बनी हुई है। शिवबाबा द्वारा यह पूजन सिमरण लायक बनते हैं। तुम बच्चे जानते हो-बाबा हमको विजय माला का दाना बनाते हैं। हम विश्व पर विजय पा रहे हैं याद के बल से, याद से ही विकर्म विनाश होंगे। फिर तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। वो लोग तो बिगर समझ कह देते हैं प्रभू तेरी माया प्रबल है। किसके पास धन होगा कहेंगे इनके पास माया बहुत है। वास्तव में माया 5 विकारों को कहा जाता है, जिसको रावण भी कहा जाता है। उन्होंने फिर रावण का चित्र बना दिया है 10 शीश वाला। अब चित्र है तो समझाया जाता है। जैसे अंगद के लिए भी दिखाते हैं, उनको रावण ने हिलाया परन्तु हिला न सका। दृष्टान्त बना दिये हैं। बाकी कोई चीज़ है नहीं। बाप कहते हैं माया तुमको कितना भी हिलाये परन्तु तुम स्थिर रहो। रावण, हनूमान, अंगद आदि यह सब दृष्टान्त बना दिये हैं, जिनका अर्थ तुम बच्चे जानते हो। भ्रमरी का भी दृष्टान्त है। भ्रमरी और ब्राह्मणी राशि मिलती है। तुम विष्टा के कीड़ों को ज्ञान-योग की भूँ-भूँ कर पतित से पावन बनाते हो। बाप को याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे। कछुए का भी दृष्टान्त है। इन्द्रियों को समेटकर अन्तर्मुख हो बैठ जाते हैं। तुमको भी बाप कहते हैं भल कर्म करो फिर अन्तर्मुख हो जाओ। जैसेकि यह सृष्टि है नहीं। चुरपुर बन्द हो जाती है। भक्ति मार्ग में बाहरमुखी बन पड़ते हैं। गीत गाना, यह करना, कितना हंगामा, कितना खर्चा होता है। कितने मेले लगते हैं। बाप कहते हैं यह सब छोड़ अन्तर्मुख हो जाओ। जैसेकि यह सृष्टि है नहीं। अपने को देखो हम लायक बने हैं? कोई विकार तो नहीं सताता है? हम बाप को याद करते हैं? बाप जो विश्व का मालिक बनाते हैं, ऐसे बाप को दिन-रात याद करना चाहिए। हम आत्मा हैं, हमारा वह बाप है। अन्दर में यह चलता रहे - हम अब नई दुनिया के फूल बन रहे हैं। अक का वा टांगर का फूल नहीं बनना है। हमको तो एकदम किंग ऑफ फ्लावर बिल्कुल खुशबूदार बनना है। कोई बदबू न रहे। बुरे ख्यालात निकल जाने चाहिए। माया के तूफान गिराने के लिए बहुत आयेंगे। कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म नहीं करना है। ऐसे-ऐसे अपने को पक्का करना है। अपने को सुधारना है। कोई भी देहधारी को मुझे याद नहीं करना है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी भल करो। उनसे भी टाइम निकाल सकते हो। भोजन खाने समय भी बाप की महिमा करते रहो। बाबा को याद कर खाने से भोजन भी पवित्र हो जाता है। जब बाप को निरन्तर याद करेंगे तब याद से ही बहुत जन्मों के पाप कटेंगे और तुम सतोप्रधान बनेंगे। देखना है कितना सच्चा सोना बना हूँ? आज कितना घण्टा याद में रहा? कल 3 घण्टा याद में रहा, आज 2 घण्टा रहा-यह तो आज घाटा हो गया। उतरना और चढ़ना होता रहेगा। यात्रा पर जाते हैं तो कहाँ ऊंचे, कहाँ नीचे होते हैं। तुम्हारी अवस्था भी नीचे-ऊपर होती रहेगी। अपना खाता देखना है। मुख्य है याद की यात्रा।

भगवानुवाच है तो जरूर बच्चों को ही पढ़ायेंगे। सारी दुनिया को कैसे पढ़ायेंगे। अब भगवान किसको कहा जाए? कृष्ण तो शरीरधारी है। भगवान तो निराकार परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। खुद कहते हैं मैं साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। ब्रह्मा का भी बुढ़ा तन गाया हुआ है। सफेद दाढ़ी मूँछ तो बुढ़े की होती है ना। चाहिए भी जरूर अनुभवी रथ। छोटे रथ में थोड़ेही प्रवेश करेंगे। खुद ही कहते हैं मुझे कोई जानते नहीं। वह है सुप्रीम गॉड फादर अथवा सुप्रीम सोल। तुम भी 100 परसेन्ट पवित्र थे। अभी 100 परसेन्ट अपवित्र बने हो। सतयुग में 100 परसेन्ट प्योरिटी थी तो पीस एण्ड प्रासपर्टा भी थी। मुख्य है प्योरिटी। देखते भी हो प्योरिटी वालों को इमप्योर माथा टेकते हैं, उनकी महिमा गाते हैं। सन्यासियों के आगे ऐसा कभी नहीं कहेंगे कि आप सर्वगुण सम्पन्न...... हम पापी नींच हैं। देवताओं के आगे ऐसे कहते हैं। बाबा ने समझाया है-कुमारी को सब माथा टेकते हैं फिर शादी करती है तो सबके आगे माथा टेकती है क्योंकि विकारी बनती है ना। अभी बाप कहते हैं तुम निर्विकारी बनेंगे तो आधाकल्प निर्विकारी हो रहेंगे। अभी 5 विकारों का राज्य ही खत्म होता है। यह है मृत्युलोक, वह है अमरलोक। अभी तुम आत्माओं को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है। बाप ही देते हैं। तिलक भी मस्तक पर देते हैं। अभी आत्मा को ज्ञान मिल रहा है, किसके लिए? तुम अपने को आपेही राजतिलक दो। जैसे बैरिस्टरी पढ़ते हैं तो पढ़कर अपने को आपेही बैरिस्टरी का तिलक देते हैं। पढ़ेंगे तो तिलक मिलेगा। आशीर्वाद से थोड़ेही मिलेगा। फिर तो सबके ऊपर टीचर कृपा करे, सब पास हो जाएं। बच्चों को अपने को आपेही राजतिलक देना है। बाप को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे और चक्र को याद करने से चक्रवर्ती महाराजा बन जायेंगे। बाप कहते हैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। देवी-देवतायें डबल सिरताज बनते हैं। पतित राजायें भी उन्हों की पूजा करते हैं। तुमको पुजारी राजाओं से भी ऊंच बनाते हैं। जो बहुत दान-पुण्य करते हैं तो राजाओं के पास जन्म लेते हैं क्योंकि कर्म अच्छे किये हैं। अभी यहाँ तुमको मिला है अविनाशी ज्ञान धन, वह धारण कर फिर दान करना है। यह सोर्स ऑफ इनकम है। टीचर भी पढ़ाई का दान करते हैं। वह पढ़ाई है अल्पकाल के लिए। विलायत से पढ़कर आते हैं, आने से ही हार्टफेल हो जाते हैं तो पढ़ाई खत्म। विनाशी हो गई ना। मेहनत सारी मुफ्त में गई। तुम्हारी मेहनत ऐसे नहीं जा सकती। तुम जितना अच्छा पढ़ेंगे उतना 21 जन्म तुम्हारी पढ़ाई कायम रहेगी। वहाँ अकाले मृत्यु होती ही नहीं। यह पढ़ाई साथ ले जायेंगे।

अब जैसे बाप कल्याणकारी है वैसे तुम बच्चों को भी कल्याणकारी बनना है। सबको रास्ता बताना है। बाबा तो राय बहुत अच्छी देते हैं। एक ही बात समझाओ कि सर्वश्रेष्ठ शिरोमणी श्रीमद् भगवत गीता की इतनी महिमा क्यों है? भगवान की ही श्रेष्ठ मत है। अब भगवान किसको कहा जाए? भगवान तो एक ही होता है। वह है निराकार, सब आत्माओं का बाप, इसलिए आपस में भाई-भाई कहते हैं फिर जब ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि रचते हैं तो बहन-भाई हो जाते हैं। इस समय तुम भाई- बहन हो तो पवित्र रहना पड़े। यह है युक्ति। क्रिमिनल आई एकदम निकल जाए। सम्भाल रखनी है, हमारी आंखें कहाँ मतवाली तो नहीं बनी? बजार में चने देख दिल तो नहीं हुई? ऐसे दिल बहुतों की होती है, फिर खा भी लेते हैं। ब्राह्मणी है, किसी भाई के साथ जाती है वह कहते हैं चना खायेंगी, एक बार खाने से पाप थोड़ेही लग जायेगा! जो कच्चे होते हैं वह झट खा लेते हैं। इस पर शास्त्रों में भी अर्जुन का दृष्टान्त हैं। यह कहानियाँ बैठ बनाई हैं। बाकी हैं सब इस समय की बातें। तुम सब सीतायें हो। तुमको बाप कहते हैं एक बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे। बाकी और कोई बातें हैं नहीं। अभी तुम समझते हो रावण कोई ऐसा मनुष्य नहीं है। यह तो विकारों की प्रवेशता हो जाती है तो रावण सम्प्रदाय कहा जाता है। जैसे कोई-कोई ऐसा काम करते हैं तो कहते हैं-तुम तो असुर हो। चलन आसुरी है। विकारी बच्चे को कहेंगे तुम कुल कलंकित बनते हो। यह फिर बेहद का बाप कहते हैं तुमको हम काले से गोरा बनाते हैं फिर काला मुँह करते हो। प्रतिज्ञा कर फिर विकारी बन पड़ते हो। काले से भी काला बन जाते हैं, इसलिए पत्थरबुद्धि कहा जाता है। फिर अब तुम पारसबुद्धि बनते हो। तुम्हारी चढ़ती कला होती है। बाप को पहचाना और विश्व का मालिक बनें। संशय की बात हो नहीं सकती। बाप है हेविनली गॉड फादर। तो जरूर हेविन सौगात में लायेंगे ना, बच्चों के लिए। शिव जयन्ती भी मनाते हैं-क्या करते होंगे? व्रत आदि रखते होंगे। वास्तव में व्रत रखना चाहिए विकारों का। विकार में नहीं जाना है। इनसे ही तुमने आदि-मध्य-अन्त दु:ख पाया है। अब यह एक जन्म पवित्र बनो। पुरानी दुनिया का विनाश सामने खड़ा है। तुम देखना भारत में 9 लाख जाकर रहेंगे, फिर शान्ति हो जायेगी। और धर्म ही नहीं रहेंगे जो ताली बजे। एक धर्म की स्थापना बाकी अनेक धर्म विनाश हो जायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अविनाशी ज्ञान धन स्वयं में धारण कर फिर दान करना है। पढ़ाई से अपने आपको स्वयं ही राज तिलक देना है। जैसे बाप कल्याणकारी है वैसे कल्याणकारी बनना है।
2) खाने-पीने की पूरी-पूरी परहेज रखनी है। कभी भी आंखें धोखा न दें-यह सम्भाल करनी है। अपने को सुधारना है। कर्मेन्द्रियों से कोई भी विकर्म नहीं करना है।
वरदान:
अपने सर्व खजानों को अन्य आत्माओं की सेवा में लगाकर सहयोगी बनने वाले सहजयोगी भव!   
सहजयोगी बनने का साधन है-सदा अपने को संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा और हर कार्य द्वारा विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति सेवाधारी समझ सेवा में ही सब कुछ लगाना। जो भी ब्राह्मण जीवन में शक्तियों का, गुणों का, ज्ञान का वा श्रेष्ठ कमाई के समय का खजाना बाप द्वारा प्राप्त हुआ है वह सेवा में लगाओ अर्थात् सहयोगी बनो तो सहजयोगी बन ही जायेंगे। लेकिन सहयोगी वही बन सकते हैं जो सम्पन्न है। सहयोगी बनना अर्थात् महादानी बनना।
स्लोगन:
बेहद के वैरागी बनो तो आकर्षण के सब संस्कार सहज ही खत्म हो जायेंगे।