Saturday, August 15, 2015

मुरली 16 अगस्त 2015

ऑलमाइटी अथॉरिटी राज योगी सभा व लोक पसन्द सभा

वरदान:

विश्व कल्याण की जिम्मेवारी समझ समय और शक्तियों की इकॉनामी करने वाले मास्टर रचता भव!  

विश्व की सर्व आत्मायें आप श्रेष्ठ आत्माओं का परिवार है, जितना बड़ा परिवार होता है उतना ही इकॉनामी का ख्याल रखा जाता है। तो सर्व आत्माओं को सामने रखते हुए, स्वयं को बेहद की सेवार्थ निमित्त समझते हुए अपने समय और शक्तियों को कार्य में लगाओ। अपने प्रति ही कमाया, खाया और गँवाया-ऐसे अलबेले नहीं बनो। सर्व खजानों का बजट बनाओ। मास्टर रचयिता भव के वरदान को स्मृति में रख समय और शक्ति का स्टॉक सेवा प्रति जमा करो।

स्लोगन:

महादानी वह है जिसके संकल्प और बोल द्वारा सबको वरदानों की प्राप्ति हो।  


ओम् शांति ।

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16-08-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:16-1-80 मधुबन

ऑलमाइटी अथॉरिटी राज योगी सभा व लोक पसन्द सभा
आज सारे कल्प के अन्दर सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मणों की वा राजयोगियों की सभा देख रहे हैं। एक तरफ है आजकल के अल्पकाल के राज्य की राज-सभा व लोक-सभा। दूसरी तरफ है ऑलमाइटी अथॉरिटी द्वारा बनी हुई राजयोगी सभा, लोक पसन्द सभा। दोनों ही सभायें अपना-अपना कार्य कर रही हैं। हद की लोकसभा हद के लॉ एण्ड आर्डर बनाती है और लोक पसन्द ब्राह्मण सभा अविनाशी लॉ एण्ड आर्डर का राज्य बना रहे हैं। जैसे उस लोक सभा व राज्य सभा में नेतायें अपनी-अपनी अल्प-बुद्धि और अल्पकाल के भिन्न-भिन्न विचार निकालते हैं, वैसे ब्राह्मणों की राज सभा व राजयोगी सभा विश्व-कल्याण के भिन्न-भिन्न विचार निकालती रहती है। वह है स्वार्थ अर्थ और यह है विश्व-कल्याण अर्थ इसलिए ही लोक-पसन्द बनते हो। स्वार्थ है तो मन पसन्द कहेंगे और विश्व कल्याणार्थ विचार हैं तो लोक-पसन्द व प्रभु-पसन्द हो जाते। कोई भी संकल्प व विचार करते हो तो पहले यह चेक करो कि यह विचार व संकल्प बाप पसन्द वा प्रभु-पसन्द हैं? जिससे अति स्नेह होता है तो उसकी पसन्दी सो अपनी पसन्दी होती है। जो बाप की पसन्दी वह आपकी पसन्दी और जो बाप पसन्द हो गये वह लोक पसन्द स्वत: ही बन जाते हैं क्योंकि सारे विश्व व लोक को, जानते हुए व न जानते हुए, देखते हुए व न देखते हुए सबसे ज्यादा पसन्द कौन है? धर्मपितायें अपने धर्म की आत्माओं के प्रिय हैं लेकिन धर्म पिताओं का भी प्रिय एक ही बाप परमपिता है इसलिए सबके मुख से समय प्रति समय भिन्न-भिन्न भाषा में एक बाप की ही पुकार निकलती है। तो जो बाप लोक पसन्द है, उसको जो पसन्द होगा वह स्वत: ही लोक पसन्द हो गये। जो बाप को पसन्द वह लोक-पसन्द स्वत: हो गया। अपने आप से पूछो कि मुझे लोक पसन्द सभा की टिकट मिल गई है? बाप ने चुन लिया है। अभी बाप के बने हैं, बाप ने तो स्वीकार कर लिया फिर भी बाप भी हर रोज़ नम्बरवार कहते हैं। कहाँ 8 की माला का पहला नम्बर और कहाँ 16 हजार की माला का लास्ट नम्बर। बच्चे तो दोनों बने लेकिन अन्तर कितना हुआ। इतना अन्तर क्यों हुआ, उसका मूल कारण? एक बाप के बच्चे होते भी इतना अन्तर क्यों?

एक हैं विश्व-कल्याण का कार्य करने वाले और दूसरे हैं कार्य करने वालों की और कार्य की महिमा करने वाले, दूसरे महिमा योग्य बनने वाले। एक हैं - करना है, दूसरे हैं करना चाहिए, होना चाहिए, बनना चाहिए इसलिए एक बाप के बच्चे बनकर भी कितना अन्तर रह जाता है। ‘चाहिए’ को ‘हैं’ में बदलना है। जो सदा ‘है, है’ करता है वह हाय-हाय से छूट जाता है। चाहिए वाले कभी बहुत उमंग में नाचते रहेंगे, कभी विघ्न में हाय-हाय करते रहेंगे। वह लोक पसन्द सभा के मेम्बर नहीं हैं। जैसे वहाँ पार्टी के मेम्बर बहुत होते हैं लेकिन सभा के मेम्बर थोड़े होते हैं। यहाँ भी ब्राह्मण परिवार के मेम्बर जरूर हैं लेकिन लोक पसन्द सभा के मेम्बर अर्थात् लॉ एण्ड आर्डर का राज्य अधिकार लेने वाले अधिकारी आत्मायें, उस लिस्ट में नहीं आयेंगे। वह हैं राज गद्दी के अधिकारी और वह हैं राज्य में आने के अधिकारी। 16 हज़ार की माला में, राज्य में आने के अधिकारी, लेकिन राज्य सिंहासन के अधिकारी नहीं। तो लोक पसन्द सभा की टिकट बुक कर लो तो राज्य सिंहासन स्वत: ही प्राप्त होगा।

आज बाप-दादा अपने सर्व महान तीर्थो के चक्कर पर निकले। अब के सेवाकेन्द्र भक्ति में तीर्थ स्थान के रूप में पूजे जायेंगे। तो सभी तीर्थ स्थानों का सैर करते गंगा-जमुना-सरस्वती-गोदावरी सबको देखा, सब ज्ञान-नदियाँ अपनी-अपनी सेवा में लगी हुई थी। कहीं थोड़े बहुत वारिस देखे और कही कुछ थोड़े होवनहार वारिस भी देखे। कहाँ रायल फैमली के अति समीप राज्य कारोबार चलाने वाले देखे। वह राज्य का हुक्म देने वाले, वह राज्य कारोबार चलाने वाले। वह मैजॉरिटी अलग प्रकार की चेकिंग और रिजल्ट देख रहे हैं। आखिर रिजल्ट अनाउन्स तो होना है ना। तो आजकल सबके पेपर्स चेक कर रहे हैं। आज बाप-दादा हरेक बच्चे के विशेष प्युरिटी की सबजेक्ट का पेपर चेक कर रहे थे इसलिए विशेष चक्र लगाने भी गये कि हरेक ब्राह्मण बच्चे की प्युरिटी का प्रकाश कहाँ तक विस्तार में जा रहा है अर्थात् सेवा स्थान पर हर आत्मा की प्युरिटी का वायब्रेशन कहाँ तक पड़ता है। प्युरिटी की परसेन्टेज छोटे बल्ब के समान है या बड़े बल्ब के समान है या सर्चलाइट के समान है, या लाइट हाउस के समान है। प्युरिटी की पावर्स कहाँ तक वायुमण्डल को परिवर्तन कर सकती हैं - इस रिजल्ट को देखने के लिए सर्व तीर्थ स्थानों का सैर किया। तीर्थ स्थान का महत्व निमित्त बने हुए सेवाधारी सत्य तीर्थ पर है। जितना निमित्त सेवाधारी का प्रभाव होगा उतना ही चारों ओर के वायब्रेशन्स और वायुमण्डल होगा।

तो बापदादा की आज की दिनचर्या यह थी - प्युरिटी के पेपर चेक करना। ऐसे हर स्थान की रिजल्ट देखी। आदि से लेकर अब तक प्युरिटी का पोतामेल क्या रहा, संकल्प से लेकर स्वप्न तक सारी चेकिंग की। बापदादा अपने सहयोगियों को जब चाहें तब इमर्ज कर लेते हैं। ट्रिब्युनल भी गाई हुई तो है। लास्ट में होगी सहयोगियों की ट्रिब्युनल। अभी तो मुरबी बच्चों व सहयोगी बच्चों के रूप में इमर्ज करते हैं। क्यों करते हैं? बापदादा भी छोटी-छोटी सभायें करते हैं ना। जैसे आप लोग कभी ज़ोन हेड्स की मीटिंग करते हो ना। कभी सर्विसएबुल की मीटिंग करते हो, कभी सेवाधारियों की मीटिंग करते हो। बापदादा भी वहाँ ग्रुप बुलाते हैं। याद है शुरू में सुहेजों के भी ग्रुप बनाये थे। सब ग्रुप को अलग-अलग भोजन खिलाया था। अब भागवत पर आ गये। भागवत तो बड़ा लम्बा चौड़ा है। भक्ति में भी गीता से भागवत बड़ा बनाया है। गीता ज्ञान सुनने में कोई रूचि रखे न रखे लेकिन भागवत सभी सुनेंगे। तो जैसे साकार में बच्चों से स्वेहेज़ मनाये ऐसे अभी भी वतन में बच्चों को इमर्ज करते रहते हैं। पेपर्स को वेरीफाय तो फिर भी बच्चों से करायेंगे क्योंकि बाप सदा बालक सो मालिक के रूप में देखते हैं इसलिए निमित्त बने हुए बच्चों को हर कार्य में बड़े भाई के सम्बन्ध से देखते हैं। तो भाई-भाई का मिलन कैसे होता है। भाई, भाई से वेरीफाय तो करायेंगे ना इसलिए बाप-दादा कभी भी अकेले नहीं हैं। सदा बच्चों के साथ है। अकेले कहीं भी रह नहीं सकते इसलिए यादगार में भी देखो पुरुषार्थी दिलवाला मन्दिर में अकेले हैं? बच्चों के साथ हैं ना। और लास्ट की रिजल्ट विजय माला - उसमें भी अकेले नहीं हैं। कभी किसको कभी किसको सदा साथ में रखते हैं। बाप आपके सम्पूर्ण फरिश्ते रूप को इमर्ज करते हैं। वह टचिंग आपको भी आती है? रोज़ आती है व कभी-कभी आती है? आप सूक्ष्मवतन को यहाँ लाते हो और बाप आपको सूक्ष्मवतन में बुलाते हैं। कभी बाप आपके पास आ जाते हैं, कभी आपको अपने पास बुला लेते हैं, यही सारा दिन धन्धा करते हैं। कभी खेल करते और कराते हैं, कभी अपने साथ सेवा में लगाते हैं। कभी अपने साथ साक्षात्कार कराने ले जाते हैं और कभी साक्षात्कार कराने भेजते हैं क्योंकि कोई-कोई भक्त ऐसे जिद्दी होते हैं जो अपने इष्ट देव के साक्षात्कार बिना सन्तुष्ट नहीं होते हैं। चाहे बाप भी उनके आगे प्रत्यक्ष हो जाए लेकिन वह अपने इष्ट देव को ही पसन्द करते हैं, इसलिए भिन्न-भिन्न इष्ट देव और देवियों को भक्तों के पास भेजना ही पड़ता है, और क्या करते हैं? कभी-कभी विशेष स्नेही व सहयोगी बच्चों को विशेष कान में शक्ति का मन्त्र भी देते हैं। क्यों देते? क्योंकि कोई-कोई कार्य ऐसे आते हैं जिसमें विशेष आत्मायें व मुरबी बच्चे निमित्त होने के कारण हिम्मत, हुल्लास और अपनी प्राप्त हुई शक्तियों से कार्य करने के लिए आ ही जाते हैं। फिर भी कहाँ-कहाँ जैसे राकेट को बहुत ऊंचा जाना होता है तो एक्स्ट्रा फोर्स से ऊपर चले जाते हैं। फिर निराधार हो जाते हैं। तो कहाँ-कहाँ कोई ऐसे कार्य आते हैं जहाँ सिर्फ सेकेण्ड के इशारे की आवश्यकता होती है। वह टचिंग होना अर्थात् कान में शक्ति का मन्त्र देना।

अच्छा - वर्गीकरण आया है तो बाप ने भी अपना वर्गीकरण का कार्य बताया कि वतन में क्या-क्या होता है। यह इसलिए सुनाया क्योंकि अभी भी अपने एडीशन पेपर तैयार कर सकते हो, कभी-कभी दोबारा भी पेपर लेते हैं ना। तो प्युरिटी के पेपर में अभी भी एडीशन कर सकते हो तो मार्क्स जमा हो जायेगी क्योंकि मुख्य आधार और रीयल ज्ञान की परख प्युरिटी है। प्युरिटी के आधार पर सहज योग, सहज ज्ञान और सहज धारणा व सेवा कर सकते हो। चारों ही सबजेक्टस का फाउण्डेशन प्युरिटी है इसलिए पहले यह पेपर चेक हो रहा है, रिजल्ट फिर सुनायेंगे। अच्छा।

ऐसे हर संकल्प में प्रभु पसन्द व लोक पसन्द, हर कार्य में अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले, अर्थात् राज्य सभा के अधिकारी, सदा बाप के साथ मन और कर्म में विश्व सेवा के साथी, सदा संकल्प द्वारा वायुमण्डल को श्रेष्ठ बनाने वाले, अपने महा-वरदानी वृत्ति से वायब्रेशन फैलाने वाले - ऐसे समीप और सहयोगी बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

सफलता का आधार - निर्णय शक्ति, कन्ट्रोलिंग पॉवर (आफीसर्स ग्रुप)

आफीसर्स की विशेषता जिससे अपने कार्य में सदा सफल हो सकें - वह है निर्णय शक्ति और कन्ट्रोलिंग पावर। आफीसर्स में अगर ये दो शक्तियाँ हैं तो सदा नीचे वालों को चलाने में सफल रहेंगे व कार्य में सफल रहेंगे। तो जैसे उस गवर्मेन्ट के आफीसर हो वैसे पाण्डव गवर्मेन्ट के ईश्वरीय कार्य में भी अनेक आत्माओं के कार्यालय के आफीसर हो। वह है हद का कार्यालय और ये है बेहद का। जैसे उस गवर्मेन्ट के भिन्न-भिन्न डिपार्टमेन्टस के आफीसर हो वैसे पाण्डव गवर्मेन्ट में विश्व कल्याण के कार्य के आफीसर हो। आफीसर की क्वालिफिकेशन सुनाई - कन्ट्रोलिंग पावर और जजमेन्ट पॉवर। तो इस ईश्वरीय कार्य में भी वही सफलता मूर्त बनता है जिसमें ये दो विशेष शक्तियाँ हैं। पहले जब कोई आत्मा सम्पर्क में आती है जो जज कर सकें कि इसको किस चीज़ की जरूरत है, उसकी नब्ज़ परख सकें कि इसको क्या चाहिए। और उसी चाहना के प्रमाण उसे तृप्त बना सकें। सेवा में स्वयं की कन्ट्रोलिंग पॉवर से दूसरों की सेवा के निमित्त बनो। जब दूसरों की सेवा करते हैं तो स्वयं को कन्ट्रोल करने की कन्ट्रोलिंग पॉवर के कारण दूसरे पर उस अचल स्थिति का प्रभाव पड़ता है। जैसे उस आफीसर्स की क्वालिफिकेशन है वैसे ही यहाँ भी ये क्वालिफिकेशन चाहिए। यदि गवर्मेन्ट राज़ी हो जाए तो गवर्नर बना देगी लेकिन यहाँ विश्व-कल्याण की सेवा में सेवाधारी बनने से विश्व के राजा बन जायेंगे। तो ये दो शक्तियाँ विशेष अपने में सदा रहनी चाहिए तो सदा सफलता है।

पाण्डव गवर्मेन्ट के भी ऐसे अच्छे आफीसर हो ना? विश्व-कल्याण की आफिस को ऐसे अच्छी तरह से चला रहे हो ना? आफीसर्स को भी सेवा का बहुत अच्छा चाँन्स है क्योंकि सम्पर्क में अनेक आत्मायें आती रहती हैं। सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को ईश्वरीय सम्पर्क में लाना ये भी तो चान्स है ना। तो पाण्डव गवर्मेन्ट के सम्पर्क में कितनों को लाते हो? सम्पर्क में लाने से एक बार भी शान्ति का अनुभव किया तो बार-बार आपके गुण गायेंगे। अब प्रजा बढ़ाने का दफ्तर खोलो। जैसे वह दफ्तर सम्भालते हो वैसे यह दफ्तर सम्भालो। आप लोगों के अनुभव में भी विशेष शक्ति है। जो अनुभव सुनकर भी अनेकों को बहुत अनुभव होंगे। आजकल सुनना सुनाना है लेकिन अनुभव नहीं है। अनुभव के इच्छुक हैं। आप जितना अनुभवी होंगे उतना ही अनुभव करा सकेंगे। सभी आफीसर्स सहज योगी हो ना? या कभी सहजयोगी, कभी मुश्किल के योगी। लौकिक सेवा भी सम्पर्क बढ़ाने की सेवा है।
वरदान:
विश्व कल्याण की जिम्मेवारी समझ समय और शक्तियों की इकॉनामी करने वाले मास्टर रचता भव!   
विश्व की सर्व आत्मायें आप श्रेष्ठ आत्माओं का परिवार है, जितना बड़ा परिवार होता है उतना ही इकॉनामी का ख्याल रखा जाता है। तो सर्व आत्माओं को सामने रखते हुए, स्वयं को बेहद की सेवार्थ निमित्त समझते हुए अपने समय और शक्तियों को कार्य में लगाओ। अपने प्रति ही कमाया, खाया और गँवाया-ऐसे अलबेले नहीं बनो। सर्व खजानों का बजट बनाओ। मास्टर रचयिता भव के वरदान को स्मृति में रख समय और शक्ति का स्टॉक सेवा प्रति जमा करो।
स्लोगन:
महादानी वह है जिसके संकल्प और बोल द्वारा सबको वरदानों की प्राप्ति हो।