Tuesday, August 11, 2015

मुरली 12 अगस्त 2015

“मीठे बच्चे - ज्ञान को बुद्धि में धारण कर आपस में मिलकर क्लास चलाओ, अपना और औरों का कल्याण कर सच्ची कमाई करते रहो”

प्रश्न:

तुम बच्चों में कौन-सा अहंकार कभी नहीं आना चाहिए?

उत्तर:

कई बच्चों में अहंकार आता है कि यह छोटी-छोटी बालकियाँ हमें क्या समझायेंगी। बड़ी बहन चली गई तो रूठकर क्लास में आना बंद कर देंगे। यह हैं माया के विघ्न। बाबा कहते-बच्चे, तुम सुनाने वाली टीचर के नाम-रूप को न देख, बाप की याद में रह मुरली सुनो। अहंकार में मत आओ।


धारणा के लिए मुख्य सार:

1) ध्यान रखना है कि मुरली सुनते समय बुद्धियोग बाहर भटकता तो नहीं है? सदा स्मृति रहे कि हम शिवबाबा के महावाक्य सुन रहे हैं। यह भी याद की यात्रा है।

2) अपने आपको देखना है कि हमारे में ज्ञान-योग और दैवी गुण हैं? लालच का भूत तो नहीं है? माया के वश कोई विकर्म तो नहीं होता है?

वरदान:

हद की सर्व कामनाओं पर जीत प्राप्त करने वाले कामजीत जगतजीत भव!

काम विकार का अंश सर्व हद की कामनायें हैं। कामना एक है वस्तुओं की, दूसरी है व्यक्ति द्वारा हद के प्राप्ति की, तीसरी है सम्बन्ध निभाने में, चौथी है सेवा भावना में हद की कामना का भाव। किसी भी व्यक्ति या वस्तु के प्रति विशेष आकर्षण होना-इच्छा नहीं है लेकिन यह अच्छा लगता है, यह भी काम विकार का अंश है। जब यह सूक्ष्म अंश भी समाप्त हों तब कहेंगे काम जीत जगतजीत।

स्लोगन:

दिल की महसूसता से दिलाराम बाप की आशीर्वाद लेने के अधिकारी बनो।


ओम् शांति ।

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12-08-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - ज्ञान को बुद्धि में धारण कर आपस में मिलकर क्लास चलाओ, अपना और औरों का कल्याण कर सच्ची कमाई करते रहो”   
प्रश्न:
तुम बच्चों में कौन-सा अहंकार कभी नहीं आना चाहिए?
उत्तर:
कई बच्चों में अहंकार आता है कि यह छोटी-छोटी बालकियाँ हमें क्या समझायेंगी। बड़ी बहन चली गई तो रूठकर क्लास में आना बंद कर देंगे। यह हैं माया के विघ्न। बाबा कहते-बच्चे, तुम सुनाने वाली टीचर के नाम-रूप को न देख, बाप की याद में रह मुरली सुनो। अहंकार में मत आओ।
ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। अब बाप जब कहा जाता है तो इतने बच्चों का एक जिस्मानी बाप तो हो नहीं सकता। यह है रूहानी बाप। उनके ढेर बच्चे हैं, बच्चों के लिए यह टेप मुरली आदि सामग्री है। बच्चे जानते हैं अभी हम संगमयुग पर बैठे हैं पुरूषोत्तम बनने के लिए। यह भी खुशी की बात है। बाप ही पुरूषोत्तम बनाते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण पुरूषोत्तम हैं ना। इस सृष्टि में ही उत्तम पुरूष, मध्यम और कनिष्ट होते हैं। आदि में हैं उत्तम, बीच में हैं मध्यम, अन्त में हैं कनिष्ट। हर चीज़ पहले नई उत्तम फिर मध्यम फिर कनिष्ट अर्थात् पुरानी बनती है। दुनिया का भी ऐसे है। तो जिन-जिन बातों पर मनुष्यों को संशय आता है, उस पर तुमको समझाना है। बहुत करके ब्रह्मा के लिए ही कहते हैं कि इनको क्यों बिठाया है? तो उनको झाड़ के चित्र पर ले आना चाहिए। देखो नीचे भी तपस्या कर रहे हैं और ऊपर में एकदम अन्त में बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में खड़े हैं। बाप कहते हैं मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। यह बातें समझाने वाला बड़ा अक्लमंद चाहिए। एक भी बेअक्ल निकलता है, तो सभी बी.के. का नाम बदनाम हो जाता है। पूरा समझाना आता नहीं है। भल कम्पलीट पास तो अन्त में ही होते हैं, इस समय 16 कला सम्पूर्ण कोई बन न सके लेकिन समझाने में नम्बरवार जरूर होते हैं। परमपिता परमात्मा से प्रीत नहीं है तो विप्रीत बुद्धि ठहरे ना। इस पर तुम समझा सकते हो जो प्रीत बुद्धि हैं वह विजयन्ती और जो विप्रीत बुद्धि हैं वह विनशन्ती हो जाते हैं। इस पर भी कई मनुष्य बिगड़ते हैं, फिर कोई न कोई इलज़ाम लगा देते हैं। झगड़ा-फसाद मचाने में देरी नहीं करते हैं। कोई कर ही क्या सकते हैं। कभी चित्रों को आग लगाने में भी देरी नहीं करेंगे। बाबा राय भी देते हैं - चित्रों को इन्श्योर करा दो। बच्चों की अवस्था को भी बाप जानते हैं, क्रिमिनल आई पर भी बाबा रोज़ समझाते रहते हैं। लिखते हैं-बाबा, आपने जो क्रिमिनल आई पर समझाया है यह बिल्कुल ठीक कहा है। यह दुनिया तमोप्रधान है ना। दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान बनते जाते हैं। वो तो समझते हैं कलियुग अभी रेगड़ी पहन रहा है (घुटनों के बल चल रहा है) अज्ञान नींद में बिल्कुल सोये हुए हैं। कभी-कभी कहते भी हैं यह महाभारत लड़ाई का समय है तो जरूर भगवान कोई रूप में होगा। रूप तो बताते नहीं। उनको जरूर किसमें प्रवेश होना है। भाग्यशाली रथ गाया जाता है। रथ तो आत्मा का अपना होगा ना। उसमें आकर प्रवेश करेंगे। उनको कहा जाता है भाग्यशाली रथ। बाकी वह जन्म नहीं लेते हैं। इनके ही बाजू में बैठ ज्ञान देते हैं। कितना अच्छी रीति समझाया जाता है। त्रिमूर्ति चित्र भी है। त्रिमूर्ति तो ब्रह्मा-विष्णु- शंकर को कहेंगे। जरूर यह कुछ करके गये हैं। जो फिर रास्तों पर, मकान पर भी त्रिमूर्ति नाम रखा है। जैसे इस रोड को सुभाष मार्ग नाम दिया है। सुभाष की हिस्ट्री तो सब जानते हैं। उन्हों के पीछे बैठ हिस्ट्री लिखते हैं। फिर उनको बनाकर बड़ा कर देते हैं। कितनी भी बड़ाई बैठ लिखें। जैसे गुरूनानक का पुस्तक कितना बड़ा बनाया है। इतना उसने तो लिखा नहीं है। ज्ञान के बदले भक्ति की बातें बैठ लिखी हैं। यह चित्र आदि तो बनाये जाते हैं समझाने के लिए। यह तो जानते हैं इन आंखों से जो कुछ दिखाई पड़ता है यह सब भस्म हो जाना है। बाकी आत्मा तो यहाँ रह न सके। जरूर घर चली जायेगी। ऐसी- ऐसी बातें कोई सबकी बुद्धि में बैठती थोड़ेही है। अगर धारणा होती है तो क्लास क्यों नहीं चलाते। 7-8 वर्ष में ऐसा कोई तैयार नहीं होता जो क्लास चला सके। बहुत जगह ऐसे चलाते भी हैं। फिर भी समझते हैं माताओं का मर्तबा ऊंच है। चित्र तो बहुत हैं फिर मुरली धारण कर उस पर थोड़ा समझाते हैं। यह तो कोई भी कर सकते हैं। बहुत सहज है। फिर पता नहीं क्यों ब्राह्मणी की मांगनी करते हैं। ब्राह्मणी कहाँ गई तो बस रूठकर बैठ जाते हैं। क्लास में नहीं आते, आपस में खिटपिट हो जाती है। मुरली तो कोई भी बैठ सुना सकते हैं ना। कहेंगे फुर्सत नहीं। यह तो अपना भी कल्याण करना है तो औरों का भी कल्याण करना है। बहुत भारी कमाई है। सच्ची कमाई करानी है जो मनुष्यों का हीरे जैसा जीवन बन जाये। स्वर्ग में सब जायेंगे ना। वहाँ सदैव सुखी रहते हैं। ऐसे नहीं, प्रजा की आयु कम होती है। नहीं, प्रजा की भी आयु बड़ी होती है। वह है ही अमर लोक। बाकी पद कम-जास्ती होते हैं। तो कोई भी टॉपिक पर क्लास कराना चाहिए। ऐसे क्यों कहते हैं अच्छी ब्राह्मणी चाहिए। आपस में क्लास चला सकते हैं। रड़ी नहीं मारनी चाहिए। कोई-कोई को अहंकार आ जाता है - यह छोटी-छोटी बालकियां क्या समझायेंगी? माया के विघ्न भी बहुत आते हैं। बुद्धि में नहीं बैठता।

बाबा तो रोज़ समझाते रहते हैं, शिवबाबा तो टॉपिक पर नहीं समझायेंगे ना। वह तो सागर है। उछलें मारते रहेंगे। कभी बच्चों को समझाते, कभी बाहर वालों के लिए समझाते। मुरली तो सबको मिलती है। अक्षर नहीं जानते हैं तो सीखना चाहिए ना-अपनी उन्नति के लिए पुरूषार्थ करना चाहिए। अपना भी और दूसरों का भी कल्याण करना है। यह बाप (ब्रह्मा बाबा) भी सुना सकते हैं ना, परन्तु बच्चों का बुद्धियोग शिवबाबा तरफ रहे इसलिए कहते हैं हमेशा समझो शिवबाबा सुनाते हैं। शिवबाबा को ही याद करो। शिवबाबा परमधाम से आये हैं, मुरली सुना रहे हैं। यह ब्रह्मा तो परमधाम से नहीं आकर सुनाते हैं। समझो शिवबाबा इस तन में आकर हमको मुरली सुना रहे हैं। यह बुद्धि में याद होना चाहिए। यथार्थ रीति यह बुद्धि में रहे तो भी याद की यात्रा रहेगी ना। परन्तु यहाँ बैठे भी बहुतों का बुद्धियोग इधर-उधर चला जाता है। यहाँ तुम यात्रा पर अच्छी रीति रह सकते हो। नहीं तो गांव याद आयेगा। घरबार याद आयेगा। बुद्धि में यह याद रहता है-शिवबाबा हमको इसमें बैठ पढ़ाते हैं। हम शिवबाबा की याद में मुरली सुन रहे थे फिर बुद्धियोग कहाँ भाग गया। ऐसे बहुतों का बुद्धियोग चला जाता है। यहाँ तुम यात्रा पर अच्छी रीति रह सकते हो। समझते हो शिवबाबा परमधाम से आये हैं। बाहर गांवड़ों आदि में रहने से यह ख्याल नहीं रहता है। कोई-कोई समझते हैं शिवबाबा की मुरली इन कानों से सुन रहे हैं फिर सुनाने वाले का नाम-रूप याद न रहे। यह ज्ञान सारा अन्दर का है। अन्दर में ख्याल रहे शिवबाबा की मुरली हम सुनते हैं। ऐसे नहीं, फलानी बहन सुना रही है। शिवबाबा की मुरली सुन रहे हैं। यह भी याद में रहने की युक्तियां हैं। ऐसे नहीं कि जितना समय हम मुरली सुनते हैं, याद में हैं। नहीं, बाबा कहते हैं-बहुतों की बुद्धि कहाँ-कहाँ बाहर में चली जाती है। खेतीबाड़ी आदि याद आती रहेगी। बुद्धि योग कहाँ बाहर भटकना नहीं चाहिए। शिवबाबा को याद करने में कोई तकलीफ थोड़ेही है। परन्तु माया याद करने नहीं देती है। सारा समय शिवबाबा की याद रह नहीं सकती, और-और ख्यालात आ जाते हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार है ना। जो बहुत नज़दीक वाले होंगे उनकी बुद्धि में अच्छी रीति बैठेगा। सब थोड़ेही 8 की माला में आ सकेंगे। ज्ञान, योग, दैवीगुण यह सब अपने में देखना है। हमारे में कोई अवगुण तो नहीं है? माया के वश कोई विकर्म तो नहीं होता है? कोई-कोई बहुत लालची बन जाते हैं। लालच का भी भूत होता है। तो माया की प्रवेशता ऐसी होती है जो भूख-भूख करते रहते हैं-खाऊं-खाऊं पेट में बलाऊं....... कोई में खाने की बहुत आसक्ति होती है। खाना भी कायदे अनुसार होना चाहिए। ढेर बच्चे हैं। अब बहुत बच्चे बनने वाले हैं। कितने ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ बनेंगे। बच्चों को भी कहता हूँ-तुम ब्राह्मण बन बैठो। माताओं को आगे रखा जाता है। शिव शक्ति भारत माताओं की जय।

बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो। स्वदर्शन चक्र फिराते रहो। स्वदर्शन चक्रधारी तुम ब्राह्मण हो। यह बातें नया कोई आये तो समझ न सके। तुम हो सर्वोत्तम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शन चक्रधारी। नया कोई सुने तो कहेंगे स्वदर्शन चक्र तो विष्णु को है। यह फिर इन सबको कहते रहते हैं, मानेंगे नहीं इसलिए नये-नये को सभा में एलाऊ नहीं करते। समझ नहीं सकेंगे। कोई-कोई फिर बिगड़ पड़ते हैं-क्या हम बेसमझ हैं जो आने नहीं दिया जाता है क्योंकि और-और सतसंगों में तो ऐसे कोई भी जाते रहते हैं। वहाँ तो शास्त्रों की ही बातें सुनाते रहते हैं। वह सुनना हर एक का हक है। यहाँ तो सम्भाल रखनी पड़ती है। यह ईश्वरीय ज्ञान बुद्धि में नहीं बैठता तो बिगड़ पड़ते हैं। चित्रों की भी सम्भाल रखनी पड़ती है। इस आसुरी दुनिया में अपनी दैवी राजधानी स्थापन करनी है। जैसे क्राइस्ट आया अपना धर्म स्थापन करने। यह बाप दैवी राजधानी स्थापन करते हैं। इसमें हिंसा की कोई बात नहीं है। तुम न काम कटारी की और न स्थूल हिंसा कर सकते हो। गाते भी हैं मूत पलीती कपड़ धोए। मनुष्य तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं। बाप आकर घोर अन्धियारे से घोर सोझरा करते हैं। फिर भी कोई-कोई बाबा कहकर फिर मुँह मोड़ देते हैं। पढ़ाई छोड़ देते हैं। भगवान विश्व का मालिक बनाने के लिए पढ़ाते हैं, ऐसी पढ़ाई को छोड़ दे तो उनको कहा जाता है महामूर्ख। कितना जबरदस्त खज़ाना मिलता है। ऐसे बाप को थोड़ेही कभी छोड़ना चाहिए। एक गीत भी है-आप प्यार करो या ठुकराओ, हम आपका दर कभी नहीं छोड़ेंगे। बाप आये ही हैं-बेहद की बादशाही देने। छोड़ने की तो बात ही नहीं। हाँ, लक्षण अच्छे धारण करने हैं। स्त्रियाँ भी रिपोर्ट लिखती हैं-यह हमको बहुत तंग करते हैं। आजकल लोग बहुत-बहुत खराब हैं। बड़ी सम्भाल रखनी चाहिए। भाइयों को बहनों की सम्भाल रखनी है। हम आत्माओं को कोई भी हालत में बाप से वर्सा जरूर लेना है। बाप को छोड़ने से वर्सा खलास हो जाता है। निश्चयबुद्धि विजयन्ती, संशयबुद्धि विनशन्ती। फिर पद बहुत कम हो जाता है। ज्ञान एक ही ज्ञान सागर बाप दे सकते हैं। बाकी सब है भक्ति। भल कोई कितना भी अपने को ज्ञानी समझें परन्तु बाप कहते हैं सबके पास शास्त्रों और भक्ति का ज्ञान है। सच्चा ज्ञान किसको कहा जाता है, यह भी मनुष्य नहीं जानते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ध्यान रखना है कि मुरली सुनते समय बुद्धियोग बाहर भटकता तो नहीं है? सदा स्मृति रहे कि हम शिवबाबा के महावाक्य सुन रहे हैं। यह भी याद की यात्रा है।
2) अपने आपको देखना है कि हमारे में ज्ञान-योग और दैवी गुण हैं? लालच का भूत तो नहीं है? माया के वश कोई विकर्म तो नहीं होता है?
वरदान:
हद की सर्व कामनाओं पर जीत प्राप्त करने वाले कामजीत जगतजीत भव!   
काम विकार का अंश सर्व हद की कामनायें हैं। कामना एक है वस्तुओं की, दूसरी है व्यक्ति द्वारा हद के प्राप्ति की, तीसरी है सम्बन्ध निभाने में, चौथी है सेवा भावना में हद की कामना का भाव। किसी भी व्यक्ति या वस्तु के प्रति विशेष आकर्षण होना-इच्छा नहीं है लेकिन यह अच्छा लगता है, यह भी काम विकार का अंश है। जब यह सूक्ष्म अंश भी समाप्त हों तब कहेंगे काम जीत जगतजीत।
स्लोगन:
दिल की महसूसता से दिलाराम बाप की आशीर्वाद लेने के अधिकारी बनो।