Saturday, August 8, 2015

मुरली 09 अगस्त 2015

रूहानी सेनानियों से रूहानी कमाण्डर की मुलाकात

 वरदान:

संगठन रूपी किले को मजबूत बनाने वाले सर्व के स्नेही, सन्तुष्ट आत्मा भव!
संगठन की शक्ति विशेष शक्ति है। एकमत संगठन के किले को कोई भी हिला नहीं सकता। लेकिन इसका आधार है एक दो के स्नेही बन सर्व को रिगार्ड देना और स्वयं सन्तुष्ट रहकर सर्व को सन्तुष्ट करना। न कोई डिस्टर्व हो और न कोई डिस्टर्व करे। सब एक दो को शुभ भावना और शुभ कामना का सहयोग देते रहें तो यह संगठन का किला मजबूत हो जायेगा। संगठन की शक्ति ही विजय का विशेष आधार स्वरूप है।

स्लोगन:

जब हर कर्म यथार्थ और युक्तियुक्त हो तब कहेंगे पवित्र आत्मा।




ओम् शांति ।

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09-08-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:14-1-80 मधुबन

रूहानी सेनानियों से रूहानी कमाण्डर की मुलाकात
आज विशेष कौन-सा संगठन है? इस संगठन को, अपने डबल सेवाधारी बच्चों को जो हरेक डबल सेवाधारी वा डबल नॉलेजफुल हैं, ऐसे ग्रुप को देख आज वतन में एक विशेष संवाद चला -

ब्रह्मा बाप बोले – “ये विशेष मेरी भुजायें हैं। शिव बाप बोले – “यह मेरी रूद्र माला है”। रूद्र माला में विशेष मणके हैं। ऐसी चिटचैट चलते हुए शिवबाबा ने ब्रह्मा बाप से पूछा कि आपकी यह सब भुजायें राइट हैण्डस हैं या लेफट हैण्डस भी हैं। राइट हैण्ड अर्थात् सदा समान, स्वच्छ और सत्यवादी। तो सब राइट हैण्डस हैं? तो ब्रह्मा बाप मुस्कराये और मुस्कराते हुए बोले कि हरेक का पोतामेल तो आपके पास है ही। जब पोतामेल देखने की बात आई, हरेक बच्चे का पोतामेल सामने इमर्ज हुआ। कैसे इमर्ज हुआ? एक घड़ी के रूप में। जिसमें हरेक की चार सबजेक्ट्स के चार भाग थे। जैसे यहाँ सृष्टि चक्र का चित्र बनाते हो। हर भाग में अलग-अलग काँटे लगे हुए थे जो हरेक के चारों ही सबजेक्ट्स की परसेन्टेज बता रहे थे। सबके पोतामेल स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। पोतामेल देखते हुए बाप-दादा आपस में बोले - समय की घड़ी और बच्चों के पुरूषार्थ की घड़ी दोनों को देखते हुए क्या दिखाई दिया? समय की घड़ी और बच्चों के पुरूषार्थ की घड़ी मैजॉरटी की दो भाग अर्थात् दो सबजेक्ट्स की रिजल्ट 75 परसेन्ट फिर भी ठीक थी। लेकिन दो सबजेक्टस के परसेन्टेज की रिजल्ट बहुत कम थी। तो बाप-दादा बोले - इस रिजल्ट के प्रमाण एवररेडी ग्रुप कहेंगे? जैसे विनाश का बटन दबाने की देरी है, सेकेण्ड की बाज़ी पर बात बनी हुई है, ऐसे स्थापना के निमित्त बने हुए बच्चे एक सेकेण्ड में तैयार हो जाएँ, ऐसा स्मृति का समर्थ बटन तैयार है? जो संकल्प किया और अशरीरी हुए। संकल्प किया और सर्व के विश्व-कल्याणकारी ऊंची स्टेज पर स्थित हो गए और उसी स्टेज पर स्थित हो, साक्षीदृष्टा हो विनाश लीला देख सकें। देह के सर्व आकर्षण अर्थात् सम्बन्ध, पदार्थ, संस्कार इन सबकी आकर्षण से परे, प्रकृति की हलचल की आकर्षण से परे, फरिश्ता बन ऊपर की स्टेज पर स्थित हो शान्ति और शक्ति की किरणें सर्व आत्माओं के प्रति दे सकें - ऐसे स्मृति का समर्थ बटन तैयार है? जब दोनों बटन तैयार हों तब तो समाप्ति हो।

इस ग्रुप को देखकर वतन में पोतामेल इमर्ज हुआ। जैसे बाहुबल वाली सेना में भी वैराइटी प्रकार के सैनिक होते हैं। कोई बॉर्डर पर जाने वाले, युद्ध के मैदान पर जाने वाले अर्थात् डायरेक्ट वार करने वाले और दूसरे उनकी पालना करने वाले पीछे होते हैं। डायरेक्टर तो बैकबोन होते हैं। ऐसे ही यह जो ग्रुप है वह मैदान पर सेवा करने वाला ग्रुप है। मैदान में आने वाली सेना के आधार पर ही विजय अथवा हार की बात होती है। अगर मैदान में आने वाले कमज़ोर, शस्त्रहीन, डरपोक होते हैं तो कभी भी डायरेक्टर की विजय नहीं हो सकती हैं। विश्व-कल्याण के मैदान पर यह सेवाधारी ग्रुप है। यह ग्रुप बहादुर है। सामना करने की शक्ति अर्थात् अनुभव कराने की शक्ति, सभी को श्रेष्ठ चरित्र द्वारा बाप-दादा का चित्र दिखाने की शक्ति - ऐसे शस्त्रधारी हैं? क्या समझते हो - ऐसे शक्ति स्वरूप ग्रुप है? चारों ही सबजेक्ट्स के चारों ही अलंकारधारी हो? दो भुजा वाले शक्ति स्वरूप हो या चार भुजा वाले हो? यह चार अलंकार चार सबजेक्ट्स की निशानी हैं। तो सभी अलंकार धारण किए हैं? या किसी ने दो धारण किए हैं, किसी ने तीन किये हैं या एक धारण करते हैं तो दूसरा छूट जाता है? तो इस ग्रुप का महत्व समझा।

सेवा के मैदान पर आने वाला ग्रुप है अर्थात् विजय के आधारमूर्त ग्रुप है। आधारमूर्त, मजबूत हो ना? आधार हिलने वाले तो नहीं हैं ना। ज्ञान और सेवा इन दो सबजेक्ट्स में 75 परसेन्ट देखी। वैसे याद और धारणा इन दो सबजेक्ट्स पर भी ज्यादा अटेन्शन दे चारों ही अलंकारधारी बनो, नहीं तो सृष्टि की आत्माओं को सम्पूर्ण साक्षात्कार करा नहीं सकेंगे इसलिए इन दो अलंकारों को धारण करने के लिए विशेष क्या अटेन्शन रखेंगे? डबल सेवाधारी हो - लौकिक और ईश्वरीय। शरीर निर्वाह अर्थ और आत्म निर्वाह अर्थ डबल सेवा मिली हुई है। और दोनों ही सेवा बाप-दादा के डायरेक्शन प्रमाण मिली हुई हैं, लेकिन दोनों ही सेवाओं में समय का, शक्तियों का समान अटेन्शन देते हो? तराजू के दोनों तरफ समान रखते हो? काँटा ठीक रखते हो कि बिना काँटे के तराजू रखते हो? काँटा है श्रीमत। अगर श्रीमत का काँटा ठीक है तो दोनों साइड समान होंगी अर्थात् तराजू का बैलेन्स ठीक होगा। अगर काँटा ही ठीक नहीं है तो बैलेन्स रह नहीं सकता। कोई-कोई बच्चे एक तरफ का वज़न ज्यादा रखते हैं। कैसे? लौकिक जिम्मेवारियां निभानी ही हैं, ऐसे समझते हैं और ईश्वरीय जिम्मेवारियां निभानी तो हैं, ऐसे कहते हैं। वह निभानी ही हैं और वो निभानी तो है इसलिए एक तरफ का वज़न ज्यादा हो जाता है और रिजल्ट क्या होती है? बोझ उनको ही नीचे ले आता है। ऊपर नहीं उठ सकते। बोझ वाला साइड सदा नीचे धरती पर लग जाता है और हल्का ऊपर उठ जाता है। और समान वाला भी ऊंचा उठता, नीचे धरती पर नहीं लगेगा। धरती पर लगने के कारण धरती के आकर्षण वश हो जाते हैं। बोझ के कारण ईश्वरीय सेवा के मैदान पर हल्के होकर सदा सफलता मूर्त नहीं बन सकते। कर्मबन्धन के, लोकलाज के बोझ नीचे ले आते हैं। जिस लोक को छोड़ चुके उस लोक की लाज रखते हैं और जिस संगमयुग वा संगम लोक के बन चुके, उस लोक की लाज रखना भूल जाते हैं। जो लोक भस्म होने वाला है उस लोक की लाज सदा स्मृति में रखते और जो लोक अविनाशी है और इसी लोक से भविष्य लोक बनना है, उस लोक की स्मृति दिलाते भी कभी-कभी स्मृति स्वरूप बनते हैं। गृहस्थ व्यवहार और ईश्वरीय व्यवहार - दोनों में समानता रखना अर्थात् सदा दोनों में हल्के और सफल होना।

वास्तव में गृहस्थ व्यवहार शब्द चेन्ज करो। गृहस्थ शब्द बोलते ही गृहस्थी बन जाते हो इसलिए गृहस्थी नहीं हो ट्रस्टी हो। गृहस्थ व्यवहार नहीं, ट्रस्ट व्यवहार है। गृहस्थी बनते हैं तो क्या करते हैं? गृहस्थियों का कौन-सा खेल है? गृहस्थी बनते हो तो बहाने बाज़ी बहुत करते हो। ऐसे और वैसे की भाषा बहुत बोलते हो। ऐसे है ना, वैसे है ना। बात को भी बढ़ाने लग जाते हैं। यह तो आप जानते हो करना ही पड़ेगा, यह तो ऐसे ही है, वैसे ही है - यह पाठ बाप को भी पढ़ाने लग जाते हो। ट्रस्टी बन जाओ तो बहाने बाज़ी खत्म हो चढ़ती कला की बाज़ी शुरू हो जायेगी। तो आज से अपने को गृहस्थ व्यवहार वाले नहीं समझना। ट्रस्ट व्यवहार है। जिम्मेवार और है, निमित्त आप हो। जब ऐसे संकल्प में परिवर्तन करेंगे तो बोल और कर्म में परिवर्तन हो ही जायेगा। तो यही ग्रुप एक-एक बहुत कमाल कर सकते हैं। कर्मयोगी, सहजयोगी का हरेक सैम्पुल अनेक आत्माओं को श्रेष्ठ सौदा करने के निमित्त बना सकते हैं। और जो भी हद के गुरू होते हैं उनका एक शिष्य गद्दी पर बैठ अपने गुरू का नाम बाला करते हैं और यहाँ सतगुरू के इतने सब तख्त नशीन बच्चे हो - एक-एक बच्चा कितना श्रेष्ठ कार्य कर सकते हैं।

बाप-दादा सभी बच्चों को ऐसे सर्विसएबुल, विश्व में नाम बाला करने वाले विश्व-कल्याणकारी बच्चा समझते हैं। जब एक दीपक दीप माला बना देता है तो आप एक-एक दीपक सारे विश्व में दीपावली कर देंगे। समझा - इस ग्रुप को क्या करना है!

वैराइटी ग्रुप को वैराइटी वर्ग वाली आत्माओं के सेवाधारी बन सर्व की सद्गति वा श्रेष्ठ जीवन बनाने का आधारमूर्त बनना है। जैसे डबल विदेशी हैं वैसे यह डबल नॉलेजफुल हैं, डबल सर्विसएबुल हैं। रिजल्ट भी डबल निकालनी है।

ऐसे सदा सर्व बन्धन-मुक्त, सदा जीवनमुक्त, विश्व शो केस के विशेष शो पीस, विश्व-परिवर्तन करने के आधार मूर्त, सदा श्रीमत के आधार पर स्व उद्धार और विश्व उद्धार करने वाले, ऐसे सदा विश्व सेवाधारियों को, बेहद के सेवाधारियों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

डॉक्टर्स के प्रति अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य:-

डबल डॉक्टर्स का ग्रुप है ना। जैसे सभी डॉक्टर्स अपने हद की डॉक्टरी के स्पेशलिस्ट होते हैं वैसे रूहानी डॉक्टरी में विशेष किस सेवा के निमित्त बने हुए हो? जैसे हद की डॉक्टरी में कोई ऑखों का, कोई विशेष गले का, कोई सर्जन, कोई सिर्फ दवाईयाँ देने वाला होता है। तो इस रूहानी डॉक्टरी में क्या विशेषतायें हैं? एक सेकेण्ड में किसी के पुराने संस्कार रूपी बीमारी को नयनों की दृष्टि द्वारा समाप्त कर दें अर्थात् उस समय उस बीमारी से उसको भुला दें, ऐसी विशेषता वाले डॉक्टर्स हो? जैसे वह ऑखे ठीक कर देते हो, ऐसे अपनी दृष्टि द्वारा किसी के पुराने संस्कार को पहले दबा दें फिर समाप्त करा दें, उस समय शान्त कर दें, ऐसी विशेषता वाले डॉक्टर्स हो, यह हुआ ऑखों का डॉक्टर जो दृष्टि से परिवर्तन कर दें। जैसे डॉक्टर गोली देकर थोड़े समय के लिए दर्द को दबा देते हैं, ऐसे ऑखों के डॉक्टर हो जो दृष्टि से उसको सन्तुष्ट कर दो। हद के नहीं रूहानी। रूहानी ऑखों के डॉक्टर अर्थात् रूहानी दृष्टि से शफा देने वाले।

2. ऑपरेशन वाले डॉक्टर, जैसे वह औज़ारों से ऑपरेशन करते हो वैसे अपने में जो शक्तियाँ हैं, यह शक्तियाँ ही यन्त्र हो जायें, जिन यन्त्रों द्वारा उनकी कमज़ोरियाँ समाप्त हो जायेंगी। जैसे अपने ही थियेटर के यन्त्रों द्वारा ऑपरेशन करते हो, पेशेन्ट के यन्त्र तो नहीं यूज़ करते हो ना, ऐसे अपनी शक्तियों के यन्त्र द्वारा बीमारी को ठीक कर दो, कामी को निष्कामी और क्रोधी को निक्रोधी बना दो। इसके लिए सहनशक्ति का यन्त्र यूज़ करना पड़े। तो ऐसे ऑपरेशन वाले डॉक्टर हो? जैसे उसमें ऑख, नाक सबके अलग-अलग स्पेशलिस्ट होते हैं ऐसे यहाँ भी अलग-अलग विशेषतायें हैं। यहाँ भी जितनी कोई डिग्री लेना चाहे तो ले सकता है। जो सर्व विशेषताओं में ऑलराउन्डर हो जाते हैं वे नामीग्रामी हो जाते हैं।

डॉक्टर्स तो बहुत सेवा कर सकते हैं - क्यों? क्योंकि पेशेन्ट उस समय बिल्कुल भिखारी के रूप में आते हैं। अगर उस समय डाक्टर उन्हें झूठी दवाई भी दे देते, पानी भी दे देते तो भी भावना के कारण वह ठीक हो जाते हैं। उन्हें खुशी की खुराक मिल जाती, जिससे वह ठीक हो जाते। दवाई से ठीक नहीं होते, खुशी से ठीक हो जाते। तो डॉक्टर्स के पास भिखारी के रूप में आते हैं, दो घड़ी के लिए भी दर्द मिटाओ, उन्हें आप उस समय क्या भी सुनाओ तो सुनने के लिए तैयार हो जाते हैं। तो जैसे इन्जेक्शन लगाकर सेकेण्ड में उसके दर्द की सुधबुध भुला देते हो, ऐसे ज्ञान का इंजेक्शन भी लगाओ जो पुराने संस्कारों की सुधबुध भूल जाएँ। ऐसा इन्जेक्शन आप सबके पास है ना? जो पहले अपने को इन्जेक्शन लगाकर संस्कारों को भुला सकते हैं, वही फिर अपने अनुभव के आधार से औरों को भी लगा सकेंगे। तो डबल डॉक्टर्स की कोई तो विशेषता होनी चाहिए ना। अभी कोई भी आयेगा तो आपके पास भेजेंगे, ऐसे नहीं केस वापस चला जाए। बहुत अच्छा चान्स है - सेवा में आगे बढ़ने का। डॉक्टर्स तो एक दिन में काफी प्रजा बना सकते हैं, रोज प्रजा बनी-बनाई आपके पास आती है, ढूँढने नहीं जाना पड़ता है। वैसे मेले प्रदर्शनी में कितना खर्चा करके बुलाते हैं, आपको तो बहुत सहज है। अगर सम्बन्ध में लाया तो बच्चे भी बन सकते हैं। कोई-कोई अच्छा-अच्छा कहकर चले भी जायेंगे लेकिन वह अन्त में हलचल के समय इच्छुक होकर महसूसता शक्ति के साथ-साथ आयेंगे इसलिए सेवा करते रहना चाहिए। फिर भी आपको इष्ट मानेंगे जरूर। और कुछ नहीं तो कम-से-कम आपके भक्त तो बन जायेंगे। अगर अन्त में यह भी कहा कि इन्होंने संदेश अच्छा दिया, संदेशी थे, पैगम्बर थे, यह भी सोचा तो भक्त बन जायेंगे। लास्ट स्टेज भक्त है, वह भी तो चाहिए।

अभी जो आते हैं वह 7 दिन के कोर्स से, अपनी हिम्मत से चलने वाले कम हैं, लास्ट पूर है ना। लास्ट पूर में ताकत नहीं होती इसलिए अभी की आत्माओं को स्वयं की शक्तियों के सहयोग द्वारा आगे बढ़ाने का समय है। आपकी भेंट में अभी की आत्मायें टू लेट हो गई हैं, क्योंकि लास्ट पूर हो गया इसलिए स्वयं का हुल्लास देकर उनको चलाना है। आपको महादानी, वरदानी बनना पड़े। वह अपने आधार पर नहीं चल सकते। तो ऐसा पावरफुल यंत्र निकालो जो एक सेकेण्ड में अनुभव कराने वाला हो। अब अपने हमजिन्स की संख्या को बढ़ाओ। अभी ऐसा इन्जेक्शन तैयार करो जो लगाओ और सुधबुध भूल जाएँ। उस दुनिया से बेहोश हो इस दुनिया में आ जाएँ। ऐसा इन्जेक्शन तैयार करना पड़े। अब देखेंगे इस वर्ष में अपनी संख्या कितनी बढ़ाते हो। कम-से-कम आपके हमजिन्स उल्हना तो न दें कि हमको बताया ही नहीं, अगर हम नहीं जागते थे तो जगाना तो फ़र्ज़ था, यह भी उल्हना देंगे। एक बार निमंत्रण दे दिया, पर्चा भेज दिया तो कैसे जागेंगे। जो कुम्भकरण की नींद में सोया हुआ हो उसे एक बार आवाज़ दे दो - ऐ, जाग जाओ, तो कैसे जागेगा इसलिए बार-बार जगाना पड़े। अच्छा।
वरदान:
संगठन रूपी किले को मजबूत बनाने वाले सर्व के स्नेही, सन्तुष्ट आत्मा भव!   
संगठन की शक्ति विशेष शक्ति है। एकमत संगठन के किले को कोई भी हिला नहीं सकता। लेकिन इसका आधार है एक दो के स्नेही बन सर्व को रिगार्ड देना और स्वयं सन्तुष्ट रहकर सर्व को सन्तुष्ट करना। न कोई डिस्टर्व हो और न कोई डिस्टर्व करे। सब एक दो को शुभ भावना और शुभ कामना का सहयोग देते रहें तो यह संगठन का किला मजबूत हो जायेगा। संगठन की शक्ति ही विजय का विशेष आधार स्वरूप है।
स्लोगन:
जब हर कर्म यथार्थ और युक्तियुक्त हो तब कहेंगे पवित्र आत्मा।