Saturday, August 1, 2015

मुरली 02 अगस्त 2015

अलौकिक ड्रेस और अलौकिक श्रृंगार

वरदान:

सुनने के साथ-साथ स्वरूप बन मन के मनोरंजन द्वारा सदा शक्तिशाली आत्मा भव!

रोज़ मन में स्व के प्रति या औरों के प्रति उमंग-उत्साह का संकल्प लाओ। स्वयं भी उसी संकल्प का स्वरूप बनो और दूसरों की सेवा में भी लगाओ तो अपनी जीवन भी सदा के लिए उत्साह वाली हो जायेगी और दूसरों को भी उत्साह दिलाने वाले बन सकेंगे। जैसे मनोरंजन प्रोग्राम होता है ऐसे रोज़ मन के मनोरंजन का प्रोग्राम बनाओ, जो सुनते हो उसका स्वरूप बनो तो शक्तिशाली बन जायेंगे।

स्लोगन:

श्रेष्ठ कर्म का ज्ञान ही श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींचने की कलम है।

ओम् शांति ।

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02-08-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:09-1-80 मधुबन

अलौकिक ड्रेस और अलौकिक श्रृंगार
आज बाप-दादा विशेष चारों ओर के बच्चों की रमणीक रंगत देख रहे थे। जिसको देख मुस्करा भी रहे थे और कहीं-कहीं विशेष हंसी भी आ रही थी। वह कौन-सी रंगत थी? बाप-दादा देख रहे थे कि संगम युगी, सर्व श्रेष्ठ हीरे तुल्य युग के वासी और सर्व श्रेष्ठ बाप-दादा के बच्चे, ईश्वरीय सन्तान, ब्राह्मण कुल की श्रेष्ठ आत्माओं को व लाडले, सिकीलधे बच्चों को बाप-दादा ने विशेष सारे दिन के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की ड्रेस और श्रृंगार, साथ-साथ बैठने के स्थान व आसन कितने श्रेष्ठ दिये हैं। जो जैसा समय वैसी ड्रेस और वैसा ही श्रृंगार कर सकते हैं। सतयुग में भिन्न-भिन्न ड्रेसेज और श्रृंगार चेन्ज करेंगे लेकिन संस्कार तो यहाँ से ही भरने हैं ना। ब्रह्मा बाप ने संगमयुग की भिन्न-भिन्न ड्रेसेज और श्रृंगार से ब्राह्मण बच्चों को सजाया है। लेकिन रमणीक रंगत क्या देखी? जो इतनी सुन्दर ड्रेसेज और सजावट होते हुए भी कोई- कोई बच्चे पुरानी ड्रेस, मिट्टी वाली मैली ड्रेस पहन लेते हैं।

अमृतबेले की ड्रेस और श्रृंगार जानते हो? सारे दिन की भिन्न-भिन्न ड्रेस और श्रृंगार जानते हो? बाप-दादा द्वारा भिन्न-भिन्न टाइटल्स बच्चों को मिले हुए हैं। तो भिन्न-भिन्न टाइटल्स की स्थिति रूपी ड्रेस और भिन्न-भिन्न गुणों के श्रृंगार के सेट हैं। कितने प्रकार की ड्रेसेज और सेट हैं। जैसी ड्रेस वैसा श्रृंगार का सेट और ऐसे ही सजे-सजाये सीट पर सदा सेट रहो। अपनी ड्रेसेज गिनती करो कि कितनी हैं। उसी टाइटिल की स्थिति में स्थित होना अर्थात् ड्रेसेज को धारण करना। कभी विश्व-कल्याणकारी की ड्रेस पहनो, कभी मास्टर सर्व शक्तिमान की और कभी स्वदर्शन चक्रधारी की। जैसा समय जैसा कर्तव्य वैसी ड्रेसेज धारण करो। साथ-साथ भिन्न-भिन्न गुणों के श्रृंगार करो। यह भिन्न-भिन्न श्रृंगारों के सेट धारण करो। हाथों में, गले में, कानों में और मस्तक में यह श्रृंगार हो। मस्तक में यह स्मृति धारण करो कि मैं आनन्द स्वरूप हूँ - यह मस्तक की चिन्दी हो गई। मुख द्वारा अर्थात् गले में भी आनन्द दिलाने की बातें हों - यह गले की माला हो गई। हाथों द्वारा अर्थात् कर्म में आनन्द स्वरूप की स्थिति हो - ये हाथों के कंगन हो गए। कानों द्वारा भी आनन्द स्वरूप बनने की बातें सुनते रहना, यह कानों का श्रृंगार है। पाँव द्वारा आनन्द स्वरूप बनाने की सेवा की तरफ पाँव हों अर्थात् कदम- कदम आनन्द स्वरूप बनने और बनाने को ही उठे यह पाँव का श्रृंगार है। अब एक सेट समझ लिया? पूरा ही सेट धारण कर लिया? ऐसे अलग-अलग समय पर अलग-अलग सेट धारण करो। सेट धारण करना तो आता है ना? या कानों का पहनेंगे तो गले का छोड़ देंगे। वैसे भी आजकल की दुनिया में सेट पहनने का रिवाज़ है। तो आपके इतने श्रेष्ठ श्रृंगार के सेट हैं। वह धारण क्यों नहीं करते हो? पहनते क्यों नहीं हो? इतनी सब भिन्न-भिन्न प्रकार की सुन्दर ड्रेसेज छोड़कर देह-अभिमान के स्मृति की मिट्टी वाली ड्रेस क्यों पहनते हो?



आज ड्रेस और श्रृंगार की कॉम्पीटीशन देखी कि कौन-से बच्चे सारा दिन सजे-सजाये रहते हैं और कौन-से बच्चे ड्रेस बदलने और पहनने उतारने में ही लग जाते हैं। अभी-अभी एक ड्रेस धारण करेंगे और अभी-अभी वह ड्रेस उतारकर घटिया ड्रेस पहन लेंगे, ज्यादा समय श्रेष्ठ सुन्दर ड्रेस पहन ही नहीं सकते। तो क्या देखा? कोई-कोई बिल्कुल बदबू वाली ड्रेस भी पहन लेते हैं। कौन-सी बदबू? देह के सम्बन्ध और देह के पदार्थो के लगाव की बदबू वाली ड्रेस। जो दूर से ही बदबू आती थी। कोई गन्दे चमड़े की ड्रेस पहने हुए थे अर्थात् क्रिमिनल आई की, चमड़ी को देखने की, ऐसी गन्दी चमड़ी की ड्रेस भी पहने हुए थे। किसी की ड्रेस पर गन्दे दाग भी लगे हुए थे। गन्दे दाग़ अर्थात् औरों के अवगुण अर्थात् दाग़ को अपने में धारण करना। तो गन्दे-गन्दे दाग़ वाली ड्रेस भी थी। किसी की ड्रेस तो बहुत खराब खून के दागों की थी। वह क्यों थी? बार-बार विकर्म करना अर्थात् आत्म-घात करना। आत्मा की श्रेष्ठ स्थिति का घात करना, ऐसी ड्रेस वाले भी थे। अब सोचो कहाँ सुन्दर टाइटल्स के स्थिति की ड्रेस और कहाँ ये गन्दी ड्रेस। श्रेष्ठ आत्माओं की ड्रेस भी श्रेष्ठ चाहिए। तो क्या देखा? कोई-कोई बच्चे सारा दिन उसी श्रेष्ठ ड्रेस में, श्रृंगार के सेट धारण करके सीट पर अच्छी तरह सेट थे और कोई बढ़िया ड्रेस सामने होते हुए भी धारण करना चाहते हुए भी धारण कर नहीं सकते थे। तो अमृतबेले से श्रेष्ठ श्रृंगार का सेट धारण करो। जब श्रेष्ठ टाइटल्स की ड्रेस पहनेंगे, गुणों का श्रृंगार धारण करेंगे तो जैसे सतयुग में विश्व महाराजा व विश्व महारानी की राजाई ड्रेस के पीछे दास-दासियाँ ड्रेस को उठाते हैं, वैसे अब मायाजीत संगमयुगी स्वराज्य अधिकारियों के टाइटल्स रूपी ड्रेस में स्थित होने के समय ये 5 तत्व, ये 5 विकार आपकी ड्रेस को पीछे उठायेंगे अर्थात् अधीन होकर चलेंगे।

तो यह दृश्य अपना सामने लाओ कि कैसे मायाजीत के पीछे यह रावण के दस शीश, 10 सेवाधारी बन करके पीछे चलेंगे। लेकिन जब ड्रेस से टाइट होंगे और निरन्तर अर्थात् लम्बी-चौड़ी होगी तब वह 10 सर्वेन्ट आपके पीछे-पीछे उठाते आयेंगे। आजकल के राजे-रानियाँ भी यह चोगा बड़ा लम्बा-चौड़ा पहनते हैं जो उठा सकें। अगर निरन्तर की लम्बाई नहीं होगी, टाइटल्स में टाइट नहीं होंगे तो यही सेवाधारी ड्रेस उतार देंगे क्योंकि लूज़ होगी ना। तो अब दृढ़ संकल्प से टाइटल्स की ड्रेस को टाइट करो। दृढ़ संकल्प है बेल्ट। इससे टाइट करो तो सदा सेफ रहेंगे और सदा सेवाधारी अधीन रहेंगे। सुनाया था ना कि विकार परिवर्तन हो सहयोगी, सेवाधारी हो जायेंगे। अभी ड्रेस पहनना आ गया। टाइट करना भी आ गया। जिस समय जो ड्रेस चाहो वह पहनो। लेकिन गन्दी ड्रेस नहीं पहनना। वैराइटी ड्रेस और वैराइटी श्रृंगार का लाभ उठाओ। ब्रह्मा बाप व बापदादा ने संगम का दहेज दिया है, लव मैरेज की है तो दहेज भी मिलेगा ना। तो दहेज है यह वैराइटी श्रृंगार के सेट और सुन्दर ड्रेस। बाप-दादा का दहेज छोड़ कर पुराना दहेज यूज़ नहीं करो। कई बच्चे ऐसे करते हैं जो बाप-दादा का दहेज भी जरूर लेंगे व लिया भी है लेकिन साथ में पुरानी ड्रेस भी छिपाकर रखी है इसलिए कभी उसे भी धारण कर लेते हैं। जब पुराना लगाव लग जाता है तो पुरानी ड्रेस पहन लेते हैं। अमूल्य ड्रेस को छोड़ फटी-टूटी ड्रेस पहन लेते हैं तो ऐसे मत करना। अब तक भी छिपाकर रखा हो तो जला देना है। और जलाकर के राख भी अपने पास नहीं रखना। वह भी सागर में स्वाहा कर देना तो सदा सजे रहेंगे और बाप के साथ दिलतख्तनशीन रहेंगे। तख्त से उतरेंगे तो फाँसी का तख्ता आ जायेगा। कभी लोभ का, कभी मोह का। तो फाँसी के तख्ते को छोड़ तख्तनशीन हो जाओ। दहेज सम्भाला हुआ है ना। यूज़ करो। दहेज सिर्फ रख न दो। सिर्फ देखते रहो बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है। लेकिन धारण करो। और ड्रेस कॉम्पीटीशन में फर्स्ट नम्बर आ जाओ। सुनाया ना - नम्बर है निरन्तर के ऊपर। ड्रेस पहननी तो सभी को आती है, लेकिन ड्रेस सदा टिप-टॉप रहे यह नहीं आता है। तो सदा सजे-सजाये का नम्बर है। कॉम्पीटीशन में फॉरेन वाले नम्बर वन लेंगे या भारत वाले लेंगे? जितना चाहें उतना ले सकते हैं। वहाँ तो प्राइज़ के कारण एक को ही फर्स्ट नम्बर मिलता। यहाँ तो बहुतों को फर्स्ट नम्बर बना सकते हैं, यहाँ अखुट खज़ाना है इसलिए जितने भी फर्स्ट आयेंगे उनको फर्स्ट प्राइज़ मिल जायेगी। अच्छा, कल से क्या करेंगे?

अमृतबेले से लेकर भिन्न-भिन्न ड्रेस और श्रृंगार के सेट से सज-धज कर सारा दिन बाप के साथ रहना। अमृतबेले से ही फर्स्ट नम्बर की ड्रेस पहनना। ऐसी सजी हुई सजनियों को ही साथ ले जायेंगे। औरों को नहीं। जो कॉम्पीटीशन में फर्स्ट नम्बर आयेंगे वे ही साथ रहेंगे और साथ चलेंगे। जो रहेंगे नहीं वह चलेंगे भी नहीं। तो सदा यह स्लोगन याद रखो अर्थात् यह तिलक लगाना “साथ रहेंगे, साथ चलेंगे”। समझते हो ना कॉम्पीटीशन में कितना अच्छा लगता होगा। बाप, ब्रह्मा बाप को वतन में यह दिखाते रहते हैं। बच्चों की याद तो ब्रह्मा बाप को भी रहती है। तो बच्चों का हाल-चाल दिखाते रहते हैं।

ऐसी सदा सजी-सज़ाई मूर्त, संगमयुगी श्रेष्ठ जीवन के महत्व को जानने वाली महान आत्मायें, दुश्मन को भी सेवाधारी बनाने वाले, सहयोगी बनाने वाले, ऐसे मास्टर सर्वशक्तिमान सदा बाप और आप, इस विचित्र युगल रूप में रहने वाले, ऐसी परम पूज्य और गायन योग्य आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

सर्विसएबुल बच्चों के प्रति बाप-दादा के मधुर महावाक्य -

सर्विसएबुल बच्चों की महिमा तो बहुत महान है क्योंकि बाप समान हैं ना। बाप भी बच्चों की सर्विस करने आते हैं और आप भी निमित्त हो तो समानता हो गयी ना। समान वाले की महिमा होती है। समान वाला ही सदा साथ रह सकता है। समान नहीं होगा तो साथ भी नहीं होगा। बाप समान अर्थात् सदा स्वमान में रहने वाले। जैसे बाप अपने स्वमान को कभी भूलता है क्या। तो बाप समान अर्थात् सदा स्वमान में रहने वाले। ऐसे हो? सदा बाप और सेवा - यह दोनों ही ऐसे स्मृति में रहते हैं जैसे शरीर की स्मृति स्वत: ही रहती है। याद करना नहीं पड़ता लेकिन स्वत: याद रहती है। ऐसे बाप की याद और सेवा भी स्वत: याद रहे। अगर आप भी मेहनत करके याद में रहो तो औरों को सहजयोगी कैसे बनायेंगे। सर्विसएबुल बच्चों की क्वालिफिकेशन हैं ही सहजयोगी, स्वत:योगी।

अभी समय के प्रमाण मेहनत समाप्त होनी चाहिए। अगर अभी भी मेहनत का अनुभव हो या क्यों, क्या का क्वेश्चन हो तो अपनी ड्युटी को बजा नहीं सकते हो। क्यों, क्या करना अर्थात् क्यू में खड़ा होना। अगर स्वयं ही क्यू में होंगे तो औरों को तृप्त आत्मा कैसे बना सकेंगे। खुद ही लेने वाले होंगे तो दाता कैसे बनेंगे। सेवाधारी अर्थात् देते जाओ और साथ में लेते जाओ। जो स्वयं ही क्यों, क्या वाले हैं वह तो भिखारी के मुआफ़िक माँगने वाले होंगे। शक्ति देना, सहयोग देना, मैं यह कार्य कर रही हूँ, आप सफलता देना, यह अर्जी भी रॉयल भिखारीपन है। जो स्वयं भिखारियों की क्यू में होंगे वह औरों को दाता बनकर कैसे दे सकेंगे। अब बचपन खत्म हुआ। बचपन में सब छूट थी, रोना भी छूट, फीलिंग भी छूट, संकल्पों की भी छूट मिल गई, लेकिन अभी नहीं। अभी तो वानप्रस्थ तक पहुँच गये हो ना। बचपन की बातें वानप्रस्थ में नहीं रहती, इसमें क्यों, क्या नहीं। क्यों, क्या करने वाले अर्थात् बेबी क्वालिटी। जो बेबी होंगे वह बीबी नहीं बनेंगे। अब तो मियाँ और बीबी का सौदा है। अभी बेबीपन खत्म हुआ। बाप-समान बन गये तो बीबी और मियाँ बन गये। छोटे बच्चे को समान नहीं कहेंगे। जब बच्चा बड़ा बन जाता है या बाप बन जाता है तब समान कहा जाता है। तो अभी बेबी क्वालिटी खत्म।

संस्कार मिलते नहीं, यह भी संकल्प न आये। मिलाने ही हैं। मिलते नहीं, यह कौन बोलता है? यह बदलता नहीं, सुनता नहीं, यह ना-ना या नहीं-नहीं की भाषा किसकी है? अब तो होना ही है। हाँ जी। “ना” शब्द समाप्त। तो सभी हाँ-हाँ वाले हो ना। अभी बेहद के बनो, हद को छोड़ो। सुनाया था ना कोई ज़ोन का भी हेड है तो यह भी हद हुई। नक्शे के अन्दर देखो आपका ज़ोन क्या है? बिन्दी। तो हद हो गई ना। अभी फलाने स्थान के हैं, यह भी नहीं। फलाने स्थान पर ही ठीक हैं, यह भी नहीं। बेहद के मालिक बनना है या एक स्थान का? ऐसा नहीं, थोड़ा-सा स्थान परिवर्तन हो तो स्थिति परिवर्तन हो जाए। अभी भेजेंगे यहाँ-वहाँ तैयार हो? फॉरेन भेजें या किसी भी स्थान पर भेजें लेकिन एवररेडी। देश में भेजें या विदेश में। जब जाना होता है तो शक्ति आपेही मिल जाती है। तो कल से सभी को चेन्ज करें। अच्छा - नई बुलेटिन निकालें फिर नहीं कहना अभी तैयार होने के लिए एक साल और दो, सिर्फ 4 मास दो, दो मास दो, ऐसे तो नहीं कहेंगे ना। हिम्मत है? अपना है ही क्या! अगर अपना है तो सब, अपना है नहीं तो कुछ अपना नहीं। जो बाप का वह अपना। बाप का बेहद है आपका भी बेहद। सब हमारे हैं, इसको कहते हैं बेहद।

बाप-दादा सभी बच्चों को सदा विशेष सहयोग देते ही रहते हैं क्योंकि जो सेवा में निमित्त बने हुए हैं तो विशेष सेवाधारियों को विशेष सहयोग सदा प्राप्त होता ही है। विशेष कार्य वाले तो पहले याद आयेंगे ना। लौकिक रीति से भी कोई हिस्ट्री को याद करो तो हिस्ट्री में भी कौन पहले आता है? जो विशेष होगा वही याद आयेगा ना। संगमयुग की हिस्ट्री में भी जो जितना विशेष सेवाधारी हैं वह विशेष आत्मायें हैं। तो बाप-दादा जब भी याद करेंगे तो पहले-पहले वह स्वत: ही याद आयेंगे। याद करो, यह कहने की जरूरत ही नहीं। सिर्फ विशेष याद का रिटर्न लेने वाले बनो। बाप सबको याद का रिटर्न देते हैं लेकिन लेने वाले कभी-कभी अलबेलेपन के कारण लेते नहीं हैं। बाप के पास जो भी है, वह देने के लिए है, तो बाप सबको देते हैं, लेने वाले नम्बरवार हैं।
वरदान:
सुनने के साथ-साथ स्वरूप बन मन के मनोरंजन द्वारा सदा शक्तिशाली आत्मा भव!   
रोज़ मन में स्व के प्रति या औरों के प्रति उमंग-उत्साह का संकल्प लाओ। स्वयं भी उसी संकल्प का स्वरूप बनो और दूसरों की सेवा में भी लगाओ तो अपनी जीवन भी सदा के लिए उत्साह वाली हो जायेगी और दूसरों को भी उत्साह दिलाने वाले बन सकेंगे। जैसे मनोरंजन प्रोग्राम होता है ऐसे रोज़ मन के मनोरंजन का प्रोग्राम बनाओ, जो सुनते हो उसका स्वरूप बनो तो शक्तिशाली बन जायेंगे।
स्लोगन:
श्रेष्ठ कर्म का ज्ञान ही श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींचने की कलम है।