Thursday, July 16, 2015

मुरली 17 जुलाई 2015

“मीठे बच्चे - पहले-पहले सबको बाप का सही परिचय देकर गीता का भगवान सिद्ध करो फिर तुम्हारा नाम बाला होगा”

प्रश्न:

तुम बच्चों ने चारों युगों में चक्र लगाया है, उसकी रस्म भक्ति में चल रही है, वह कौन-सी?

उत्तर:

तुमने चारों युगों में चक्र लगाया वह फिर सब शास्त्रों, चित्रों आदि को गाड़ी में रख चारों ओर परिक्रमा लगाते हैं। फिर घर में आकर सुला देते हैं। तुम ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय....... बनते। इस चक्र के बदले उन्होंने परिक्रमा दिलाना शुरू किया है। यह भी रस्म है।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) सदा इसी नशे वा खुशी में रहना है कि हमको भगवान पढ़ाते हैं। किसी भी बात में संशयबुद्धि नहीं होना है। शुद्ध अहंकार रखना है।

2) सूक्ष्मवतन की बातों में ज्यादा इन्ट्रेस्ट नहीं रखना है। आत्मा को सतोप्रधान बनाने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है। आपस में राय कर सबको बाप की सही पहचान देनी है।

वरदान:

सदाकाल के अटेन्शन द्वारा विजय माला में पिरोने वाले बहुत समय के विजयी भव!

बहुत समय के विजयी, विजय माला के मणके बनते हैं। विजयी बनने के लिए सदा बाप को सामने रखो-जो बाप ने किया वही हमें करना है। हर कदम पर जो बाप का संकल्प वही बच्चों का संकल्प, जो बाप के बोल वही बच्चों के बोल-तब विजयी बनेंगे। यह अटेन्शन सदाकाल का चाहिए तब सदाकाल का राज्य-भाग्य प्राप्त होगा क्योंकि जैसा पुरूषार्थ वैसी प्रालब्ध है। सदा का पुरूषार्थ है तो सदा का राज्य-भाग्य है।

स्लोगन:

सेवा में सदा जी हाज़िर करना-यही प्यार का सच्चा सबूत है।

ओम् शांति ।

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17-07-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - पहले-पहले सबको बाप का सही परिचय देकर गीता का भगवान सिद्ध करो फिर तुम्हारा नाम बाला होगा”   
प्रश्न:
तुम बच्चों ने चारों युगों में चक्र लगाया है, उसकी रस्म भक्ति में चल रही है, वह कौन-सी?
उत्तर:
तुमने चारों युगों में चक्र लगाया वह फिर सब शास्त्रों, चित्रों आदि को गाड़ी में रख चारों ओर परिक्रमा लगाते हैं। फिर घर में आकर सुला देते हैं। तुम ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय....... बनते। इस चक्र के बदले उन्होंने परिक्रमा दिलाना शुरू किया है। यह भी रस्म है।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, जब कोई को समझाते हो तो पहले यह क्लीयर कर दो कि बाप एक है, पूछना नहीं है कि बाप एक है वा अनेक हैं। ऐसे तो फिर अनेक कह देंगे। कहना ही है बाप रचता गॉड फादर एक है। वह सब आत्माओं का बाप है। पहले-पहले ऐसे भी नहीं कहना चाहिए कि वह बिन्दी है, इसमें फिर मूँझ पड़ेंगे। पहले-पहले तो यह अच्छी रीति समझाओ कि दो बाप हैं - लौकिक और पारलौकिक। लौकिक तो हर एक का होता ही है। उनको कोई खुदा, कोई गॉड कहते हैं। है एक ही। सब एक को ही याद करते हैं। पहले-पहले यह पक्का निश्चय कराओ कि फादर है स्वर्ग की रचना करने वाला। वह यहाँ आयेंगे स्वर्ग का मालिक बनाने, जिसको शिवजयन्ती भी कहते हैं। यह भी तुम बच्चे जानते हो स्वर्ग का रचता भारत में ही स्वर्ग रचते हैं, जिसमें देवी-देवताओं का ही राज्य होता है। तो पहले-पहले बाप का ही परिचय देना है। उनका नाम है शिव। गीता में भगवानुवाच है ना। पहले-पहले तो यह निश्चय कराए लिखा लेना चाहिए। गीता में है भगवानुवाच-मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ अर्थात् नर से नारायण बनाता हूँ। यह कौन बना सकते हैं? जरूर समझाना पड़े। भगवान कौन है फिर यह भी समझाना होता है। सतयुग में पहले नम्बर में जो लक्ष्मी-नारायण हैं, जरूर वही 84 जन्म लेते होंगे। पीछे फिर और-और धर्म वाले आते हैं। उन्हों के इतने जन्म हो न सकें। पहले आने वालों के ही 84 जन्म होते हैं। सतयुग में तो कुछ सीखते नहीं हैं। जरूर संगम पर ही सीखते होंगे। तो पहले-पहले बाप का परिचय देना है। जैसे आत्मा देखने में नहीं आती है, समझ सकते हैं, वैसे परमात्मा को भी देख नहीं सकते। बुद्धि से समझते हैं वह हम आत्माओं का बाप है। उनको कहा जाता है परम आत्मा। वह सदैव पावन है। उनको आकर पतित दुनिया को पावन बनाना होता है। तो पहले बाप एक है, यह सिद्ध कर बताने से गीता का भगवान कृष्ण नहीं है, वह भी सिद्ध हो जायेगा। तुम बच्चों को सिद्ध कर बताना है, एक बाप को ही ट्रुथ कहा जाता है। बाकी कर्मकान्ड वा तीर्थ आदि की बातें सब भक्ति के शास्त्रों में हैं। ज्ञान में तो इनका कोई वर्णन ही नहीं है। यहाँ कोई शास्त्र नहीं। बाप आकर सारा राज़ समझाते हैं। पहले-पहले तुम बच्चे इस बात पर जीत पायेंगे कि भगवान एक निराकार है, न कि साकार। परमपिता परमात्मा शिव भगवानुवाच, ज्ञान का सागर सबका बाप वह है। श्रीकृष्ण तो सबका बाप हो नहीं सकता वह किसी को कह नहीं सकता कि देह के सब धर्म छोड़ मामेकम् याद करो। है बहुत सहज बात। परन्तु मनुष्य शास्त्र आदि पढ़कर, भक्ति में पक्के हो गये हैं। आजकल शास्त्रों आदि को गाड़ी में रख परिक्रमा देते हैं। चित्रों को, ग्रंथ को भी परिक्रमा दिलाते हैं फिर घर ले आकर सुलाते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो हम देवता से क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र बनते हैं, यह चक्र लगाते हैं। चक्र के बदले वह फिर परिक्रमा दिलाकर घर में जाए रखते हैं। उन्हों का एक मुकरर दिन रहता है, जब परिक्रमा दिलाते हैं। तो पहले-पहले यह सिद्ध कर बताना है कि श्रीकृष्ण भगवानुवाच नहीं परन्तु शिव भगवानुवाच है। शिव ही पुनर्जन्म रहित है। वह आते जरूर हैं, परन्तु उनका दिव्य जन्म है। भागीरथ पर आकर सवार होते हैं। पतितों को आकर पावन बनाते हैं। रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं, जो नॉलेज और कोई नहीं जानते हैं। बाप को आपेही आकर अपना परिचय देना है। मुख्य बात है ही बाप के परिचय की। वही गीता का भगवान है, यह तुम सिद्ध कर बतायेंगे तो तुम्हारा नाम बहुत बाला हो जायेगा। तो ऐसा पर्चा बनाकर उसमें चित्र आदि भी लगाकर फिर एरोप्लेन से गिराने चाहिए। बाप मुख्य-मुख्य बातें समझाते रहते हैं। तुम्हारी मुख्य एक बात में जीत हुई तो बस तुमने जीत पाई। इसमें तुम्हारा नाम बहुत बाला हुआ है, इसमें कोई खिटपिट नहीं करेंगे। यह बड़ी क्लीयर बात है। बाप कहते हैं मैं सर्वव्यापी कैसे हो सकता हूँ। मैं तो आकर बच्चों को नॉलेज सुनाता हूँ। पुकारते भी हैं-आकर पावन बनाओ। रचता और रचना का ज्ञान सुनाओ। महिमा भी बाप की अलग, कृष्ण की अलग है। ऐसे नहीं शिवबाबा आकर फिर कृष्ण वा नारायण बनते हैं, 84 जन्मों में आते हैं! नहीं। तुम्हारी बुद्धि सारी यह बातें समझाने में लगी रहनी चाहिए। मुख्य है ही गीता। भगवानुवाच है, तो जरूर भगवान का मुख चाहिए ना। भगवान तो है निराकार। आत्मा मुख बिगर बोले कैसे। तब कहते हैं मैं साधारण तन का आधार लेता हूँ। जो पहले लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, वही 84 जन्म लेते-लेते पिछाड़ी में आते हैं तो फिर उनके ही तन में आते हैं। कृष्ण के बहुत जन्मों के अन्त में आते हैं। ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन करो कि कैसे किसको समझायें। एक ही बात से तुम्हारा नाम बाला हो जायेगा। रचता बाप का सबको मालूम पड़ जायेगा। फिर तुम्हारे पास बहुत आयेंगे। तुमको बुलायेंगे कि यहाँ आकर भाषण करो इसलिए पहले-पहले अल्फ सिद्ध कर समझाओ। तुम बच्चे जानते हो-बाबा से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। बाबा हर 5 हज़ार वर्ष बाद भारत में ही भाग्यशाली रथ पर आते हैं। यह है सौभाग्यशाली, जिस रथ में भगवान आकर बैठते हैं। कोई कम है क्या। भगवान इनमें बैठ बच्चों को समझाते हैं कि मैं बहुत जन्मों के अन्त में इसमें प्रवेश करता हूँ। श्रीकृष्ण की आत्मा का रथ है ना। वह खुद कृष्ण तो नहीं है। बहुत जन्मों के अन्त का है। हर जन्म में फीचर्स आक्यूपेशन आदि बदलता रहता है। बहुत जन्मों के अन्त में जिसमें प्रवेश करता हूँ वह फिर कृष्ण बनते हैं। आते हैं संगमयुग में। हम भी बाप का बनकर बाप से वर्सा लेते हैं। बाप पढ़ाकर साथ ले जाते हैं और कोई तकलीफ की बात नहीं। बाप सिर्फ कहते हैं मामेकम् याद करो, तो यह अच्छी रीति विचार करना चाहिए कि कैसे-कैसे लिखें। यही मुख्य मिस्टेक है जिस कारण ही भारत अनराइटियस इरिलीजस, इनसालवेन्ट बना है। बाप फिर आकर राजयोग सिखलाते हैं। भारत को राइटियस, सालवेन्ट बनाते हैं। सारी दुनिया को राइटियस बनाते हैं। उस समय सारे विश्व के मालिक तुम ही हो। कहते हैं ना-विश यू लाँग लाइफ एण्ड प्रासपर्टी। बाबा आशीर्वाद नहीं देते हैं कि सदा जीते रहो। यह साधू लोग कहते हैं-अमर रहो। तुम बच्चे समझते हो अमर तो जरूर अमरपुरी में होंगे। मृत्युलोक में फिर अमर कैसे कहेंगे। तो बच्चे जब मीटिंग आदि करते हैं तो बाप से राय पूछते हैं। बाबा एडवांस राय देते हैं सब अपनी-अपनी राय लिख भेजें फिर भल इकट्ठे भी हों। राय तो मुरली में लिखने से सबके पास पहुँच सकती है। 2-3 हज़ार खर्चा बच जाए। इन 2- 3 हज़ार से तो 2-3 सेन्टर खोल सकते हैं। गाँव-गाँव में जाना चाहिए, चित्र आदि लेकर।

तुम बच्चों का जास्ती इन्ट्रेस्ट सूक्ष्मवतन की बातों में नहीं होना चाहिए। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि चित्र हैं तो इस पर थोड़ा समझाया जाता है। इन्हों का बीच में थोड़ा पार्ट है। तुम जाते हो, मिलते हो बाकी और कुछ है नहीं। इसलिए इसमें जास्ती इन्ट्रेस्ट नहीं लिया जाता है। यहाँ आत्मा को बुलाया जाता है, उनको दिखाते हैं। कोई-कोई आकर रोते भी हैं। कोई प्रेम से मिलते हैं। कोई दु:ख के आंसू बहाते हैं। यह सब ड्रामा में पार्ट है, जिसको चिटचैट कही जाए। वो लोग तो ब्राह्मण में कोई की आत्मा को बुलाते हैं फिर उनको कपड़ा आदि पहनायेंगे। अब शरीर तो वह खत्म हो गया, बाकी पहनेंगे कौन? तुम्हारे पास वह रस्म नहीं है। रोने आदि की तो बात ही नहीं। तो ऊंच ते ऊंच बनना है, वह कैसे बनें। जरूर बीच में संगमयुग है जब पवित्र बनते हैं। तुम एक बात सिद्ध करेंगे तो कहेंगे यह तो बिल्कुल ठीक बताते हैं। भगवान कभी झूठ थोड़ेही बता सकते हैं। फिर बहुतों का प्यार भी होगा, बहुत आयेंगे। समय पर बच्चों को सब प्वाइंट्स भी मिलती रहती हैं। पिछाड़ी में क्या-क्या होना है, वह भी देखेंगे, लड़ाई लगेगी, बॉम्बस छूटेंगे। पहले मौत है उस तरफ। यहाँ तो रक्त की नदियां बहनी हैं फिर घी-दूध की नदी। पहले-पहले धुआं विलायत से निकलेगा। डर भी वहाँ है। कितने बड़े-बड़े बॉम्बस बनाते हैं। क्या-क्या उसमें डालते हैं, जो एकदम शहर को खलास कर देते हैं। यह भी बताना है, किसने स्वर्ग की राजाई स्थापन की। हेविनली गॉड फादर जरूर संगम पर ही आते हैं। तुम जानते हो अभी संगम है। तुमको मुख्य बात समझाई जाती है बाप के याद की, जिससे ही पाप कटेंगे। भगवान जब आया था तो कहा था मामेकम् याद करो तो तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। मुक्तिधाम में जायेंगे। फिर पहले से लेकर चक्र रिपीट होगा। डिटीज्म, इस्लामीज्म, बुद्धिज्म...... तुम स्टूडेन्ट की बुद्धि में यह सारी नॉलेज होनी चाहिए ना। खुशी रहती है, हम कितनी कमाई करते हैं, यह अमरकथा अमर बाबा तुमको सुनाते हैं। तुम्हारे अनेक नाम रख दिये हैं। मुख्य पहले-पहले डिटीज्म फिर सबकी वृद्धि होते-होते झाड़ बढ़ता जाता है। अनेकानेक धर्म, अनेक मतें हो जाती हैं। यह एक धर्म एक श्रीमत से स्थापन होता है। द्वेत की बात नहीं। यह रूहानी नॉलेज रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। तुम बच्चों को खुशी में भी रहना चाहिए।

तुम जानते हो बाप हमको पढ़ाते हैं, तुम अनुभव से कहते हो तो यह शुद्ध अहंकार रहना चाहिए कि भगवान हमको पढ़ा रहे हैं और क्या चाहिए! जबकि हम विश्व के मालिक बनते हैं तो खुशी क्यों नहीं रहती या निश्चय में कहाँ संशय है। बाप में संशय नहीं लाना चाहिए। माया संशय में लाकर भुला देती है। बाबा ने समझाया है माया आंखों द्वारा बहुत धोखा देती है। अच्छी चीज़ देखेंगे तो दिल बित-बित करेगी खायें, आंखों से देखते हैं तब क्रोध आता है मारने लिए। देखें ही नहीं तो मारे कैसे। आंखों से देखते हैं तब लोभ, मोह भी होता है। मुख्य धोखा देने वाली आंखे हैं। इन पर पूरी नज़र रखनी चाहिए। आत्मा को ज्ञान मिलता है, तो फिर क्रिमिनलपना छूट जाता है। ऐसे भी नहीं है आंखों को निकाल देना है। तुम्हें तो क्रिमिनल आई को सिविलआई बनाना है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा इसी नशे वा खुशी में रहना है कि हमको भगवान पढ़ाते हैं। किसी भी बात में संशयबुद्धि नहीं होना है। शुद्ध अहंकार रखना है।
2) सूक्ष्मवतन की बातों में ज्यादा इन्ट्रेस्ट नहीं रखना है। आत्मा को सतोप्रधान बनाने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है। आपस में राय कर सबको बाप की सही पहचान देनी है।
वरदान:
सदाकाल के अटेन्शन द्वारा विजय माला में पिरोने वाले बहुत समय के विजयी भव!   
बहुत समय के विजयी, विजय माला के मणके बनते हैं। विजयी बनने के लिए सदा बाप को सामने रखो-जो बाप ने किया वही हमें करना है। हर कदम पर जो बाप का संकल्प वही बच्चों का संकल्प, जो बाप के बोल वही बच्चों के बोल-तब विजयी बनेंगे। यह अटेन्शन सदाकाल का चाहिए तब सदाकाल का राज्य-भाग्य प्राप्त होगा क्योंकि जैसा पुरूषार्थ वैसी प्रालब्ध है। सदा का पुरूषार्थ है तो सदा का राज्य-भाग्य है।
स्लोगन:
सेवा में सदा जी हाज़िर करना-यही प्यार का सच्चा सबूत है।