Sunday, July 5, 2015

मुरली 06 जुलाई 2015

“मीठे बच्चे - तुम्हारी बुद्धि में अभी सारे ज्ञान का सार है, इसलिए तुम्हें चित्रों की भी दरकार नहीं, तुम बाप को याद करो और दूसरों को कराओ”

प्रश्न:

पिछाड़ी के समय तुम बच्चों की बुद्धि में कौन-सा ज्ञान रहेगा?

उत्तर:

उस समय बुद्धि में यही रहेगा कि अभी हम जाते हैं वापिस घर। फिर वहाँ से चक्र में आयेंगे। धीरे- धीरे सीढ़ी उतरेंगे फिर बाप आयेंगे चढ़ती कला में ले जाने। अभी तुम जानते हो पहले हम सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी बनें...... इसमें चित्रों की दरकार नहीं।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) अपना टाइम सफल करने का अटेन्शन रखना है। माया गफ़लत न करा सके-इसके लिए महादानी बन बहुतों को रास्ता बताने में बिजी रहना है।

2) अपनी ऊंची तकदीर बनाने के लिए धनी के नाम पर सब कुछ सफल करना है। रूहानी युनिवर्सिटी खोलनी है।

वरदान:

त्रिकालदर्शी और साक्षी दृष्टा बन हर कर्म करते बन्धनमुक्त स्थिति के अनुभव द्वारा दृष्टान्त रूप भव

यदि त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थिति हो, कर्म के आदि मध्य अन्त को जानकर कर्म करते हो तो कोई भी कर्म विकर्म नहीं हो सकता है, सदा सुकर्म होगा। ऐसे ही साक्षी दृष्टा बन कर्म करने से कोई भी कर्म के बन्धन में कर्म बन्धनी आत्मा नहीं बनेंगे। कर्म का फल श्रेष्ठ होने के कारण कर्म सम्बन्ध में आयेंगे, बन्धन में नहीं। कर्म करते न्यारे और प्यारे रहेंगे तो अनेक आत्माओं के सामने दृष्टान्त रूप अर्थात् एक्जैम्पल बन जायेंगे।

स्लोगन:

जो मन से सदा सन्तुष्ट है वही डबल लाइट है।

ओम् शांति ।

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06.07.15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम्हारी बुद्धि में अभी सारे ज्ञान का सार है, इसलिए तुम्हें चित्रों की भी दरकार नहीं, तुम बाप को याद करो और दूसरों को कराओ”  
प्रश्न:
पिछाड़ी के समय तुम बच्चों की बुद्धि में कौन-सा ज्ञान रहेगा?
उत्तर:
उस समय बुद्धि में यही रहेगा कि अभी हम जाते हैं वापिस घर। फिर वहाँ से चक्र में आयेंगे। धीरे- धीरे सीढ़ी उतरेंगे फिर बाप आयेंगे चढ़ती कला में ले जाने। अभी तुम जानते हो पहले हम सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी बनें...... इसमें चित्रों की दरकार नहीं।
ओम् शान्ति।
बच्चे आत्म-अभिमानी होकर बैठे हो? 84 का चक्र बुद्धि में है अर्थात् अपने वैराइटी जन्मों का ज्ञान है। विराट रूप का भी चित्र है ना। इसका ज्ञान भी बच्चों में है कि कैसे हम 84 जन्म लेते हैं। मूलवतन से पहले-पहले देवी- देवता धर्म में आते हैं। यह ज्ञान बुद्धि में है, इसमें चित्र की कोई दरकार नहीं। हमको कोई चित्र आदि याद नहीं करना है। अन्त में याद सिर्फ यह रहेगा कि हम आत्मा हैं, मूलवतन की रहने वाली हैं, यहाँ हमारा पार्ट है। यह भूलना नहीं चाहिए। यह मनुष्य सृष्टि के चक्र की ही बातें हैं और बहुत सिम्पुल हैं। इसमें चित्रों की बिल्कुल दरकार नहीं क्योंकि यह चित्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग की चीज़ें। ज्ञान मार्ग में तो है पढ़ाई। पढ़ाई में चित्रों की दरकार नहीं। इन चित्रों को सिर्फ करेक्ट किया गया है। जैसे वह कहते हैं गीता का भगवान कृष्ण है, हम कहते हैं शिव है। यह भी बुद्धि से समझने की बात है। बुद्धि में यह नॉलेज रहती है, हमने 84 का चक्र लगाया है। अब हमको पवित्र बनना है। पवित्र बन फिर नये सिर चक्र लगायेंगे। यह है सार जो बुद्धि में रखना है। जैसे बाप की बुद्धि में है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी वा 84 जन्मों का चक्र कैसे फिरता है, वैसे तुम्हारी बुद्धि में है पहले हम सूर्यवंशी फिर चन्द्रवंशी बनते हैं। चित्रों की दरकार है नहीं। सिर्फ मनुष्यों को समझाने के लिए यह बनाये हैं। ज्ञान मार्ग में तो सिर्फ बाप कहते हैं-मनमनाभव। जैसे यह चतुर्भुज का चित्र है, रावण का चित्र है, यह सब समझाने के लिए दिखलाने पड़ते हैं। तुम्हारी बुद्धि में तो यथार्थ ज्ञान है। तुम बिना चित्र के भी समझा सकते हो। तुम्हारी बुद्धि में 84 का चक्र है। चित्रों द्वारा सिर्फ सहज करके समझाया जाता है, इनकी दरकार नहीं है। बुद्धि में है पहले हम सूर्यवंशी घराने के थे फिर चन्द्रवंशी घराने के बने। वहाँ बहुत सुख है, जिसको स्वर्ग कहा जाता है, यह चित्रों पर समझाते हैं। पिछाड़ी में तो बुद्धि में यह ज्ञान रहेगा। अभी हम जाते हैं, वापिस चक्र लगायेंगे। सीढ़ी पर समझाया जाता है, तो मनुष्यों को सहज हो जाए। तुम्हारी बुद्धि में यह भी सारा ज्ञान है कि कैसे हम सीढ़ी उतरते हैं। फिर बाप चढ़ती कला में ले जाते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको इन चित्रों का सार समझाता हूँ। जैसे गोला है तो उस पर समझा सकते हैं - यह 5 हज़ार वर्ष का चक्र है। अगर लाखों वर्ष होते तो संख्या कितनी बढ़ जाती। क्रिश्चियन का दिखाते हैं 2 हज़ार वर्ष। इसमें कितने मनुष्य होते हैं। 5 हज़ार वर्ष में कितने मनुष्य होते हैं। यह सारा हिसाब तुम बतलाते हो। सतयुग में पवित्र होने कारण थोड़े मनुष्य होते हैं। अभी तो कितने ढेर हैं। लाखों वर्ष की आयु होती तो संख्या भी अनगिनत हो जाए। क्रिश्चियन की भेंट में आदमशुमारी का हिसाब तो निकालते हैं ना। हिन्दुओं की आदमशुमारी कम दिखाते हैं। क्रिश्चियन बहुत बन गये हैं। जो अच्छे समझदार बच्चे हैं, बिगर चित्रों के भी समझा सकते हैं। विचार करो इस समय कितने ढेर मनुष्य हैं। नई दुनिया में कितने थोड़े मनुष्य होंगे। अभी तो पुरानी दुनिया है, जिसमें इतने मनुष्य हैं। फिर नई दुनिया कैसे स्थापन होती है। कौन स्थापन करते हैं, यह बाप ही समझाते हैं। वही ज्ञान का सागर है। तुम बच्चों को सिर्फ यह 84 का चक्र ही बुद्धि में रखना है। अभी हम नर्क से स्वर्ग में जाते हैं, तो अन्दर खुशी होगी ना। सतयुग में दु:ख की कोई बात होती नहीं। ऐसी कोई अप्राप्त वस्तु नहीं जिसकी प्राप्ति के लिए पुरूषार्थ करें। यहाँ पुरूषार्थ करना पड़ता है। यह मशीन चाहिए, यह चाहिए. . . . . . . . वहाँ तो सब सुख मौजूद हैं। जैसे कोई महाराजा होता है तो उनके पास सब सुख मौजूद रहते हैं। गरीब के पास तो सब सुख मौजूद नहीं होते। परन्तु यह तो है कलियुग, तो बीमारियाँ आदि सब कुछ हैं। अभी तुम पुरूषार्थ करते हो नई दुनिया में जाने के लिए। स्वर्ग- नर्क यहाँ ही होता है।

यह सूक्ष्मवतन की जो रमत-गमत है, यह भी टाइम पास करने के लिए है। जब तक कर्मातीत अवस्था हो टाइम पास करने के लिए यह खेलपाल हैं। कर्मातीत अवस्था आ जायेगी, बस। तुमको यही याद रहेगा कि हम आत्मा ने अब 84 जन्म पूरे किये, अब हम जाते हैं घर। फिर आकर सतोप्रधान दुनिया में सतोप्रधान पार्ट बजायेंगे। यह ज्ञान बुद्धि में लिया हुआ है, इसमें चित्रों आदि की दरकार नहीं। जैसे बैरिस्टर कितना पढ़ते हैं, बैरिस्टर बन गये, बस जो पाठ पढ़े वह खलास। रिजल्ट निकली प्रालब्ध की। तुम भी पढ़कर फिर जाए राजाई करेंगे। वहाँ नॉलेज की दरकार नहीं। इन चित्रों में भी रांग-राइट क्या है, यह अभी तुम्हारी बुद्धि में हैं। बाप बैठ समझाते हैं, लक्ष्मी-नारायण कौन हैं? यह विष्णु क्या है? विष्णु के चित्र में मनुष्य मूँझ जाते हैं। बिगर समझ के पूजा भी जैसे फालतू हो जाती है, समझते कुछ भी नहीं। जैसे विष्णु को नहीं समझते हैं, लक्ष्मी-नारायण को भी नहीं समझते। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी नहीं समझते। ब्रह्मा तो यहाँ है, यह पवित्र बन शरीर छोड़ चले जायेंगे। इस पुरानी दुनिया से वैराग्य है। यहाँ का कर्मबन्धन दु:ख देने वाला है। अब बाप कहते हैं अपने घर चलो। वहाँ दु:ख का नाम-निशान नहीं होगा। पहले तुम अपने घर में थे फिर राजधानी में आये, अब बाप फिर आये हैं पावन बनाने। इस समय मनुष्यों का खान-पान आदि कितना गन्दा है। क्या-क्या चीजें खाते रहते हैं। वहाँ देवतायें ऐसी गन्दी चीजें थोड़ेही खाते हैं। भक्ति मार्ग देखो कैसा है, मनुष्य की भी बलि चढ़ती है। बाप कहते हैं-यह भी ड्रामा बना हुआ है। पुरानी दुनिया से फिर नई जरूर बननी है। अभी तुम जानते हो-हम सतोप्रधान बन रहे हैं। यह तो बुद्धि समझती है ना, इसमें तो चित्र न हो तो और ही अच्छा। नहीं तो मनुष्य बहुत ही प्रश्न पूछते हैं। बाप ने 84 जन्मों का चक्र समझाया है। हम ऐसे सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, वैश्य वंशी बनते हैं, इतने जन्म लेते हैं। यह बुद्धि में रखना होता है। तुम बच्चे सूक्ष्मवतन का राज भी समझते हो, ध्यान में सूक्ष्मवतन में जाते हो, परन्तु इसमें न योग है, न ज्ञान है। यह सिर्फ एक रस्म है। समझाया जाता है कैसे आत्मा को बुलाया जाता है फिर जब आती है तो रोते हैं, पश्चाताप् होता है, हमने बाबा का कहना नहीं माना। यह सब हैं बच्चों को समझाने के लिए कि पुरूषार्थ में लग पड़ें, गफ़लत न करें। बच्चे सदा यह अटेन्शन रखें कि हमें अपना टाइम सफल करना है, वेस्ट नहीं करना है तो माया गफ़लत नहीं करा सकती है। बाबा भी समझाते रहते हैं - बच्चे टाइम वेस्ट न करो। बहुतों को रास्ता बताने का पुरूषार्थ करो। महादानी बनो। बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। जो भी आते हैं उनको यह समझाओ और 84 का चक्र बताओ। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है, नटशेल में सारा चक्र बुद्धि में रहना चाहिए।

तुम बच्चों को खुशी रहनी चाहिए कि अभी हम इस गन्दी दुनिया से छूटते हैं। मनुष्य समझते हैं स्वर्ग-नर्क यहाँ ही है। जिनको बहुत धन है तो समझते हैं हम स्वर्ग में हैं। अच्छे कर्म किये हैं इसलिए सुख मिला है। अभी तुम बहुत अच्छे कर्म करते हो जो 21 जन्म के लिए तुम सुख पाते हो। वह तो एक जन्म लिए समझते हैं कि हम स्वर्ग में हैं। बाप कहते हैं वह है अल्पकाल का सुख, तुम्हारा है 21 जन्मों का। जिसके लिए बाप कहते हैं सभी को रास्ता बताते जाओ। बाप की याद से ही निरोगी बनेंगे और स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। स्वर्ग में है राजाई। उनको भी याद करो। राजाई थी, अभी नहीं है। भारत की ही बात है। बाकी तो है बाईप्लाट्स। पिछाड़ी में सब चले जायेंगे फिर हम आयेंगे नई दुनिया में। अब इस समझाने में चित्रों की दरकार थोड़ेही है। यह सिर्फ समझाने के लिए मूलवतन, सूक्ष्मवतन दिखाते हैं। समझाया जाता है बाकी यह तो भक्ति मार्ग वालों ने चित्र आदि बनाये हैं। तो हमको भी फिर करेक्ट कर बनाने पड़ते हैं। नहीं तो कहेंगे तुम तो नास्तिक हो इसलिए करेक्ट कर बनाये हैं। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश...... वास्तव में यह भी ड्रामा में नूँध है। कोई कुछ करता थोड़ेही है। साइंसदान भी अपनी बुद्धि से यह सब बनाते हैं। भल कितना भी कोई कहे कि बाम्बस न बनाओ परन्तु जिनके पास ढेर हैं वह समुद्र में डालें तो फिर दूसरा कोई न बनाये। वह रखे हैं तो जरूर और भी बनायेंगे। अभी तुम बच्चे जानते हो सृष्टि का विनाश तो जरूर होना ही है। लड़ाई भी जरूर लगनी है। विनाश होता है, फिर तुम अपना राज्य लेते हो। अब बाप कहते हैं - बच्चे, सबका कल्याणकारी बनो।

बच्चों को अपनी ऊंच तकदीर बनाने के लिए बाप श्रीमत देते हैं-मीठे बच्चे, अपना सब कुछ धनी के नाम पर सफल कर लो। किनकी दबी रहेगी धूल में, किनकी राजा खाए......। धनी (बाप) खुद कहते हैं - बच्चे, इसमें खर्च करो, यह रूहानी हॉस्पिटल, युनिवर्सिटी खोलो तो बहुतों का कल्याण हो जायेगा। धनी के नाम तुम खर्चते हो जिसका फिर 21 जन्म के लिए तुमको रिटर्न में मिलता है। यह दुनिया ही खत्म होनी है इसलिए धनी के नाम जितना हो सके सफल करो। धनी शिवबाबा है ना। भक्ति मार्ग में भी धनी के नाम करते थे। अभी तो है डायरेक्ट। धनी के नाम बड़ी-बड़ी युनिवर्सिटी खोलते जाओ तो बहुतों का कल्याण हो जायेगा। 21 जन्म लिए राज्य-भाग्य पा लेंगे। नहीं तो यह धन-दौलत आदि सब खत्म हो जायेंगे। भक्ति मार्ग में खत्म नहीं होते हैं। अभी तो खत्म होना है। तुम खर्चो, फिर तुमको ही रिटर्न मिलेगा। धनी के नाम पर सबका कल्याण करो तो 21 जन्मों का वर्सा मिलेगा। कितना अच्छा समझाते हैं फिर जिनकी तकदीर में है वह खर्च करते रहते हैं। अपना घरबार भी सम्भालना है। इनका (बाबा का) पार्ट ही ऐसा था। एकदम ज़ोर से नशा चढ़ गया। बाबा बादशाही देते हैं फिर गदाई क्या करेंगे। तुम सब बादशाही लेने लिए बैठे हो तो फालो करो ना। जानते हो इसने कैसे सब छोड़ दिया। नशा चढ़ गया, ओहो! राजाई मिलती है, अल्फ को अल्लाह मिला तो बे (भागीदार) को भी राजाई दे दी। राजाई थी, कम नहीं था। अच्छा फरटाइल धन्धा था। अब तुमको यह राजाई मिल रही है, तो बहुतों का कल्याण करो। पहले भट्ठी बनी फिर कोई पक कर तैयार हुए, कोई कच्चे रह गये। गवर्मेन्ट नोट बनाती है फिर ठीक नहीं बनते हैं तो गवर्मेन्ट को जला देने पड़ते हैं। आगे तो चांदी के रूपये चलते थे। सोना और चांदी बहुत था। अभी तो क्या हो रहा है। कोई की राजा खा जाते, कोई की डाकू खा जाते, डाके भी देखो कितने लगते हैं। फैमन भी होगा। यह है ही रावण राज्य। राम राज्य सतयुग को कहा जाता है। बाप कहते हैं तुमको इतना ऊंच बनाया फिर कंगाल कैसे बनें! अब तुम बच्चों को इतनी नॉलेज मिली है तो खुशी होनी चाहिए। दिन-प्रतिदिन खुशी बढ़ती जायेगी। जितना यात्रा पर नजदीक होंगे उतनी खुशी होगी। तुम जानते हो शान्तिधाम-सुखधाम सामने खड़ा है। वैकुण्ठ के झाड़ दिखाई पड़ रहे हैं। बस, अब पहुँचे कि पहुँचे। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपना टाइम सफल करने का अटेन्शन रखना है। माया गफ़लत न करा सके-इसके लिए महादानी बन बहुतों को रास्ता बताने में बिजी रहना है।
2) अपनी ऊंची तकदीर बनाने के लिए धनी के नाम पर सब कुछ सफल करना है। रूहानी युनिवर्सिटी खोलनी है।
वरदान:
त्रिकालदर्शी और साक्षी दृष्टा बन हर कर्म करते बन्धनमुक्त स्थिति के अनुभव द्वारा दृष्टान्त रूप भव  
यदि त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थिति हो, कर्म के आदि मध्य अन्त को जानकर कर्म करते हो तो कोई भी कर्म विकर्म नहीं हो सकता है, सदा सुकर्म होगा। ऐसे ही साक्षी दृष्टा बन कर्म करने से कोई भी कर्म के बन्धन में कर्म बन्धनी आत्मा नहीं बनेंगे। कर्म का फल श्रेष्ठ होने के कारण कर्म सम्बन्ध में आयेंगे, बन्धन में नहीं। कर्म करते न्यारे और प्यारे रहेंगे तो अनेक आत्माओं के सामने दृष्टान्त रूप अर्थात् एक्जैम्पल बन जायेंगे।
स्लोगन:
जो मन से सदा सन्तुष्ट है वही डबल लाइट है।