Thursday, March 26, 2015

मुरली 27 मार्च 2015

“मीठे बच्चे - इस समय तुम्हारी यह जीवन बहुत-बहुत अमूल्य है क्योंकि तुम हद से निकल बेहद में आये हो, तुम जानते हो हम इस जगत का कल्याण करने वाले हैं” प्रश्न:- बाप के वर्से का अधिकार किस पुरूषार्थ से प्राप्त होता है? उत्तर:- सदा भाई-भाई की दृष्टि रहे। स्त्री-पुरूष का जो भान है वह निकल जाए, तब बाप के वर्से का पूरा अधिकार प्राप्त हो। परन्तु स्त्री-पुरूष का भान वा यह दृष्टि निकलना बड़ा मुश्किल है। इसके लिए देही- अभिमानी बनने का अभ्यास चाहिए। जब बाप के बच्चे बनेंगे तब वर्सा मिलेगा। एक बाप की याद से सतोप्रधान बनने वाले ही मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा पाते हैं। गीत:- आखिर वह दिन आया आज...... धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) पावन बनने के लिए हम आत्मा भाई-भाई हैं, फिर ब्रह्मा बाप की सन्तान भाई-बहन हैं, यह दृष्टि पक्की करनी है। आत्मा और शरीर दोनों को ही पावन सतोप्रधान बनाना है। देह-अभिमान छोड़ देना है। 2) मास्टर नॉलेजफुल बन सभी को रचता और रचना का ज्ञान सुनाकर घोर अन्धियारे से निकालना है। नर्कवासी मनुष्यों की रूहानी सेवा कर स्वर्गवासी बनाना है। वरदान:- “एक बाप दूसरा न कोई” इस स्मृति से बंधनमुक्त, योगयुक्त भव! अब घर जाने का समय है इसलिए बंधनमुक्त और योगयुक्त बनो। बंधनमुक्त अर्थात् लूज ड्रेस, टाइट नहीं। आर्डर मिला और सेकण्ड में गया। ऐसे बंधनमुक्त, योगयुक्त स्थिति का वरदान प्राप्त करने के लिए सदा यह वायदा स्मृति में रहे कि "एक बाप दूसरा न कोई।'' क्योंकि घर जाने के लिए वा सतयुगी राज्य में आने के लिए इस पुराने शरीर को छोड़ना पड़ेगा। तो चेक करो ऐसे एवररेडी बने हैं या अभी तक कुछ रस्सियां बंधी हुई है? यह पुराना चोला टाइट तो नहीं है? स्लोगन:- व्यर्थ संकल्प रूपी एकस्ट्रा भोजन नहीं करो तो मोटेपन की बीमारियों से बच जायेंगे। ओम् शांति ।