Tuesday, March 17, 2015

मुरली 18 मार्च 2015

“मीठे बच्चे - रूहानी सर्विस कर अपना और दूसरों का कल्याण करो, बाप से सच्ची दिल रखो तो बाप की दिल पर चढ़ जायेंगे” प्रश्न:- देही-अभिमानी बनने की मेहनत कौन कर सकते हैं? देही-अभिमानी की निशानियाँ सुनाओ? उत्तर:- जिनका पढ़ाई से और बाप से अटूट प्यार है वह देही-अभिमानी बनने की मेहनत कर सकते हैं। वह शीतल होंगे, किसी से भी अधिक बात नहीं करेंगे, उनका बाप से लव होगा, चलन बड़ी रॉयल होगी। उन्हें नशा रहता कि हमें भगवान पढ़ाते हैं, हम उनके बच्चे हैं। वह सुखदाई होंगे। हर कदम श्रीमत पर उठायेंगे। धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) पिता स्नेही बनने के लिए बहुत-बहुत सुखदाई बनना है। अपना बोल चाल बहुत मीठा रॉयल रखना है। सर्विसएबुल बनना है। निरहंकारी बन सेवा करनी है। 2) पढ़ाई और बाप को छोड़कर कभी आपघाती महापापी नहीं बनना है। मुख्य है रूहानी सर्विस, इस सर्विस में कभी थकना नहीं है। ज्ञान रत्नों का दान करना है, मनहूस नहीं बनना है। वरदान:- निमित्तपन की स्मृति से माया का गेट बन्द करने वाले डबल लाइट भव! जो सदा स्वयं को निमित्त समझकर चलते हैं उन्हें डबल लाइट स्थिति का स्वत:अनुभव होता है। करनकरावनहार करा रहे हैं, मैं निमित्त हूँ-इसी स्मृति से सफलता होती है। मैं पन आया अर्थात् माया का गेट खुला, निमित्त समझा अर्थात् माया का गेट बन्द हुआ। तो निमित्त समझने से मायाजीत भी बन जाते और डबल लाइट भी बन जाते। साथ-साथ सफलता भी अवश्य मिलती है। यही स्मृति नम्बरवन लेने का आधार बन जाती है। स्लोगन:- त्रिकालदर्शी बनकर हर कर्म करो तो सफलता सहज मिलती रहेगी। ओम् शांति ।