Wednesday, March 11, 2015
मुरली 12 मार्च 2015
“मीठे बच्चे - जिन्होंने शुरू से भक्ति की है, 84 जन्म लिए हैं, वह तुम्हारे ज्ञान को बड़ी रूचि से सुनेंगे, इशारे से समझ जायेंगे”
प्रश्न:-
देवी-देवता घराने के नजदीक वाली आत्मा है या दूर वाली, उसकी परख क्या होगी?
उत्तर:-
जो तुम्हारे देवता घराने की आत्मायें होंगी, उन्हें ज्ञान की सब बातें सुनते ही जंच जायेंगी, वह मुन्झेंगे नहीं। जितना बहुत भक्ति की होगी उतना जास्ती सुनने की कोशिश करेंगे। तो बच्चों को नब्ज देखकर सेवा करनी चाहिए।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझ माया के बंधनों से मुक्त होना है। स्वयं को अकालमूर्त आत्मा समझ बाप को याद कर पावन बनना है।
2) सच्चा-सच्चा पैगम्बर और मैसेन्जर बन सबको शान्तिधाम, सुखधाम का रास्ता बताना है। इस कल्याणकारी संगमयुग पर सभी आत्माओं का कल्याण करना है।
वरदान:-
माया के बन्धनों से सदा निर्बन्धन रहने वाले योगयुक्त, बन्धनमुक्त भव !
बन्धनमुक्त की निशानी है सदा योगयुक्त। योगयुक्त बच्चे जिम्मेवारियों के बंधन वा माया के बन्धन से मुक्त होंगे। मन का भी बन्धन न हो। लौकिक जिम्मेवारी तो खेल हैं, इसलिए डायरेक्शन प्रमाण खेल की रीति से हंसकर खेलो तो कभी छोटी-छोटी बातों में थकेंगे नहीं। अगर बंधन समझते हो तो तंग होते हो। क्या, क्यों का प्रश्न उठता है। लेकिन जिम्मेवार बाप है आप निमित्त हो। इस स्मृति से बन्धनमुक्त बनो तो योगयुक्त बन जायेंगे।
स्लोगन:-
करनकरावनहार की स्मृति से भान और अभिमान को समाप्त करो।
ओम् शांति ।