Monday, March 9, 2015

मुरली 10 मार्च 2015

“मीठे बच्चे - प्रीत् और विपरीत यह प्रवृति मार्ग के अक्षर हैं, अभी तुम्हारी प्रीत् एक बाप से हुई है, तुम बच्चे निरन्तर बाप की याद में रहते हो” प्रश्न:- याद की यात्रा को दूसरा कौन-सा नाम देंगे? उत्तर:- याद की यात्रा प्रीत की यात्रा है। विपरीत बुद्धि वाले से नाम-रूप में फँसने की बदबू आती है। उनकी बुद्धि तमोप्रधान हो जाती है। जिनकी प्रीत एक बाप से है वह ज्ञान का दान करते रहेंगे। किसी भी देहधारी से उनकी प्रीत नहीं हो सकती। गीत:- यह वक्त जा रहा है.......... धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) एक विदेही विचित्र बाप से दिल की सच्ची प्रीत रखनी है। सदा ध्यान रहे-माया की ग्रहचारी कभी बुद्धि पर वार न कर दे। 2) कभी भी बाप से रूठना नहीं है। सार्विसएबुल बन अपना भविष्य ऊंच बनाना है। किसी की दी हुई चीज अपने पास नहीं रखनी है। वरदान:- मास्टर ज्ञान सागर बन ज्ञान की गहराई में जाने वाले अनुभव रूपी रत्नों से सम्पन्न भव ! जो बच्चे ज्ञान की गहराई में जाते हैं वे अनुभव रूपी रत्नों से सम्पन्न बनते हैं। एक है ज्ञान सुनना और सुनाना, दूसरा है अनुभवी मूर्त बनना। अनुभवी सदा अविनाशी और निर्विघ्न रहते हैं। उन्हें कोई भी हिला नहीं सकता। अनुभवी के आगे माया की कोई भी कोशिश सफल नहीं होती। अनुभवी कभी धोखा नहीं खा सकते इसलिए अनुभवों को बढ़ाते हुए हर गुण के अनुभवी मूर्त बनो। मनन शक्ति द्वारा शुद्ध संकल्पों का स्टॉक जमा करो। स्लोगन:- फरिश्ता वह है जो देह के सूक्ष्म अभिमान के सम्बन्ध से भी न्यारा है। ओम् शांति