Wednesday, March 4, 2015

मुरली 05 मार्च 2015

“मीठे बच्चे - तुमने बाप का हाथ पकड़ा है, तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते भी बाप को याद करते-करते तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे”   
प्रश्न:- तुम बच्चों के अन्दर में कौन सा उल्लास रहना चाहिए? तख्तनशीन बनने की विधि क्या है?
उत्तर:- सदा उल्लास रहे कि ज्ञान सागर बाप हमें रोज ज्ञान रत्नों की थालियां भर- भर कर देते हैं । जितना योग में रहेंगे उतना बुद्धि कंचन होती जायेगी । यह अविनाशी ज्ञान रत्न ही साथ में जाते हैं । तख्तनशीन बनना है तो मात-पिता को पूरा-पूरा फालो करो । उनकी श्रीमत अनुसार चलो, औरों को भी आप समान बनाओ ।
अच्छा ।
मीठे-मीठे सिकीलधे सर्विसएबुल, वफादार, फरमानबरदार बच्चों को मात- पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. जो देह रहित विचित्र हैं, उस बाप से मुहब्बत रखनी हैं । किसी देहधारी के नाम-रूप में बुद्धि नहीं फँसानी हैं । माया का थपड न लगे, यह सम्भाल करनी हैं ।
2. जो ज्ञान की बातों के सिवाए दूसरा कुछ भी सुनाए उसका संग नहीं करना हैं । फुल पास होने का पुरूषार्थ करना हैं । कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी हैं ।
वरदान:- स्वमान द्वारा अभिमान को समाप्त करने वाले सदा निर्मान भव !   
जो बच्चे स्वमान में रहते हैं उन्हें कभी भी अभिमान नहीं आ सकता, वे सदा निर्माण होते हैं । जितना बड़ा स्वमान उतना ही हाँ जी में निर्माण । छोटे बड़े, ज्ञानी- अज्ञानी, मायाजीत या मायावश, गुणवान हो या कोई एक दो अवगुणवान भी हो अर्थात् गुणवान बनने का पुरूषार्थी हो लेकिन स्वमान वाले सभी को मान देने वाले दाता होते हैं अर्थात् स्वयं सम्पन्न होने के कारण सदा रहमदिल होते हैं ।
स्लोगन:- स्नेह ही सहज याद का साधन है इसलिए सदा स्नेही रहना और स्नेही बनाना ।