Saturday, January 24, 2015

मुरली 25 जनवरी 2015

सम्मान देना ही सम्मान लेना है
आज भाग्यविधाता बाप सर्व भाग्यशाली बच्चों का विशेष एक बात का आदि से अब तक का रिकार्ड (लेखा) देख रहे थे । कौन सी बात कारिगार्ड (सम्मान) का रिकार्ड देख रहे थे । रिगार्ड भी विशेष ब्राह्मण जीवन के चढ़ती कला का साधन है । जो रिगार्ड देते हैं वही विशेष आत्मा वर्तमान समय और जन्म-जन्मान्तर भी अन्य आत्माओं द्वारा रिगार्ड लेने के पात्र बनते हैं । बापदादा भी साकार सृष्टि पर पार्ट बजाते आदि काल से पहले बच्चों को रिगार्ड दिया । बच्चों को स्वयं से भी श्रेष्ठ मानकर बच्चों के आगे समर्पण हुआ । पहले बच्चे पीछे बापबच्चे सिर के ताज बनतेबच्चे ही डबल पूज्य बनतेबच्चे ही बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनते हैं । बाप ने भी आदिकाल से रिगार्ड रखा - ऐसे ही फालो फादर करने वाले बच्चे आदिकाल से अपना रिगार्ड का रिकार्ड बहुत अच्छा रखते आये हैं । हरेक अपने आपको चेक करो कि हमारा रिकार्ड अब तक कैसा रहा ।
रिकार्ड रखने के लिए पहली बात है - बाप में रिगार्ड - दूसरी बात..... बाप द्वारा मिली हुई नॉलेज का रिगार्ड - तीसरी बात - स्वयं का रिगार्ड - चौथी बात - जो भी आत्माएं चाहे ब्राह्मण परिवार वा अन्य आत्माएं जो भी सम्पर्क में आती हैं उन आत्माओं के प्रति आत्मा का रिगार्ड । इन चारों ही बातों में अपने आपको चेक करो कि हमारा रिकार्ड कैसा रहाचारों ही बातों में कितनी मार्क्स हैंचारों ही बातों में सम्पन्न रहे हैं वा यथा शक्ति किस बात में मार्क्स अच्छी है और किसमें कम?
पहली बात - बाप का रिगार्ड अर्थात् सदा जो है जैसा है वैसे स्वरूप सेयथार्थ पहचान से बाप के साथ सर्व सम्बन्धों की मर्यादाओं को निभाना । बाप के सम्बन्ध का रिगार्ड है फालो फादर करना । शिक्षक के सम्बन्ध का रिगार्ड है सदा पढ़ाई में रेगुलर (सदा) और पंचुअल (समय पर) रहना । पढ़ाई की सर्व सबजेक्ट में फुल अटेंशन देना - सतगुरू के सम्बन्ध में रिगार्ड रखना - अर्थात् सतगुरू की आज्ञा देह सहित देह के सर्व सम्बन्ध भूलकर देही स्वरूप अर्थात् सतगुरू के समान निराकारी स्थिति में स्थित रहना । सदा वापस घर जाने के लिए एवररेडी रहना । ऐसे ही साजन के सम्बन्ध का रिगार्ड - हर संकल्प और सेकेण्ड में उसी एक की लगन में आशिक रहना । तुम्हीं से खाऊंतुम्हीं से हर कार्य में सदा संग रहूँ..... इस वफादारी को निभाना । सखा वा बन्दु के सम्बन्ध का रिगार्ड अर्थात् सदा अपना सर्व बातों में साथीपन का अनुभव करना । ऐसे सर्व सम्बन्धों का नाता निभाना ही रिगार्ड रखना है । रिगार्ड रखना अर्थात् जैसे कहावत है एक बाप दूसरा न कोई - बाप ने कहा और बच्चे ने किया । कदम के ऊपर कदम रख चलना । मनमत वा परमत बुद्धि द्वारा ऐसे समाप्त हो जाए जैसे कोई चीज होती ही नहीं । मनमत वा परमत को संकल्प से टच करना भी स्वप्नमात्र भी न हो अर्थात् अविद्या हो । सिर्फ एक ही श्रीमत बुद्धि में हो - सुनो तो भी बाप सेबोलो तो भी बाप कादेखो तो भी बाप कोचलो तो भी बाप के साथसोचो तो भी बाप की बातें सोचोकरो तो भी बाप के सुनाये हुए श्रेष्ठ कर्म करो । इसको कहा जाता है बाप के रिगार्ड का रिकार्ड । ऐसे चेक करो कि पहली बात में रिकार्ड फर्स्टक्लास रहा है वा सेकेण्ड क्लासअखण्ड रहा है वा खण्डित हुआ हैअटल रहा है या माया की परिस्थितियों प्रमाण रिगार्ड का रिकार्ड हलचल में रहा हैलकीर सदा सीधी रही है वा टेढ़ी बाँकी भी रही है?
दूसरी बात - नॉलेज का रिगार्ड अर्थात् आदि से अभी तक जो भी महावाक्य उच्चारण हुए उन हर महावाक्य में अटल निश्चय हो - कैसे होगाकब होगाहोना तो चाहिएहै तो सत्य इस प्रकार के क्वेश्चन उठाना भी अर्थात् सूक्ष्म संकल्प के रूप में संशय उठाना है । यह भी नॉलेज का डिसरिगार्ड है ।
आजकल के अल्पकाल के चमत्कार दिखाने वाले अर्थात् बाप से वंचित करने वाले यथार्थ से दूर करने वाले नामधारी महान आत्मायें उन्हों के लिए भी सत-वचन महाराज कहते हैं । तो सतगुरू जो महान आत्माओं का भी रचयिता परमपिता है उसकी सत्य नॉलेज में क्वेश्चन करना वा संकल्प उठानायह भी रॉयल रूप का संशय अर्थात् डिसरिगार्ड है । एक क्वेश्चन होता है स्पष्ट करने के लिएदूसरा क्वेश्चन होता है सूक्ष्म संशय के आधार सेइसको कहा जाता है डिसरिगार्ड । बाप तो ऐसे कहते हैं लेकिन होना असम्भव है वा मुश्किल हैऐसा संकल्प भी किस खाते में जायेगायह चेक करो ।
तीसरी बात - स्वयं का रिगार्ड - इसमें भी बाप द्वारा इस अलौकिक श्रेष्ठ जीवन वा ब्राह्मण जीवन के जो भी टाइटिल है वा अनेक गुणों और कर्तव्य के आधार पर जो स्वरूप वा स्थिति का गायन है - जैसे स्वदर्शन चक्रधारीज्ञान स्वरूपप्रेम स्वरूपफरिश्तेपन की स्थिति । जो बाप ने नॉलेज के आधार पर टाइटिल दिये हैं ऐसे अपने को अनुभव करना वा ऐसी स्थिति में स्थित रहना । जो हूँ वैसा अपने को समझकर चलना । जो हूँ अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा हूँडायरेक्ट बाप की सन्तान हूँबेहद के प्रापर्टी की अधिकारी हूँमास्टर सर्वशक्तिमान हूँ ऐसे जो हूँ वैसे समझकर चलना इसको कहा जाता हैं स्वयं का रिगार्ड । मैं तो कमजोर हूँमेरी हिम्मत नहीं है । बाप कहते हैं लेकिन मैं नहीं बन सकतीमेरा ड्रामा में पार्ट ही पीछे का हैजितना है उतना ही अच्छा हैऐसे स्वयं से दिलशिकस्त होते यह भी स्वयं का डिसरिगार्ड है । यह भी चेक करो कि स्वयं के रिगार्ड का रिकार्ड क्या रहा?
चौथी बात - आत्माओं द्वारा सम्बन्ध वा सम्पर्क वाली आत्माओं का रिगार्ड - इसका अर्थ है हर आत्मा को चाहे ब्राह्मण आत्माचाहे अज्ञानी आत्मा हो लेकिन हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ भावना अर्थात् ऊंचा उठाने की वा आगे बढ़ाने की भावना हो,विश्व कल्याण की कामना हो इसी धारणा से हर आत्मा से सम्पर्क में आना - यह है रिगार्ड रखना । सदा आत्मा के गुणों वा विशेषताओं को देखनाअवगुण को देखते हुए न देखना वा उससे भी ऊँचा अपनी शुभ वृत्ति से वा शुभचिन्तक स्थिति से अन्य के अवगुण को भी परिवर्तन करना - इसको कहा जाता है आत्मा का आत्मा प्रति रिगार्ड । सदा अपने स्मृति की समर्थी द्वारा अन्य आत्माओं का सहयोगी बनना - यह है रिगार्ड । सदा 'पहले आपका मंत्र संकल्प और कर्म में लाना,किसी की भी कमजोरी वा अवगुण को अपनी कमजोरी वा अवगुण समझ वर्णन करने के बजाए वा फैलाने के बजाए समाना और परिवर्तन करना - यह है रिगार्ड । किसी की भी कमजोरी की बड़ी बात को छोटा करनापहाड़ को राई बनाना चाहिए न कि राई को पहाड़ बनाना है - इसको कहा जाता है रिगार्ड । दिलशिकस्त को शक्तिवान बनानासंग के रंग में नहीं आना,सदा उमंग-उल्लास में लाना इसको कहा जाता है रिगार्ड । ऐसे इस चौथी बात में भी चेक करो कि इसमें भी कितनी मार्क्स हैंसमझा कैसे रिगार्ड देना है । ऐसे चारों ही बातों में रिगार्ड अच्छा रखने वाले विश्व की आत्माओं द्वारा रिगार्ड लेने के पात्र बनते हैं अर्थात् अब विश्व कल्याणकारी रूप में और भविष्य विश्व महाराजन के रूप में और मध्य में श्रेष्ठ पूज्य के रूप में प्रसिद्ध होते हैं । तो विश्व महाराजन बनने के लिए रिकार्ड भी ऐसा बनाओ ।
रिगार्ड रखना अर्थात् रिगार्ड लेना है । देनालेना हो जाता है । एक देना और दस पाना है । सहज हुआ ना ।
कर्नाटक वाले सदा बाप के स्नेहमूर्त रहते हैं । कर्नाटक की धरनी बहुत सहज है । भावना के कारण धरनी फलीभूत है,इसलिए वृद्धि बहुत होती है । कर्नाटक की धरनी को सहज संदेश मिलने का ड्रामा अनुसार वरदान है । विशेष आत्माएं भी इस धरनी से सहज निकल सकती हैं । लेकिन अभी आगे क्या करना है! जो वृद्धि होती है उसको विधिपूर्वक चलाना । सर्वशक्तियों के आधार से पालना में सदा महावीर बनना है । स्नेह और शक्ति का बैलेन्स रखना यह विशेषता लानी है । वैसे भोलानाथ बाप के भोले बच्चे अच्छे हैं । परवाने अच्छे हैं । बापदादा को पसन्द हैं । अभी बाप-पसन्द के साथ लोक पसन्द भी बनना है । अच्छा
ऐसे सदा बाप को फालो करने वालेआज्ञाकारीवफादारफरमानवरदारसदा महादानी वरदानी अर्थात  विश्व कल्याणकारी,हर आत्मा को रिगार्ड दे आगे बढ़ाने वालेसदा शुभचिन्तक आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते । ओम शान्ति ।
पार्टियों से मुलाकात: -
1) सभी अपने को होलीहंस समझते हो? होलीहंस अर्थात् जो सदा व्यर्थ को छोड़ समर्थ को अपनाने वाले हों । वह हंस क्षीर और नीर को अलग- अलग करता है लेकिन होलीहंस व्यर्थ और समर्थ अलग कर व्यर्थ को छोड़ देंगेसमर्थ को अपनायेंगे । जैसे हंस कभी भी कंकड़ नहीं चुगेंगेरत्न को धारण करेंगेऐसे होलीहंस जो सदा बाप के गुणों को धारण करेंकिसी के भी अवगुण अर्थात् कंकड़ को धारण न करें उसको कहा जाता है होलीहंस अर्थात् पवित्र आत्मायेंशुद्ध आत्मायें । जैसा शुद्ध आत्मा होगा वैसा उसका आहार व्यवहार भी शुद्ध होगाहोली हंस का आहार भी शुद्धव्यवहार भी शुद्ध । अशुद्धि खत्म हो जाती है क्योंकि शुद्ध दुनिया में जा रहे हैं । जहाँ अपवित्रता वा अशुद्धि का नामनिशान भी नहीं । अब होलीहंस बनते हो तब ही भविष्य में भी हिज़ होलीनेस कहलाते हो । कभी गलती से भी किसका अवगुण धारण न करने वालेसदा गले में गुण माला हो । शक्तियों के गले में भी माला दिखाते हैंदेवताओं के गले में भी माला दिखाते हैं । तो संगम में गुणों की माला धारण करने वालों की यादगार में माला दिखाई है । बाप के गुणों को धारण करते हुए सर्व के गुण देखने वाले हो तो यह गुणमाला सभी के गले में पड़ी हैगुणमाला धारण करने वाले ही विजय माला में आते हैं । तो चेक करना चाहिए माला छोटी है या बड़ी हैजितने बाप के और सर्व के गुण स्वयं में धारण करने वाले हैं वही बड़ी माला धारण करने वाले हैं । गुणमाला को सुमिरण करने से स्वयं भी गुणमूर्त बन जाते हैं । जैसे बाप गुणमूर्त हैं वैसे बच्चे भी सदा गुणमूर्त हैं ।
2) सदा कमल पुष्प के समान प्रवृत्ति में रहते हर कार्य करते हुए न्यारे अर्थात् बाप के प्यारे समझते हो? जितना न्यारा होगा उसके न्यारे पन की निशानी होगी - बाप का प्यारा होगा । बाप के प्यारे कहाँ तक बने हैंप्यारे की निशानी क्या है?जिससे प्यार होता है उसकी याद स्वत : रहती है । याद करना नहीं पड़ता । अगर ऐसा अनुभव होता तो समझो प्यारे हैं । प्यार की निशानी स्वत : यादअगर मेहनत करनी पड़ती है तो कम प्यार है । जहॉ जाये वहाँ बाप और बच्चे का मिलन मेला ही होजैसे कम्बाइन्ड होते हैं तो कभी एक दो से अलग नहीं हो सकतेऐसे अपने को कम्बाइन्ड अनुभव करो । जहाँ जायें वहाँ बाप ही बापइसको कहा जाता है निरन्तर योगी । बाप की याद मुश्किल न हो बाप को भूलना मुश्किल हो । जैसे आधाकल्प करना मुश्किल था वैसे अब संगम पर भूलना मुश्किल होकोई कितना भी भुलाने की कोशिश करे लेकिन अभुल । ऐसे पक्के अंगद के समानसंकल्प रूपी नाखून भी माया हिला न सके - ऐसे ही बाप के अति प्यारे हैं ।
3) सर्विस में कोई न कोई प्रकार का विघ्न वा टेंशन आने का कारण है - स्वयं और सेवा का बैलेन्स नहींस्वयं का अटेंशन कम हो जाने के कारण सर्विस में भी कोई न कोई प्रकार का विघ्न वा टेंशन पैदा हो जाता है । सर्विस के प्लैन के साथ पहले अपना प्लैन बनाओ । मर्यादाओं के लकीर के अन्दर रहते हुए सर्विस करो । लकीर से बाहर निकल सर्विस करेंगे तो सफलता नहीं मिल सकती । पहले अपनी धारणा की कमेटी बनाओ । आपस में प्लैन बनाओ फिर सर्विस वृद्धि को सहज पा लेगी ।
4) सदा अपने को शमा के ऊपर फिदा होने वाले परवाने समझते हो? परवाने को सिवाए शमा के और कुछ सूझता नहीं । जैसे परवाना स्वयं को मिटाकर शमा में समा जाता है वैसे अपने देहभान को भूल बाप समान बन जाना इसको कहा जाता है समान बनना अर्थात् समा जाना । सारा कल्प तो बीत चुका, अब संगम को वरदान है जो बनने चाहो वह बन सकते हो । भाग्यविधाता भाग्य की लकीर अभी ही खींचते हैंजो चाहो वह भाग्य बनाओ । अच्छा - ओम शान्ति ।

वरदान:- नाम और मान के त्याग द्वारा सर्व का प्यार प्राप्त करने वाले विश्व के भाग्य विधाता भव !
जैसे बाप को नाम रूप से न्यारा कहते हैं लेकिन सबसे अधिक नाम का गायन बाप का हैवैसे ही आप भी अल्पकाल के नाम और मान से न्यारे बनो तो सदाकाल के लिए सर्व के प्यारे स्वत : बन जायेंगे । जो नाम-मान के भिखारीपन का त्याग करते हैं वह विश्व के भाग्य विधाता बन जाते हैं । कर्म का फल तो स्वत : आपके सामने सम्पन्न स्वरूप में आयेगा इसलिए अल्पकाल की इच्छा मात्रम अविद्या बनो । कच्चा फल नहीं खाओउसका त्याग करो तो भाग्य आपके पीछे आयेगा ।
स्लोगन:-  परमात्म बाप के बच्चे हो तो बुद्धि रूपी पांव सदा तख्तनशीन हो ।