Friday, January 16, 2015

मुरली 17 जनवरी 2015

मुरली 17 जनवरी 2015 “मीठे बच्चे - बाप तुम्हें ज्ञान योग की खुराक खिलाकर जबरदस्त खातिरी करते हैं, तो सदैव खुशमौज में रहो और श्रीमत अनुसार सबकी खातिरी करते चलो”    प्रश्न:-    इस संगमयुग पर आपके पास सबसे अमूल्य चीज कौन सी है, जिसकी सम्भाल करनी है? उत्तर:- इस सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल में आपकी यह जीवन बहुत अमूल्य है, इसलिए शरीर की सम्भाल जरूर करनी है । ऐसे नहीं यह तो मिट्टी का पुतला है, कहाँ यह खलास हो जाये! नहीं । इनको जीते रखना है । कोई बीमार होते हैं तो उनसे तंग नहीं होना चाहिए । उनको बोलो तुम शिवबाबा को याद करो । जितना याद करेंगे उतना पाप कटते जायेंगे । उनकी सर्विस करनी चाहिए, जीता रहे, शिवबाबा को याद करता रहे। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. अपने को देखो मैं पुरुषार्थ में उत्तम हूँ, मध्यम हूँ या कनिष्ट हूँ? मैं ऊंच पद पाने के लायक हूँ? मैं रूहानी सर्विस करता हूँ?  2. तीसरे नेत्र से आत्मा भाई को देखो, भाई- भाई समझ सभी को ज्ञान दो, आत्मिक स्थिति में रहने की आदत डालो तो कर्मेन्द्रियां चंचल नहीं होंगी । वरदान:- ईश्वरीय रॉयल्टी के संस्कार द्वारा हर एक की विशेषताओं का वर्णन करने वाले पुण्य आत्मा भव !    सदा स्वयं को विशेष आत्मा समझ हर संकल्प वा कर्म करना और हर एक में विशेषता देखना, वर्णन करना, सर्व के प्रति विशेष बनाने की शुभ कल्याण की कामना रखना-यही ईश्वरीय रॉयल्टी है । रॉयल आत्मायें दूसरे द्वारा छोड़ने वाली चीज को स्वयं में धारण नहीं कर सकती इसलिए सदा अटेंशन रहे कि किसी की कमजोरी वा अवगुण को देखने का नेत्र सदा बंद हो । एक दो के गुण गान करो, स्नेह, सहयोग के पुष्पों की लेन-देन करो-तो पुण्य आत्मा बन जायेंगे । स्लोगन:-  वरदान की शक्ति परिस्थिति रूपी आग को भी पानी बना देती है ।    अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क किसी भी प्रकार का विघ्न बुद्धि को सताता हो तो योग के प्रयोग द्वारा पहले उस विघ्न को समाप्त करो । मन-बुद्धि में जरा भी डिस्टरबेन्स न हो । अव्यक्त स्थिति में स्थित होने का ऐसा अभ्यास हो जो रूह, रूह की बात को या किसी के भी मन के भावों को सहज ही जान जाये । ओम् शांति |