सार:- “मीठे बच्चे - बाप आया है तुम बच्चों को भक्ति
तू आत्मा से ज्ञानी तू आत्मा बनाने, पतित से पावन बनाने”
प्रश्न:- ज्ञानवान बच्चे किस चिन्तन में सदा रहते हैं?
उत्तर:- मैं अविनाशी आत्मा हूँ, यह शरीर विनाशी है । मैंने 84 शरीर धारण किये हैं । अब यह अन्तिम जन्म है । आत्मा कभी छोटी-बड़ी नहीं होती है । शरीर ही छोटा बड़ा होता है । यह आँखें शरीर में हैं लेकिन इनसे देखने वाली मैं आत्मा हूँ । बाबा आत्माओं को ही ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं । वह भी जब तक शरीर का आधार न लें तब तक पढ़ा नहीं सकते । ऐसा चिन्तन ज्ञानवान बच्चे सदा करते हैं ।
प्रश्न:- ज्ञानवान बच्चे किस चिन्तन में सदा रहते हैं?
उत्तर:- मैं अविनाशी आत्मा हूँ, यह शरीर विनाशी है । मैंने 84 शरीर धारण किये हैं । अब यह अन्तिम जन्म है । आत्मा कभी छोटी-बड़ी नहीं होती है । शरीर ही छोटा बड़ा होता है । यह आँखें शरीर में हैं लेकिन इनसे देखने वाली मैं आत्मा हूँ । बाबा आत्माओं को ही ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं । वह भी जब तक शरीर का आधार न लें तब तक पढ़ा नहीं सकते । ऐसा चिन्तन ज्ञानवान बच्चे सदा करते हैं ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. पुजारी से पूज्य बनने के लिए सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है
। ज्ञानवान बन स्वयं को स्वयं ही चेंज करना है । अल्पकाल सुख के पीछे नहीं जाना है
।
2. बाप और दादा दोनों को ही याद करना है । ब्रह्मा बिगर
शिवबाबा याद आ नहीं सकता । भक्ति में ऊपर याद किया, अभी ब्रह्मा तन में आया है तो दोनों ही
याद आने चाहिए ।
वरदान:-
निमित्त कोई भी सेवा करते बेहद की वृत्ति द्वारा वायब्रेशन फैलाने वाले बेहद
सेवाधारी भव !
अब बेहद परिवर्तन की सेवा में तीव्र गति लाओ । ऐसे नहीं कर
तो रहे हैं, इतना बिजी
रहते हैं जो टाइम ही नहीं मिलता । लेकिन निमित्त कोई भी सेवा करते बेहद के सहयोगी
बन सकते हो, सिर्फ
वृत्ति बेहद में हो तो वायब्रेशन फैलते रहेंगे । जितना बेहद में बिजी रहेंगे तो जो
डयुटी है वह और ही सहज हो जायेगी । हर संकल्प, हर सेकण्ड श्रेष्ठ वायब्रेशन फैलाने की सेवा करना ही बेहद
सेवाधारी बनना है ।
स्लोगन:- शिव बाप के साथ कम्बाइन्ड रहने वाली
शिवशक्तियों का श्रंगार है ज्ञान के अस्त्र-शस्त्र ।