Monday, November 24, 2014

Murli-25/11/2014-Hindi

25-11-14 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन “मीठे बच्चे - बाबा की दृष्टि हद और बेहद से भी पार जाती है, तुम्हें भी हद (सतयुग), बेहद (कलियुग) से पार जाना है” प्रश्न:- ऊंच ते ऊंच ज्ञान रत्नों की धारणा किन बच्चों को अच्छी होती है? उत्तर:- जिनका बुद्धियोग एक बाप के साथ है, पवित्र बने हैं, उन्हें इन रत्नों की धारणा अच्छी होगी । इस ज्ञान के लिए शुद्ध बर्तन चाहिए । उल्टे-सुल्टे संकल्प भी बन्द हो जाने चाहिए । बाप के साथ योग लगाते- लगाते बर्तन सोना बने तब रत्न ठहर सकें । ओम् शान्ति | अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते । धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. बुद्धि में ज्ञान रत्नों को धारण कर दान करना है । हद बेहद से पार ऐसी स्थिति में रहना है जो कभी भी उल्टा-सुल्टा संकल्प वा विकल्प न आये । हम आत्मा भाई- भाई हैं, यही स्मृति रहे । 2. माया के तूफानों से बचने के लिए मुख में बाप की याद का मुहलत डाल लेना है । सब कुछ सहन करना है । छुईमुई नहीं बनना है । माया से हार नहीं खानी है । वरदान:- लौकिक अलौकिक जीवन में सदा न्यारे बन परमात्म साथ के अनुभब द्वारा नष्टोमोहा भव ! सदा न्यारे रहने की निशानी है प्रभू प्यार की अनुभूति और जितना प्यार होता है उतना साथ रहेंगे,अलग नहीं होंगे । प्यार उसको ही कहा जाता है जो साथ रहे । जब बाप साथ है तो सर्व बोझ बाप को देकर खुद हल्के हो जाओ, यही विधि है नष्टामोहा बनने की । लेकिन पुरुषार्थ की सबजेक्ट में सदा शब्द को अन्डरलाइन करो । लौकिक और अलौकिक जीवन में सदा न्यारे रहो तब सदा साथ का अनुभव होगा । स्लोगन:- विकारों रूपी सांपों को अपनी शैया बना दो तो सहजयोगी बन जायेंगे । ओम् शान्ति | 