मीठे बच्चे - तुम्हारी यात्रा बुद्धि की है, इसे ही रूहानी यात्रा कहा जाता है, तुम अपने को आत्मा
समझते हो, शरीर नहीं, शरीर समझना अर्थात् उल्टा लटकना”
प्रश्न:- माया के पाम्प में मनुष्यों को कौन-सी इज्जत मिलती है?
उत्तर:- आसुरी इज्जत । मनुष्य किसी को भी आज थोड़ी इज्जत देते, कल उसकी बेइज्जती
करते हैं, गालियाँ देते हैं । माया ने सबकी बेइज्जती की है, पतित बना दिया है । बाप आये हैं
तुम्हें दैवी इज्जत वाला बनाने |
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी
बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. दर-दर धक्के खाने की आदत छोड़ भगवान की पढ़ाई ध्यान से पढ़नी है । कभी अबसेट नहीं
होना है । बाप समान टीचर भी जरूर बनना है । पढ़कर फिर पढ़ाना है ।
2.सत्य नारायण की सच्ची कथा सुन नर से नारायण बनना है, ऐसा इज्जतवान स्वयं को स्वयं
ही बनाना है । कभी भूतों के वशीभूत हो इज्जत गॅवानी नहीं है ।
वरदान:- सम्मन्ध-सम्पर्क में सन्तुष्टता की विशेषता द्वारा माला में पिरोने वाले सन्तुष्टमणी भव्|
संगमयुग सन्तुष्टता का युग है । जो स्वयं से भी सन्तुष्ट है और सम्बन्ध-सम्पर्क में भी सदा
सन्तुष्ट रहते वा सन्तुष्ट करते हैं वही माला में पिरोते हैं क्योंकि माला सम्बन्ध से बनती हैं ।
अगर दाने का दाने से सम्पर्क नहीं हो तो माला नहीं बनेगी इसलिए सन्तुष्टमणी बन सदा
सन्तुष्ट रहो और सर्व को सन्तुष्ट करो । परिवार का अर्थ ही है सन्तुष्ट रहना और सनुष्ट
करना । कोई भी प्रकार की खिटखिट न हो ।
स्लोगन:- विघ्नों का काम है आना और आपका काम है विघ्न-विनाशक बनना |