Wednesday, October 29, 2014

Murli-29/10/2014-Hindi

मीठे बच्चे - तुम्हारी यात्रा बुद्धि की है, इसे ही रूहानी यात्रा कहा जाता है, तुम अपने को आत्मा 
समझते हो, शरीर नहीं, शरीर समझना अर्थात् उल्टा लटकना”   

प्रश्न:-    माया के पाम्प में मनुष्यों को कौन-सी इज्जत मिलती है?
उत्तर:- आसुरी इज्जत । मनुष्य किसी को भी आज थोड़ी इज्जत देते, कल उसकी बेइज्जती 
करते हैं, गालियाँ देते हैं । माया ने सबकी बेइज्जती की है, पतित बना दिया है । बाप आये हैं 
तुम्हें दैवी इज्जत वाला बनाने |

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी 
बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-

1. दर-दर धक्के खाने की आदत छोड़ भगवान की पढ़ाई ध्यान से पढ़नी है । कभी अबसेट नहीं 
होना है । बाप समान टीचर भी जरूर बनना है । पढ़कर फिर पढ़ाना है ।

2.सत्य नारायण की सच्ची कथा सुन नर से नारायण बनना है, ऐसा इज्जतवान स्वयं को स्वयं 
ही बनाना है । कभी भूतों के वशीभूत हो इज्जत गॅवानी नहीं है ।
 
वरदान:- सम्मन्ध-सम्पर्क में सन्तुष्टता की विशेषता द्वारा माला में पिरोने वाले सन्तुष्टमणी भव्|
   
संगमयुग सन्तुष्टता का युग है । जो स्वयं से भी सन्तुष्ट है और सम्बन्ध-सम्पर्क में भी सदा 
सन्तुष्ट रहते वा सन्तुष्ट करते हैं वही माला में पिरोते हैं क्योंकि माला सम्बन्ध से बनती हैं । 
अगर दाने का दाने से सम्पर्क नहीं हो तो माला नहीं बनेगी इसलिए सन्तुष्टमणी बन सदा 
सन्तुष्ट रहो और सर्व को सन्तुष्ट करो । परिवार का अर्थ ही है सन्तुष्ट रहना और सनुष्ट 
करना । कोई भी प्रकार की खिटखिट न हो ।

स्लोगन:-  विघ्नों का काम है आना और आपका काम है विघ्न-विनाशक बनना |