Sunday, October 26, 2014

Murli-27/10/2014-Hindi

     27-10-14  प्रातःमुरली ओम् शान्ति  “बापदादा”  मधुबन “मीठे बच्चे - सच्चे बाप के साथ सच्चे बनो, सच्चाई का चार्ट रखो, ज्ञान का अहंकार छोड़ याद में रहने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करो ''     प्रश्न:-    महावीर बच्चों की मुख्य निशानी क्या होगी ? उत्तर:- महावीर बच्चे वह जिनकी बुद्धि में निरन्तर बाप की याद हो । महावीर माना शक्तिमान् । महावीर वह जिन्हें निरन्तर खुशी हो । जो आत्म- अभिमानी हो, जरा भी देह का अहंकार न हो । ऐसे महावीर बच्चों की बुद्धि में रहता कि हम आत्मा हैं, बाबा हमें पढ़ा रहे हैं । ओम् शान्ति | रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं - अपने को रूह या आत्मा समझ बैठे हो? क्योंकि बाप जानते हैं यह कुछ डिफीकल्ट है, इसमें ही मेहनत है । जो आत्म- अभिमानी होकर बैठे हैं उनको ही महावीर कहा जाता है । अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना - उनको महावीर कहा जाता है । हमेशा अपने से पूछते रहो कि हम आत्म- अभिमानी हैं? याद से ही महावीर बनते हैं, गोया सुप्रीम बनते हैं । और जो भी धर्म वाले आते हैं वह इतने सुप्रीम नहीं बनते हैं । वह तो आते भी देर से हैं । तुम नम्बरवार सुप्रीम बनते हो । सुप्रीम अर्थात् शक्तिमान् वा महावीर । तो अन्दर में यह खुशी होती है कि हम आत्मा हैं । हम सब आत्माओं का बाप हमको पढ़ाते हैं । यह भी बाप जानते हैं कोई अपना चार्ट 25 परसेन्ट दिखाते हैं, कोई 100 परसेन्ट दिखाते हैं । कोई कहते हैं 24 घण्टे में आधा घण्टा याद ठहरती हैं तो कितना परसेन्ट हुआ? अपनी बड़ी सम्भाल रखनी है । धीरे- धीरे महावीर बनना है । फट से नहीं बन सकते हैं, मेहनत है । वह जो ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी है, ऐसे मत समझो वह अपने को कोई आत्मा समझते हैं । वह तो ब्रह्म घर को परमात्मा समझते हैं और स्वयं को कहते हैं अहम् ब्रह्मस्मि । अब घर से थोड़ेही योग लगाया जाता है । अभी तुम बच्चे अपने को आत्मा समझते हो । यह अपना चार्ट देखना है - 24 घण्टे में हम कितना समय अपने को आत्मा समझते हैं? अभी तुम बच्चे जानते हो हम ईश्वरीय सर्विस पर हैं, ऑन गॉडली सर्विस । यही सबको बताना है कि बाप सिर्फ कहते हैं मनमनाभव अर्थात् अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो । यह है तुम्हारी सर्विस । जितनी तुम सर्विस करेंगे उतना फल भी मिलेगा । यह बातें अच्छी रीति समझने की हैं । अच्छे- अच्छे महारथी बच्चे भी इस बात को पूरा समझते नहीं हैं । इसमें बडी मेहनत है । मेहनत बिगर फल थोड़ेही मिल सकता है । बाबा देखते हैं कोई चार्ट बनाकर भेज देते हैं, कोई से तो चार्ट लिखना पहुँचता ही नहीं है । ज्ञान का अहंकार है । याद में बैठने की मेहनत पहुँचती नहीं । बाप समझाते हैं मूल बात है ही याद की । अपने पर नज़र रखनी है कि हमारा चार्ट कैसा रहता है? वह नोट करना है । कई कहते हैं चार्ट लिखने की फुर्सत नहीं । मूल बात तो बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ अल्फ को याद करो । यहाँ जितना समय बैठते हो तो बीच-बीच में अपने दिल से पूछो कि हम कितना समय याद में बैठे? यहाँ जब बैठते हो तो तुमको याद में ही रहना है और चक्र फिराओ तो भी हर्जा नहीं । हमको बाबा के पास जरूर जाना है । पवित्र सतोप्रधान होकर जाना है । इस बात को अच्छी रीति समझना है । कई तो फट से भूल जाते हैं । सच्चा- सच्चा चार्ट अपना बताते नहीं हैं । ऐसे बहुत महारथी हैं । सच तो कभी नहीं बतायेंगे । आधाकल्प झूठ दुनिया चली है तो झूठ जैसे अन्दर जम गया है । इसमें भी जो साधारण हैं वह तो झट चार्ट लिखेंगे | बाप कहते हैं तुम पापों को भस्म कर पावन होंगे, याद की यात्रा से । सिर्फ ज्ञान से तो पावन नहीं होंगे । बाकी फायदा क्या । पुकारते भी हो पावन बनने के लिए । उसके लिए चाहिए याद । हर एक को सच्चाई से अपना चार्ट बताना चाहिए । यहाँ तुम पौना घण्टा बैठे हो तो देखना है पौने घण्टे में हम कितना समय अपने को आत्मा समझ बाप की याद में थे? कइयों को तो सच बताने में लज्जा आती है । बाप को सच नहीं बताते । वह समाचार देंगे यह सर्विस की, इतनों को समझाया, यह किया । परन्तु याद की यात्रा का चार्ट नहीं लिखते । बाप कहते हैं याद की यात्रा में न रहने कारण ही तुम्हारा कोई को तीर नहीं लगता है । ज्ञान तलवार में जौहर नहीं भरता है । ज्ञान तो सुनाते हैं, बाकी योग का तीर लग जाए - वह बड़ा मुश्किल है । बाबा तो कहते हैं पौने घण्टे में 5 मिनट भी याद की यात्रा में नहीं बैठते होंगे । समझते ही नहीं हैं कि कैसे अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करें । कई तो कहते हैं हम निरन्तर याद में रहते हैं । बाबा कहते हैं यह अवस्था अभी हो नहीं सकती । अगर निरन्तर याद करते फिर तो कर्मातीत अवस्था आ जाए, ज्ञान की पराकाष्ठा हो जाए । थोड़ा ही किसको समझाने से बहुत तीर लग जाए । मेहनत है ना । विश्व का मालिक कोई ऐसे थोड़ेही बन जायेंगे । माया तुम्हारी बुद्धि का योग कहाँ का कहाँ ले जायेगी । मित्र- सम्बन्धी आदि याद आते रहेंगे । किसको विलायत जाना होगा तो सब मित्र-सम्बन्धी, स्टीमर, एरोप्लेन आदि ही याद आते रहेंगे । विलायत जाने की जो प्रैक्टिकल इच्छा है वह खींचती है । बुद्धि का योग बिल्कुल टूट जाता है । और कोई तरफ बुद्धि न जाए, इसमें बड़ी मेहनत की बात है । सिर्फ एक बाप की ही याद रहे । यह देह भी याद न आये । यह अवस्था तुम्हारी पिछाड़ी को होगी । दिन-प्रतिदिन जितना याद की यात्रा को बढ़ाते रहे, इसमें तुम्हारा ही कल्याण है । जितना याद में रहेंगे उतना तुम्हारी कमाई होगी । अगर शरीर छूट गया फिर यह कमाई तो कर नहीं सकेंगे । जाकर छोटा बच्चा बनेंगे । तो कमाई क्या कर सकेंगे । भल आत्मा यह संस्कार ले जायेगी परन्तु टीचर तो चाहिए ना जो फिर स्मृति दिलाये । बाप भी मति दिलाते हैं ना । बाप को याद करो-यह सिवाए तुम्हारे और कोई को पता नहीं है कि बाप की याद से ही पावन बनेंगे । वह तो गंगा स्नान को ही ऊंच मानते हैं इसलिए गंगा स्नान ही करते रहते हैं । बाबा तो इन सब बातों का अनुभवी है ना । इसने तो बहुत गुरू किये हैं । वह स्नान करने जाते हैं पानी का । यहाँ तुम्हारा स्नान होता है याद की यात्रा से । सिवाए बाप की याद के तुम्हारी आत्मा पावन बन ही नहीं सकती । इनका नाम ही है योग अर्थात् याद की यात्रा । ज्ञान को स्नान नहीं समझना । योग का स्नान है । ज्ञान तो पढ़ाई है, योग का स्नान है, जिससे पाप कटते हैं । ज्ञान और योग दो चीजें हैं । याद से ही जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म होते हैं । बाप कहते हैं इस याद की यात्रा से ही तुम पावन बन सतोप्रधान बन जायेंगे । बाप तो बहुत अच्छी रीति समझाते हैं-मीठे- मीठे बच्चों इन बातों को अच्छी रीति समझो । यह भूलो नहीं । याद की यात्रा से ही जन्म-जन्मान्तर के पाप कटेंगे, बाकी ज्ञान तो है कमाई । याद और पढ़ाई दोनों अलग चीज हैं । ज्ञान और विज्ञान-ज्ञान माना पढ़ाई, विज्ञान माना योग अथवा याद । किसको ऊंच रखेंगे-ज्ञान या योग? याद की यात्रा बहुत बड़ी है । इसमें ही मेहनत है । स्वर्ग में तो सब जायेंगे । सतयुग है स्वर्ग, त्रेता है सेमी स्वर्ग । वहाँ तो इस पढ़ाई अनुसार जाकर विराजमान होंगे । बाकी मुख्य है योग की बात । प्रदर्शनी वा म्युजियम आदि में भी तुम ज्ञान समझाते हो । योग थोड़ेही समझा सकेंगे । सिर्फ इतना कहेंगे अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो । बाकी ज्ञान तो बहुत देते हो । बाप कहते हैं पहले-पहले बात ही यह बताओ कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो । इस ज्ञान देने के लिए ही तुम इतने चित्र आदि बनाते हो । योग के लिए कोई चित्र की दरकार नहीं है । चित्र सब ज्ञान की समझानी के लिए बनाये जाते हैं । अपने को आत्मा समझने से देह का अहंकार बिल्कुल टूट जाता है । ज्ञान में तो जरूर मुख चाहिए वर्णन करने के लिए । योग की तो एक ही बात है- अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है । पढ़ाई में तो देह की दरकार है । शरीर बिगर कैसे पढ़ेंगे वा पढ़ायेंगे । पतित-पावन बाप है तो उनके साथ योग लगाना पड़े ना । परन्तु कोई जानते नहीं हैं । बाप खुद आकर सिखलाते हैं, मनुष्य- मनुष्य को कभी सिखला न सके । बाप ही कहते हैं मुझे याद करो, इसको कहा जाता है परमात्मा का ज्ञान । परमात्मा ही ज्ञान का सागर है । यह बड़ी समझने की बातें हैं । सबको यही बोलो कि बेहद के बाप को याद करो । वह बाप नई दुनिया स्थापन करते हैं । वह समझते ही नहीं कि नई दुनिया स्थापन होनी है, जो भगवान को याद करें । ध्यान में भी नहीं है तो ख्याल करे ही क्यों । यह भी तुम जानते हो । परमपिता परमात्मा शिव भगवान एक ही है । कहते भी हैं ब्रह्मा देवताए नम : फिर पिछाड़ी में कहते हैं शिव परमात्माए नम: । वह बाप है ही ऊंच ते ऊंच । परन्तु वह क्या है, यह भी नहीं समझते । अगर पत्थर ठिक्कर में है फिर नम: काहे की । अर्थ रहित बोलते रहते हैं । यहाँ तो तुमको आवाज से परे जाना है अर्थात् निर्वाणधाम, शान्तिधाम में जाना है । शान्तिधाम सुखधाम कहा जाता है । वह है स्वर्गधाम । नर्क को धाम नहीं कहेंगे । अक्षर बड़े सहज हैं । क्राइस्ट का धर्म कहाँ तक चलेगा? यह भी उन लोगों को कुछ पता नहीं । कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले पैराडाइज था अर्थात् देवी देवताओं का राज्य था तो फिर 2 हजार वर्ष क्रिस्चियन का हुआ, अब फिर देवता धर्म होना चाहिए ना । मनुष्यों की बुद्धि कुछ काम नहीं करती । ड्रामा के राज को न जानने कारण कितने प्लैन बनाते रहते हैं । यह बातें बड़ी अवस्था वाली बूढ़ी मातायें तो समझ न सके । बाप समझाते हैं अभी तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है । वाणी से परे जाना है । वह भल कहते हैं निर्वाणधाम गया परन्तु जाता कोई नहीं है । पुनर्जन्म फिर भी लेते जरूर है । वापिस कोई भी जाता नहीं । वानप्रस्थ में जाने के लिए गुरू का संग करते हैं । बहुत वानप्रस्थ आश्रम हैं । मातायें भी बहुत हैं । वहाँ भी तुम सर्विस कर सकते हो । वानप्रस्थ का अर्थ क्या है, तुमको बाप बैठ समझाते हैं । अभी तुम सब वानप्रस्थी हो । सारी दुनिया वानप्रस्थी है । जो भी मनुष्य मात्र देखते हो सब वानप्रस्थी हैं । सर्व का सद्गति दाता एक ही सतगुरू है । सबको जाना ही है । जो अच्छी रीति पुरूषार्थ करते हैं वह अपना ऊंच पद पाते हैं । इसको कहा ही जाता है - कयामत का समय । कयामत के अर्थ को भी वह लोग समझते नहीं हैं । तुम बच्चों में भी नम्बरवार समझते हैं । बड़ी ऊंच मजिल है । सबको समझना है - अभी हमको घर जाना है जरूर । आत्माओं को वाणी से परे जाना है फिर पार्ट रिपीट करेंगे । परन्तु बाप को याद करते-करते जायेंगे तो ऊंच पद पायेंगे । दैवी गुण भी धारण करने हैं । कोई गन्दा काम चोरी आदि नहीं करना चाहिए । तुम पुण्य आत्मा बनेंगे ही योग से, ज्ञान से नहीं । आत्मा पवित्र चाहिए । शान्तिधाम में पवित्र आत्मायें ही जा सकती हैं । सब आत्मायें वहाँ रहती हैं । अभी आती रहती हैं । अब बाकी जो भी होगी वह यहाँ आती रहेगी । तुम बच्चों को याद की यात्रा में बहुत रहना है । यहाँ तुमको मदद अच्छी मिलेगी । एक-दो का बल मिलता है ना । तुम थोड़े बच्चों की ही ताकत काम करती हैं । गोवर्धन पहाड़ दिखाते हैं ना, अंगुली पर उठाया । तुम गोप-गोपियां हो ना । सतयुगी देवी-देवताओं को गोप-गोपियां नहीं कहा जाता है । अंगुली तुम देते हो । आइरन एज को गोल्डन एज वा नर्क को स्वर्ग बनाने के लिए तुम एक बाप के साथ बुद्धि का योग लगाते हो । योग से ही पवित्र होना है । इन बातों को भूलना नहीं है । यह ताकत तुमको यहाँ मिलती हैं । बाहर में तो आसुरी मनुष्यों का संग रहता है । वहाँ याद में रहना बड़ा मुश्किल है । इतना अडोल वहाँ तुम रह नहीं सकेंगे । संगठन चाहिए ना । यहाँ सब एकरस इकट्टे बैठते हैं तो मदद मिलेगी । यहाँ धन्धा आदि कुछ भी नहीं रहता है । बुद्धि कहाँ जायेगी! बाहर में रहने से धन्धा घर आदि खींचेगा जरूर । यहाँ तो कुछ है नहीं । यहाँ का वायुमण्डल अच्छा शुद्ध रहता है । ड्रामा अनुसार कितना दूर पहाड़ी पर आकर तुम बैठे हो । यादगार भी सामने एक्यूरेट खड़ा है । ऊपर में स्वर्ग दिखाया है । नहीं तो कहाँ बनावे । तो बाबा कहते हैं यहाँ आकर बैठते हो तो अपनी जांच रखो-हम बाप की याद में बैठते हैं? स्वदर्शन चक्र भी फिरता रहे । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते । धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. अपने याद के चार्ट पर पूरी नजर रखनी है, देखना है हम बाप को कितना समय याद करते हैं । याद के समय बुद्धि कहाँ-कहाँ भटकती हैं? 2.इस कयामत के समय में वाणी से परे जाने का पुरूषार्थ करना है । बाप की याद के साथ दैवीगुण भी जरूर धारण करने हैं । कोई गंदा काम चोरी आदि नहीं करना है । वरदान:- हर समय अपनी दृष्टि, वृत्ति, कृति द्वारा सेवा करने वाले पक्के सेवाधारी भव |  सेवाधारी अर्थात् हर समय श्रेष्ठ दृष्टि से, वृत्ति से, कृति से सेवा करने वाले, जिसको भी श्रेष्ठ दृष्टि से देखते हो तो वह दृष्टि भी सेवा करती है । वृत्ति से वायुमण्डल बनता है । कोई भी कार्य याद में रहकर करते हो तो वायुमण्डल शुद्ध बनता है । ब्राह्मण जीवन का श्वांस ही सेवा है, जैसे श्वांस न चलने से मूर्छित हो जाते हैं ऐसे ब्राह्मण आत्मा सेवा में बिजी नहीं तो मूर्छित हो जाती है । इसलिए जितना स्नेही, उतना सहयोगी, उतना ही सेवाधारी बनी ।  स्लोगन:-  सेवा को खेल समझो तो थकेंगे नहीं, सदा लाइट रहेंगे ।  ओम् शान्ति |