Wednesday, October 1, 2014

Murli-(27-09-2014)-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम्हें बाप समान खुदाई खिदमतगार बनना है, संगम पर बाप आते 
हैं तुम बच्चों की खिदमत (सेवा) करने'' 

प्रश्न:- यह पुरूषोत्तम संगमयुग ही सबसे सुहावना और कल्याणकारी है - कैसे? 
उत्तर:- इसी समय तुम बच्चे स्त्री और पुरूष दोनों ही उत्तम बनते हो। यह संगमयुग है ही कलियुग 
अन्त और सतयुग आदि के बीच का समय। इस समय ही बाप तुम बच्चों के लिए ईश्वरीय 
युनिवर्सिटी खोलते हैं, जहाँ तुम मनुष्य से देवता बनते हो। ऐसी युनिवर्सिटी सारे कल्प में कभी 
नहीं होती। इसी समय सबकी सद्गति होती है। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) इस रावण राज्य में रहते पतित लोकलाज़ कुल की मर्यादा को छोड़ बेहद बाप की बात माननी है, 
गृहस्थ व्यवहार में कमल फूल समान रहना है। 

2) इस वैराइटी विराट लीला को अच्छी तरह समझना है, इसमें पार्ट बजाने वाली आत्मा निर्लेप नहीं, 
अच्छे-बुरे कर्म करती और उसका फल पाती है, इस राज़ को समझकर श्रेष्ठ कर्म करने हैं। 

वरदान:- संबंध और प्राप्तियों की स्मृति द्वारा सदा खुशी में रहने वाले सहजयोगी भव 

सहजयोग का आधार है - संबंध और प्राप्ति। संबंध के आधार पर प्यार पैदा होता है और जहाँ 
प्राप्तियां होती हैं वहाँ मन-बुद्धि सहज ही जाता है। तो संबंध में मेरेपन के अधिकार से याद करो, 
दिल से कहो मेरा बाबा और बाप द्वारा जो शक्तियों का, ज्ञान का, गुणों का, सुख-शान्ति, आंनद, 
प्रेम का खजाना मिला है उसे स्मृति में इमर्ज करो, इससे अपार खुशी रहेगी और सहजयोगी 
भी बन जायेंगे। 

स्लोगन:- देह-भान से मुक्त बनो तो दूसरे सब बन्धन स्वत: खत्म हो जायेंगे।