Tuesday, October 21, 2014

Murli-21/10/2014-Hindi

21-10-14   प्रातः मुरली ओम् शान्ति  “बापदादा”  मधुबन   “मीठे बच्चे - तुम सबकी आपस में एक मत है, तुम अपने को आत्मा समझ एक बाप को याद करते हो तो सब भूत भाग जाते हैं”                                 प्रश्न:-    पद्मापद्म भाग्यशाली बनने का मुख्य आधार क्या है? उत्तर:- जो बाबा सुनाते हैं, उस एक-एक बात को धारण करने वाले ही पद्मापद्म भाग्यशाली बनते हैं । जज करो बाबा क्या कहते हैं और रावण सम्प्रदाय वाले क्या कहते हैं! बाप जो नॉलेज देते हैं उसे बुद्धि में रखना, स्वदर्शन चक्रधारी बनना ही पद्मापद्म भाग्यशाली बनना है । इस नॉलेज से ही तुम गुणवान बन जाते हो ।   ओम् शान्ति | रूहानी बाप, अंग्रेजी में कहा जाता है स्प्रीचुअल फादर । सतयुग में जब तुम चलेंगे तो वहाँ अंग्रेजी आदि दूसरी कोई भाषा तो होगी नहीं । तुम जानते हो सतयुग में हमारा राज्य होता है, उसमें हमारी जो भाषा होगी वही चलेगी । फिर बाद में वह भाषा बदलती जाती है । अभी तो अनेकानेक भाषायें हैं । जैसा-जैसा राजा वैसी-वैसी उनकी भाषा चलती है । अब यह तो सब बच्चे जानते हैं, सब सेंटर्स पर भी जो बच्चे हैं उनकी है एक मत । अपने को आत्मा समझना है और एक बाप को याद करना है ताकि भूत सब भाग जाएं । बाप है पतित-पावन । 5 भूतों की तो सबमें प्रवेशता है । आत्मा में ही भूतों की प्रवेशता होती है फिर इन भूतों अथवा विकारों का नाम भी लगाया जाता है देह- अभिमान, काम, क्रोध आदि । ऐसे नहीं कि सर्वव्यापी कोई ईश्वर है । कभी भी कोई कहे कि ईश्वर सर्वव्यापी है तो कहो सर्वव्यापी आत्मायें हैं और इन आत्माओं में 5 विकार सर्वव्यापी हैं । बाकी ऐसे नहीं कि परमात्मा सर्व में विराजमान है । परमात्मा में फिर 5 भूतों की प्रवेशता कैसे होगी! एक-एक बात को अच्छी रीति धारण करने से तुम पद्मापद्म भाग्यशाली बनते हो । दुनिया वाले रावण सम्प्रदाय क्या कहते हैं और बाप क्या कहते हैं, अब जज करो । हरेक के शरीर में आत्मा है । उस आत्मा में 5 विकार प्रवेश हैं । शरीर में नहीं, आत्मा में 5 विकार अथवा भूत प्रवेश होते हैं । सतयुग में यह 5 भूत नहीं हैं । नाम ही है डीटी वर्ल्ड । यह है डेविल वर्ल्ड । डेविल कहा जाता है असुर को । कितना दिन और रात का फर्क है । अभी तुम चेन्ज होते हो । वहाँ तुम्हारे में कोई भी विकार, कोई अवगुण नहीं रहता । तुम्हारे में सम्पूर्ण गुण होते हैं । तुम 16 कला सम्पूर्ण बनते हो । पहले थे फिर नीचे उतरते हो । इस चक्र का अभी मालूम पड़ा है । 84 का चक्र कैसे फिरता है । हम आत्मा को स्व का दर्शन हुआ है अर्थात् इस चक्र का नॉलेज हुआ है । उठते, बैठते, चलते तुमको यह नॉलेज बुद्धि में रखना है । बाप नॉलेज पढ़ाते हैं । यह रूहानी नॉलेज बाप भारत में ही आकर देते हैं । कहते हैं ना-हमारा भारत । वास्तव में हिन्दुस्तान कहना तो रांग है । तुम जानते हो भारत जब स्वर्ग था तो सिर्फ हमारा ही राज्य था और कोई धर्म नहीं था । न्यु वर्ल्ड थी । नई देहली कहते हैं ना । देहली का नाम असल देहली नहीं था, परिस्तान कहते थे । अभी तो नई देहली और पुरानी देहली कहते हैं फिर न पुरानी, न नई देहली होगी । परिस्तान कहा जायेगा । दिल्ली को कैपीटल कहते हैं । इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य होगा, और कुछ भी नहीं होगा, हमारा ही राज्य होगा । अभी तो राज्य नहीं है इसलिए सिर्फ कहते हैं हमारा भारत देश है । राजायें तो हैं नहीं । तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान चक्र लगाता है । बरोबर पहले-पहले इस विश्व में देवी-देवताओं का राज्य था और कोई राज्य नहीं था । जमुना का किनारा था, उसको परिस्तान कहा जाता था । देवताओं की कैपीटल देहली ही रही है, तो सभी को कशिश होती है । सबसे बड़ी भी है । एकदम सेण्टर (बीच) है । मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं पाप तो जरूर हुए हैं, पाप आत्मा बन गये हैं । सतयुग में होते हैं पण्य आत्मायें । बाप ही आकर पावन बनाते हैं जिसकी तुम शिव जयन्ती भी मनाते हो । अब जयन्ती अक्षर तो सबसे लगता है इसलिए इनको फिर शिव रात्रि कहते हैं । रात्रि का अर्थ तो तुम्हारे सिवाए और कोई समझ न सके । अच्छे- अच्छे विद्वान आदि कोई भी नहीं जानते कि शिवरात्रि क्या है तो मनावें क्या! बाप ने समझाया है रात्रि का अर्थ क्या है? यह जो 5 हजार वर्ष का चक्र है उसमें सुख और दु :ख का खेल है, सुख को कहा जाता है दिन, दु :ख को कहा जाता है रात । तो रात और दिन के बीच में आता है संगम । आधाकल्प है सोझरा, आधाकल्प है अन्धियारा । भक्ति में तो बहुत तीक-तीक चलती है । यहाँ है सेकण्ड की बात । बिल्कुल इजी है, सहज योग । तुमको पहले जाना है मुक्तिधाम । फिर तुम जीवनमुक्ति और जीवनबन्ध में कितना समय रहे हो, यह तो तुम बच्चों को याद है फिर भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हो । बाप समझाते हैं योग अक्षर है ठीक परन्तु उन्हों का है जिस्मानी योग । यह है आत्माओं का परमात्मा के साथ योग । सन्यासी लोग अनेक प्रकार के हठयोग आदि सिखाते हैं तो मनुष्य मूँझते हैं । तुम बच्चों का बाप भी है तो टीचर भी है, तो उनसे योग लगाना पड़े ना । टीचर से पढ़ना होता है । बच्चा जन्म लेता है तो पहले बाप से योग होता है फिर 5 वर्ष के बाद टीचर से योग लगाना पड़ता है फिर वानप्रस्थ अवस्था में गुरू से योग लगाना पड़ता है । तीन मुख्य याद रहते हैं । वह तो अलग- अलग होते हैं । यहाँ यह एक ही बार बाप आकर बाप भी बनते हैं, टीचर भी बनते हैं । वन्डरफुल है ना । ऐसे बाप को तो जरूर याद करना चाहिए । जन्म-जन्मान्तर तीन को अलग- अलग याद करते आये हो । सतयुग में भी बाप से योग होता है फिर टीचर से होता है । पढ़ने तो जाते हैं ना । बाकी गुरू की वहाँ दरकार नहीं रहती क्योंकि सब सद्गति में हैं । यह सब बातें याद करने में क्या तकलीफ है! बिल्कुल सहज है । इनको कहा जाता है सहज योग । परन्तु यह है अनकॉमन । बाप कहते हैं मैं यह टैम्पेरी लोन लेता हूँ, सो भी कितना थोड़ा समय लेता हूँ । 60 वर्ष में वानप्रस्थ अवस्था होती है । कहते हैं साठ लगी लाठ । इस समय सबको लाठी लगी हुई है । सब वानप्रस्थ, निर्वाणधाम में जायेंगे । वह है स्वीट होम, स्वीटेस्ट होम । उनके लिए ही कितनी अथाह भक्ति की है । अभी चक्र फिरकर आये हो । मनुष्यों को यह कुछ भी पता नहीं, ऐसे ही गपोड़ा लगा दिया है कि लाखों वर्ष का चक्र है । लाखों वर्ष की बात हो तो फिर रेस्ट मिल न सके । रेस्ट मिलना ही मुश्किल हो जाए । तुमको रेस्ट मिलती है, उसको कहा जाता है साइलेन्स होम, इनकारपोरियल वर्ल्ड । यह है स्थूल स्वीट होम । वह है मूल स्वीट होम । आत्मा बिल्कुल छोटा रॉकेट है, इनसे तीखा भागने वाला कोई होता नहीं । यह तो सबसे तीखा है । एक सेकण्ड में शरीर छूटा और यह भागा, दूसरा शरीर तो तैयार रहता है । ड्रामा अनुसार पूरे टाइम पर उनको जाना ही है । ड्रामा कितना एक्यूरेट है । इनमें कोई इनएक्यूरेसी हैं नहीं । यह तुम जानते हो । बाप भी ड्रामा अनुसार बिल्कुल एक्यूरेट टाइम पर आते हैं । एक सेकण्ड का भी फर्क नहीं पड़ सकता है । मालूम कैसे पड़ता हैं कि इनमें बाप भगवान है । जब नॉलेज देते हैं, बच्चों को बैठ समझाते हैं । शिवरात्रि भी मनाते हैं ना । मैं शिव कब कैसे आता हूँ, वह तुमको तो पता नहीं है । शिवरात्रि, कृष्णरात्रि मनाते हैं । राम की नहीं मनाते क्योंकि फर्क पड़ गया ना । शिवरात्रि के साथ कृष्ण की भी रात्रि मना लेते हैं । परन्तु जानते कुछ भी नहीं । यहाँ है ही आसुरी रावण राज्य । यह समझने की बातें हैं । यह तो है बाबा, बुढ़े को बाबा कहेंगे । छोटे बच्चे को बाबा थोड़ेही कहेंगे । कोई-कोई लव से भी बच्चे को बाबा कह देते हैं । तो उन्हों ने भी कृष्ण को लव से कह दिया है । बाबा तो तब कहा जाता है जब बड़े हो और फिर बच्चे पैदा करते हो । कृष्ण खुद ही प्रिन्स है, उनको बच्चे कहाँ से आये । बाप कहते ही हैं मैं बुजुर्ग के तन में आता हूँ । शास्त्रों में भी है परन्तु शास्त्रों की सब बातें एक्यूरेट नहीं होती, कोई-कोई बात ठीक है । ब्रह्मा की आयु माना प्रजापिता ब्रह्मा की आयु कहेंगे । वह तो जरूर इस समय होगा । ब्रह्मा की आयु मृत्युलोक में खत्म होगी । यह कोई अमरलोक नहीं है । इनको कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग । यह सिवाए तुम बच्चों के और कोई की बुद्धि में नहीं हो सकता । बाप बैठ बताते हैं-मीठे-मीठे बच्चों, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो हम बतलाते हैं कि तुम 84 जन्म लेते हो । कैसे? तो भी तुमको पता पड़ गया है । हरेक युग की आयु 1250 वर्ष है और इतने-इतने जन्म लिए हैं । 84 जन्मों का हिसाब है ना ।  84 लाख का तो हिसाब हो न सके । इनको कहा जाता है 84 का चक्र, 84 लाख की तो बात ही याद न आये । यहाँ कितने अपरमअपार दु :ख हैं । कैसे दु :ख देने वाले बच्चे पैदा होते रहते हैं । इसको कहा जाता है घोर नर्क, बिल्कुल छी-छी दुनिया है । तुम बच्चे जानते हो अभी हम नई दुनिया में जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं । पाप कट जायें तो हम पुण्यात्मा बन जायें । अभी कोई पाप नहीं करना है । एक-दो पर काम कटारी चलाना-यह आदि-मध्य- अन्त दुःख देना है । अभी यह रावण राज्य पूरा होता है । अभी है कलियुग का अन्त । यह महाभारी लड़ाई है अन्तिम । फिर कोई लड़ाई आदि होगी ही नहीं । वहाँ कोई भी यज्ञ रचे नहीं जाते । जब यज्ञ रचते हैं तो उसमें हवन करते हैं । बच्चे अपनी पुरानी सामग्री सब स्वाहा कर देते हैं । अब बाप ने समझाया है यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ । रूद्र शिव को कहा जाता है । रूद्र माला कहते हैं ना । निवृत्ति मार्ग वालों को प्रवृत्ति मार्ग की रसम-रिवाज का कुछ भी पता नहीं है । वह तो घरबार छोड़ जंगल में चले जाते हैं । नाम ही पड़ा है सन्यास । किसका सन्यास? घरबार का । खाली हाथ निकलते हैं । पहले तो गुरू लोग बहुत परीक्षा लेते हैं, काम कराते हैं । पहले भिक्षा में सिर्फ आटा लेते थे, रसोई नहीं लेते थे । उन्हों को जंगल में ही रहना है, वहाँ कंद-मूल-फल मिलते हैं । यह भी गायन है, जब सतोप्रधान सन्यासी होते हैं तब यह खाते हैं । अभी तो बात मत पूछो, क्या-क्या करते रहते हैं । इसका नाम ही है विशश वर्ल्ड । वह है वाइसलेस वर्ल्ड । तो अपने को विशश समझना चाहिए ना । बाप कहते हैं सतयुग को कहा जाता है शिवालय, वाइसलेस वर्ल्ड । यहाँ तो सब हैं पतित मनुष्य इसलिए देवी-देवता के बदले नाम ही हिन्दू रख दिया है । बाप तो सब बातें समझाते रहते हैं । तुम असुल में हो ही बेहद बाप के बच्चे । वह तो तुम्हें 21 जन्मों का वर्सा देते हैं । तो बाप मीठे-मीठे बच्चों को समझाते हैं-जन्म-जन्मान्तर के पाप तुम्हारे सिर पर हैं । पापों से मुक्त होने के लिए ही तुम बुलाते हो । साधू-सन्त आदि सब पुकारते हैं-हे पतित-पावन.. अर्थ कुछ नहीं समझते, ऐसे ही गाते रहते हैं, ताली बजाते रहते हैं । उनसे कोई पूछे-परमात्मा से योग कैसे लगावें, उनसे कैसे मिले तो कह देंगे वह तो सर्वव्यापी है । क्या यही रास्ता बताते हैं! कह देते वेद- शास्त्र पढ़ने से भगवान मिलेगा । परन्तु बाप कहते हैं - मैं हर 5 हजार वर्ष के बाद ड्रामा के प्लेन अनुसार आता हूँ । यह ड्रामा का राज सिवाए बाप के और कोई नहीं जानते । लाखों वर्ष का ड्रामा तो हो ही नहीं सकता । अब बाप समझाते हैं यह 5 हजार वर्ष की बात है । कल्प पहले भी बाबा ने कहा था कि मनमनाभव । यह है महामन्त्र । माया पर जीत पाने का मन्त्र है । बाप ही बैठ अर्थ समझाते हैं । दूसरा कोई अर्थ नहीं समझाते । गाया भी जाता है ना सर्व का सद्गति दाता एक । कोई मनुष्य तो हो नहीं सकता । देवताओं की भी बात नहीं है । वहाँ तो सुख ही सुख है, वहाँ कोई भक्ति नहीं करते । भक्ति की जाती है भगवान से मिलने के लिए । सतयुग में भक्ति होती नहीं क्योंकि 21 जन्मों का वर्सा मिला हुआ है । तब गाया भी जाता है दु:ख में सिमरण.. यहाँ तो अथाह दुःख हैं । घड़ी-घड़ी कहते हैं भगवान रहम करो । यह कलियुगी दु:खी दुनिया सदैव नहीं रहती । सतयुग-त्रेता पास्ट हो गये हैं, फिर होंगे । लाखों वर्ष की तो बात भी याद नहीं रह सकती है । अब बाप तो सारी नॉलेज देते हैं, अपना परिचय भी देते हैं और रचना के आदि-मध्य- अन्त का राज भी समझाते हैं । 5 हजार वर्ष की बात है । तुम बच्चों को ध्यान में आ गया है । अभी तो परायें राज्य में हो । तुमको अपना राज्य था । यहाँ तो लड़ाई से अपना राज्य लेते हैं, हथियारों से, मारामारी से अपना राज्य लेते हैं । तुम बच्चे तो योगबल से अपना राज्य स्थापन कर रहे हो । तुम्हें सतोप्रधान दुनिया चाहिए । पुरानी दुनिया खत्म हो नई दुनिया बनती है, इसको कहा जाता है कलियुग पुरानी दुनिया । सतयुग है नई दुनिया । यह भी किसको पता नहीं है । सन्यासी कह देते यह आपकी कल्पना है । यहाँ ही सतयुग है, यहाँ ही कलियुग है । अब बाप बैठ समझाते हैं एक भी ऐसा नहीं है जो बाप को जानते हो । अगर कोई जानता होता तो परिचय देता । सतयुग-त्रेता क्या चीज है, किसको समझ में थोड़ेही आता है । तुम बच्चों को बाप अच्छी रीति समझाते रहते हैं । बाप ही सब कुछ जानते हैं, जानी जाननहार अर्थात् नॉलेजफुल है । मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है । ज्ञान का सागर, सुख का सागर है । उनसे ही हमको वर्सा मिलना है । बाप नॉलेज में आप समान बनाते हैं । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।   धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. यह पापों से मुक्त होने का समय है इसलिए अभी कोई पाप नहीं करना है । पुरानी सब सामग्री इस रूद्र यज्ञ में स्वाहा करनी है ।   2. अभी वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए बाप, टीचर के साथ-साथ सतगुरू को भी याद करना है । स्वीट होम में जाने के लिए आत्मा को सतोप्रधान (पावन) बनाना है ।   वरदान:- सम्बन्ध-सम्पर्क में आते डायमण्ड बन डायमण्ड को देखने वाले बेदाग डायमण्ड भव !     बापदादा की श्रीमत है कि डायमण्ड बन डायमण्ड को देखना । चाहे कोई आत्मा काला कोयला, एकदम तमोगुणी हो लेकिन आपकी दृष्टि पड़ने से उसका कालापन कम हो जाए । अमृतवेले से रात तक जितनों के भी सम्पर्क-सम्बन्ध में आओ सिर्फ डायमण्ड बन डायमण्ड देखते रहो । किसी भी विघ्न अथवा स्वभाव के वश डायमण्ड पर दाग न लगे । चाहे अनेक प्रकार की परिस्थितियों के विघ्न आयें लेकिन आप ऐसे पावरफुल बनो जो उसका प्रभाव न पड़े ।   स्लोगन:-  मन और बुद्धि को मनमत से सदा खाली रखने वाले ही आज्ञाकारी हैं ।      ओम् शान्ति |  !alal