Sunday, October 19, 2014

Murli-20/10/2014-Hindi

20-10-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन   “मीठे बच्चे - हियर नो ईविल.... यहां तुम सतसंग में बैठे हो, तुम्हें मायावी कुसंग में नहीं जाना है, कुसंग लगने से ही संशय के रूप में घुटके आते हैं”                                 प्रश्न:-    इस समय किसी भी मनुष्य को स्प्रीचुअल नहीं कह सकते हैं - क्यों? उत्तर:- क्योंकि सभी देह- अभिमानी हैं । देह- अभिमान वाले स्प्रीचुअल कैसे कहला सकते हैं । स्प्रीचुअल फादर तो एक ही निराकार बाप है जो तुम्हें भी देही- अभिमानी बनने की शिक्षा देते हैं । सुप्रीम का टाइटिल भी एक बाप को ही दे सकते हैं, बाप के सिवाए सुप्रीम कोई भी कहला नहीं सकते ।   ओम् शान्ति | बच्चे जब यहाँ बैठते हो तो जानते हो बाबा हमारा बाबा भी है, टीचर भी है और सतगुरू भी है । तीन की दरकार रहती है । पहले बाप फिर पढ़ाने वाला टीचर और फिर पिछाड़ी में गुरू । यहाँ याद भी ऐसे करना है क्योंकि नई बात है ना । बेहद का बाप भी है, बेहद का माना सबका । यहाँ जो भी आयेंगे कहेंगे यह स्मृति में लाओ । इसमें किसको संशय हो तो हाथ उठाओ । यह वन्डरफुल बात है ना । जन्म-जन्मान्तर कभी ऐसा कोई मिला होगा जिसको तुम बाप, टीचर, सतगुरू समझो । सो भी सुप्रीम । बेहद का बाप, बेहद का टीचर, बेहद का सतगुरू । ऐसा कभी कोई मिला? सिवाए इस पुरूषोत्तम संगमयुग के कभी मिल न सके । इसमें कोई को संशय हो तो हाथ उठावे । यहाँ सब निश्चय बुद्धि होकर बैठे हैं । मुख्य हैं ही यह तीन । बेहद का बाप नॉलेज भी बेहद की देते हैं । बेहद की नॉलेज तो यह एक ही है । हद की नॉलेज तो तुम अनेक पढ़ते आये हो । कोई वकील बनते हैं, कोई सर्जन बनते हैं क्योंकि यहाँ तो डॉक्टर, जज, वकील आदि सब चाहिए ना । वहाँ तो दरकार नहीं । वहाँ दु :ख की कोई बात ही नहीं । तो अब बाप बैठ बेहद की शिक्षा बच्चों को देते हैं । बेहद का बाप ही बेहद की शिक्षा देते हैं फिर आधाकल्प कोई शिक्षा तुमको पढ़ने की नहीं है । एक ही बार शिक्षा मिलती है जो 21 जन्मों के लिए फलीभूत होती है अर्थात् उनका फल मिलता है । वहाँ तो डॉक्टर, बैरिस्टर, जज आदि होते नहीं । यह तो निश्चय है ना । बराबर ऐसे हैं ना? वहाँ दु :ख होता नहीं । कर्मभोग होता नहीं । बाप कर्मों की गति बैठ समझाते हैं । वह गीता सुनाने वाले क्या ऐसे सुनाते हैं? बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को राजयोग सिखाता हूँ । उसमें तो लिख दिया है कृष्ण भगवानुवाच । परन्तु वह है दैवीगुणों वाला मनुष्य । शिवबाबा तो कोई नाम धरते नहीं । उनका दूसरा कोई नाम नहीं । बाप कहते हैं मैं यह शरीर लोन लेता हूँ । यह शरीर रूपी मकान हमारा नहीं है, यह भी इनका मकान है । खिड़कियाँ आदि सब हैं । तो बाप समझाते हैं मैं तुम्हारा बेहद का बाप अर्थात् सभी आत्माओं का बाप हूँ, पढ़ाता भी हूँ आत्माओं को । इनको कहा जाता है स्प्रीचुअल फादर अर्थात् रूहानी बाप और कोई को भी रूहानी बाप नहीं कहेंगे । यहाँ तुम बच्चे जानते हो यह बेहद का बाप है । अब स्प्रीचुअल कान्फ्रेन्स हो रही है । वास्तव में स्प्रीचुअल कान्फ्रेन्स तो है ही नहीं । वह तो सच्चे स्प्रीचुअल हैं नहीं । देह- अभिमानी हैं । बाप कहते हैं-बच्चे, देही- अभिमानी भव । देह का अभिमान छोड़ो । ऐसे थोड़ेही किसको कहेंगे । स्प्रीचुअल  अक्षर अभी डालते हैं । आगे सिर्फ रिलीजस कान्फ्रेन्स कहते थे । स्प्रीचुअल का कोई अर्थ नहीं समझते हैं । स्प्रीचुअल फादर अर्थात् निराकारी फादर । तुम आत्मायें हो स्प्रीचुअल बच्चे । स्प्रीचुअल फादर आकर तुमको पढ़ाते हैं । यह समझ और कोई में हो न सके । बाप खुद बैठ बतलाते हैं कि मैं कौन हूँ । गीता में यह नहीं है । मैं तुमको बेहद की शिक्षा देता हूँ । इसमें वकील, जज, सर्जन आदि की दरकार नहीं क्योंकि वहाँ तो एकदम सुख ही सुख है । दु :ख का नाम-निशान नहीं होता । यहाँ फिर सुख का नाम-निशान नहीं है, इसको कहा जाता हैं प्राय:लोप । सुख तो काग विष्टा समान है । जरा-सा सुख है तो बेहद सुख की नॉलेज दे कैसे सकते । पहले जब देवी-देवताओं का राज्य था तो सत्यता 100 प्रतिशत थी । अभी तो झूठ ही झूठ है । यह है बेहद की नॉलेज । तुम जानते हो यह मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है, जिसका बीजरूप मैं हूँ । उनमें झाड़ की सारी नॉलेज है । मनुष्यों को यह नॉलेज नहीं है । मैं चैतन्य बीजरूप हूँ । मुझे कहते ही हैं ज्ञान का सागर । ज्ञान से सेकण्ड में गति-सद्गति होती हैं । मैं हूँ सबका बाप । मुझे पहचानने से तुम बच्चों को वर्सा मिल जाता है । परन्तु राजधानी है ना । स्वर्ग में भी मर्तबे तो नम्बरवार बहुत हैं । बाप एक ही पढ़ाई पढ़ाते हैं । पढ़ने वाले तो नम्बरवार ही होते हैं । इसमें फिर और कोई पढ़ाई की दरकार नहीं रहती । वहाँ कोई बीमार होता नहीं । पाई पैसे की कमाई के लिए पढ़ाई नहीं पढ़ते । तुम यहाँ से बेहद का वर्सा ले जाते हो । वहाँ यह मालूम नहीं पड़ेगा कि यह पद हमको कोई ने दिलाया है । यह तुम अभी समझते हो । हद की नॉलेज तो तुम पढ़ते आये हो । अब बेहद की नॉलेज पढ़ाने वाले को देख लिया, जान लिया । जानते हो बाप, बाप भी है, टीचर भी है, आकर हमको पढ़ाते हैं । सुप्रीम टीचर है, राजयोग सिखलाते हैं । सच्चा सतगुरू भी है । यह है बेहद का राजयोग । वह बैरिस्टरी, डॉक्टरी ही सिखलायेंगे क्योंकि यह दुनिया ही दु :ख की है । वह सब हैं हद की पढ़ाई, यह है बेहद की पढ़ाई । बाप तुमको बेहद की पढ़ाई पढ़ाते हैं । यह भी जानते हो यह बाप, टीचर, सतगुरू कल्प-कल्प आते हैं फिर यही पढ़ाई पढ़ाते हैं सतयुग-त्रेता के लिए । फिर प्राय :लोप हो जाता है । सुख की प्रालब्ध पूरी हो जाती है ड्रामा अनुसार । यह बेहद का बाप बैठ समझाते हैं, उनको ही पतित-पावन कहा जाता है । कृष्ण को त्वमेव माता च पिता वा पतित-पावन कहेंगे क्या? इनके मर्तबे और उनके मर्तबे में रात-दिन का फर्क है । अब बाप कहते हैं मुझे पहचानने से तुम सेकण्ड में जीवनमुक्ति पा सकते हो । अब कृष्ण भगवान् अगर होता तो कोई भी झट पहचान ले । कृष्ण का जन्म कोई दिव्य अलौकिक नहीं गाया हुआ है । सिर्फ पवित्रता से होता है । बाप तो कोई के गर्भ से नहीं निकलते हैं । समझाते हैं मीठे-मीठे रूहानी बच्चों, रूह ही पढ़ती है । सब संस्कार अच्छे वा बुरे रूह में रहते हैं । जैसे-जैसे कर्म करते हैं, उस अनुसार उन्हें शरीर मिलता है । कोई बहुत दु :ख भोगते हैं । कोई काने, कोई बहरे होते हैं । कहेंगे पास्ट में ऐसे कर्म किये हैं जिसका यह फल है । आत्मा के कर्मों अनुसार ही रोगी शरीर आदि मिलता है । अभी तुम बच्चे जानते हो-हमको पढ़ाने वाला है गॉड फादर । गॉड टीचर, गॉड प्रीसेप्टर है । उसको कहते हैं गॉड परम आत्मा । उसको मिलाकर परमात्मा कहते हैं, सुप्रीम सोल । ब्रह्मा को तो सुप्रीम नहीं कहेंगे । सुप्रीम अर्थात् ऊंच ते ऊंच, पवित्र ते पवित्र । मर्तबे तो हरेक के अलग- अलग हैं । कृष्ण का जो मर्तबा है वह दूसरे को मिल नहीं सकता । प्राइम मिनिस्टर का मर्तबा दूसरे को थोड़ेही देंगे । बाप का भी मर्तबा अलग है । ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी अलग है । ब्रह्मा, विष्णु, शंकर देवता है, शिव तो परमात्मा है । दोनों को मिलाकर शिव शंकर कैसे कहेंगे । दोनों अलग- अलग हैं ना । न समझने के कारण शिव शंकर को एक कह देते हैं । नाम भी ऐसे रख देते हैं । यह सब बातें बाप ही आकर समझाते हैं । तुम जानते हो यह बाबा भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है । हरेक मनुष्य को बाप भी होता है, टीचर भी होता है और गुरू भी होता है । जब बुढ़े होते हैं तो गुरू करते हैं । आजकल तो छोटेपन में ही गुरू करा देते हैं, समझते हैं अगर गुरू नहीं किया तो अवज्ञा हो जायेगी । आगे 60 वर्ष के बाद गुरू करते थे । वह होती है वानप्रस्थ अवस्था । निर्वाण अर्थात् वाणी से परे स्वीट साइलेन्स होम, जिसमें जाने के लिए आधाकल्प तुमने मेहनत की है । परन्तु पता ही नहीं तो कोई जा नहीं सकते । किसको रास्ता बता कैसे सकते । एक के सिवाए तो कोई रास्ता बता न सके । सबकी बुद्धि एक जैसी नहीं होती हैं । कोई तो जैसे कथायें सुनते हैं, फायदा कुछ नहीं । उन्नति कुछ नहीं । तुम अभी बगीचे के फूल बनते हो । फूल से कांटे बने, अब फिर कांटे से फूल बाप बनाते हैं । तुम ही पूज्य फिर पुजारी बने । 84 जन्म लेते-लेते सतोप्रधान से तमोप्रधान पतित बन गये । बाप ने सीढ़ी सारी समझाई है । अब फिर पतित से पावन कैसे बनते हैं, यह किसको भी पता नहीं । गाते भी हैं ना हे पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ फिर पानी की नदियाँ सागर आदि को पतित-पावन समझ क्यों जाकर स्नान करते हैं । गंगा को पतित-पावनी कह देते हैं । परन्तु नदियां भी कहाँ से निकली? सागर से ही निकलती हैं ना । यह सभी सागर की सन्तान हैं तो हरेक बात अच्छी रीति समझने की होती है । यहाँ तो तुम बच्चे सतसग में बैठे हो । बाहर कुसंग में जाते हो तो तुमको बहुत उल्टी बातें सुनायेंगे । फिर यह इतनी सब बातें भूल जायेगी । कुसंग में जाने से घुटका खाने लग पड़ते हैं, संशय का तब मालूम पड़ता है । परन्तु यह बातें तो भूलनी नहीं चाहिए । बाबा हमारा बेहद का बाबा भी है, टीचर भी है, पार भी ले जाते हैं, इस निश्चय से तुम आये हो । वह सभी हैं जिस्मानी लौकिक पढ़ाई, लौकिक भाषायें । यह है अलौकिक । बाप कहते हैं मेरा जन्म भी अलौकिक है । मैं लोन लेता हूँ । पुरानी जुत्ती लेता हूँ । सो भी पुराने ते पुरानी, सबसे पुरानी है यह जुत्ती । बाप ने जो लिया है, इसको लांग बूट कहते हैं । यह कितनी सहज बात है । यह तो कोई भूलने की नहीं है । परन्तु माया इतनी सहज बातें भी भुला देती है । बाप, बाप भी है, बेहद की शिक्षा देने वाला भी है, जो और कोई दे न सके । बाबा कहते हैं भल जाकर देखो कहाँ से मिलती है । सब हैं मनुष्य । वह तो यह नॉलेज दे न सके । भगवान एक ही रथ लेते हैं, जिसको भाग्यशाली रथ कहा जाता है, जिसमें बाप की प्रवेशता होती है, पदमापदम भाग्यशाली बनाने । बिल्कुल नजदीक का दाना है । ब्रह्मा सो विष्णु बनते हैं । शिवबाबा इनको भी बनाते हैं, तुमको भी इन द्वारा विश्व का मालिक बनाते हैं । विष्णु की पुरी स्थापन होती है । इसको कहा जाता है राजयोग, राजाई स्थापन करने लिए । अभी यहाँ सुन तो सब रहे हैं, परन्तु बाबा जानते हैं बहुतों के कानों से बह जाता है, कोई धारण कर और सुना सकते हैं । उनको कहा जाता है महारथी । सुनकर फिर धारण करते हैं, औरों को भी रूचि से समझाते हैं । महारथी समझाने वाला होगा तो झट समझेंगे, घोड़ेसवार से कम, प्यादे से और भी कम । यह तो बाप जानते हैं कौन महारथी हैं, कौन घोड़ेसवार हैं । अब इसमें मूँझने की तो बात ही नहीं । परन्तु बाबा देखते रहते हैं बच्चे मूँझते हैं फिर झुटके खाते रहते हैं । आखें बन्द कर बैठते हैं । कमाई में कभी झुटका आता है क्या? झुटका खाते रहेंगे तो फिर धारणा कैसे होगी । उबासी से बाबा समझ जाते हैं यह थका हुआ है । कमाई में कभी थकावट नहीं होती । उबासी है उदासी की निशानी । कोई न कोई बात के घुटके अन्दर खाते रहने वालों को उबासी बहुत आती है । अभी तुम बाप के घर में बैठे हो, तो परिवार भी है, टीचर भी बनते हैं, गुरू भी बनते हैं रास्ता बताने के लिए । मास्टर गुरू कहा जाता है । तो अब बाप का राइट हैंण्ड बनना चाहिए ना । जो बहुतों का कल्याण कर सकते हैं । धन्धे सभी में हैं नुकसान, बिगर धन्धे नर से नारायण बनने के । सभी की कमाई खत्म हो जाती है । नर से नारायण बनने का धन्धा बाप ही सिखलाते हैं । तो फिर कौन सी पढ़ाई पढ़नी चाहिए । जिनके पास धन बहुत है, वह समझते हैं स्वर्ग तो यहाँ ही है । बापू गांधी ने रामराज्य स्थापन किया? अरे, दुनिया तो यह पुरानी तमोप्रधान है ना और ही दु :ख बढ़ता जाता है, इनको रामराज्य कैसे कहेंगे । मनुष्य कितने बेसमझ बन पड़े हैं । बेसमझ को तमोप्रधान कहा जाता है । समझदार होते हैं सतोप्रधान । यह चक्र फिरता रहता है, इसमें कुछ भी बाप से पूछने का नहीं रहता । बाप का फर्ज है रचता और रचना की नॉलेज देना । वह तो देते रहते हैं । मुरली में सब समझाते रहते हैं । सभी बातों का रेसपॉन्ड मिल जाता है । बाकी पूछेंगे क्या? बाप के सिवाए कोई समझा ही नहीं सकते तो पूछ भी कैसे सकते । यह भी तुम बोर्ड पर लिख सकते हो एवरहेल्दी, एवरवेल्दी 21 जन्म के लिए बनना है तो आकर समझो । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।   धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. बाप जो सुनाते हैं उसे सुनकर अच्छी तरह धारण करना है । दूसरों को रूचि से सुनाना है । एक कान से सुन दूसरे से निकालना नहीं है । कमाई के समय कभी उबासी नहीं लेनी है ।   2. बाबा का राइट हैण्ड बन बहुतों का कल्याण करना है । नर से नारायण बनने और बनाने का धन्धा करना है ।   वरदान:- आत्मिक मुस्कराहट द्वारा चेहरे से प्रसन्नता की झलक दिखाने वाले विशेष आत्मा भव !     ब्राह्मण जीवन की विशेषता है प्रसन्नता । प्रसन्नता अर्थात् आत्मिक मुस्कराहट । जोर-जोर से हँसना नहीं, लेकिन मुस्कराना । चाहे कोई गाली भी दे रहे हो तो भी आपके चेहरे पर दु :ख की लहर नहीं आये, सदा प्रसन्नचित । यह नहीं सोचो कि उसने एक घण्टा बोला मैंने तो सिर्फ एक सेकण्ड बोला । सेकण्ड भी बोला या सोचा, शक्ल पर अप्रसन्नता आई तो फेल हो जायेंगे । एक घण्टा सहन किया फिर गुब्बारे से गैस निकल गई । श्रेष्ठ जीवन के लक्ष्य वाली विशेष आत्मा ऐसे गैस के गुब्बारे नहीं बनती ।   स्लोगन:-  शीतल काया वाले योगी स्वयं शीतल बन दूसरों को शीतल दृष्टि से निहाल करते हैं ।      ओम् शान्ति |