Wednesday, September 10, 2014

Murli-(10-09-2014)-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - जैसे तुम्हें निश्चय है कि ईश्वर सर्वव्यापी नहीं, वह हमारा बाप है, 
ऐसे दूसरों को समझाकर निश्चय कराओ फिर उनसे ओपीनियन लो'' 

प्रश्न:- बाप अपने बच्चों से कौन सी बात पूछते हैं, जो दूसरा कोई नहीं पूछ सकता है? 
उत्तर:- बाबा जब बच्चों से मिलते हैं तो पूछते हैं-बच्चे, पहले तुम कब मिले हो? जो बच्चे 
समझे हुए हैं वह झट कहते हैं-हाँ बाबा, हम 5 हजार वर्ष पहले आपसे मिले थे। जो नहीं 
समझते हैं, वह मूँझ जाते हैं। ऐसा प्रश्न पूछने का अक्ल दूसरे किसी को आयेगा भी नहीं। 
बाप ही तुम्हें सारे कल्प का राज समझाते हैं। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) जैसे बाप और नॉलेज गुप्त है, ऐसे पुरूषार्थ भी गुप्त करना है। गीत-कविताओं आदि 
के बजाए चुप रहना अच्छा है। शान्ति में चलते-फिरते बाप को याद करना है। 

2) पुरानी दुनिया बदल रही है इसलिए इससे ममत्व निकाल देना है, इसे देखते हुए भी 
नहीं देखना है। बुद्धि नई दुनिया में लगानी है। 

वरदान:- मन-बुद्धि को झमेलों से किनारे कर मिलन मेला मनाने वाले झमेलामुक्त भव 

कई बच्चे सोचते हैं यह झमेला पूरा होगा तो हमारी अवस्था वा सेवा अच्छी हो जायेगी 
लेकिन झमेले पहाड़ के समान हैं। पहाड़ नहीं हटेगा, लेकिन जहाँ झमेला हो वहाँ अपने 
मन-बुद्धि को किनारे कर लो या उड़ती कला से झमेले के पहाड़ के भी ऊपर चले जाओ 
तो पहाड़ भी आपको सहज अनुभव होगा। झमेलों की दुनिया में झमेले तो आयेंगे ही, 
आप मुक्त रहो तो मिलन मेला मना सकेंगे। 

स्लोगन:- इस बेहद नाटक में हीरो पार्ट बजाने वाले ही हीरो पार्टधारी हैं।