31-08-14 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:10-12-78 मधुबन
विस्तार को न देख सार अर्थात् बिन्दु को देखो
वरदान:- माया के विकराल रूप के खेल को साक्षी होकर देखने वाले मायाजीत भव
माया को वेलकम करने वाले उसके विकराल रूप को देखकर घबराते नहीं। साक्षी
स्लोगन:- जो सहनशील हैं वह किसी के भाव-स्वभाव में जलते नहीं, व्यर्थ बातों
विस्तार को न देख सार अर्थात् बिन्दु को देखो
वरदान:- माया के विकराल रूप के खेल को साक्षी होकर देखने वाले मायाजीत भव
माया को वेलकम करने वाले उसके विकराल रूप को देखकर घबराते नहीं। साक्षी
होकर खेल देखने से मजा आता है क्योंकि माया का बाहर से शेर का रूप है लेकिन
उसमें ताकत बिल्ली जितनी भी नहीं है। सिर्फ आप घबराकर उसे बड़ा बना देते हो
- क्या करूं..कैसे होगा...लेकिन यही पाठ याद रखो जो हो रहा है वो अच्छा और
जो होने वाला है वो और अच्छा। साक्षी होकर खेल देखो तो मायाजीत बन जायेंगे।
स्लोगन:- जो सहनशील हैं वह किसी के भाव-स्वभाव में जलते नहीं, व्यर्थ बातों
को एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं।