मुरली सार:- “मीठे बच्चे - चैतन्य अवस्था में रह बाप को याद करना है, सुन्न अवस्था में चले
जाना या नींद करना - यह कोई योग नहीं है”
उत्तर:- अगर तुम आंख बन्द करके बैठेंगे तो दुकान का सारा सामान ही चोर चोरी करके ले जायेंगे।
माया चोर बुद्धि में कुछ भी धारणा होने नहीं देगी। आंख बन्द करके योग में बैठेंगे तो नींद आ
जायेगी। पता ही नहीं चलेगा इसलिए आंखे खोलकर बैठना है। कामकाज करते बुद्धि से बाप को
याद करना है। इसमें हठयोग की बात नहीं है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) गृहस्थ व्यवहार सम्भालते हुए बुद्धियोग बाप के साथ रखना है। गफ़लत नहीं करनी है।
पवित्रता की धारणा से अपना और सर्व का कल्याण करना है।
2) याद की यात्रा और पढ़ाई में ही कमाई है, ध्यान दीदार तो घूमना है इसलिए उससे कोई फायदा
नहीं। जितना हो सके सुजाग हो, बाप को याद कर अपने विकर्म विनाश करने है।
वरदान:- बाप के संस्कारों को अपने ओरीज्नल संस्कार बनाने वाले शुभभावना, शुभकामनाधारी भव
अभी तक कई बच्चों में फीलिंग के, किनारा करने के, परचिंतन करने वा सुनने के भिन्न-भिन्न
संस्कार हैं, जिन्हें कह देते हो कि क्या करें मेरे ये संस्कार हैं...ये मेरा शब्द ही पुरूषार्थ में ढीला
करता है। यह रावण की चीज़ है, मेरी नहीं। लेकिन जो बाप के संस्कार हैं वही ब्राह्मणों के
ओरिज्नल संस्कार हैं। वह संस्कार हैं विश्वकल्याणकारी, शुभ चिंतनधारी। सबके प्रति
शुभ भावना, शुभकामनाधारी।
स्लोगन:- जिनमें समर्थी है वही सर्व शक्तियों के खजाने का अधिकारी है।