मुरली सार:- “मीठे बच्चे - ज्ञान की धारणा करते रहो तो अन्त में तुम बाप समान बन जायेंगे,
प्रश्न:- किन दो शब्दों की स्मृति से स्वदर्शन चक्रधारी बन सकते हो?
उत्तर:- उत्थान और पतन, सतोप्रधान और तमोप्रधान, शिवालय और वेश्यालय। यह दो-दो बातें
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस अन्तिम जन्म में सर्व प्राप्तियों को सामने रख पावन बनकर दिखाना है। माया के
2) एम ऑबजेक्ट को सामने रख पूरा पुरूषार्थ करना है। जैसे ब्रह्मा बाप पुरूषार्थ कर नर से नारायण
वरदान:- मन और बुद्धि को व्यर्थ से मुक्त रख ब्राह्मण संस्कार बनाने वाले स्वराज्य अधिकारी भव
कोई भी छोटी सी व्यर्थ बात, व्यर्थ वातावरण वा व्यर्थ दृश्य का प्रभाव पहले मन पर पड़ता है फिर
स्लोगन:- मास्टर सर्वशक्तिवान वह है जो दृढ़ प्रतिज्ञा से सर्व समस्याओं को सहज ही पार कर ले।
बाप की सारी ताकत तुम हज़म कर लेंगे”
प्रश्न:- किन दो शब्दों की स्मृति से स्वदर्शन चक्रधारी बन सकते हो?
उत्तर:- उत्थान और पतन, सतोप्रधान और तमोप्रधान, शिवालय और वेश्यालय। यह दो-दो बातें
स्मृति में रहें तो तुम स्वदर्शन चक्रधारी बन जायेंगे। तुम बच्चे अभी ज्ञान को यथार्थ रीति
जानते हो। भक्ति में ज्ञान नहीं है, सिर्फ दिल खुश करने की बातें करते रहते हैं। भक्ति मार्ग है
ही दिल खुश करने का मार्ग।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस अन्तिम जन्म में सर्व प्राप्तियों को सामने रख पावन बनकर दिखाना है। माया के
विघ्नों से हार नहीं खानी है।
2) एम ऑबजेक्ट को सामने रख पूरा पुरूषार्थ करना है। जैसे ब्रह्मा बाप पुरूषार्थ कर नर से नारायण
बनते हैं, ऐसे फालो कर गद्दी नशीन बनना है। आत्मा को सतोप्रधान बनाने की मेहनत करनी है।
वरदान:- मन और बुद्धि को व्यर्थ से मुक्त रख ब्राह्मण संस्कार बनाने वाले स्वराज्य अधिकारी भव
कोई भी छोटी सी व्यर्थ बात, व्यर्थ वातावरण वा व्यर्थ दृश्य का प्रभाव पहले मन पर पड़ता है फिर
बुद्धि उसको सहयोग देती है। मन और बुद्धि अगर उसी प्रकार चलती रहती है तो संस्कार बन जाता
है। फिर भिन्न-भिन्न संस्कार दिखाई देते हैं, जो ब्राह्मण संस्कार नहीं हैं। किसी भी व्यर्थ संस्कार
के वश होना, अपने से ही युद्ध करना, घड़ी-घड़ी खुशी गुम हो जाना - यह क्षत्रियपन के संस्कार हैं।
ब्राह्मण अर्थात् स्वराज्य अधिकारी वे व्यर्थ संस्कारों से मुक्त होंगे, परवश नहीं।
स्लोगन:- मास्टर सर्वशक्तिवान वह है जो दृढ़ प्रतिज्ञा से सर्व समस्याओं को सहज ही पार कर ले।