मुरली सार:- “मीठे बच्चे - मैं विदेही बाप तुम देहधारियों को विदेही बनाने के लिए पढ़ाता हूँ,
प्रश्न:- बाबा को एक ही बात बार-बार समझाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर:- क्योंकि बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। कोई-कोई बच्चे कहते हैं-बाबा तो वही बात
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान के तीसरे नेत्र से आत्मा को ही देखना है। जिस्मानी नेत्रों से देखना ही नहीं है।
2) बाप की याद से अपने दैवी कैरेक्टर बनाने हैं। अपने दिल से पूछना है कि हम कहाँ तक
वरदान:- बालक सो मालिकपन की स्मृति से सर्व खजानों को अपना बनाने वाले स्वराज्य अधिकारी भव
इस समय आप बच्चे सिर्फ बालक नहीं हो लेकिन बालक सो मालिक हो, एक स्वराज्य
स्लोगन:- परमात्म मुहब्बत के झूले में उड़ती कला की मौज मनाना यही सबसे श्रेष्ठ भाग्य है।
यह है नई बात जो बच्चे ही समझते हैं”
प्रश्न:- बाबा को एक ही बात बार-बार समझाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर:- क्योंकि बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। कोई-कोई बच्चे कहते हैं-बाबा तो वही बात
बार-बार समझाते हैं। बाबा कहते-बच्चे, मुझे जरूर वही बात सुनानी पड़े क्योंकि तुम भूल
जाते हो। तुम्हें माया के तूफान हैरान करते हैं, अगर मैं रोज़ खबरदार न करूँ तो तुम माया
के तूफानों से हार खा लेंगे। अभी तक तुम सतोप्रधान कहाँ बने हो? जब बन जायेंगे तब
सुनाना बंद कर देंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान के तीसरे नेत्र से आत्मा को ही देखना है। जिस्मानी नेत्रों से देखना ही नहीं है।
अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
2) बाप की याद से अपने दैवी कैरेक्टर बनाने हैं। अपने दिल से पूछना है कि हम कहाँ तक
गुणवान बने हैं? हमने सारे दिन में आसुरी चलन तो नहीं चली?
वरदान:- बालक सो मालिकपन की स्मृति से सर्व खजानों को अपना बनाने वाले स्वराज्य अधिकारी भव
इस समय आप बच्चे सिर्फ बालक नहीं हो लेकिन बालक सो मालिक हो, एक स्वराज्य
अधिकारी मालिक और दूसरा बाप के वर्से के मालिक। जब स्वराज्य अधिकारी हो तो स्व
की सर्व कर्मेन्द्रियां आर्डर प्रमाण हों। लेकिन समय प्रति समय मालिकपन की स्मृति को
भुलाकर वश में करने वाला यह मन है इसलिए बाप का मन्त्र है मनमनाभव। मनमनाभव
रहने से किसी भी व्यर्थ बात का प्रभाव नहीं पड़ेगा और सर्व खजाने अपने अनुभव होंगे।
स्लोगन:- परमात्म मुहब्बत के झूले में उड़ती कला की मौज मनाना यही सबसे श्रेष्ठ भाग्य है।