मुरली सार:- “मीठे बच्चे - तुम्हारे में ऑनेस्ट वह है जो सारे यूनिवर्स की सेवा करे, बहुतों
प्रश्न:- तुम ब्राह्मण बच्चे कौन-से बोल कभी भी बोल नहीं सकते हो?
उत्तर:- तुम ब्राह्मण ऐसे कभी नहीं बोलेंगे कि हमारा ब्रह्मा से कोई कनेक्शन नहीं, हम तो
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) नये-नये सेन्टर्स की वृद्धि करने के लिए आप समान बनाने की सेवा करनी है। सेन्टर्स खोलते
2) फूलों का बगीचा तैयार करना है। हरेक को फूल बनकर दूसरों को आप समान फूल बनाना है।
वरदान:- ज्ञान रत्नों को धारण कर व्यर्थ को समाप्त करने वाले होलीहंस भव
होलीहंस की दो विशेषतायें हैं - एक है ज्ञान रत्न चुगना और दूसरा निर्णय शक्ति द्वारा दूध और
स्लोगन:- सदा अपने श्रेष्ठ पोज़ीशन में स्थित रह ऑपोज़ीशन को समाप्त करने वाले ही
को आपसमान बनाये, आराम पसन्द न हो”
प्रश्न:- तुम ब्राह्मण बच्चे कौन-से बोल कभी भी बोल नहीं सकते हो?
उत्तर:- तुम ब्राह्मण ऐसे कभी नहीं बोलेंगे कि हमारा ब्रह्मा से कोई कनेक्शन नहीं, हम तो
डायरेक्ट शिवबाबा को याद करते हैं। बिना ब्रह्मा बाप के ब्राह्मण कहला नहीं सकते, जिनका
ब्रह्मा से कनेक्शन नहीं अर्थात् जो ब्रह्मा मुख वंशावली नहीं वह शूद्र ठहरे। शूद्र कभी देवता
नहीं बन सकते हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) नये-नये सेन्टर्स की वृद्धि करने के लिए आप समान बनाने की सेवा करनी है। सेन्टर्स खोलते
जाना है। एक जगह पर बैठना नहीं है।
2) फूलों का बगीचा तैयार करना है। हरेक को फूल बनकर दूसरों को आप समान फूल बनाना है।
किसी भी सेवा में देह-अभिमान न आये।
वरदान:- ज्ञान रत्नों को धारण कर व्यर्थ को समाप्त करने वाले होलीहंस भव
होलीहंस की दो विशेषतायें हैं - एक है ज्ञान रत्न चुगना और दूसरा निर्णय शक्ति द्वारा दूध और
पानी को अलग करना। दूध और पानी का अर्थ है - समर्थ और व्यर्थ का निर्णय। व्यर्थ को
पानी के समान कहते हैं और समर्थ को दूध समान। तो व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात्
होलीहंस बनना। हर समय बुद्धि में ज्ञान रत्न चलते रहे, मनन चलता रहे तो रत्नों से
भरपूर हो जायेंगे।
स्लोगन:- सदा अपने श्रेष्ठ पोज़ीशन में स्थित रह ऑपोज़ीशन को समाप्त करने वाले ही
विजयी आत्मा हैं।