मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम यहाँ याद में रहकर पाप दग्ध करने के लिए आये हो
प्रश्न:- कौन-सा सूक्ष्म विकार भी अन्त में मुसीबत खड़ी कर देता है?
उत्तर:- अगर सूक्ष्म में भी हबच (लालच) का विकार है, कोई चीज़ हबच के कारण
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप की याद में बैठते समय ज़रा भी बुद्धि इधर-उधर नहीं भटकनी चाहिए।
2) शरीर को तन्दुरूस्त रखने के लिये घूमने फिरने जाते हो तो आपस में
वरदान:- बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा सर्व लगावों से मुक्त रहने वाले सच्चे राजऋषि भव
राजऋषि अर्थात् एक तरफ राज्य दूसरे तरफ ऋषि अर्थात् बेहद के वैरागी। अगर
स्लोगन:- क्रोध अग्नि रूप है जो खुद को भी जलाता और दूसरों को भी जला देता है
इसलिए बुद्धियोग निष्फल न जाए, इस बात का पूरा ध्यान रखना है''
प्रश्न:- कौन-सा सूक्ष्म विकार भी अन्त में मुसीबत खड़ी कर देता है?
उत्तर:- अगर सूक्ष्म में भी हबच (लालच) का विकार है, कोई चीज़ हबच के कारण
इकट्ठी करके अपने पास जमा करके रख दी तो वही अन्त में मुसीबत के रूप में
याद आती है इसलिए बाबा कहते-बच्चे, अपने पास कुछ भी न रखो। तुम्हें सब
संकल्पों को भी समेटकर बाप की याद में रहने की टेव (आदत) डालनी है इसलिए
देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करो।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप की याद में बैठते समय ज़रा भी बुद्धि इधर-उधर नहीं भटकनी चाहिए।
सदा कमाई जमा होती रहे। याद ऐसी हो जो सन्नाटा हो जाए।
2) शरीर को तन्दुरूस्त रखने के लिये घूमने फिरने जाते हो तो आपस में
झरमुई-झगमुई (परचिंतन) नहीं करना है। जबान को शान्त में रख बाप को
याद करने की रेस करनी है। भोजन भी बाप की याद में खाना है।
वरदान:- बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा सर्व लगावों से मुक्त रहने वाले सच्चे राजऋषि भव
राजऋषि अर्थात् एक तरफ राज्य दूसरे तरफ ऋषि अर्थात् बेहद के वैरागी। अगर
कहाँ भी चाहे अपने में, चाहे व्यक्ति में, चाहे वस्तु में कहाँ भी लगाव है तो राजऋषि
नहीं। जिसका संकल्प मात्र भी थोड़ा लगाव है उसके दो नांव में पांव हुए, फिर न
यहाँ के रहेंगे न वहाँ के। इसलिए राजऋषि बनो, बेहद के वैरागी बनो अर्थात् एक
बाप दूसरा न कोई -यह पाठ पक्का करो।
स्लोगन:- क्रोध अग्नि रूप है जो खुद को भी जलाता और दूसरों को भी जला देता है
इसलिए क्रोध मुक्त बनो।