``मीठे बच्चे - तुम अभी हंस बनने का पुरूषार्थ कर रहे हो, तुम्हें इन लक्ष्मी-नारायण जैसा हंस अर्थात्
प्रश्न:- इस ज्ञान मार्ग में तीव्र जाने की सहज विधि क्या है?
उत्तर:- इस ज्ञान में तीव्र (तीखा) जाना है तो और सब विचार छोड़ बाप की याद में लग जाओ जिससे
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस कयामत के समय पुरानी दुनिया से बेहद का सन्यास करना है। इस कब्रिस्तान से बुद्धि निकाल देनी है।
2) मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकालने हैं, पत्थर नहीं। पूरा-पूरा हंस बनना है। कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:- अपने पुरूषार्थ की विधि में स्वयं की प्रगति का अनुभव करने वाले सफलता के सितारे भव
जो अपने पुरूषार्थ की विधि में स्वयं की प्रगति वा सफलता का अनुभव करते हैं, वही सफलता के सितारे हैं,
स्लोगन:- सुख स्वरूप बनकर सुख दो तो पुरूषार्थ में दुआयें एड हो जायेंगी।
सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है''
प्रश्न:- इस ज्ञान मार्ग में तीव्र जाने की सहज विधि क्या है?
उत्तर:- इस ज्ञान में तीव्र (तीखा) जाना है तो और सब विचार छोड़ बाप की याद में लग जाओ जिससे
विकर्म विनाश हो जायें और पूरा कचरा निकल जाये। याद की यात्रा ही ऊंच पद का आधार है, इसी से
तुम कौड़ी से हीरा बन सकते हो। बाप की ड्युटी है तुम्हें कौड़ी से हीरा, पतित से पावन बनाने की। इसके
बिगर बाप भी रह नहीं सकते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस कयामत के समय पुरानी दुनिया से बेहद का सन्यास करना है। इस कब्रिस्तान से बुद्धि निकाल देनी है।
याद में रहकर सब पुराने हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं।
2) मुख से सदैव ज्ञान रत्न निकालने हैं, पत्थर नहीं। पूरा-पूरा हंस बनना है। कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:- अपने पुरूषार्थ की विधि में स्वयं की प्रगति का अनुभव करने वाले सफलता के सितारे भव
जो अपने पुरूषार्थ की विधि में स्वयं की प्रगति वा सफलता का अनुभव करते हैं, वही सफलता के सितारे हैं,
उनके संकल्प में स्वयं के पुरूषार्थ प्रति भी कभी ``पता नहीं होगा या नहीं होगा'', कर सकेंगे या नहीं कर
सकेंगे - यह असफलता का अंश-मात्र भी नहीं होगा। स्वयं प्रति सफलता अधिकार के रूप में अनुभव करेंगे।
उन्हें सहज और स्वत: सफलता मिलती रहती है।
स्लोगन:- सुख स्वरूप बनकर सुख दो तो पुरूषार्थ में दुआयें एड हो जायेंगी।