Thursday, February 6, 2014

Murli-[5-2-2014]-Hindi

`मीठे बच्चे - इस शरीर से जीते जी मरने के लिए अभ्यास करो-`मैं भी आत्मा, तुम भी 
आत्मा'-इस अभ्यास से ममत्व निकल जायेगा'' 

प्रश्न:- सबसे ऊंची मंज़िल कौन-सी है? उस मंज़िल को प्राप्त करने वालों की निशानी क्या होगी? 
उत्तर:- सभी देहधारियों से ममत्व टूट जाए, सदा भाई-भाई की स्मृति रहे - यही है ऊंची मंज़िल । 
इस मंज़िल पर वही पहुँच सकते हैं जो निरन्तर देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करते हैं। अगर 
देही-अभिमानी नहीं तो कहीं न कहीं फँसते रहेंगे या अपने शरीर में या किसी न किसी मित्र सम्बन्धी 
के शरीर में। उन्हें कोई की बात अच्छी लगेगी या कोई का शरीर अच्छा लगेगा। ऊंची मंज़िल पर 
पहुँचने वाले जिस्म (देह) से प्यार कर नहीं सकते। उनका शरीर का भान टूटा हुआ होगा। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) शरीर का भान खत्म करने के लिए चलते-फिरते अभ्यास करना है - जैसे कि इस शरीर से मरे 
हुए हैं, न्यारे हैं। शरीर में हैं ही नहीं। बिगर शरीर आत्मा को देखो। 

2) कभी भी किसी के शरीर पर तुम्हें आशिक नहीं होना है। एक विदेही बाप से ही प्यार रखना है। 
एक से ही बुद्धियोग लगाना है। 

वरदान:- शक्तिशाली याद द्वारा सेकण्ड में पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव 

आपकी याद इतनी शक्तिशाली हो जो एक सेकण्ड की याद से पदमों की कमाई जमा हो जाए। जिनके हर 
कदम में पदम हों तो कितने पदम जमा हो जायेंगे इसीलिए कहा जाता है पदमापदम भाग्यशाली। जब 
किसी की अच्छी कमाई होती है तो उसके चेहरे की फलक ही और हो जाती है। तो आपकी शक्ल से भी 
पदमों की कमाई का नशा दिखाई दे। ऐसा रूहानी नशा, रूहानी खुशी हो जो अनुभव करें कि यह न्यारे 
लोग हैं। 

स्लोगन:- ड्रामा में सब अच्छा ही होना है इस स्मृति से बेफिक्र बादशाह बनो।