मीठे बच्चे - अपने हार और जीत की हिस्ट्री को याद करो, यह सुख और दु:ख का खेल है,
प्रश्न:- यह बेहद का ड्रामा बहुत ही वन्डरफुल है - कैसे?
उत्तर:- यह बेहद का ड्रामा इतना तो वन्डरफुल है जो हर सेकण्ड सारी सृष्टि में हो रहा है,
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान प्यार का सागर बनना है। दु:ख का सागर नहीं। बाप की निंदा कराने वाला
2) योगबल से पवित्र बनकर फिर दूसरों को भी बनाना है। कांटों के जंगल को फूलों का
वरदान:- सर्व प्राप्तियों के खजानों को स्मृति स्वरूप बन कार्य में लगाने वाले सदा सन्तुष्ट आत्मा भव
संगमयुग का विशेष वरदान सन्तुष्टता है और सन्तुष्टता का बीज सर्व प्राप्तियां हैं। असन्तुष्टता
स्लोगन:- जहाँ निश्चय है वहाँ विजय के तकदीर की लकीर मस्तक पर है ही।
इसमें 3/4सुख है, 1/4दु:ख है, इक्वल नहीं''
प्रश्न:- यह बेहद का ड्रामा बहुत ही वन्डरफुल है - कैसे?
उत्तर:- यह बेहद का ड्रामा इतना तो वन्डरफुल है जो हर सेकण्ड सारी सृष्टि में हो रहा है,
वह फिर से हूबहू रिपीट होगा। यह ड्रामा जूँ मिसल चलता ही रहता है, टिक-टिक होती रहती
है। एक टिक न मिले दूसरी टिक से, इसलिए यह बड़ा वन्डरफुल ड्रामा है। जो भी मनुष्य
का पार्ट अच्छा वा बुरा चलता है सब नूँध है। इस बात को भी तुम बच्चे ही समझते हो।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान प्यार का सागर बनना है। दु:ख का सागर नहीं। बाप की निंदा कराने वाला
कोई भी कर्म नहीं करना है। बहुत मीठा प्यारा बनना है।
2) योगबल से पवित्र बनकर फिर दूसरों को भी बनाना है। कांटों के जंगल को फूलों का
बगीचा बनाने की सेवा करनी है। सदा खुशी में रहना है कि हमारा मीठा बाबा बाप भी है
तो टीचर भी है। उन जैसा मीठा कोई नहीं।
वरदान:- सर्व प्राप्तियों के खजानों को स्मृति स्वरूप बन कार्य में लगाने वाले सदा सन्तुष्ट आत्मा भव
संगमयुग का विशेष वरदान सन्तुष्टता है और सन्तुष्टता का बीज सर्व प्राप्तियां हैं। असन्तुष्टता
का बीज स्थूल वा सूक्ष्म अप्राप्ति है। ब्राह्मणों का गायन है अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के
खजाने में। सभी बच्चों को एक द्वारा एक जैसा अखुट खजाना मिलता है। सिर्फ उन प्राप्त हुए
खजानों को हर समय कार्य में लगाओ अर्थात् स्मृति स्वरूप बनो। बेहद की प्राप्तियों को हद
में परिवर्तन नहीं करो तो सदा सन्तुष्ट रहेंगे।
स्लोगन:- जहाँ निश्चय है वहाँ विजय के तकदीर की लकीर मस्तक पर है ही।