मीठे बच्चे - तुम्हारे मोह की रगें अब टूट जानी चाहिए क्योंकि यह सारी दुनिया विनाश होनी है,
प्रश्न:- जिन बच्चों को रूहानी मस्ती चढ़ी रहती है, उनका टाइटिल क्या होगा? मस्ती किन बच्चों को चढ़ती है?
उत्तर:- रूहानी मस्ती में रहने वाले बच्चों को कहा जाता है - `मस्त कलंधर', वही कलंगीधर बनते हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा इसी नशे में रहना है कि हम मास्टर ज्ञान सागर हैं, स्वयं में ज्ञान की ताकत भरकर
2) कोई ऐसा कर्म नहीं करना है जिससे सतगुरू बाप का नाम बदनाम हो। कुछ भी हो जाये
कर्म के साथ-साथ योग का बैलेन्स हो तो हर कर्म में स्वत: सफलता प्राप्त होती है। कर्मयोगी आत्मा
स्लोगन:- परमात्म प्यार ही समय की घण्टी है जो अमृतवेले उठा देती है।
इस पुरानी दुनिया की किसी भी चीज़ में रूचि न हो''
प्रश्न:- जिन बच्चों को रूहानी मस्ती चढ़ी रहती है, उनका टाइटिल क्या होगा? मस्ती किन बच्चों को चढ़ती है?
उत्तर:- रूहानी मस्ती में रहने वाले बच्चों को कहा जाता है - `मस्त कलंधर', वही कलंगीधर बनते हैं।
उन्हें राजाईपने की मस्ती चढ़ी रहती है। बुद्धि में रहता-अभी हम फ़कीर से अमीर बनते हैं। मस्ती
उन्हें चढ़ती जो रूद्र माला में पिरोने वाले हैं। नशा उन बच्चों को रहता है जिन्हें निश्चय है कि हमें
अब घर जाना है। फिर नई दुनिया में आना है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा इसी नशे में रहना है कि हम मास्टर ज्ञान सागर हैं, स्वयं में ज्ञान की ताकत भरकर
चुम्बक बनना है, रूहानी पैगम्बर बनना है।
2) कोई ऐसा कर्म नहीं करना है जिससे सतगुरू बाप का नाम बदनाम हो। कुछ भी हो जाये
लेकिन कभी भी रोना नहीं है।
वरदान:- कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा कर्मातीत स्थिति का अनुभव करने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव
कर्म के साथ-साथ योग का बैलेन्स हो तो हर कर्म में स्वत: सफलता प्राप्त होती है। कर्मयोगी आत्मा
कभी कर्म के बन्धन में नहीं फंसती। कर्म के बन्धन से मुक्त को ही कर्मातीत कहते हैं। कर्मातीत का
अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ। कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बन्धन में फंसने से न्यारे
बनो। ऐसी कर्मयोगी आत्मा अपने कर्म से अनेकों का कर्म श्रेष्ठ बनाने वाली होगी। उसके लिए हर
कार्य मनोरंजन लगेगा, मुश्किल का अनुभव नहीं होगा।
स्लोगन:- परमात्म प्यार ही समय की घण्टी है जो अमृतवेले उठा देती है।