Saturday, February 1, 2014

Murli-[1-2-2014]-Hindi

``मीठे बच्चे - आत्म-अभिमान विश्व का मालिक बनाता है, देह-अभिमान कंगाल बना देता है, 
इसलिए आत्म-अभिमानी भव'' 

प्रश्न:- कौन-सा अभ्यास अशरीरी बनने में बहुत मदद करता है? 
उत्तर:- अपने को सदा एक्टर समझो, जैसे एक्टर पार्ट पूरा होते ही वस्त्र उतार देते हैं, ऐसे तुम 
बच्चों को भी यह अभ्यास करना है, कर्म पूरा होते ही पुराना वस्त्र (शरीर) छोड़ अशरीरी हो 
जाओ। आत्मा भाई-भाई है, यह अभ्यास करते रहो। यही पावन बनने का सहज साधन है। 
शरीर को देखने से क्रिमिनल ख्यालात चलते हैं इसलिए अशरीरी भव। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) दृष्टि को शुद्ध पवित्र बनाने के लिए किसी के भी नाम रूप को न देख अशरीरी बनने का 
अभ्यास करना है। स्वयं को आत्मा समझ, आत्मा भाई से बात करनी है। 

2) सर्व का सत्कार प्राप्त करने के लिए ज्ञान-योग की ताकत धारण करनी है। दैवीगुणों से 
सम्पन्न बनना है। कैरेक्टर सुधारने की सेवा करनी है। 

वरदान:- स्वराज्य के संस्कारों द्वारा भविष्य राज्य अधिकार प्राप्त करने वाली तकदीरवान आत्मा भव 

बहुतकाल के राज्य अधिकारी बनने के संस्कार बहुतकाल भविष्य राज्य अधिकारी बनायेंगे। अगर 
बार-बार वशीभूत होते हो, अधिकारी बनने के संस्कार नहीं हैं तो राज्य अधिकारियों के राज्य में रहेंगे, 
राज्य भाग्य प्राप्त नहीं होगा। तो नॉलेज के दर्पण में अपने तकदीर की सूरत को देखो। बहुत समय 
के अभ्यास द्वारा अपने विशेष सहयोगी कर्मचारी वा राज्य कारोबारी साथियों को अपने अधिकार 
से चलाओ, राजा बनो तब कहेंगे तकदीरवान आत्मा। 

स्लोगन:- सकाश देने की सेवा करने के लिए बेहद की वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो।