Friday, November 8, 2013

Murli-[8-11-2013]- Hindi

मुरली सार:- "मीठे बच्चे - ज्ञान योग की शक्ति से वायुमण्डल को शुद्ध बनाना है, 
स्वदर्शन चक्र से माया पर जीत पानी है'' 

प्रश्न:- किस एक बात से सिद्ध हो जाता है कि आत्मा कभी भी ज्योति में लीन नहीं होती? 
उत्तर:- कहते हैं बनी बनाई बन रही........ तो जरूर आत्मा अपना पार्ट रिपीट करती है। 
अगर ज्योति ज्योत में लीन हो जाए तो पार्ट समाप्त हो गया फिर अनादि ड्रामा 
कहना भी ग़लत हो जाता है। आत्मा एक पुराना चोला छोड़ दूसरा नया लेती है, 
लीन नहीं होती। 

गीत:- ओ दूर के मुसाफिर........ 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) अविनाशी बाप से अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना ले तकदीरवान बनना है। 
नया ज्ञान, नई पढ़ाई रोज़ पढ़नी है। वायुमण्डल को शुद्ध बनाने की सेवा करनी है। 

2) भविष्य 21 जन्मों के लिए अपना सब कुछ इन्श्योर कर देना है। बाप का बनने 
के बाद कोई भी कुकर्म नहीं करना है। 

वरदान:- महावीर बन हर संकल्प को स्वरूप में लाने वाले सदा विजयी सफलतामूर्त भव 

जो भी विशेष संकल्प लेते हो उसमें दृढ़ रहो, संकल्प करते ही उसका स्वरूप बन जाओ 
तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। ऐसे नहीं सोचो देखेंगे, करेंगे... गे-गे करना अर्थात् 
कमजोर बनना। ऐसे कमजोर संकल्प करना अर्थात् माया से हार खाना। सदा यही अमर
अविनाशी संकल्प करो कि हम सदा के विजयी, महावीर हैं, सदा आगे बढ़ेंगे, विजयी 
बनेंगे। तो इस संकल्प से सफलतामूर्त बन जायेंगे। 

स्लोगन:- चेहरे पर खुशी की झलक हो तो चियरफुल चेहरा बोर्ड का काम करेगा।