Thursday, November 28, 2013

Murli-[28-11-2013]- Hindi

मुरली सार:- "मीठे बच्चे - देह-अभिमान है रुलाने वाला, देही-अभिमानी बनो तो पुरुषार्थ ठीक होगा, 
दिल में सच्चाई रहेगी, बाप को पूरा फालो कर सकेंगे'' 

प्रश्न:- किसी भी परिस्थिति वा आपदा में स्थिति निर्भय वा एकरस कब रह सकती है? 
उत्तर:- जब ड्रामा के ज्ञान में पूरा-पूरा निश्चय हो। कोई भी आफत सामने आई तो कहेंगे यह ड्रामा में 
थी। कल्प पहले भी इसे पार किया था, इसमें डरने की बात ही नहीं। परन्तु बच्चों को महावीर बनना 
है। जो बाप के पूरे मददगार सपूत बच्चे हैं, बाप की दिल पर चढ़े हुए हैं, ऐसे बच्चे ही सदा स्थिर 
रहते, अवस्था एकरस रहती है। 

गीत:- ओ दूर के मुसाफिर........ 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) सच्चाई को धारण कर बाप की हर एक्ट को फालो करना है। ज्ञान अमृत पीना और पिलाना है। 
निर्भय बनना है। 

2) हम भगवान् के बच्चे आपस में भाई-भाई हैं - इस स्मृति से अपनी दृष्टि-वृत्ति को पवित्र बनाना है। 

वरदान:- दिव्य बुद्धि के वरदान द्वारा अपने रजिस्टर को बेदाग रखने वाले कर्मो की गति के ज्ञाता भव 

ब्राह्मण जन्म लेते ही हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान मिलता है। इस दिव्य बुद्धि पर किसी भी 
समस्या का, संग का वा मनमत का प्रभाव न पड़े तब रजिस्टर बेदाग रह सकता है। लेकिन यदि 
समय पर दिव्य बुद्धि काम नहीं करती तो रजिस्टर में दाग लग जाता है, इसलिए कहा जाता है 
कर्मो की लीला अति गुह्य है। दुनिया वाले तो हर कदम में कर्मों को कूटते हैं लेकिन आप कर्मो की 
गति के ज्ञाता बच्चे कभी कर्म कूट नहीं सकते। आप तो कहेंगे वाह मेरे श्रेष्ठ कर्म। 

स्लोगन:- पवित्रता की गहन धारणा से ही अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होती है।