मुरली सार:- "मीठे बच्चे - दिन में शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करो, रात में बैठ ज्ञान का सिमरण करो,
प्रश्न:- माया किन बच्चों को याद में बैठने ही नहीं देती है?
उत्तर:- जिनकी बुद्धि किसी न किसी में फँसी हुई रहती है, जिनकी बुद्धि को ताला लगा हुआ है, पढ़ाई
गीत:- तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है.......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मनुष्यों को हीरे जैसा बनाने की रूहानी सर्विस करनी है। कभी भी संशयबुद्धि बन पढ़ाई
2) शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते भी बाप को याद करना है। श्रीमत में अपना कल्याण समझ
वरदान:- हद की दीवारों को पार कर मंजिल के समीप पहुंचने वाले उपराम भव
किसी भी प्रकार की हद की दीवार को पार करने की निशानी है - पार किया, उपराम बना।
स्लोगन:- अनुभवों की अथॉरिटी बनो तो माया के भिन्न-भिन्न रॉयल रूपों से धोखा नहीं खायेंगे।
बाप को याद करो, बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिराओ तो नशा चढ़ेगा''
प्रश्न:- माया किन बच्चों को याद में बैठने ही नहीं देती है?
उत्तर:- जिनकी बुद्धि किसी न किसी में फँसी हुई रहती है, जिनकी बुद्धि को ताला लगा हुआ है, पढ़ाई
अच्छी रीति नहीं पढ़ते हैं माया उन्हें याद में बैठने नहीं देती। वह मनमनाभव रह नहीं सकते। फिर
सर्विस के लिए भी उनकी बुद्धि चलती नहीं। श्रीमत पर न चलने के कारण नाम बदनाम करते हैं,
धोखा देते हैं तो सजायें भी खानी पड़ती हैं।
गीत:- तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है.......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मनुष्यों को हीरे जैसा बनाने की रूहानी सर्विस करनी है। कभी भी संशयबुद्धि बन पढ़ाई
को नहीं छोड़ना है। ट्रस्टी होकर रहना है।
2) शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते भी बाप को याद करना है। श्रीमत में अपना कल्याण समझ
चलते रहना है। अपनी मत नहीं चलानी है।
वरदान:- हद की दीवारों को पार कर मंजिल के समीप पहुंचने वाले उपराम भव
किसी भी प्रकार की हद की दीवार को पार करने की निशानी है - पार किया, उपराम बना।
उपराम स्थिति अर्थात् उड़ती कला। ऐसी उड़ती कला वाले कभी भी हद में लटकते वा अटकते नहीं,
उन्हें मंजिल सदा समीप दिखाई देती है। वे उड़ता पंछी बन कर्म के इस कल्प वृक्ष की डाली
पर आयेंगे। बेहद के समर्थ स्वरूप से कर्म किया और उड़ा। कर्म रूपी डाली के बंधन में फंसेंगे
नहीं। सदा स्वतत्र होंगे।
स्लोगन:- अनुभवों की अथॉरिटी बनो तो माया के भिन्न-भिन्न रॉयल रूपों से धोखा नहीं खायेंगे।