मुरली सार:- "मीठे बच्चे - बाप के गले का हार बनने के लिए ज्ञान-योग की रेस करो,
प्रश्न:- किस मस्ती में सदा रहो तो बीमारी भी ठीक होती जायेगी?
उत्तर:- ज्ञान और योग की मस्ती में रहो, इस पुराने शरीर का चिन्तन नहीं करो।
गीत:- जो पिया के साथ है......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी से भी ऩफरत नहीं करनी है। सबसे मीठा व्यवहार करना है। ज्ञान-योग
2) नींद को जीतने वाला बन सवेरे-सवेरे उठ बाप को याद करना है। स्वदर्शन चक्र
वरदान:- ट्रस्टी पन की स्मृति से हर परिस्थिति में एकरस स्थिति का अनुभव
जब स्वयं को ट्रस्टी समझकर रहेंगे तो हर परिस्थिति में स्थिति एकरस रहेगी
स्लोगन:- सन्तुष्टता और सरलता का सन्तुलन रखना ही श्रेष्ठ आत्मा की निशानी है।
तुम्हारा फ़र्ज है सारी दुनिया को बाप का परिचय देना''
प्रश्न:- किस मस्ती में सदा रहो तो बीमारी भी ठीक होती जायेगी?
उत्तर:- ज्ञान और योग की मस्ती में रहो, इस पुराने शरीर का चिन्तन नहीं करो।
जितना शरीर में बुद्धि जायेगी, लोभ रखेंगे उतना और ही बीमारियां आती जायेंगी।
इस शरीर को श्रृंगारना, पाउडर, क्रीम आदि लगाना - यह सब फालतू श्रृंगार है, तुम्हें
अपने को ज्ञान-योग से सजाना है। यही तुम्हारा सच्चा-सच्चा श्रृंगार है।
गीत:- जो पिया के साथ है......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी से भी ऩफरत नहीं करनी है। सबसे मीठा व्यवहार करना है। ज्ञान-योग
में रेस करके बाप के गले का हार बन जाना है।
2) नींद को जीतने वाला बन सवेरे-सवेरे उठ बाप को याद करना है। स्वदर्शन चक्र
फिराना है। जो सुनते हैं उस पर विचार सागर मंथन करने की आदत डालनी है।
वरदान:- ट्रस्टी पन की स्मृति से हर परिस्थिति में एकरस स्थिति का अनुभव
करने वाले न्यारे प्यारे भव
जब स्वयं को ट्रस्टी समझकर रहेंगे तो हर परिस्थिति में स्थिति एकरस रहेगी
क्योंकि ट्रस्टी अर्थात् न्यारे और प्यारे। गृहस्थी हैं तो अनेक रस हैं, मेरा-मेरा बहुत
हो जाता है। कभी मेरा घर, कभी मेरा परिवार। गृहस्थीपन अर्थात् अनेक रसों में
भटकना। ट्रस्टीपन अर्थात् एकरस। ट्रस्टी सदा हल्का और सदा चढ़ती कला में
जायेगा। उसमें मेरेपन की ममता नहीं होगी, दु:ख की लहर भी नहीं आयेगी।
स्लोगन:- सन्तुष्टता और सरलता का सन्तुलन रखना ही श्रेष्ठ आत्मा की निशानी है।