Friday, October 4, 2013

Murli[4-10-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम बेहद के बाप को याद करो, इसमें ही ज्ञान, भक्ति और 
वैराग्य तीनों समाया हुआ है, यह है नई पढ़ाई'' 

प्रश्न:- संगम पर ज्ञान और योग के साथ-साथ भक्ति भी चलती है - कैसे? 
उत्तर:- वास्तव में योग को भक्ति भी कह सकते हैं क्योंकि तुम बच्चे अव्यभिचारी याद 
में रहते हो। तुम्हारी यह याद ज्ञान सहित है इसलिए इसे योग कहा गया है। द्वापर से 
सिर्फ भक्ति होती, ज्ञान नहीं होता, इसलिए उस भक्ति को योग नहीं कहा जाता। उसमें 
कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। अभी तुम्हें ज्ञान भी मिलता, योग भी करते फिर तुम्हारा 
बेहद की सृष्टि से वैराग्य भी है। 

गीत:- किसी ने अपना बना के........ 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) गृहस्थ व्यवहार में रहते नष्टोमोहा भी बनना है। साथ-साथ सबसे तोड़ निभाते कमल 
फूल समान रहना है। 

2) धारणा करने के लिए ज्ञान धन का दान जरूर करना है। ज्ञान और योग से अपनी 
कमाई जमा करनी है। बाकी ध्यान दीदार की आश नहीं रखनी है। 

वरदान:- दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि के वरदान द्वारा नम्बर वन लेने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्था भव 

हर एक ब्राह्मण बच्चे को दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि का वरदान जन्म से ही प्राप्त होता है। 
यह वरदान ही ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन है। इन्हीं दोनों बातों के आधार पर संगमयुगी 
पुरुषार्थियों का नम्बर बनता है। इन्हें हर संकल्प, बोल और कर्म में जो जितना यूज़ करता 
है उतना ही नम्बर आगे लेता है। रूहानी दृष्टि से वृत्ति और कृति स्वत: बदल जाती है। दिव्य
बुद्धि द्वारा यथार्थ निर्णय करने से स्वयं, सेवा, संबंध सम्पर्क यथार्थ शक्तिशाली बन जाता है। 

स्लोगन:- फीचर्स में रूहानियत की झलक तब आयेगी जब संकल्प, बोल और कर्म में 
पवित्रता की धारणा होगी।