मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम अभी पुजारी से पूज्य, बेगर से प्रिन्स बन रहे हो,
प्रश्न:- अविनाशी ज्ञान रत्नों की वर्षा से भारत को साहूकार बनाने के लिए बाप
गीत:- इन्साफ की डगर पर.......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के दिलतख्त पर बैठने के लिए सर्विस की जवाबदारी लेनी है। महादानी
2) ऊंची चढ़ाई है इसलिए बहुत सावधानी से चलना है। कदम-कदम पर श्रीमत लेते रहना है।
वरदान:- अपने मस्तक बीच सदा बाप की स्मृति इमर्ज रखने वाले मस्तकमणि भव
मस्तकमणि अर्थात् जिसके मस्तक में सदा बाप की याद रहे, इसी को ही ऊंची स्टेज
स्लोगन:- बेफिक्र बादशाह की स्थिति का अनुभव करना है तो मेरे को तेरे में परिवर्तन कर दो।
इसलिए तुम्हें खुशी में खग्गियां मारनी है, कभी भी रोना नहीं है''
प्रश्न:- अविनाशी ज्ञान रत्नों की वर्षा से भारत को साहूकार बनाने के लिए बाप
तुम्हें किस बात में आप समान बनाते हैं?
उत्तर:- बाबा कहते - बच्चे, जैसे मैं रूप बसन्त हूँ, ऐसे तुम्हें भी रूप बसन्त बनाता
उत्तर:- बाबा कहते - बच्चे, जैसे मैं रूप बसन्त हूँ, ऐसे तुम्हें भी रूप बसन्त बनाता
हूँ। जो अविनाशी ज्ञान रत्न तुम्हें मिले हैं उन्हें धारण कर मुख से दान करो। इसी
महादान से भारत साहूकार बनेगा। जैसे तुम बच्चे बाप से वर्सा ले रहे हो ऐसे औरों
को भी दो। तुम्हारा फर्ज है सबको रास्ता बताना, सुखदाई बनना।
गीत:- इन्साफ की डगर पर.......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के दिलतख्त पर बैठने के लिए सर्विस की जवाबदारी लेनी है। महादानी
जरूर बनना है। ज्ञान दान करने में कुछ खर्चा हो तो हर्जा नहीं।
2) ऊंची चढ़ाई है इसलिए बहुत सावधानी से चलना है। कदम-कदम पर श्रीमत लेते रहना है।
वरदान:- अपने मस्तक बीच सदा बाप की स्मृति इमर्ज रखने वाले मस्तकमणि भव
मस्तकमणि अर्थात् जिसके मस्तक में सदा बाप की याद रहे, इसी को ही ऊंची स्टेज
कहा जाता है। अपने को सदा ऐसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा समझ
आगे बढ़ते रहो। जो इस ऊंची स्टेज पर रहते हैं वह नीचे की अनेक प्रकार की बातों को
सहज पार कर लेते हैं। समस्यायें नीचे रह जाती हैं और स्वयं ऊपर हो जाते। मस्तकमणि
का स्थान ही ऊंचा मस्तक है इसलिए नीचे नहीं आना, सदा ऊपर रहो।
स्लोगन:- बेफिक्र बादशाह की स्थिति का अनुभव करना है तो मेरे को तेरे में परिवर्तन कर दो।