Thursday, October 24, 2013

Murli[16-10-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - जितना याद में रहेंगे, पवित्र बनेंगे उतना पारलौकिक मात-पिता 
की दुआयें मिलेंगी, दुआयें मिलने से तुम सदा सुखी बन जायेंगे।'' 

प्रश्न:- बाप सभी बच्चों को कौन-सी राय देकर कुकर्मों से बचाते हैं? 
उत्तर:- बाबा राय देते - बच्चे, तुम्हारे पास जो भी धन-दौलत आदि है, वह सब अपने पास 
रखो लेकिन ट्रस्टी होकर चलो। तुम कहते आये हो हे भगवान् यह सब कुछ आपका है। भगवान् 
ने बच्चा दिया, धन-दौलत दिया, अब भगवान् कहते हैं इन सबसे बुद्धियोग निकाल तुम ट्रस्टी 
होकर रहो, श्रीमत पर चलो तो कोई भी कुकर्म नहीं होगा। तुम श्रेष्ठ बन जायेंगे। 

गीत:- ले लो दुआयें माँ बाप की........ 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) चलते-फिरते अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। भोजन एक बाप की याद में खाना है। 

2) मात-पिता की दुआयें लेनी हैं। ट्रस्टी होकर रहना है। कोई भी कुकर्म नहीं करना है। 

वरदान:- मर्यादा पुरूषोत्तम बन सदा उड़ती कला में उड़ने वाले नम्बरवन विजयी भव 

नम्बरवन की निशानी है हर बात में विन करने वाले। किसी भी बात में हार न हो, सदा विजयी। 
यदि चलते-चलते कभी हार होती है तो उसका कारण है मर्यादाओं में नीचे ऊपर होना। लेकिन यह
संगमयुग है मर्यादा पुरूषोत्तम बनने का युग। पुरूष नहीं, नारी नहीं लेकिन पुरूषोत्तम हैं, इसी स्मृति 
में सदा रहो तो उड़ती कला में जाते रहेंगे, नीचे नहीं रूकेंगे। उड़ती कला वाला सेकण्ड में सर्व समस्यायें 
पार कर लेगा। 

स्लोगन:- एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहो तो दूसरा कोई संग प्रभाव नहीं डाल सकता।