Friday, October 11, 2013

Murli[11-10-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - निश्चय करो कि हम आत्मा हैं, यह हमारा शरीर है, इसमें साक्षात्कार की कोई बात 
नहीं, आत्मा का साक्षात्कार भी हो तो समझ नहीं सकेंगे'' 

प्रश्न:- बाप की किस श्रीमत पर चलने से गर्भजेल की सजाओं से छूट सकते हैं? 
उत्तर:- बाप की श्रीमत है - बच्चे नष्टोमोहा बनो, एक बाप दूसरा न कोई, तुम सिर्फ मुझे याद करो और कोई 
भी पाप कर्म न करो तो गर्भजेल की सजाओं से छूट जायेंगे। यहाँ तुम जन्म-जन्मान्तर जेल बर्ड बनते आये,
अब बाप आये हैं उन सजाओं से बचाने। सतयुग में गर्भ जेल होता नहीं। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) जीते जी बाप को याद कर वर्से का अधिकार लेना है, किसी भी बात की परवाह नहीं करनी है। 

2) श्रीमत पर अपने तन-मन-धन से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है और सबको रावण से लिबरेट 
होने की युक्ति बतानी है। 

वरदान:- साथ रहेंगे, साथ जियेंगे.. इस वायदे की स्मृति द्वारा कम्बाइन्ड रहने वाले सहजयोगी भव 

आप बच्चों का वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ जियेंगे, साथ चलेंगे... इस वायदे को स्मृति में रख बाप और आप 
कम्बाइन्ड रूप में रहो तो इस स्वरूप को ही सहजयोगी कहा जाता है। योग लगाने वाले नहीं लेकिन सदा 
कम्बाइन्ड अर्थात् साथ रहने वाले। ऐसे साथ रहने वाले ही निरन्तर योगी, सदा सहयोगी, उड़ती कला में जाने 
वाले फरिश्ता स्वरूप बनते हैं। 

स्लोगन:- क्वेश्चन मार्क का टेढ़ा रास्ता लेने के बजाए कल्याण की बिन्दी लगाना ही कल्याणकारी बनना है।