मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम्हें बड़ा विचित्र उस्ताद मिला है, तुम उसकी श्रीमत पर चलो
प्रश्न:- पढ़ाई में कभी भी थकावट न आये उसका सहज पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर:- पढ़ाई के बीच में जो कभी निंदा-स्तुति, मान-अपमान होता है, उसमें स्थिति समान
गीत:- बनवारी रे जीने का सहारा तेरा नाम......
2) स्तुति-निंदा में स्थिति समान रखनी है। यह सब होते पढ़ाई नहीं छोड़नी है। इसे खेल समझ
वरदान:- सदा स्नेह और सहयोग द्वारा अविनाशी रत्न का टाइटल प्राप्त करने वाले अमरभव
जो स्थापना के कार्य में सदा स्नेही और सहयोगी रहते हैं उन्हें अविनाशी रत्न का टाइटल मिल
स्लोगन:- पवित्रता की यथार्थ धारणा है तो हर कर्म यथार्थ और युक्तियुक्त होगा।
तो डबल सिरताज देवता बन जायेंगे''
प्रश्न:- पढ़ाई में कभी भी थकावट न आये उसका सहज पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर:- पढ़ाई के बीच में जो कभी निंदा-स्तुति, मान-अपमान होता है, उसमें स्थिति समान
रहे, उसे एक खेल समझो तो कभी थकावट नहीं आयेगी। सबसे जास्ती निंदा तो कृष्ण की
हुई है, कितने कलंक लगाये हैं, फिर ऐसे कृष्ण को पूजते भी हैं। तो यह गाली मिलना कोई
नई बात नहीं है इसलिए पढ़ाई में थकना नहीं है, जब तक बाप पढ़ा रहे हैं, पढ़ते रहना है।
गीत:- बनवारी रे जीने का सहारा तेरा नाम......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाली कामधेनु (जगदम्बा) बनना है। दान देते रहना है।
2) स्तुति-निंदा में स्थिति समान रखनी है। यह सब होते पढ़ाई नहीं छोड़नी है। इसे खेल समझ
पार करना है।
वरदान:- सदा स्नेह और सहयोग द्वारा अविनाशी रत्न का टाइटल प्राप्त करने वाले अमरभव
जो स्थापना के कार्य में सदा स्नेही और सहयोगी रहते हैं उन्हें अविनाशी रत्न का टाइटल मिल
जाता है। ऐसे अविनाशी रत्न जो कभी कोई भी हिला न सके। कोई भी रूकावट रोक न सके।
ऐसे अविनाशी रत्न ही अमरभव के वरदानी हैं। रीयल गोल्ड हैं, बाप के साथी हैं। वे बाप के
कार्य को अपना समझते हैं। सदा साथ रहते हैं इसलिए अविनाशी बन जाते हैं।
स्लोगन:- पवित्रता की यथार्थ धारणा है तो हर कर्म यथार्थ और युक्तियुक्त होगा।